अदानी प्रकरण पर हिन्डनबर्ग के खुलासे से जो परिस्थितियां निर्मित हुई है उनसे पूरा देश हिल कर रह गया है। क्योंकि इस खुलासे से अन्तरराष्ट्रीय शेयर बाजार से लेकर देश के शेयर बाजार में अदानी समूह के शेयरों में गिरावट आयी है। इस गिरावट से देश विदेश के हर निवेशक को नुकसान हुआ है। इसमें सबसे गंभीर पक्ष यह है कि देश के सार्वजनिक बैंकां और एलआईसी तक ने इस समूह में निवेश किया है। बैंकों ने तो कर्ज भी दिया है। लगभग हर सार्वजनिक क्षेत्र का प्रबन्धन इस समूह के पास है। ऐसे में यह स्थिति बन चुकी हैं कि इस समूह के डूबने से पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। संसद में इस प्रकरण पर उठे विपक्ष के सवालों का कोई जवाब नहीं आया है। प्रधानमंत्री का भाषण भी ‘‘सवाल गंदम और जवाब चना’’ बनकर रह गया है। इस प्रकरण पर उठे सवालों के परिदृश्य में संसद कुछ समय के लिये स्थगित करनी पड़ी है। सर्वोच्च न्यायालय में इस पर आयी याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने अपने स्तर पर जांच करवाने का भरोसा देश को दिया है। इस जांच के लिये सरकार द्वारा सुझाये नामों को शीर्ष अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। सरकार ने हिन्डन बर्ग के खुलासे को देश पर हमला कर दिया है लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि देश के करीब सारे बड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठान इस समूह के पास कैसे पहुंच गये? देश का सबसे अमीर व्यक्ति शीर्ष कर दाताओं के पहले दस नामों में भी शामिल क्यों नहीं है। यह सामान्य सवाल आज देश के हर नागरिक के दिमाग में आ चुके हैं यह एक कड़वा सच है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है। क्योंकि हिंन्डन बर्ग के खुलासे के साथ ही गुजरात दंगों को लेकर बी.बी.सी. कि एक डॉक्यूमैन्ट्री आ गयी इस पर प्रतिबन्ध लगाते हुये बी.बी.सी. पर ही प्रतिबन्ध लगाने की मांग के आश्य की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। इस याचिका से कश्मीर फाईल्ज पर प्रधानमंत्री का यह तर्क फिर चर्चा में आ गया की यदि कश्मीर फाईल्ज से हटकर किसी के पास और तथ्य हैं तो उसे अलग से फिल्म बनाकर सामने लाना चाहिये। ठीक यही तर्क बी.बी.सी. की डॉक्यूमैन्ट्री पर लागू होता है। बी.बी.सी. के खुलासे के बाद बी.बी.सी. पर छापेमारी हो गयी। इसके बाद विश्व के सबसे प्रतिष्ठित अखबार दी गार्जियन का खुलासा गया। दी गार्जियन के खुलासे के बाद ईजरायल की कंपनी को लेकर यह सामने आ गया कि उसने भारत के में चुनावों को प्रभावित किया है। मोदी सरकार हर खुलासे पर खामोश है। यह भी नहीं कह पा रही है कि यह सब गल्त है। कांग्रेस लगातार सरकार और प्रधानमंत्री से इस सब पर प्रतिक्रिया की मांग कर रही है।
इस तरह जो परिस्थितियां बनती जा रही हैं वह भाजपा, केंद्र की सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी के लिये कठिनाइयां पैदा करेंगी यह तय है। क्योंकि एक आदमी अदानी के डूबने से देश के डूबने की व्यवहारिक स्थिति बन गयी है। महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ेगी। हालात एक और जनान्दोलन की ओर बढ़ रहे हैं। हिंन्दू-मुस्लिम, मन्दिर-मस्जिद के नाम पर अब फिर ध्रुवीकरण होना संभव नहीं लग रहा है। क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने पूरा परिदृश्य बदल कर रख दिया है। आज राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से बड़ा नाम बन गया है। राहुल की छवि बिगाड़ने के सारे प्रयास अर्थहीन होकर रह गये हैं। ऐसे में कांग्रेस को कमजोर करने के लिये कांग्रेस की सरकारों और उसके राज्यों के नेतृत्व को कमजोर करने की रणनीति अपनाई जाएगी यह तय है। इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का राज्यों का नेतृत्व इस स्थिति का कैसे मुकाबला करता है।






इसी खोज के परिणाम स्वरूप एक रिसर्च संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आ गयी। इस रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि इस घराने में कई फर्जी विदेशी कंपनियों का हजारों करोड़ का निवेश है। यह कंपनियां और इनके संचालक धरातल पर मौजूद ही नही है। इनके मुख्यालय ‘‘टैक्स हैवन’’ देशों में स्थित हैं। इस घराने ने अपनी कंपनियों के शेयरों में फर्जी उछाल दिखाकर देश-विदेश के शेयर बाजार को प्रभावित किया है। यह खुलासा भी सामने आ गया कि इस धन्धे में इसके अपने परिजनों की भी सक्रिय भागीदारी है। यह पहले से ही सार्वजनिक संज्ञान में था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए नरेन्द्र मोदी ने गौतम अदानी के ही हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया है। सरकार बनने के बाद गौतम अदानी प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर में साथ रहते आये हैं। इस आश्य के फोटोग्राफ तक संसद में विपक्ष दिखा चुका है। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों में अकसर अदानी का साथ रहना या बाद में अदानी का उन देशों में जाना संसद में चर्चा और सवालों का विषय रहा है। सिंगापुर और बांग्लादेश में प्रधानमंत्री की सिफारिशों के बाद अदानी को ठेके मिलना सब आरोपों का विषय रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने संसद में इन सवालों का जवाब नही दिया है। बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गये अठारह सवालों को उनके भाषण में ही हटा दिया गया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को देश के खिलाफ साजिश करार दिया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी ने इस सारी बहस का रुख बदलते हुये ‘‘एक अकेला सब पर भारी’’ करार दिया है।
इस परिदृश्य में अब यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि निवेशकों के निवेश की सुरक्षा के क्या उपाय हैं। आर.बी.आई. और सैबी से भी जवाब मांगा है क्योंकि सारी निगरानी एजैन्सियां अब तक खामोश बैठी हैं। जबकि अदानी समूह के शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं। विदेशी निवेशक अपना निवेश निकाल रहे हैं। विदेशी बैंकों ने अदानी के शेयरों को बॉण्डज् के तौर पर लेने से मना कर दिया है। देश में भी एल.आई.सी., एस.बी.आई. और पी.एन.बी. सब नुकसान के दायरे में हैं। रिपोर्टों के मुताबिक दस लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। इन सब प्रतिष्ठानों में देश के आम आदमी का पैसा जमा है और इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा अदानी समूह में निवेशित है जिसके शेयर लगातार गिर रहे हैं। तो क्या आम आदमी इस पर चिंतित नहीं होगा। सरकारी बैंक अदानी को ढाई लाख करोड़ का कर्ज दे चुके हैं। सरकार चौरासी हजार करोड़ का कर्ज माफ कर चुकी है। देश का यह सबसे अमीर आदमी टैक्स देने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी नहीं है। यह आरोप संसद में लग चुका है। अदानी पर उठते सवालों से प्रधानमंत्री और सरकार लगातार बचते फिर रहे हैं। ऐसे में क्या इस स्थिति को लोकतंत्र के लिये घातक नहीं माना जाना चाहिये? क्या सरकार का रुख एक और जन आन्दोलन की जमीन तैयार नहीं कर रहा है?






इसी खोज के परिणाम स्वरूप एक रिसर्च संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आ गयी। इस रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि इस घराने में कई फर्जी विदेशी कंपनियों का हजारों करोड़ का निवेश है। यह कंपनियां और इनके संचालक धरातल पर मौजूद ही नही है। इनके मुख्यालय ‘‘टैक्स हैवन’’ देशों में स्थित हैं। इस घराने ने अपनी कंपनियों के शेयरों में फर्जी उछाल दिखाकर देश-विदेश के शेयर बाजार को प्रभावित किया है। यह खुलासा भी सामने आ गया कि इस धन्धे में इसके अपने परिजनों की भी सक्रिय भागीदारी है। यह पहले से ही सार्वजनिक संज्ञान में था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए नरेन्द्र मोदी ने गौतम अदानी के ही हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया है। सरकार बनने के बाद गौतम अदानी प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर में साथ रहते आये हैं। इस आश्य के फोटोग्राफ तक संसद में विपक्ष दिखा चुका है। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों में अकसर अदानी का साथ रहना या बाद में अदानी का उन देशों में जाना संसद में चर्चा और सवालों का विषय रहा है। सिंगापुर और बांग्लादेश में प्रधानमंत्री की सिफारिशों के बाद अदानी को ठेके मिलना सब आरोपों का विषय रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने संसद में इन सवालों का जवाब नही दिया है। बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गये अठारह सवालों को उनके भाषण में ही हटा दिया गया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को देश के खिलाफ साजिश करार दिया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी ने इस सारी बहस का रुख बदलते हुये ‘‘एक अकेला सब पर भारी’’ करार दिया है।
इस परिदृश्य में अब यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि निवेशकों के निवेश की सुरक्षा के क्या उपाय हैं। आर.बी.आई. और सैबी से भी जवाब मांगा है क्योंकि सारी निगरानी एजैन्सियां अब तक खामोश बैठी हैं। जबकि अदानी समूह के शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं। विदेशी निवेशक अपना निवेश निकाल रहे हैं। विदेशी बैंकों ने अदानी के शेयरों को बॉण्डज् के तौर पर लेने से मना कर दिया है। देश में भी एल.आई.सी., एस.बी.आई. और पी.एन.बी. सब नुकसान के दायरे में हैं। रिपोर्टों के मुताबिक दस लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। इन सब प्रतिष्ठानों में देश के आम आदमी का पैसा जमा है और इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा अदानी समूह में निवेशित है जिसके शेयर लगातार गिर रहे हैं। तो क्या आम आदमी इस पर चिंतित नहीं होगा। सरकारी बैंक अदानी को ढाई लाख करोड़ का कर्ज दे चुके हैं। सरकार चौरासी हजार करोड़ का कर्ज माफ कर चुकी है। देश का यह सबसे अमीर आदमी टैक्स देने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी नहीं है। यह आरोप संसद में लग चुका है। अदानी पर उठते सवालों से प्रधानमंत्री और सरकार लगातार बचते फिर रहे हैं। ऐसे में क्या इस स्थिति को लोकतंत्र के लिये घातक नहीं माना जाना चाहिये? क्या सरकार का रुख एक और जन आन्दोलन की जमीन तैयार नहीं कर रहा है?











