वहीं अदालत ने दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी द्वारा क्लोजर रिपोर्ट को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दी थी।
दरअसल एसआईटी ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा है कि मोदी और अन्य दूसरे लोगों के खिलाफ इस मामले में उसे कोई सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने इस रिपोर्ट को चुनौती दी थी।
उनकी दलील है कि मोदी और अन्य लोगों जिनमें पुलिस अफसर, नौकरशाह और नेता शामिल हैं, उनके खिलाफ केस चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
जकिया की अर्जी के मुताबिक गोधरा कांड के बाद मोदी ने आला पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि पुलिस हिंदुओं को मुसलमानों पर अपना गुस्सा निकालने से न रोके।
संजीव भट्ट के हलफनामे में भी ये बात कही गई है। मोदी ने भड़काऊ भाषण दिए थे जिनकी वजह से समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ी। मोदी सरकार के मंत्री पुलिस कंट्रोल रूम में मौजूद थे और पुलिस के कामकाज में दखल दे रहे थे।
जकिया की याचिका के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी से इस मामले की जांच कराई थी। सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसआईटी ने फरवरी 2012 में मेट्रोपोलिटन कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी।
एसआईटी के वकील ने अपनी दलील में कहा था कि जांच एजेंसी को मोदी और अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक केस चलाने के लिए कोई सबूत नहीं मिले, इसीलिए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि इस अपराध के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रदत्त छह महीने की सजा अपर्याप्त है। न्यायाधीशों ने अन्य राज्यों से कहा कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की तरह उन्हें भी अपने कानून में उचित संशोधन करना चाहिए।
कोर्ट दूध में मिलावट के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में सरकार को दूध में मिलावट की रोकथाम का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जो कई राज्यों में जोर-शोर से हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील अनुराग तोमर ने न्यायालय में दलील दी कि उत्तर भारत के कई राज्यों में दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाये जा रहे हैं जिनसे लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
उनका कहना था कि खाद्य सुरक्षा और मानक प्रधिकरण द्वारा 2011 में लिए गए दूध के नमूनों से पता चला कि देश में बड़े पैमाने पर दूध में मिलावट हो रही है।
न्यायाधीशों ने इस मामले की सुनवाई के बाद दूध में मिलावट करने जैसे अपराध के लिए कठोर दंड की हिमायत करते हुये इस बारे में राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। कोर्ट जानना चाहता है कि राज्य सरकार इस समस्या से निबटने और दूध में मिलावट पर रोक लगाने के लिये क्या कदम उठा रही हैं। इस मामले में न्यायालय अब 13 जनवरी को आगे विचार करेगा।
ब्रिटेन की गर्भवती महिलाओं पर यह अध्ययन किया गया। समाचार पत्र ‘डेली मेल’ के मुताबिक शोधकर्ताओं ने देखा कि गर्भावस्था के दौरान किसी प्रियजन की मौत या अलगाव या फिर अन्य तरह के तनावों से गुजरने वाली महिलाओं के बच्चों के चार साल की उम्र में पहुंचने तक वे बीमार हो जाते हैं।
लंदन के किंग्स कॉलेज के इंस्टीट्यूट ऑफ साइकैट्री के शोधकर्ताओं के मुताबिक यह बहुत महत्वपूर्ण है कि तनाव के समय में गर्भवती महिलाओं के साथ सहयोग किया जाए। यह देखा गया कि गर्भावस्था के दौरान तनाव और बच्चों के बीमार पडऩे के बीच महत्वपूर्ण सम्बंध है।
गर्भावस्था के दौरान दो गम्भीर तनाव आपके बच्चे में बीमारी का खतरा पांच गुना तक बढ़ा देते हैं। करीब 150 गर्भवती महिलाओं पर किए गए इस अध्ययन के दौरान उनसे उनकी गर्भावस्था की एकदम शुरुआत में और फिर उनके बच्चे को जन्म देने से कुछ सप्ताह पहले उनसे उनके तनाव के विषय में पूछा गया।
महिलाओं से परिवार में किसी प्रियजन की मौत, अलगाव, अचानक बेरोजगारी और गर्भावस्था के दौरान परेशानी व तनाव के कई अन्य कारणों के विषय में पूछा गया। बच्चों के जन्म के चार साल बाद इन महिलाओं से दोबारा सम्पर्क किया गया।
उनसे उनके बच्चों के स्वास्थ्य के विषय में पूछा गया और यह पूछा गया कि क्या बच्चों को कोई ऐसी बीमारी हुई जिसकी वजह से उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा हो या अस्पताल में भर्ती करना पड़ा हो। अध्ययन में गर्भावस्था के दौरान तनाव व बच्चों के बीच सीधा सम्पर्क देखा गया।
जिन बच्चों की माताएं गर्भावस्था के दौरान तनाव में रहीं, उनमें अस्थमा या पेट में कीड़े जैसे संक्रमण की बीमारियां देखी गईं।