राहुल गांधी ने अपना सरकारी आवास खाली कर दिया है। सूरत की एक अदालत ने मानहानि के मामले में उन्हें दो वर्ष की सजा सुना दी। इस फैसले का तत्काल प्रभाव से संज्ञान लेते हुये लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी और उसके बाद उन्हें सरकारी आवास खाली करने का नोटिस भी थमा दिया। राहुल ने इस आदेश की अनुपालना करते हुये आवास खाली कर दिया। सूरत की जिस अदालत ने सजा दी थी उसी ने उन्हें अपील के लिए तीस दिन का समय देते हुये अपने फैसले पर रोक भी लगा दी थी। लेकिन लोकसभा सचिवालय ने इस समय तक इन्तजार करने की बजाये तुरन्त कारवाई कर दी। लोकसभा सचिवालय की इस कारवाई पर पूरे देश में तीव्र प्रतिक्रियाएं उभरी हैं और यह एक बड़ी राष्ट्र बहस का विषय बन गया है। हर राजनीतिक दल और नेता को इस पर अपना स्टैंड लेना पड़ा है। कोई भी तटस्था की स्थिति में नही रह पाया है। कानूनी लड़ाई के साथ-साथ इसका राजनीतिक पक्ष बहुत बड़ा बन गया है। क्योंकि यह सजा किसी हत्या, अपहरण, डकैती या भ्रष्टाचार के मामले में नहीं वरन चुनावी सभा में दिये गये एक ब्यान पर हुई है। बल्कि इस सजा और उस पर हुई कारवाई से देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों के भविष्य को लेकर उठे सवाल अपरोक्ष में और पुख्ता हो जाते हैं। राहुल गांधी के खिलाफ हुई कारवाई के बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा खेल और युवा सेवाएं मंत्री हिमाचल के हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर द्वारा 2019 में शाहीन बाग में दिये भाषण देश के गद्दारों को गोली............ का प्रकरण भी सीपीएम नेता वृंदा करात ने सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संबद्ध पक्षों को नोटिस भी जारी कर दिये हैं। राहुल और अनुराग के ब्यानों की यदि तुलना की जाये तो अनुराग का ब्यान ज्यादा गंभीर है। अनुराग हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं और हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है। इस नाते हिमाचल में अनुराग के ब्यान पर राहुल गांधी के परिपेक्ष में प्रदेश में ज्यादा सवाल उठने चाहिये थे। इन सवालों से प्रदेश की जनता राहुल द्वारा लोकतंत्र पर उठाये प्रश्नों को अच्छी तरह से समझ सकती थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि न मीडिया ने और न ही प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने इस पर मुंह खोला। यही नहीं कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री आनन्द शर्मा इस समय किसी भी सदन के सदस्य नहीं है परन्तु उनके पास सरकारी आवास है और उसे खाली करवाने के लिये मोदी सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया है। यही स्थिति गुलाम नबी आजाद, मायावती, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की है। राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रश्न उछल चुके हैं। परन्तु हिमाचल में कोई कांग्रेस नेता इस पर जुबान खोलने का साहस नही कर रहा है जबकि यहां कांग्रेस की सरकार है। आनन्द शर्मा की सांसद निधि से नादौन आदि क्षेत्रों में बहुत काम हुये हैं। आनन्द शर्मा के बड़े स्तर पर प्रदेश में समर्थक हैं।
अनुराग और आनंद शर्मा का प्रसंग उठना इसलिये प्रसांगिक है कि यह दोनों नेता हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। यदि प्रदेश में इन पर सवाल उठेंगे तो यह जवाब देने के लिये उपलब्ध होंगे। इस समय राहुल के खिलाफ हो रही कारवाई को भाजपा और उसके मित्र जायज ठहरा रहे हैं। ऐसे में यदि तथ्यों पर आधारित कांग्रेस शासित राज्यों में भी सवाल नहीं उठाये जाएंगे तो जनता राहुल के समर्थन में कैसे आगे आ पायेगी। जिन बुनियादी सवालों पर राहुल आम आदमी की लड़ाई लड़ रहे हैं यदि उन पर कांग्रेस शासित राज्यों में ही जन आन्दोलन न खड़ा हो पाये तो यह लड़ाई कैसे जीती जायेगी। आज यदि कांग्रेस नेतृत्व कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारों की कार्यशैली पर ही नजर नहीं रख पायेगा तो 2024 की लड़ाई जितना कठिन हो जायेगा। जो आरोप भाजपा सरकारों पर लगते आये हैं यदि कांग्रेस की सरकारें भी उन्हीं आरोपों से घिर जायेगी तो जनता क्यों कांग्रेस पर विश्वास करेंगी।






मलिक ने अपने साक्षात्कार ने यह भी कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस चूक से अवगत करवाया था परन्तु उन्हें प्रधानमंत्री और सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपनी जुबान बन्द रखने के लिये कहा था। अब जब मलिक का यह साक्षात्कार सामने आया है तब इस पर पूर्व सैनिक अधिकारियों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर राय चौधरी ने इसकी जांच किये जाने की मांग की है। बहुत सारे पूर्व सैनिक अधिकारी इस पर प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहे हैं क्योंकि अपनी ही चूक से अपने ही जवानों की जान चली जाये तो निश्चित रूप से इसका सेना के मनोबल पर असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री इस पर चुप हैं। गृहमन्त्री अमित शाह की यह प्रतिक्रिया आयी है की मलिक जब राज्यपाल थे तब क्यों चुप रहे। मलिक का ब्यान कोई राजनीतिक ब्यान नही है वह तब के राज्यपाल हैं। इस पर सीधा जवाब आना चाहिये कि यह सच या झूठ है। यह देश और सेना दोनों की सुरक्षा से जुड़ा मामला है और इस पर प्रधानमंत्री की चुप्पी कई और सवाल खड़े कर देती है।
मलिक के इस साक्षात्कार के बाद जिस तरह से सीबीआई ने एक इन्शयोरैन्स के मामले में उन्हें तलब किया है और उनके यहां एक गैर राजनीतिक आयोजन पर जिस तरह दिल्ली पुलिस ने कारवाई की है उससे न चाहते हुए भी यह सन्देश चला गया है कि सरकार उनसे डर रही है। क्योंकि मलिक किसान आन्दोलन के दौरान कितने मुखर थे यह पूरा देश जानता है। अभी उनके आवास पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की खाप पंचायतों के नेता और दूसरे किसान नेता आये थे उससे उनकी लोकप्रियता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। मलिक के ब्यान का जवाब सीबीआई की सक्रियता नहीं हो सकती न ही इस पर ज्यादा देर तक चुप रहा जा पायेगा।






इस देश में अंग्रेजों से बहुत पहले मुस्लिम आ गये थे। उनका शासन भी देश में रहा है। वह देश में बस गये और यही का हिस्सा बन गये। अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उनका भी योगदान रहा है। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई जिसे झूठलाया नहीं जा सकता। जो निश्चित रूप से सच हो उसे ही इतिहास कहा जाता है। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस का योगदान दूसरों से अधिक रहा है। गांधी उसके नायक रहे हैं। मोतीलाल नेहरू ने आनंद भवन इस लड़ाई में देश के हवाले कर दिया था। क्या इन तथ्यों को झूठलाया जा सकता है शायद नहीं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की आजादी की लड़ाई में रही भूमिका पर जो सवाल भाजपा नेता डा. स्वामी ने उठाये हैं क्या उनका जवाब किसी ने आज तक दिया है? गांधी, नेहरू और मुगल इतिहास के अध्यायों को पाठयक्रम से हटाकर इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता। ईसा को किसी पाठय पुस्तक में अपशब्द कहकर उनकी महानता को कम नहीं किया जा सकता। पाठयक्रमों में मनुस्मृति और श्री मदभगवत् गीता को जोड़कर इतिहास को नये सिरे से नहीं लिखा जा सकता। जो प्रयास संघ के इतिहास लेखन प्रकोष्ठ के माध्यम से किया जा रहा है।
पाठयक्रमों से अध्यायों को हटाने जोड़ने से ज्यादा संवेदनशील मुद्दा यह है कि अब बच्चों को पाठयक्रमों में विस्तृत चुनाव पर विकल्प दे दिये गये हैं। अब पाठयक्रम ‘‘अतिरिक्त पाठयक्रम’’ या सह पाठयक्रम कला, मानविकी और विज्ञान अथवा व्यवसायिक या अकादमिक धारा जैसी कोई श्रेणीयां नहीं होगी। यह विषय बच्चों की रूची के अनुसार पाठयक्रम में शामिल किये जायेंगे। पहले प्लस टू के बाद बच्चा एक धारा विशेष में जाने का पात्र हो जाता था। क्योंकि सारी व्यवसायिक शिक्षा प्लस टू के बाद पंचवर्षीय हो चुकी है। अब क्योंकि कोई धारा ही नहीं होगी तो वह अगला विकल्प क्या और कैसे चुनेगा। दो वर्ष बाद जो बच्चे प्लस टू करके निकलेंगे उनके लिये यह व्यवहारिक कठिनाई खड़ी होगी। इस समय जो बहस पाठयक्रमों में कटौती करके हटाये गये अध्यायो पर केंद्रित होकर रह गई है उसमें प्लस टू के बाद आने वाली स्थिति पर विचार करना आवश्यक है।






इसी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में 2014 के चुनाव घोषित हुए भ्रष्टाचार और काले धन के आंकड़े के प्रभाव में ही हर आदमी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आने का सपना दिखाया गया। कांग्रेस में काफी तोड़फोड़ हुई और परिणाम स्वरूप सत्ता बदल गयी। सत्ता बदलने के बाद पंद्रह लाख चुनावी जुमला बता दिया गया। जिस 2जी स्कैम में 1,76,000 करोड़ के घपले का आंकड़ा प्रधान लेखाकार विनोद राय ने परोसा था उन्होंने बाद में अदालत में शपथ पत्र देकर यह कहा कि कोई स्कैम नहीं हुआ था गणना करने में गलती लग गई थी। अन्ना आन्दोलन में जिस लोकपाल की नियुक्ति प्रमुख मांग थी क्या उसके पास आज तक कोई बड़ा मुद्दा गया है? शायद नहीं। 2014 के चुनाव में जो वायदे किये गये थे उनमें से कितने पूरे हुए हैं। लेकिन चुनावी वायदों की ओर ध्यान जाने से पहले ही गौ रक्षा और लव जिहाद जैसे मुद्दे प्रमुख हो गये। चुनावी वायदों की जगह नोटबंदी आ गयी जीएसटी आ गया। प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना आ गयी। इसमें दिये गये ऋण का कितना हिस्सा वापिस आ पाया है यह आंकड़ा आज तक जारी नहीं हो सका है। 2019 के चुनावों के बाद श्रम कानूनों में किया गया बदलाव किसी चुनाव का वायदा नहीं था और न ही कृषि कानून लाने का कोई वायदा था। यदि कोविड के कारण देश में लॉकडाउन न लगता तो शायद श्रम और कृषि कानूनों पर उभरे आन्दोलन का स्वरूप कुछ और ही होता।
जब यह सब हो रहा था तो इसके समानांतर ही हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए अलग से काम हो रहा था। मेघालय उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश एस.आर.सेन ने यह फैसला दिया कि देश को अब हिन्दू राष्ट्र हो जाना चाहिए। इस फैसले को 2019 में इसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की पीठ ने बदल डाला। लेकिन यह फैसला तो आया और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के नाम से नया भारतीय संविधान वायरल हुआ। मनुस्मृति आधारित इस कथित संविधान के वायरल होने पर संघ और केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रियाएं आज तक नहीं आयी है। संघ हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध है यह सब जानते हैं। संघ का मोदी सरकार पर कितना प्रभाव है यह भी किसी से छुपा नहीं है। भाजपा संघ की राजनीतिक इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है। भाजपा सरकारों का केंद्र से लेकर राज्यों तक अधिकांश आचरण हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना के गिर्द ही घूमता आ रहा है। इस परिपेक्ष में जब यह परिदृश्य निर्मित होता जा रहा है की पूरी राजनीति भाजपा बनाम विपक्ष की बजाये राहुल बनाम मोदी होने तक पहुंचा दी गयी है। पूरे सरकारी प्रयासों से एक भामाशाह तैयार किया जा रहा है। पूरी सरकार खुलकर उसके बचाव में खड़ी हो गयी है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी कहीं भी चिन्ता और चिन्तन का विषय नहीं रह गये हैं। सत्ता से मतभेद रखने वाला हर व्यक्ति भ्रष्टाचारी करार दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति को ही अराजकता की संज्ञा दी जाती है। और अराजक वातावरण में ही नये फैसले थोपे जाते हैं। क्या यह सब 2024 की सत्ता से ज्यादा हिन्दू राष्ट्र के ऐजैण्डे को व्यवहारिक रूप देने के लिये एक जमीन तो तैयार नहीं की जा रही है।






राहुल के जिस ब्यान से मोदी समाज का अपमान हुआ है उससे ज्यादा अपमानजनक टिप्पणी राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य और भाजपा नेत्री खुशबू सुन्दर की 2018 में रही है। तब मोदी समाज का अपमान नहीं हुआ क्योंकि मोदी किसी समुदाय विशेष का घोतक नहीं है। मोदी उपनाम वाले सारे लोग एक ही समुदाय या जाति के नहीं हैं। हिन्दू, मुस्लिम, पारसी सभी इस उपनाम का उपयोग करते हैं। वैष्णव (बनिया) पोरबन्दर के खारवा (मछुआरे) और लोहाना (व्यवसायी) समुदाय में मोदी उपनाम लगाने वाले लोग हैं। ओ.बी.सी. की सूची में मोदी नाम का कोई समुदाय या जाती नहीं है। बिहार और राजस्थान की केन्द्रीय सूची में भी कोई मोदी नहीं है। गुजरात की केंद्रीय सूची में मोदी घांची है। यहां सब अब सामने आ चुका है। इस गणित में कौन सा मोदी कैसे आहत हुआ यह एक सामान्य समझ का विषय बन जाता है। आगे अदालतों में यह बहस का विषय बनेगा। इस मामले की सुनवाई एक माह में पूरी हो गयी। जबकि शायद फास्ट टै्रक कोर्ट भी इस गति से फैसले नही दे पाये हैं। इस तरह मामले के सारे तथ्यों को यदि एक साथ रखकर देखा जाये तो इसमें निश्चित रूप से राजनीति की गंध आती है। एक राजनीतिक गंध हर रोज स्पष्ट होती जा रही है। इसी से भाजपा लगातार यह सवाल कर रही है कि कांग्रेस ऊपरी अदालत में क्यों नहीं जा रही है। क्योंकि जैसे ही मामला अदालत में जायेगा तो तुरंत प्रभाव से अदालत में विचाराधीन की श्रेणी में आ जायेगा और सार्वजनिक बहस काफी हद तक रुक जायेगी यही भाजपा चाहती है।
इस समय नरेंद्र मोदी से राहुल का राजनीतिक कद बहुत बढ़ गया है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल को जिस तरह से स्थापित कर दिया है उसकी बराबरी कर पाना शायद नरेंद्र मोदी के लिये कठिन हो गया है। क्योंकि इस प्रकरण के बाद वह सब कुछ एकदम फिर से चर्चा में आ गया है जो पिछले आठ वर्षों में देश में घटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश विदेश में दिये सारे ब्यान ताजा हो गये हैं। किस तरह से एक ही झटके में यह कह दिया गया कि 75 वर्षों में देश में हुआ ही कुछ नहीं है। किस तरह से पूर्व प्रधानमंत्रियों को लेकर टिप्पणियां की गयी है वह सब चर्चा में आ गयी है। कैसे नेहरु, गांधी परिवार के खिलाफ एक तरह से जिहाद छेड़े गये। कैसे राहुल को पप्पू प्रचारित करने में अरबों रुपए खर्च किये गये। कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में यह सामने आ चुका है। यह बहस चल पड़ी है कि देश का अपमान नरेन्द्र मोदी ने किया है कि राहुल गांधी ने। क्योंकि सरकार लगातार अपने विरोधियों को येन केन प्रकारेण दबाने में लगी रही और आाम जनता को इसके बदले में जो महंगाई और बेरोजगारी मिली उसमें आज जनता को दोनों में तुलना करने पर खड़ा कर दिया है और उसमें मोदी कमजोर पढ़ते जा रहे हैं। क्योंकि अदानी प्रकरण पर सारी सरकार और भाजपा का अदानी के पक्ष में खड़े हो जाना आम आदमी की नजर में लगातार प्रश्नित होता जा रहा है। जब आज तक हर विवादित मुद्दे पर जे.पी.सी. का गठन होता आया है तो अदानी मामले में क्यों नहीं ? क्यों केंद्रीय कानून मंत्री सर्वोच्च न्यायालय और सेवानिवृत्त जजां के खिलाफ हर कुछ बोलने लग गये हैं। जनता इस सब पर नजर रख रही हैं और यही भाजपा तथा मोदी सरकार का कमजोर पक्ष बनता जा रहा है।