Thursday, 18 September 2025
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उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद उभरते राजनीतिक सवाल

उपराष्ट्रपति के चुनाव में एन.डी.ए. के उम्मीदवार सी.पी.राधाकृष्णन को बड़ी जीत हुई उन्हें इण्डिया गठबंधन के उम्मीदवार के मुकाबले 452 मत मिले हैं जबकि इण्डिया गठबंधन के जस्टिस रेड्डी को 300 मत मिले हैं। इस चुनाव में पन्द्रह मत अवैध पाये गये हैं और तेरह सांसदों ने मतदान में भाग ही नहीं लिया। एन.डी.ए. के उम्मीदवार की जीत को गृह मंत्री अमित शाह के कुशल राजनीतिक प्रबंधन का कमाल मान जा रहा है। गृह मंत्री के पास ई.डी. और सी.बी.आई. जैसे हथियार हैं और इन हथियारों का भी परोक्ष/अपरोक्ष में इस्तेमाल होने की चर्चाएं भी सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से उठ खड़ी हुई हैं। इन चर्चाओं को इसलिये अधिमान देना पड़ रहा है क्योंकि देश की राजनीति में इन हथियारों का इस्तेमाल 2014 के चुनावों के बाद से एक बड़ी चर्चा का विषय बन चुका है। उपराष्ट्रपति का यह चुनाव जिस तरह के राजनीतिक वातावरण में हुआ है उसमें इन चर्चाओं को नकारा भी नहीं जा सकता। चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक लंबे अरसे से सवाल उठते आ रहे हैं। आज यह सवाल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्रमाणिक खुलासे के बाद ‘‘वोट चोरी’’ के एक बड़े अभियान तक पहुंच गये हैं। बिहार में एस.आई.आर को लेकर चुनाव आयोग और सर्वाेच्च न्यायालय में बहस जिस मोड़ तक जा पहुंची है वह अपने में ही बहुत कुछ कह जाती है।
इस पृष्ठभूमि में उपराष्ट्रपति चुनाव के आंकड़े अपने में बहुत बड़ी बहस को अंजाम दे जाते हैं। इण्डिया गठबंधन की एकता पर पहला सवाल खड़ा होता है। क्योंकि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस चुनाव का परिणाम आने से पहले ही यह दावा किया था कि इण्डिया ब्लॉक के सभी तीन सौ पन्द्रह सांसदों ने मतदान किया है। परिणाम आने पर इंडिया ब्लॉक को तीन सौ वोट मिले पन्द्रह वोट अवैध घोषित हुये। इन अवैध मतों पर चर्चा कांग्रेस नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी के ब्यानों के बाद ज्यादा गंभीर हो जाती है। इसी कड़ी में तेरह सांसदों का मतदान में भाग ही न लेना और भी गंभीर सवाल खड़े कर देता है। क्योंकि मतदान से पहले किसी भी सांसद ने उपराष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों को लेकर कुछ नहीं कहा था। जबकि इस चुनाव में कोई भी दल अपने सांसदों को सचेतक जारी नहीं किये हुये था। क्योंकि इसका प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आज भी हमारे सांसद राष्ट्रीय महत्व के राजनीतिक प्रश्नों पर अपनी राय नहीं रख पा रहे हैं। इसी के साथ पन्द्रह सांसदों के मतों का अवैध पाया जाना यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हमारे सांसदों को वोट डालना ही नहीं आता है या यह एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था। इस पर आने वाले दिनों में खुलासे आने की संभावना है।
जिन राजनीतिक परिस्थितियों में उपराष्ट्रपति का चुनाव आया और मतदान हुआ उससे यह स्पष्ट हो गया है कि ‘‘वोट चोरी’’ के जनान्दोलन में सरकार के लिये स्थितियां सहज नहीं रही हैं। यदि भारत जोड़ो यात्रा से भाजपा का आंकड़ा दो सौ चालीस पर आकर रुक सकता है तो निश्चित तौर पर वोट चोरी के आरोप का प्रतिफल बहुत बड़ा होगा। क्योंकि यह इसी आरोप का प्रतिफल है कि भाजपा को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलना कठिन होता जा रहा है। इसी आरोप के कारण प्रधानमंत्री का पच्चहत्तर वर्ष की आयु सीमा का सिद्धांत भी अभी अमल से दूर रखना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में इण्डिया गठबंधन को कमजोर करने के लिये नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी हद तक जा सकते हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी को अक्षम प्रमाणित करने के लिये कांग्रेस की राज्य सरकारों को अस्थिर करके उन्हें भाजपा में शामिल होने की परिस्थितियों बनाई जा सकती हैं। जब राहुल गांधी ने पार्टी के भीतर भाजपा के स्लीपर सैल होने की बात की थी उसके बाद कांग्रेस के भीतर भी असहजता की स्थिति पैदा हुई है। हिमाचल में पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने जब राहुल गांधी पर कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाया तो प्रदेश के एक भी कांग्रेस नेता ने इसका जवाब नहीं दिया। क्या इसे महज एक संयोग माना जा सकता है या यह एक प्रयोग था।

 

वोट चोरी के आरोपों से राजनीतिक संकट बढ़ा


राहुल गांधी ने वोट चोरी का जिस प्रामाणिकता के साथ खुलासा देश की जनता के सामने रखा है उससे पूरे देश में चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार की विश्वसनीयता पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। क्योंकि इन आरोपों पर चुनाव आयोग अपना प्रमाणिक रिकॉर्ड जनता में जारी करके अपना स्पष्टीकरण देने की बजाये राहुल गांधी से ही शपथ पत्र की मांग करके और भी प्रश्नित हो गया है। वोट चोरी का आरोप एक जन मुद्दा बन चुका है और आम आदमी को यह समझ आ गया है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल का ही पक्षधर बनकर रह गया है। वोट चोरी के आरोप पर जिस तरह का जन समर्थन राहुल गांधी को मिला है उससे स्पष्ट हो गया है की आने वाले समय में यह मुद्दा देश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल देगा। क्योंकि इस जन मुद्दे पर से ध्यान भटकाने के लिये जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी की स्वर्गवासी मां को मंच से गाली देने का खेल खेला गया और गाली देने वाला एक भाजपा का ही कार्यकर्ता निकला उससे सत्ता पक्ष की हताशा ही जनता के सामने आयी है।

इस समय इस गाली वाले मुद्दे पर जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस नेतृत्व से सार्वजनिक क्षमा याचना की मांग की है उससे वह पुराने सारे दृश्य जिनमें प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक भाजपा नेताओं द्वारा स्वयं सोनिया गांधी और शशि थरूर की पत्नी पर जिस तरह की भाषाओं का इस्तेमाल करते हुये उन्हें संबोधित किया गया था एकदम नए सिरे से चर्चा में आ गये हैं। भाजपा के एक भी नेता द्वारा उन अपशब्दों पर एक बार भी खेद व्यक्त नहीं किया गया। बल्कि इसी दौरान भाजपा सांसद कंगना रनौत को लेकर भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने जिस तरह के आरोप प्रधानमंत्री पर लगाये हैं और पूरी भाजपा डॉ. स्वामी को लेकर एकदम मौन साधकर बैठ गयी है उससे स्थिति और भी गंभीर हो गयी है। इन्हीं आरोपों के दौरान प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर जो सवाल उठे हैं उन पर भी भाजपा नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रियाएं नहीं आयी हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अडानी को लेकर जिस तरह का विवाद अमेरिकी अदालत के माध्यम से सामने आया है उससे भी प्रधानमंत्री की छवि पर कई गंभीर प्रश्न चिन्ह स्वतः ही लग गये हैं। भाजपा का पर्याय बन चुके प्रधानमंत्री पर जिस तरह के सवाल खड़े हो गये हैं उनका परिणाम गंभीर होगा यह तय है।
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पद त्याग पर उठी चर्चाओं ने भाजपा और मोदी के राजनीतिक चरित्र पर जिस तरह के सवाल खड़े किये हैं उससे स्थिति और भी सन्देहास्पद हो गयी है। भाजपा के इस राजनीतिक चरित्र पर भी सवाल उठने लग पड़े हैं कि भाजपा का साथ देने वाले दलों का राजनीतिक भविष्य कितना सुरक्षित रह पाता है। पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के इस चरित्र का प्रमाण है। कुल मिलाकर जिस तरह से राहुल गांधी ने वोट चोरी का आरोप लगाने से पूर्व इस संद्धर्भ में पुख्ता दस्तावेजी प्रमाण जूटा कर चुनाव आयोग और इससे लाभान्वित होती रही भाजपा की राजनीति पर हमला बोला है उससे पूरे देश में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर जो प्रश्न चिन्ह खड़े हुए हैं उसका जवाब चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार से नहीं आ पा रहा है। बल्कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर जिस तरह के सवालों से घिर गये हैं उसके परिणाम भाजपा की राजनीतिक सेहत के लिए नुकसानदेह प्रमाणित होंगे। क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय ने बिहार की एस.आई.आर. पर जिस तरह से चुनाव आयोग को घेरा है उससे सारा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया है। ऐसी स्थितियां बन गयी हैं जिनसे केंद्र की सरकार पर संकट आता नजर आ रहा है। इस राजनीतिक परिदृश्य में यदि राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर बैठे भाजपा के स्लीपर सैलों को चिन्हित करके बाहर का रास्ता न दिखा पाये तो इससे राहुल को कांग्रेस के अन्दर भी एक बड़ी लड़ाई छेड़नी पड़ेगी। क्योंकि देश की राजनीति इस समय जिस मोड़ पर पहुंच गयी है उसमें इस तरह के भीतरघात का सबसे अधिक डर रहता है। क्योंकि आसानी से कोई सत्ता नहीं छोड़ता है।

जिम्मेदार तन्त्र की जवाबदेही तय होनी चाहिये

इस बार हिमाचल में बरसात ने जिस तरह का कर बरपाया है और उससे जो बुनियादी सवाल खड़े हुये हैं उन पर समय रहते गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। अन्यथा सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणियां को घटते समय नहीं लगेगा। सर्वाेच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि यदि समय रहते सही कदम नहीं उठाये गये तो प्रदेश देश के मानचित्र से गायब हो जायेगा। सर्वाेच्च न्यायालय की इस चिन्ता के बाद एन.जी.टी. ने भी एक समाचार का संज्ञान लेते हुये टी.सी.पी., शहरी विकास, पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी और क्लाइमेट चेंज, राज्य प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड तथा देहरादून स्थित पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को नोटिस जारी करके अनियन्त्रित निर्माणों पर उनके जवाब तलब किये हैं। यह चिन्ता और संज्ञान अपने में बहुत गंभीर है। सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद यह लगा था कि विधानसभा सत्र में समूचा सदन इस भविष्य के सवाल पर गंभीरता से चिन्तन करेगा। परन्तु ऐसा हो नहीं सका है। हमारे माननीय केवल केन्द्र से प्रदेश को आपदा ग्रस्त क्षेत्र घोषित करने के प्रस्ताव तक ही सीमित रहे हैं। एन.जी.टी. ने जिस तरह से सारे संबद्ध विभागों से जवाब तलब किया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सारे विभाग कहीं न कहीं अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे हैं। यह विभाग अपनी जिम्मेदारियां क्यों नहीं निभा पायें हैं? राजनीतिक दबाव कितना हावी रहा है यह स्थितियां अब स्पष्ट होने का वक्त आ गया है।
स्मरणीय है कि 1971 में किन्नौर में आये भूकंप का असर शिमला के लक्कड़ बाजार और रिज तक पड़ा था। लक्कड़ बाजार कितना धंस गया था यह आज भी देखा जा सकता है। रिज को संभालने का काम तब से आज तक चल रहा है और आज रिवाली मार्केट को खतरा पैदा हो गया है क्योंकि जिस तरह का निर्माण उस क्षेत्रा में चल रहा है यह उसका प्रभाव है। शिमला में अवैध निर्माणों को बहाल करने के लिये नौ बार रिटेंशन पॉलिसीयां लायी गयी। एन.जी.टी. में मामला गया था और एन.जी.टी. ने स्पष्ट निर्देश दिये थे की अढ़ाई मंजिल से ज्यादा का निर्माण नहीं किया जायेगा? यदि आज एन.जी.टी. के फैसले के बाद हुये निर्माणों की ही सही जानकारी ली जाये तो पता चल जायेगा कि इस फैसले का कितना पालन हुआ है। चंबा में रवि अपने मूल बहाव से 65 किलोमीटर गायब हो गयी है यह रिपोर्ट प्रदेश के तत्कालिक वरिष्ठ नौकरशाह अभय शुक्ला की है। प्रदेश उच्च न्यायालय को भी यह रिपोर्ट सौंपी गयी थी। लेकिन इस रिपोर्ट पर कितना अमल हुआ है? शायद कोई अमल नहीं हुआ है और आज चंबा में रवि के कारण हुआ नुकसान सबके सामने है।
इस बार जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई दशकों तक नहीं हो पायेगी। सरकार पहले ही कर्ज के आसरे चल रही हैं। बादल फटने की जितनी घटनाएं इस बार हुई है इतनी पहले कभी नहीं हुई हैं। यह घटनाएं उन क्षेत्रों में ज्यादा हुई हैं जो जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। बहुत सारी परियोजनाएं स्वयं खतरे की जद़ में आ गयी हैं। इसलिये यह चिन्तन का विषय हो जाता है की क्या इस तरह की बड़ी परियोजनाएं प्रदेश हित में हैं। जल विद्युत परियोजनाएं, फोरलेन सड़कों का निर्माण और धार्मिक पर्यटन की अवधारणा क्या इस प्रदेश के लिये आवश्यक है? क्या यह प्रदेश बड़े उद्योगों के लिए सही है। जितना जान माल का नुकसान इस बार हुआ है उससे यह चर्चा उठ गयी है कि इस देवभूमि से देवता अब रूष्ट हो गई हैं। इस चर्चा को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि देव स्थलों को पर्यटन स्थल नहीं बनाया जा सकता।
एन.जी.टी. ने जितने विभागों से रिपोर्ट तलब की है उन सारे विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों से यह शपत पत्र लिये जाने चाहिये कि उन्होंने स्वयं निर्माण मानकों की अवहेलना तो नहीं की है। इसी के साथ शीर्ष प्रशासन और राजनेताओं से भी यह शपथ पत्र लिये जाने चाहिये कि उन्होंने मानकों की कितनी अवहेलना की है। क्योंकि जब तक जिम्मेदार लोगों को जवाब देह नहीं बनाया जायेगा तब तक यह विनाश नहीं रुकेगा।

अब जेल से सरकार नहीं चलेगी-कुछ सवाल

अब सरकार जेल से नहीं चलेगी। मोदी सरकार ने इस आश्य का संविधान संशोधन विधेयक इस मानसून सत्र में लाने का प्रयास किया है। जैसे ही यह विधेयक गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में रखा तो उस पर जिस तरह की प्रतिक्रिया विपक्ष की सामने आयी उससे यह विधेयक प्रवर समिति को सौंपना पड़ गया। प्रवर समिति इस पर विचार विमर्श करके पुनः सरकार को सौंपेगी और तब संभव है कि यह विधेयक पारित हो जाये। प्रधानमंत्री मोदी इस प्रस्तावित विधेयक को जिस तरह से जनता में रख रहे हैं उससे सरकार की नीयत और नीति दोनों पर ही कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसलिए इस पर एक व्यापक बहस की आवश्यकता हो जाती है। स्मरणीय है कि 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने अन्ना आन्दोलन के प्रतिफल के रूप में सत्ता संभाली थी तब उस आन्दोलन के मुख्य बिन्दु ही भ्रष्टाचार और काला धन थे। इन्हीं की जांच के लिये लोकपाल की मांग इस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा बन गया था। भ्रष्टाचार के आरोप का आधार सी.ए.जी. विनोद राय की 2G स्पेक्ट्रम पर आयी रिपोर्ट थी। लाखों करोड़ का भ्रष्टाचार होने का आंकड़ा इस रिपोर्ट में परोसा गया था। काले धन पर बाबा रामदेव के ब्यानों के आंकड़े थे। आरोप गंभीर थे और देश ने इन्हें सच मानकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। हालांकि लोकपाल का मसौदा डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ही पारित कर गयी थी। तब मोदी भाजपा ने देश से वायदा किया था कि संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करेंगे। उस वातावरण में कांग्रेस और अन्य दलों से कई नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया था।
उस परिदृश्य में सरकार बदल गयी। विनोद राय की रिपोर्ट पर जांच चली और विनोद राय ने अदालत में शपथ पत्र देकर ब्यान दिया कि उन्हें गणना करने में चूक लगी थी और ऐसा कोई घपला हुआ ही नहीं था। इस ब्यान के बाद विनोद राय को बी.सी.सी.आई. में एक बड़ा पद दे दिया गया और जनता भ्रष्टाचार के इस सनसनीखेज आरोप को भूल गयी। यह मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी कारवाई थी। काले धन के आंकड़ों पर बाबा रामदेव चुप्पी साध गये। स्वयं सुप्रीम कोर्ट की प्रताड़ना का एक मामले में शिकार हुये। आज काले धन का आंकड़ा नोटबंदी के बावजूद पहले से दो गुना हो चुका है। विपक्ष के जितने भी नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे ई.डी और सी.बी.आई. ने कारवाई की वह सब भाजपा में जाकर पाक साफ हो गये हैं। आज शायद दल बदल कर भाजपा में आये नेताओं का आंकड़ा संसद में मूल भाजपाइयों से बड़ा है। ई.डी. आयकर और सी.बी.आई. प्रताड़ना के हथियार मात्र बनकर रह गये हैं। ई.डी. की शक्तियों का किसी समय अनुमोदन करने वाला सुप्रीम कोर्ट ही आज उस पर सबसे गंभीर सवाल उठाने लग गया है। संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवाने के वायदे का प्रतिफल आज यह है कि भाजपा में ही अपराधियों की संख्या सबसे ज्यादा हो गई है। इस परिदृश्य में यह आशंका एकदम जायज हो जाती है कि किसी भी मंत्री/मुख्यमंत्री के पीछे सी.बी.आई./ई.डी. लगाकर उसे गिरफ्तार करवा दो और तीस दिन तक जमानत न होने दो अपने आप सत्ता से व्यक्ति बाहर हो जायेगा। अरविन्द केजरीवाल और सत्येंद्र जैन इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस संशोधन से तीन माह के भीतर ही देश विपक्ष रहित हो जायेगा।
आज केंद्र सरकार और चुनाव आयोग जिस तरह से वोट चोरी के पुख्ता दस्तावेजी प्रमाणों के साथ आरोपों में घिर चुके हैं उससे बाहर निकलने क लियेे यह प्रस्तावित संशोधन एक बड़ा सहज हथियार प्रमाणित होगा। लेकिन आज वोट चोरी का आरोप जिस प्रामाणिकता के साथ जन आन्दोलन की शक्ल लेता जा रहा है उसके परिदृश्य में आज हर आदमी इस पर गंभीरता से विचार करने लग गया है। क्योंकि 2014 और 2019 में जो वायदे देश के साथ किये गये थे आज उनकी प्रतिपूर्ति एक जन सवाल बनती जा रही है। तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का यह सबसे बड़ा कड़वा सच है कि देश में अस्सी करोड़ लोग अपने लिये दो वक्त की रोटी के लिये भी सरकार पर निर्भर बना दिये गये हैं। आज अमेरिका, रूस और चीन के साथ हमारे आयात-निर्यात के आंकड़े ही इसका प्रमाण है कि हम उत्पादन में कहां खड़े हैं। सभी जगह व्यापार असन्तुलन है। इस परिदृश्य में इस तरह के संशोधनों से विपक्ष की आवाज को बन्द करने के प्रयासों का प्रतिफल सरकार के अपने लिये घातक होगा।

क्या वोट चोरी का आरोप जनआन्दोलन की नयी जमीन होगा

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बुनियाद निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव व्यवस्था पर आश्रित है यह एक स्थापित सत्य है। परन्तु जब चुनाव व्यवस्था पर ही वोट चोरी के आरोप लग जायें तो निश्चित रूप से लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। यह खतरा उस समय और बढ़ जाता है जब इस वोट चोरी से सत्ता में आये शासक और इस चुनाव व्यवस्था के संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहा संचालन तंत्र इस वोट चोरी के आरोप को मानने से इन्कार कर दे। संसद में नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लगाये हैं और सत्ता पक्ष की ओर से इन आरोपों का जवाब देने के लिये जिस तरह से पूर्व मंत्री हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर मैदान में उतरे उससे इन वोट चोरी के आरोपों का स्वतः ही सत्यापन हो जाता है। इस समय राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों से जिस तरह का राजनीतिक वातावरण पूरे देश में निर्मित हो गया है उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। ऐसी संभावना बनती जा रही है कि यह मुद्दा एक जन आन्दोलन की शक्ल लेने जा रहा है।
वैसे तो जब से ईवीएम मशीन के माध्यम से 1998 से वोट डाले जाने लगे हैं तभी से इन मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते आये हैं। 2009-10 में जब लाल कृष्ण आडवाणी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब इन मशीनों की व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठे थे। भाजपा नेता जी वी एल नरसिम्हा राव ने तब इन आरोपों पर एक पुस्तक तक लिखी थी। आज यह आरोप इन ईवीएम मशीनों से चलकर चुनाव आयोग का संचालन कर रहे तंत्र तक पहुंच गये हैं। भाजपा नीत एनडीए 2014 से केन्द्र की सत्ता पर आसीन है और हर चुनाव में चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन पहली बार चुनावों में हुई धांधली पर तथ्य परक अध्ययन करके राहुल गांधी सामने आये हैं। स्मरणीय है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ‘‘अबकी बार चार सौ पार’’ का नारा लगाया था लेकिन यह आंकड़ा दो सौ चालीस पर आकर रुक गया और सरकार बनाने के लिये नीतीश और नायडू का सहारा लेना पड़ा। लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में जिस पैमाने की धांधलियां हुई उसकी पराकाष्ठा तब सामने आयी जब हरियाणा में एक विधानसभा चुनाव का डिजिटल रिकॉर्ड लेने के लिये सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी यह रिकॉर्ड नहीं मिला और मामला पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय पहुंचा तथा अदालत ने यह रिकॉर्ड देने के आदेश कर दिये। लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के बाद रात को नियम में संशोधन करके रिकॉर्ड देने से इन्कार कर दिया गया। इससे यह आशंका और बलवती हो गई कि चुनाव आयोग में ऐसा कुछ अवश्य हुआ है जिसे सार्वजनिक होने से रोकने के लिये नियम में ही संशोधन कर दिया गया।
यह स्थितियां बनी जिनसे पूरे अनुसंधान के साथ कर्नाटक की महादेवपुरा सीट का अध्ययन किया गया। इस अनुसंधान के बाद वोट चोरी के पांच रास्ते सामने आये। यह पांच चोर रास्ते इस प्रकार सामने आये (1) डुप्लीकेट वोट (2) फर्जी और अप्रमाणित पते (3) एक छोटे से घर में 80 से अधिक वोट (4) फर्जी फोटो (5) फॉर्म छः का दुरुपयोग । इनके विश्लेषण से सामने आया कि 11965 वोट डुप्लीकेट (2) 10452 वोट एक ही पते पर दर्ज (3) 4509 वोट फर्जी और अप्रमाणित पर दर्ज (4) 4132 वोट अमान्य फोटो के साथ दर्ज (5) 33692 मामले ऐसे हैं जहां व्यक्ति चार-चार अलग पोलिंग पर दर्ज। आदित्य श्री वास्तव कर्नाटक में दो, उत्तर प्रदेश में एक और महाराष्ट्र में एक पोलिंग बूथ पर दर्ज है और सभी जगह वोट डाले हैं। इण्डिया टुडे की टीम ने अपनी जांच में एक ही पते पर 80 वोट दर्ज होने के आरोप को सही पाया है। इस तरह के आरोप कई लोकसभा क्षेत्रों में सामने आये हैं। इन आरोपों पर चुनाव आयोग का जवाब हास्यस्पद रूप से सामने आया है क्योंकि चुनाव आयोग अपना डाटा सार्वजनिक नहीं कर रहा है। जबकि यह आरोप सीधे अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिये कर्नाटक में मामला दर्ज किया जा सकता है। बिहार में चुनाव आयोग ने जिस तरह से 65 लाख मतदाताओं को सूची से निकला था उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सारी स्थिति को बदल दिया। इन वोट चोरी के आरोपों के साथ जिस तरह के सवाल पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और स्व.राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रति भारत सरकार के आचरण से उभरें हैं उससे यह स्पष्ट हो गया है की चुनाव आयोग की विश्वसनीयता के साथ केन्द्र सरकार की नीयत और नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े होते जा रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री इन उठते सवालों पर स्वयं जवाब नहीं देते हैं तो परिस्थितियों बहुत जटिल हो जायेंगी।

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