Friday, 19 September 2025
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गारंटीयों की गारंटी पर अभी से उठने लगे सवाल

प्रदेश कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अपना एजेंडा जनता के सामने रखते हुये दस गारंटियां जारी की थी। यह कहा था कि यदि वह जीत जाती है तो सत्ता में आने पर प्रदेश की जनता के लिये यह उसकी कार्ययोजना होगी। कांग्रेस की यह गारंटियां सत्तारूढ़ भाजपा के दृष्टि पत्र पर भारी पड़ी। जनता ने कांग्रेस के वायदों पर विश्वास किया क्योंकि कुछ गारंटियों को लेकर यह कहा गया था कि उन्हें मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में लागू कर दिया जायेगा। इन वायदों के परिणाम स्वरूप कांग्रेस को बहुमत मिल गया और उसकी सरकार बन गयी। अब सरकार बनने पर जनता इन गारंटियों पर अमल किये जाने की प्रतीक्षा करने लग गयी है। अभी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार सामने आया है। इसमें मुख्यमंत्री ने यह कहा है कि सरकार पांच वर्षों के लिये आयी है और यह गारंटीयां भी पांच वर्षों में पूरी की जायेगी। जब संसाधन बढ़ जायेंगे तो महिलाओं को पंद्रह सौ रूपये प्रति माह भी दिया जायेगा। यह सही है कि सरकार पांच वर्षों के लिये आयी है और यह एजेंडा भी पांच वर्षों में ही लागू किया जाना है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान तो ऐसा नहीं कहा गया था। इसलिये कुछ गारंटीयों पर अभी से जनता में चर्चाएं उठना शुरू हो गयी है। अभी 2023 के शुरू में ही नगर निगम शिमला के चुनाव आ जायेंगे। इन चुनावों का संदेश पूरे प्रदेश में जाता है। इनके बाद 2024 में लोकसभा के लिये चुनाव होंगे और भाजपा यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी। इन चुनावों में गारंटियों की पूर्ति में उठाये गये व्यवहारिक कदमों की बड़ी भूमिका रहेगी यह स्वाभाविक है।
गारंटीयों को पूरा करने के लिये निश्चित रूप से धन की आवश्यकता रहेगी। इस समय निवर्तमान जयराम सरकार पर सबसे बड़ा आरोप ही प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में उलझाने का लगा है। केंद्र सरकार से जीएसटी की प्रतिपूर्ति मिलना जून से पूरी तरह बंद हो चुकी है। अटल ग्रामीण सड़क योजना भी केंद्र बंद कर चुका है और इस योजना की दो सौ सड़कें अधर में लटकी हुई हैं। यही नहीं केंद्र तो राजस्व घाटा अनुदान भी बंद कर चुका है। जयराम सरकार इन तथ्यों पर न तो मोदी सरकार के सामने मुंह खोल पायी और न ही प्रदेश की जनता को इसकी जानकारी दे पायी। प्रशासन कर्ज लेकर काम चलाता रहा है। इस वस्तु स्थिति में यह एक बड़ा गंभीर प्रश्न होगा कि सरकार इससे कैसे बाहर निकल पाती हैं। यह सुक्खू सरकार के सामने ही आ चुका है कि बहुत सारे फैसले बिना बजट प्रावधानों के केवल चुनाव के दृष्टिकोण से ही लिये गये थे और प्रशासन इसमें पूरी तरह सरकार के साथ था। मीडिया तक भी आर्थिक प्रश्नों पर चुप रहा है।
जब इस तरह की आर्थिक स्थितियां बन जाती हैं की कर्ज की किश्त चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़े तो इसमें सबसे अधिक बढ़ता है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार का आलम यह रहा है कि प्रशासन ने इसमें सबसे पहले राजनेताओं को हिस्सेदार बनाया और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की आवाज को कुचलने के लिये हर तरह का दमन किया। आज सुक्खू सरकार को आर्थिक अनुशासन लाने के लिए भ्रष्टाचारियों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने होंगे। यह दोनों काम यदि एक साथ शुरू न हो पाये तो सरकार को आगे बढ़ना कठिन हो जायेगा। इस सरकार के लिये यह संभव नहीं होगा कि जयराम की तरह चुनावी वर्ष के अंतिम छः माह में ही फैसले लिये जायें। क्योंकि कांग्रेस के अंदर पहले दिन से ही गुटबाजी सामने आ चुकी है और भाजपा इसे भुनाने के लिये हर हद तक जायेगी। सरकार को यह समझना होगा कि संगठन और सरकार अलग-अलग इकाइयां हैं। सरकार को संगठन की तर्ज पर नहीं चलाया जा सकता। जबकि अभी यह संदेश जा रहा है कि सरकार पर संगठन प्रभावी हो रहा है। ऐसे में गारंटियों की प्रतिपूर्ति के लिये जनता पांचवें वर्ष का इंतजार कर लेगी यह मानकर चलना कठिन होगा यह सही है कि जनता के पास कोई ऐसी ताकत नहीं है कि वह अगले चुनावों से पहले कुछ कर पाये। लेकिन लोकसभा चुनाव उसे अपनी नाराजगी दिखाने का पहला अवसर होगा। जनता की अनदेखी ने ही सबसे बड़ी पार्टी होने का दम भरने वाली भाजपा को घर बिठा दिया है। इसलिये गारंटीयों की गारंटी पर उठने वाले प्रश्नों को अभी से गंभीरता से लेना होगा। 

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