Friday, 19 September 2025
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क्या राहुल के ब्यानों पर भाजपा की प्रतिक्रियाएं मोदी सरकार का डर है

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ब्रिटेन में दिये बयानों से भारत का अपमान हुआ है? यह सवाल भाजपा और मोदी सरकार की प्रतिक्रियाओं के बाद एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिससे पिछले आठ वर्षों की सारी कार्यप्रणाली को जनता के आकलन के लिये लाकर खड़ा कर दिया है। वसुदेव कुटुंबकम के ब्रह्म वाक्य पर आचरण करने का दावा करने वाले जब एक व्यक्ति के ब्यान से आक्रोशित हो उठे तो यह मानना पड़ेगा कि चोट बहुत गहरे तक लगी है। 2014 में जब अन्ना आन्दोलन ने सत्ता परिवर्तन की नीव रखी थी तब उस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा था लोकपाल की स्थापना। 2G स्कैम के 1,76,000 करोड़ के आंकड़े ने पूरा देश हिला कर रख दिया था। लेकिन बाद में इस कैग रिपोर्ट के जनक विनोद राय ने अदालत में यह स्वीकार किया की 2G में कोई घपला हुआ ही नहीं है उन्हें गणना में गलती लगी है। क्या इससे देश की इज्जत बढ़ी थी? काले धन से हर भारतीय के खाते में पन्द्रह लाख आने का वायदा किया गया था जिसे बाद में जुमला कह कर टाल दिया गया। क्या इससे हर भारतीय का मान बढ़ा है? कोविड जैसी बीमारी को भगाने के लिये प्रधानमंत्री के निर्देश पर ताली थाली बजाई गयी। दीया जलाया गया क्या इससे देश का मान बढ़ा है? देश के अस्सी करोड़ लोग मुफ्त राशन पर जी रहे हैं क्या यह मान बढ़ाने वाली उपलब्धि है? क्या सरकार के इस दावे से ग्लोबल हंगर इन्डैक्स की भारत में भूख पर आयी रिपोर्ट मान बढ़ाने वाली बात है? विदेश की धरती पर जब देश का प्रधानमंत्री यह कहे कि देश में पिछले 70 वर्षों में कुछ नहीं हुआ है तो क्या उससे मान बढ़ा था। जब प्रधानमंत्री ने अमेरिका जाकर ट्रंप के लिये चुनाव प्रचार करते हुए यह कहा था कि ‘‘अबकी बार ट्रंप सरकार’’ तो क्या वह ट्रंप और अमेरिका को देश में दखल देने का न्योता नहीं था? आज जब भारतीय मूल के लोग विदेशों में कई मुल्कों की संसद और सरकार तक पहुंच गये हैं और देश के लोग उनकी इस उपलब्धि पर प्रसन्न होते हैं तो क्या वह लोग भारत की हर छोटी-बड़ी घटना पर नजर नहीं रख रहे हैं। क्या विदेशी मीडिया भारत में घटने वाली हर घटना को रिपोर्ट नही कर रहा है। राफेल सौदे पर उठे विवाद को लेकर भारत और फ्रांस के अलग स्टैंड पर विश्व में चर्चा नहीं हुई है। बीबीसी की डाक्यूमेंट्री क्या विदेशों में नहीं देखी गयी है? क्या बीबीसी के खिलाफ की गयी कारवाई विदेशों में रिपोर्ट नहीं हुई है? दी गार्जियन की रिपोर्ट क्या विदेशों में नही पढ़ी गयी है? क्या इसी रिपोर्ट के बाद चुनाव आयोग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं आया है। क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने विश्व के शेयर बाजार को प्रभावित नही किया है? राहुल गांधी के ब्यान पर उभरी प्रतिक्रिया ने पिछले आठ वर्षों की सारी छोटी-बड़ी घटनाओं को फिर से चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। विश्व गुरु और विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावों को बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के आयने ने एकदम नंगा करके खड़ा कर दिया है। जो देश अपने प्रधानमंत्री को निर्देश पर आज के कम्प्यूटर युग में भी बिमारी को भगाने के लिये ताली थाली बजाये और दीया जलाये वह विश्व गुरु बनने के कितना करीब होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसे आचरण से हमारी वैद्यिकता क्या आंकी गयी होगी यह सोचकर भी डर लगता है। आज जिस तरह से केंद्रीय जांच एजैन्सियां विपक्ष के नेताओं के खिलाफ सक्रिय की गयी है उससे यह जन चर्चा चल पड़ी है कि सारे भ्रष्टाचारी विपक्ष में ही हैं। भाजपा में जाकर सबके पाप धुल जाते हैं। भले ही हेमन्त बिस्वा सरमा जैसे नेता जब कांग्रेस में थे तब उनके भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा ने पुस्तिका छाप दी थी और जांच की मांग की थी लेकिन भाजपा में जाते ही वह पाक साफ हो गये हैं। विपक्षी दलों से टूटकर जितने भी नेता भाजपा में गये हैं वह सब आरोप लगने के बाद ही गये हैं और भाजपा में जाकर अपराध मुक्त हो गये हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता से जो वायदे किये गये थे अब 2024 के चुनाव में जनता उनका हिसाब न पूछे और विपक्ष का कोई नेता उन वायदों पर सवाल न उठाये इसलिये केंद्रीय जांच एजैन्सियों के सहारे विपक्ष और उसके महत्वपूर्ण नेताओं को घेरने का प्रयास किया जा रहा है। आज कांग्रेस ही एक ऐसा राजनीतिक दल है जो देश के प्रत्येक गांव में जाना जाता है। कांग्रेस में राहुल गांधी का चरित्र हनन करने के लिये किस तरह के क्या क्या प्रयास किये गये हैं वह कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में सामने आ चुके हैं। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जो चुनौती सरकार के सामने रखी है उससे सरकार हिल गयी है क्योंकि विदेशी मीडिया भी इस यात्रा को कवर कर रहा था। इस यात्रा में जो कुछ देश की जनता के सामने राहुल ने रखा है आज प्रवासी भारतीय उसी की पुष्टि के लिये उन्हें आमंत्रित कर रहे हैं और यही मोदी सरकार को डर है।

श्वेत पत्र के संद्धर्भ में कुछ संभावित प्रश्न

सुक्खु सरकार ने प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने का फैसला लिया है। बजट सत्र में यह श्वेत पत्र आयेगा। इसलिये प्रदेश के कर्ज की स्थिति पर कुछ प्रश्न उठाये जाने आवश्यक हो जाते हैं ताकि उनका जवाब इस श्वेत पत्र में आ जाये। इस सरकार के मुताबिक उसे 75000 करोड़ का कर्ज और 11000 करोड की पैन्शन वेतन की देनदारियों विरासत में मिली हैं। इस सरकार को भी अब तक 4500 करोड़ कर्ज लेना पड़ गया है। मुख्यमंत्री ने इस वित्तीय परिदृश्य में प्रदेश में श्रीलंका जैसी स्थितियां बन जाने की आशंका व्यक्त की है। इस आशंका पर दो पूर्व मुख्यमंत्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल ने अपनी प्रतिक्रियाएं जारी की हैं। शान्ता कुमार ने दिसम्बर 1992 में पद छोड़ा था और तब प्रदेश पर शुन्य कर्ज होने का दावा किया है। प्रेम कुमार धूमल ने दिसम्बर 2012 में पद छोड़ा था और अपने कार्यकाल में केवल छः हजार करोड़ का कर्ज लेने का दावा किया है। इसके बाद कांग्रेस और जयराम का कार्यकाल रह जाता है। धूमल ने उनके कार्यकाल में कुल कितना कर्ज प्रदेश पर था यह आंकड़ा जारी नहीं किया है। धूमल ने जब 1998 में पद संभाला था तब वह अपना श्वेत पत्र लाये थे और यह खुलासा किया था कि जब स्वर्गीय राम लाल ठाकुर ने प्रदेश छोड़ा था तब कर्ज की बजाये वित्तीय सरप्लस में प्रदेश था। इस वस्तुस्थिति में सुक्खु सरकार से यह अपेक्षा रहेगी कि वह सभी मुख्यमंत्रीयों के कार्यकाल में वित्तीय स्थिति क्या रही है इस पर मुख्यमंत्री वार खुलासा प्रदेश के सामने रखें ताकि सभी की नीतियों पर खुलकर चर्चा हो जाये और भविष्य के लिये एक सीख मिल जाये। हर बजट में हर सरकार कुछ नये कार्यों और नीतियों की घोषणा करती है। श्वेत पत्र में यह खुलासा भी रहना चाहिये कि किसने क्या घोषित किया था और उसके लिये बजट प्रावधान क्या था तथा कितनी घोषणाएं पूरी हो पायी थी और घोषणाओं की आज की स्थिति क्या है।
कर्ज को लेकर यह नियम रहा है कि जी.डी.पी. के 3% से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिये। अब कोविड काल में यह सीमा बढ़ाकर 6% कर दी गयी है। इस संद्धर्भ में यह सामने आना चाहिये की कर्ज की सीमा का कब और क्यों अतिक्रमण हुआ तथा कर्ज के अनुपात में जी.डी.पी. में कितनी बढ़ौतरी हुई। जी.डी.पी. और एस.डी.पी. दोनों के आंकड़े आने चाहिये। बजट से पहले और बाद में कब-कब सेवाओं और वस्तुओं के दामों में बढ़ौतरी होती रही है। श्वेत पत्र में यह जानकारीयां होना इसलिये आवश्यक है कि अभी सुक्खु सरकार ने जयराम के कार्यकाल के अन्तिम छः माह के फैसले यह कहकर पलटे हैं कि इनके लिये बजट का प्रावधान नहीं था और इन्हें पूरा करने के लिये 5000 करोड़ के अतिरिक्त धन की आवश्यकता होगी। अब कांग्रेस ने चुनावों से पहले ही दस गारंटीयों की वायदा जनता से कर रखा है। मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ओ.पी.एस. लागू कर दिया गया है अन्य गारंटीयों के लिये भी प्रतिब(ता है। युवाओं को प्रतिवर्ष एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाना है। इसलिये यह खुलासा भी बजट में आना चाहिये की इन गारंटीयों के औसत लाभार्थी कितने होंगे और इसके लिये कितना धन अपेक्षित होगा तथा कहां से आयेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि दस के लाभ के लिये नब्बे की जेब पर डाका डाला जायेगा।
अभी बजट प्रावधान और कर्ज को लेकर सुक्खु और जयराम में शिव धाम परियोजना के संद्धर्भ में वाक यद्ध शुरू हुआ है। इस वाक युद्ध के बाद यह सामने आया है कि एशियन विकास बैंक से पर्यटन अधोसंरचना के लिये 1311 करोड़ का कर्ज स्वीकृत हुआ है। इससे पहले यही बैंक 256.99 करोड़ हैरिटेज पर्यटन के नाम पर दे चुका है। जो स्थान हैरिटेज में चिन्हित हुए थे वही अब अधोसंरचना में भी चिन्हित हैं। ऐसे में यह खुलासा होना चाहिये की हैरिटेज में कितना काम हुआ है और उससे कितना राजस्व अर्जित हो रहा है। क्योंकि कर्ज का निवेश राजस्व अर्जित करने के लिये ही किये जाने का नियम है। पर्यटन के अतिरिक्त जल जीवन, बागवानी आदि और भी कई विभागों को इस बैंक से कर्ज मिला है। इन संस्थानों से राज्य सरकारों को कर्ज केन्द्र की गारंटी पर ही मिलता है लेकिन उसकी भरपाई तो राज्य सरकार को ही करनी होती है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश को कर्ज चुकाने के लिये भी कर्ज लेना पड़ रहा है। 2019 में विश्व बैंक ने प्रदेश की Debt Management Performance Assessment पर एक 42 पन्नों की रिपोर्ट जारी की है। भारत सरकार का वित्त विभाग भी इस संद्धर्भ में 2020 में चेतावनी जारी कर चुका है। इस परिदृश्य में प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र आना और उसमें इन सवालों का जवाब होना सरकार से अपेक्षा रहेगी।

क्या छापेमारी और गिरफ्तारी से कांग्रेस का बढ़ना रोक पाएंगे मोदी

अदानी प्रकरण से विश्व का शेयर बाजार भी हिल गया है। विदेशी निवेशकों ने इसमें से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। विदेशी बैंकों ने अदानी समूह के शेयरों पर कर्ज देना बन्द कर दिया। जो व्यक्ति अमीरों की सूची में 609 वें स्थान से उठकर विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया था वह अब हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद शायद 27 वें पायदान पर आ पहुंचा है। देश के हर बड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठान का प्रबन्धन अदानी समूह के पास कैसे पहुंचा? जो देश का नम्बर एक और विश्व का दूसरा बड़ा अमीर हो लेकिन टैक्स अदा करने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी न हो तो ऐसे करिश्मे को लेकर सवाल उठना स्वभाविक है। यह सवाल संसद के पटल पर आ चुके हैं। इन सवालों का जवाब देश की सरकार और देश की निगरान एजैन्सीयों से पूछा जाना है। संसद के अन्दर यह काम विपक्ष को करना है और बाहर मीडिया को करना है। जो लोग हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट को देश और अदानी पर हमला करार दे रहे हैं उनसे एक ही सवाल पूछा जाना चाहिये कि क्या देश के बैंकों और एलआईसी जैसी संस्थाओं के पास आम आदमी का पैसा जमा नही है? आम आदमी के इस जमा पर ब्याज दरें क्यों कम हुई हैं? जीरो बैलेन्स के नाम पर खोलें खातों पर न्यूनतम जमा की शर्त क्यों लगानी पड़ी। बैंक की सेवाएं फीस के दायरे में क्यों आ गयी? नोटबन्दी के बाद रियल एस्टेट और ऑटोमोबाईल क्षेत्रों को आर्थिक पैकेज क्यों दिये गये? क्या वह पैसा वापस आ गया है? मोदी सरकार ने जितना सहयोग अदानी समूह को दिया है ऐसा ही सहयोग और कितने घरानों को मिला है। जब देश बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है तो प्रति व्यक्ति कर्ज क्यों बढ़ रहा है? महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है। हर चुनाव में नये ही नारे क्यों उछालने पड़ रहे हैं पूरानों का हिसाब जनता के सामने क्यों नहीं रखा जाता।
ऐसे दर्जनों सवाल हैं जो आज हर आदमी के जहन में कौंध रहे हैं। क्योंकि वह इनका भुक्त भोगी है। उसकी विडण्बना यही है कि वह स्वयं व्यवस्था से सवाल नही पूछ पाता। वह उम्मीद करता है कि मीडिया और राजनीतिक नेतृत्व यह सवाल पूछे। आज मीडिया का एक बड़ा वर्ग यह सवाल पूछने का साहस नहीं कर रहा है और इसलिये गोदी मीडिया के संबोधन से संबोधित हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग अपने अपने सामर्थय के अनुसार सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं। भले ही उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य तरह के मामले बनाये जा रहे हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं की भी यही स्थिति चल रही है। जो सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं उनके खिलाफ जांच एजैन्सीयों की छापेमारी हो रही है। उनके नेताओं के खिलाफ मामले बनाकर उन्हें हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं के यहां छापेमारी और उसके बाद पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा की दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तारी असहनशीलता के प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रधानमंत्री तो ममता बैनर्जी को ‘‘ओ दी दी ओ दी दी’’ करके सार्वजनिक मंच से संबोधित कर सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री के खिलाफ गौतम अदानी को लेकर कोई कटाक्ष सहन नही किया जा सकता। इस मानसिकता और गिरफ्तारी के प्रसंग ने बहुत सारे पुराने संदर्भों को जिन्दा करके पुरानों की सहनशीलता और नयों की असहनशीलता को एकदम फिर से चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है।
यह सब अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उससे पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को लेकर बनी नयी जन धारणा का परिणाम माना जा रहा है। जिस राहुल गांधी के चरित्र हनन के लिये अरबों खर्च किये गये थे आज इस यात्रा के बाद वही राहुल व्यक्तिगत स्तर पर मोदी से बड़ा नाम बन गया है। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को लेकर फैलायी गयी सारी भ्रान्तियों को जड़ से उखाड़ फैंका है। समाज के हर वर्ग तक राहुल गांधी पहुंच गया है यह एक स्थापित सच्च है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उसके साथ बीबीसी और गॉर्जियन के खुलासों से समाज के हर वर्ग के सवालों के दायरे में आ गये हैं। अगली चुनावी जंग मोदी बनाम राहुल होने जा रही है। क्योंकि आज पूरे देश में कांग्रेस को छोड़कर ऐसा कोई दूसरा राजनीतिक दल नहीं है जिसकी पहचान देश के हर गांव तक हो। न चाहते हुए भी क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होना होगा। अन्यथा अपने-अपने राज्य से बाहर केन्द्र की सरकार को लेकर सबकी स्थिति दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसी होगी। आप लोकसभा के दोनों चुनावों में दिल्ली में कोई भी सीट क्यों नहीं जीत पायी? क्योंकि केन्द्र के लिये मोदी विकल्प थे। आज मोदी बनाम राहुल की अगली लड़ाई में क्षेत्रीय दलों के लिये यह सबसे बड़ा सवाल होगा। आज कांग्रेस को विपक्षी एकता से ज्यादा राज्यों में कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को पूरी कड़ाई के साथ सुधारना होगा या एक तरफ करना होगा।

क्या अदानी के ग्रहण से निकल पायेंगे मोदी

अदानी प्रकरण पर हिन्डनबर्ग के खुलासे से जो परिस्थितियां निर्मित हुई है उनसे पूरा देश हिल कर रह गया है। क्योंकि इस खुलासे से अन्तरराष्ट्रीय शेयर बाजार से लेकर देश के शेयर बाजार में अदानी समूह के शेयरों में गिरावट आयी है। इस गिरावट से देश विदेश के हर निवेशक को नुकसान हुआ है। इसमें सबसे गंभीर पक्ष यह है कि देश के सार्वजनिक बैंकां और एलआईसी तक ने इस समूह में निवेश किया है। बैंकों ने तो कर्ज भी दिया है। लगभग हर सार्वजनिक क्षेत्र का प्रबन्धन इस समूह के पास है। ऐसे में यह स्थिति बन चुकी हैं कि इस समूह के डूबने से पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। संसद में इस प्रकरण पर उठे विपक्ष के सवालों का कोई जवाब नहीं आया है। प्रधानमंत्री का भाषण भी ‘‘सवाल गंदम और जवाब चना’’ बनकर रह गया है। इस प्रकरण पर उठे सवालों के परिदृश्य में संसद कुछ समय के लिये स्थगित करनी पड़ी है। सर्वोच्च न्यायालय में इस पर आयी याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने अपने स्तर पर जांच करवाने का भरोसा देश को दिया है। इस जांच के लिये सरकार द्वारा सुझाये नामों को शीर्ष अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। सरकार ने हिन्डन बर्ग के खुलासे को देश पर हमला कर दिया है लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि देश के करीब सारे बड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठान इस समूह के पास कैसे पहुंच गये? देश का सबसे अमीर व्यक्ति शीर्ष कर दाताओं के पहले दस नामों में भी शामिल क्यों नहीं है। यह सामान्य सवाल आज देश के हर नागरिक के दिमाग में आ चुके हैं यह एक कड़वा सच है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है। क्योंकि हिंन्डन बर्ग के खुलासे के साथ ही गुजरात दंगों को लेकर बी.बी.सी. कि एक डॉक्यूमैन्ट्री आ गयी इस पर प्रतिबन्ध लगाते हुये बी.बी.सी. पर ही प्रतिबन्ध लगाने की मांग के आश्य की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। इस याचिका से कश्मीर फाईल्ज पर प्रधानमंत्री का यह तर्क फिर चर्चा में आ गया की यदि कश्मीर फाईल्ज से हटकर किसी के पास और तथ्य हैं तो उसे अलग से फिल्म बनाकर सामने लाना चाहिये। ठीक यही तर्क बी.बी.सी. की डॉक्यूमैन्ट्री पर लागू होता है। बी.बी.सी. के खुलासे के बाद बी.बी.सी. पर छापेमारी हो गयी। इसके बाद विश्व के सबसे प्रतिष्ठित अखबार दी गार्जियन का खुलासा गया। दी गार्जियन के खुलासे के बाद ईजरायल की कंपनी को लेकर यह सामने आ गया कि उसने भारत के में चुनावों को प्रभावित किया है। मोदी सरकार हर खुलासे पर खामोश है। यह भी नहीं कह पा रही है कि यह सब गल्त है। कांग्रेस लगातार सरकार और प्रधानमंत्री से इस सब पर प्रतिक्रिया की मांग कर रही है।
इस तरह जो परिस्थितियां बनती जा रही हैं वह भाजपा, केंद्र की सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी के लिये कठिनाइयां पैदा करेंगी यह तय है। क्योंकि एक आदमी अदानी के डूबने से देश के डूबने की व्यवहारिक स्थिति बन गयी है। महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ेगी। हालात एक और जनान्दोलन की ओर बढ़ रहे हैं। हिंन्दू-मुस्लिम, मन्दिर-मस्जिद के नाम पर अब फिर ध्रुवीकरण होना संभव नहीं लग रहा है। क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने पूरा परिदृश्य बदल कर रख दिया है। आज राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से बड़ा नाम बन गया है। राहुल की छवि बिगाड़ने के सारे प्रयास अर्थहीन होकर रह गये हैं। ऐसे में कांग्रेस को कमजोर करने के लिये कांग्रेस की सरकारों और उसके राज्यों के नेतृत्व को कमजोर करने की रणनीति अपनाई जाएगी यह तय है। इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का राज्यों का नेतृत्व इस स्थिति का कैसे मुकाबला करता है।

अदानी पर उठते सवालों से कब तक बचेगी सरकार और प्रधानमंत्री

क्या लोकतंत्र को सही में खतरा पैदा हो गया है? क्या विपक्ष को संसद में भी सरकार से तीखे सवाल पूछने का अधिकार नहीं है? क्या विपक्ष के सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें संसद की कार्यवाही से ही निकाल दिया जायेगा? क्या देश की सारी व्यवस्था एक कारपोरेट घराने के गिर्द ही सिमट कर रह गयी है? क्या इन सवालों को एक लम्बे समय तक टाला जा सकता है? क्या देश एक ही आदमी के ‘‘मन की बात’’ के गिर्द घूमने को बाध्य किया जा रहा है? यह सवाल और ऐसे अनेकों सवाल अदानी प्रकरण के बाद खड़े हो गये हैं। क्योंकि जो कारपोरेट घराना कुछ ही वर्ष पहले विश्व के अमीरों की सूची में 609 स्थान पर था वह जब एक दशक से भी कम समय में देश का सबसे अमीर और विश्व का दूसरा रईस बन जाये तो निश्चित है कि वह सबकी जिज्ञासा का विषय तो बनेगा ही। ‘‘महाजनो येन गतः स पन्थाः’’ का अनुसरण करते हुए हर व्यक्ति उसके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करेगा ही। क्योंकि इस घराने का दखल उद्योग के हर क्षेत्र में हो गया। सरकार की नीतियां इसी के अनुकूल होती चली गयी। करोना महामारी के दौरान भी ‘‘आपदा को इसी ने अवसर’’ बनाया। देश के हर राज्य में ही नहीं विश्व के दूसरे देशों में भी इसका प्रसार होता चला गया। सता का इसे पूरा सहयोग मिल रहा है यह प्रधानमंत्री की इससे सार्वजनिक नजदीकियों के चलते जन चर्चा में आ गया। इस जन चर्चा के परिणाम स्वरूप देश-विदेश के निवेशक इस घराने की कंपनियों में निवेश करने लग गये। इसकी गति से प्रभावित होकर कुछ लोग इसकी सफलता के रहस्य को भी समझने में लग गये।
इसी खोज के परिणाम स्वरूप एक रिसर्च संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आ गयी। इस रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि इस घराने में कई फर्जी विदेशी कंपनियों का हजारों करोड़ का निवेश है। यह कंपनियां और इनके संचालक धरातल पर मौजूद ही नही है। इनके मुख्यालय ‘‘टैक्स हैवन’’ देशों में स्थित हैं। इस घराने ने अपनी कंपनियों के शेयरों में फर्जी उछाल दिखाकर देश-विदेश के शेयर बाजार को प्रभावित किया है। यह खुलासा भी सामने आ गया कि इस धन्धे में इसके अपने परिजनों की भी सक्रिय भागीदारी है। यह पहले से ही सार्वजनिक संज्ञान में था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए नरेन्द्र मोदी ने गौतम अदानी के ही हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया है। सरकार बनने के बाद गौतम अदानी प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर में साथ रहते आये हैं। इस आश्य के फोटोग्राफ तक संसद में विपक्ष दिखा चुका है। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों में अकसर अदानी का साथ रहना या बाद में अदानी का उन देशों में जाना संसद में चर्चा और सवालों का विषय रहा है। सिंगापुर और बांग्लादेश में प्रधानमंत्री की सिफारिशों के बाद अदानी को ठेके मिलना सब आरोपों का विषय रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने संसद में इन सवालों का जवाब नही दिया है। बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गये अठारह सवालों को उनके भाषण में ही हटा दिया गया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को देश के खिलाफ साजिश करार दिया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी ने इस सारी बहस का रुख बदलते हुये ‘‘एक अकेला सब पर भारी’’ करार दिया है।
इस परिदृश्य में अब यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि निवेशकों के निवेश की सुरक्षा के क्या उपाय हैं। आर.बी.आई. और सैबी से भी जवाब मांगा है क्योंकि सारी निगरानी एजैन्सियां अब तक खामोश बैठी हैं। जबकि अदानी समूह के शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं। विदेशी निवेशक अपना निवेश निकाल रहे हैं। विदेशी बैंकों ने अदानी के शेयरों को बॉण्डज् के तौर पर लेने से मना कर दिया है। देश में भी एल.आई.सी., एस.बी.आई. और पी.एन.बी. सब नुकसान के दायरे में हैं। रिपोर्टों के मुताबिक दस लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। इन सब प्रतिष्ठानों में देश के आम आदमी का पैसा जमा है और इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा अदानी समूह में निवेशित है जिसके शेयर लगातार गिर रहे हैं। तो क्या आम आदमी इस पर चिंतित नहीं होगा। सरकारी बैंक अदानी को ढाई लाख करोड़ का कर्ज दे चुके हैं। सरकार चौरासी हजार करोड़ का कर्ज माफ कर चुकी है। देश का यह सबसे अमीर आदमी टैक्स देने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी नहीं है। यह आरोप संसद में लग चुका है। अदानी पर उठते सवालों से प्रधानमंत्री और सरकार लगातार बचते फिर रहे हैं। ऐसे में क्या इस स्थिति को लोकतंत्र के लिये घातक नहीं माना जाना चाहिये? क्या सरकार का रुख एक और जन आन्दोलन की जमीन तैयार नहीं कर रहा है?

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