क्या प्रदेश का संचालन कर्ज लिये बिना नहीं हो सकता ? यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि सुक्खू सरकार ने अपने पहले ही विधानसभा सत्र में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्धन एक्ट में संशोधन करके प्रदेश सरकार की कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने का प्रबन्ध कर लिया है। अब तक नियम था कि राज्य सरकार सकल घरेलू उत्पादन का तीन प्रतिशत तक ही कर्ज ले सकती है। अब इस अधिनियम में संशोधन करके कर्ज की यह सीमा बढ़ा दी गयी है। कर्ज की सीमा बढ़ाना वित्तीय कुप्रबन्धन का सीधा प्रमाण माना जाता है। मार्च 2022 में ही यह स्थिति जीडीपी के छः प्रतिशत तक पहुंच गयी थी। सदन के पटल पर आये रिकॉर्ड के मुताबिक प्रदेश की वित्तीय स्थिति वर्ष 2020-21 में ही बिगड़ गयी थी जो लगातार गहराती चली गयी। क्योंकि केन्द्र सरकार से जो राजस्व घाटा अनुदान प्रदेश को मिलता था वह बन्द हो गया है। जीएसटी की प्रतिपूर्ति मिलनी थी वह केन्द्र से नहीं मिल रही है और इसके कारण करीब तीन हजार करोड का प्रदेश को नुकसान हो चुका है। केन्द्र प्रदेश को यह हक देने की बजाये कर्ज लेने के लिये प्रोत्साहित करता रहा है। इसलिये पिछली सरकार सबसे अधिक कर्ज लेने वाली सरकार बन गयी। इन केन्द्रीय अनुदानों की स्थिति सुक्खू सरकार के लिये भी ऐसी ही रहने वाली है। प्रदेश कर्ज लेने की सीमाएं लांघ चुका है और केन्द्र का वित्त विभाग इसकी चेतावनी भी प्रदेश को बहुत पहले जारी कर चुका है। यह चेतावनी का पत्रा हम अपने पाठकों के सामने रख चुके हैं। आज कर्ज की किश्त चुकाने के लिये भी कर्ज लेने की नौबत आ चुकी है। सुक्खू सरकार को अपने संसाधन बढ़ाने के लिये डीजल पर प्रति लीटर तीन रूपये वैट बढ़ाना पड़ा है। इस बढ़ौतरी का हर सामना की ढुलाई पर असर पड़ेगा जिसके परिणामवश महंगाई बढ़ेगी। इस परिदृश्य में जब इस सरकार को अपने चुनावी वायदे पूरे करने पड़ेंगे तो स्वभाविक रूप से धन का प्रबन्ध करने के लिए सेवाओं के दाम बढ़ाने और कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं होगा। परन्तु यह करने से लोगों में रोष पनपेगा और सरकार की विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो जायेंगे। इस स्थिति में चुनावी वादे पूरे कर पाना आसान नहीं होगा। ऐसे में यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि सरकार अपने वादे भी पूरे कर दे और जनता पर कर्ज का बोझ भी न पड़े। इसके लिये सबसे पहले प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करके जनता को वस्तुस्थिति से अवगत करवाना होगा। इसी के साथ सरकार की प्राथमिकताओं का भी नये सिरे से निर्धारण करना होगा। प्रदेश की जनता को यह बताना होगा कि पिछली सरकार ने कर्ज का यह पैसा कहां खर्च किया? क्योंकि कर्ज लेकर दान नहीं दिया जाता है। इसी के साथ भ्रष्टाचार को बेनकाब करके दोषियों के खिलाफ कढ़ी कारवाही करनी होगी। क्योंकि डबल इंजन की सरकार से जब प्रदेश को उसका हक भी नहीं मिला है तो इसकी जानकारी जनता के सामने रखना आवश्यक हो जाता है। यह जानकारी सामने रखने के साथ ही अपने अनावश्यक खर्चों पर भी लगाम लगानी पड़ेगी। आज जब सरकार ने राजनीतिक सन्तुलन बनाने के लिये मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की है तो यह बताना होगा कि ऐसा करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। जबकि पिछली दो सरकारों में ऐसी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की गयी थी। जनता में इन नियुक्तियों का कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। इन नियुक्तियों के वैधानिक पक्ष को यदि छोड़ भी दिया जाये तो भी राजनीतिक रूप से भी इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा है। क्योंकि चुनाव के दौरान जो आरोप पत्र ‘‘लूट की छूट’’ के नाम से जारी किया गया था उसकी दिशा में इस एक माह के समय में कोई कदम उठाने का संकेत तक नहीं आया है। जबकि सरकार लगातार व्यवस्था बदलने की दिशा में काम करने की बातें कर रही है लेकिन व्यवहारिक रूप से उसके प्रशासनिक फैसलों से इस तरह के कोई संकेत सामने नहीं आये हैं। जनता सरकार की हर चीज पर नजर रख रही है क्योंकि इस सत्ता परिवर्तन में कांग्रेस के नेताओं से ज्यादा योगदान दूसरे लोगों का रहा है। आज जयराम सरकार पर सबसे ज्यादा कर्ज लेने का आरोप इसलिये लग रहा है कि उसने प्रदेश के वित्तीय प्रबन्धन से जुड़े तन्त्र पर आंख बन्द करके विश्वास कर लिया था। कर्ज लेना विकास का कोई मानक नहीं है। बल्कि कर्ज लेकर घी पीने का पर्याय बन चुका है।