राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू हो गयी है। इसे लागू करने के साथ ही कक्षा बारहवीं तक के पाठयक्रमों में एन.सी.आर.टी. ने बदलाव किया है। पाठयक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी एन.सी.आर.टी. की है। पिछले दिनों जब देश कोविड से जूझ रहा था और लॉकडाउन लगाना पड़ा था तब सबसे ज्यादा स्कूल पढ़ने वाले बच्चे प्रभावित हुये थे। ऑनलाइन क्लासें लगाई गयी थी। इसका संज्ञान लेते हुये एन.सी.आर.टी. ने 30 प्रतिशत तक पाठयक्रमों में कटौती करने का फैसला लिया। स्वभाविक है कि जब पाठयक्रम घटाया जायेगा तो निश्चित रूप से किताबों से कुछ अध्याय हटाने पड़ेंगे। इससे जिस तरह से अध्याय हटाये गये हैं उससे हटाने वालों की नीयत पर संकाएं उठना शुरू हो गयी है। क्योंकि कोविड के कारण 30 प्रतिशत पाठयक्रम बच्चों का बोझ कम करने के नाम पर घटाया गया लेकिन जब कोविड की आशंका नहीं रहेगी तब फिर से हटाये गये अध्यायों को पाठयक्रम का हिस्सा बना दिया जायेगा यी नहीं कहा जा रहा है। यही सरकार की नीयत पर संदेह का आधार बन रहा है। क्योंकि जो अध्याय हटाये गये हैं उनके बिना शिक्षण और ज्ञान दोनों अधूरे रह जाते हैं।
इस देश में अंग्रेजों से बहुत पहले मुस्लिम आ गये थे। उनका शासन भी देश में रहा है। वह देश में बस गये और यही का हिस्सा बन गये। अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उनका भी योगदान रहा है। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई जिसे झूठलाया नहीं जा सकता। जो निश्चित रूप से सच हो उसे ही इतिहास कहा जाता है। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस का योगदान दूसरों से अधिक रहा है। गांधी उसके नायक रहे हैं। मोतीलाल नेहरू ने आनंद भवन इस लड़ाई में देश के हवाले कर दिया था। क्या इन तथ्यों को झूठलाया जा सकता है शायद नहीं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की आजादी की लड़ाई में रही भूमिका पर जो सवाल भाजपा नेता डा. स्वामी ने उठाये हैं क्या उनका जवाब किसी ने आज तक दिया है? गांधी, नेहरू और मुगल इतिहास के अध्यायों को पाठयक्रम से हटाकर इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता। ईसा को किसी पाठय पुस्तक में अपशब्द कहकर उनकी महानता को कम नहीं किया जा सकता। पाठयक्रमों में मनुस्मृति और श्री मदभगवत् गीता को जोड़कर इतिहास को नये सिरे से नहीं लिखा जा सकता। जो प्रयास संघ के इतिहास लेखन प्रकोष्ठ के माध्यम से किया जा रहा है।
पाठयक्रमों से अध्यायों को हटाने जोड़ने से ज्यादा संवेदनशील मुद्दा यह है कि अब बच्चों को पाठयक्रमों में विस्तृत चुनाव पर विकल्प दे दिये गये हैं। अब पाठयक्रम ‘‘अतिरिक्त पाठयक्रम’’ या सह पाठयक्रम कला, मानविकी और विज्ञान अथवा व्यवसायिक या अकादमिक धारा जैसी कोई श्रेणीयां नहीं होगी। यह विषय बच्चों की रूची के अनुसार पाठयक्रम में शामिल किये जायेंगे। पहले प्लस टू के बाद बच्चा एक धारा विशेष में जाने का पात्र हो जाता था। क्योंकि सारी व्यवसायिक शिक्षा प्लस टू के बाद पंचवर्षीय हो चुकी है। अब क्योंकि कोई धारा ही नहीं होगी तो वह अगला विकल्प क्या और कैसे चुनेगा। दो वर्ष बाद जो बच्चे प्लस टू करके निकलेंगे उनके लिये यह व्यवहारिक कठिनाई खड़ी होगी। इस समय जो बहस पाठयक्रमों में कटौती करके हटाये गये अध्यायो पर केंद्रित होकर रह गई है उसमें प्लस टू के बाद आने वाली स्थिति पर विचार करना आवश्यक है।
इसी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में 2014 के चुनाव घोषित हुए भ्रष्टाचार और काले धन के आंकड़े के प्रभाव में ही हर आदमी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आने का सपना दिखाया गया। कांग्रेस में काफी तोड़फोड़ हुई और परिणाम स्वरूप सत्ता बदल गयी। सत्ता बदलने के बाद पंद्रह लाख चुनावी जुमला बता दिया गया। जिस 2जी स्कैम में 1,76,000 करोड़ के घपले का आंकड़ा प्रधान लेखाकार विनोद राय ने परोसा था उन्होंने बाद में अदालत में शपथ पत्र देकर यह कहा कि कोई स्कैम नहीं हुआ था गणना करने में गलती लग गई थी। अन्ना आन्दोलन में जिस लोकपाल की नियुक्ति प्रमुख मांग थी क्या उसके पास आज तक कोई बड़ा मुद्दा गया है? शायद नहीं। 2014 के चुनाव में जो वायदे किये गये थे उनमें से कितने पूरे हुए हैं। लेकिन चुनावी वायदों की ओर ध्यान जाने से पहले ही गौ रक्षा और लव जिहाद जैसे मुद्दे प्रमुख हो गये। चुनावी वायदों की जगह नोटबंदी आ गयी जीएसटी आ गया। प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना आ गयी। इसमें दिये गये ऋण का कितना हिस्सा वापिस आ पाया है यह आंकड़ा आज तक जारी नहीं हो सका है। 2019 के चुनावों के बाद श्रम कानूनों में किया गया बदलाव किसी चुनाव का वायदा नहीं था और न ही कृषि कानून लाने का कोई वायदा था। यदि कोविड के कारण देश में लॉकडाउन न लगता तो शायद श्रम और कृषि कानूनों पर उभरे आन्दोलन का स्वरूप कुछ और ही होता।
जब यह सब हो रहा था तो इसके समानांतर ही हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए अलग से काम हो रहा था। मेघालय उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश एस.आर.सेन ने यह फैसला दिया कि देश को अब हिन्दू राष्ट्र हो जाना चाहिए। इस फैसले को 2019 में इसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की पीठ ने बदल डाला। लेकिन यह फैसला तो आया और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के नाम से नया भारतीय संविधान वायरल हुआ। मनुस्मृति आधारित इस कथित संविधान के वायरल होने पर संघ और केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रियाएं आज तक नहीं आयी है। संघ हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध है यह सब जानते हैं। संघ का मोदी सरकार पर कितना प्रभाव है यह भी किसी से छुपा नहीं है। भाजपा संघ की राजनीतिक इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है। भाजपा सरकारों का केंद्र से लेकर राज्यों तक अधिकांश आचरण हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना के गिर्द ही घूमता आ रहा है। इस परिपेक्ष में जब यह परिदृश्य निर्मित होता जा रहा है की पूरी राजनीति भाजपा बनाम विपक्ष की बजाये राहुल बनाम मोदी होने तक पहुंचा दी गयी है। पूरे सरकारी प्रयासों से एक भामाशाह तैयार किया जा रहा है। पूरी सरकार खुलकर उसके बचाव में खड़ी हो गयी है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी कहीं भी चिन्ता और चिन्तन का विषय नहीं रह गये हैं। सत्ता से मतभेद रखने वाला हर व्यक्ति भ्रष्टाचारी करार दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति को ही अराजकता की संज्ञा दी जाती है। और अराजक वातावरण में ही नये फैसले थोपे जाते हैं। क्या यह सब 2024 की सत्ता से ज्यादा हिन्दू राष्ट्र के ऐजैण्डे को व्यवहारिक रूप देने के लिये एक जमीन तो तैयार नहीं की जा रही है।
राहुल के जिस ब्यान से मोदी समाज का अपमान हुआ है उससे ज्यादा अपमानजनक टिप्पणी राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य और भाजपा नेत्री खुशबू सुन्दर की 2018 में रही है। तब मोदी समाज का अपमान नहीं हुआ क्योंकि मोदी किसी समुदाय विशेष का घोतक नहीं है। मोदी उपनाम वाले सारे लोग एक ही समुदाय या जाति के नहीं हैं। हिन्दू, मुस्लिम, पारसी सभी इस उपनाम का उपयोग करते हैं। वैष्णव (बनिया) पोरबन्दर के खारवा (मछुआरे) और लोहाना (व्यवसायी) समुदाय में मोदी उपनाम लगाने वाले लोग हैं। ओ.बी.सी. की सूची में मोदी नाम का कोई समुदाय या जाती नहीं है। बिहार और राजस्थान की केन्द्रीय सूची में भी कोई मोदी नहीं है। गुजरात की केंद्रीय सूची में मोदी घांची है। यहां सब अब सामने आ चुका है। इस गणित में कौन सा मोदी कैसे आहत हुआ यह एक सामान्य समझ का विषय बन जाता है। आगे अदालतों में यह बहस का विषय बनेगा। इस मामले की सुनवाई एक माह में पूरी हो गयी। जबकि शायद फास्ट टै्रक कोर्ट भी इस गति से फैसले नही दे पाये हैं। इस तरह मामले के सारे तथ्यों को यदि एक साथ रखकर देखा जाये तो इसमें निश्चित रूप से राजनीति की गंध आती है। एक राजनीतिक गंध हर रोज स्पष्ट होती जा रही है। इसी से भाजपा लगातार यह सवाल कर रही है कि कांग्रेस ऊपरी अदालत में क्यों नहीं जा रही है। क्योंकि जैसे ही मामला अदालत में जायेगा तो तुरंत प्रभाव से अदालत में विचाराधीन की श्रेणी में आ जायेगा और सार्वजनिक बहस काफी हद तक रुक जायेगी यही भाजपा चाहती है।
इस समय नरेंद्र मोदी से राहुल का राजनीतिक कद बहुत बढ़ गया है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल को जिस तरह से स्थापित कर दिया है उसकी बराबरी कर पाना शायद नरेंद्र मोदी के लिये कठिन हो गया है। क्योंकि इस प्रकरण के बाद वह सब कुछ एकदम फिर से चर्चा में आ गया है जो पिछले आठ वर्षों में देश में घटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश विदेश में दिये सारे ब्यान ताजा हो गये हैं। किस तरह से एक ही झटके में यह कह दिया गया कि 75 वर्षों में देश में हुआ ही कुछ नहीं है। किस तरह से पूर्व प्रधानमंत्रियों को लेकर टिप्पणियां की गयी है वह सब चर्चा में आ गयी है। कैसे नेहरु, गांधी परिवार के खिलाफ एक तरह से जिहाद छेड़े गये। कैसे राहुल को पप्पू प्रचारित करने में अरबों रुपए खर्च किये गये। कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में यह सामने आ चुका है। यह बहस चल पड़ी है कि देश का अपमान नरेन्द्र मोदी ने किया है कि राहुल गांधी ने। क्योंकि सरकार लगातार अपने विरोधियों को येन केन प्रकारेण दबाने में लगी रही और आाम जनता को इसके बदले में जो महंगाई और बेरोजगारी मिली उसमें आज जनता को दोनों में तुलना करने पर खड़ा कर दिया है और उसमें मोदी कमजोर पढ़ते जा रहे हैं। क्योंकि अदानी प्रकरण पर सारी सरकार और भाजपा का अदानी के पक्ष में खड़े हो जाना आम आदमी की नजर में लगातार प्रश्नित होता जा रहा है। जब आज तक हर विवादित मुद्दे पर जे.पी.सी. का गठन होता आया है तो अदानी मामले में क्यों नहीं ? क्यों केंद्रीय कानून मंत्री सर्वोच्च न्यायालय और सेवानिवृत्त जजां के खिलाफ हर कुछ बोलने लग गये हैं। जनता इस सब पर नजर रख रही हैं और यही भाजपा तथा मोदी सरकार का कमजोर पक्ष बनता जा रहा है।
इस बदले परिदृश्य में पूर्णेश मोदी पुनः उच्च न्यायालय चले गये और गुहार लगाई कि स्टे को वापस ले लिया जाये और ट्रायल कोर्ट अपनी अगली कारवाई शुरू करे। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को स्वीकार करते हुये स्टे हटा दिया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विपुल पांचोली के स्टे वापिस लेने के बाद मामला सी.जे.एम. की अदालत पहुंच गया। एक माह में सारी कारवाई की प्रक्रिया पूरी होकर फैसला आ गया। फैसले में राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा सुना दी गयी और मामला चर्चा में आ गया। क्योंकि इस कानून के तहत अधिकतम सजा ही दो वर्ष की है और पंचायत से लेकर संसद तक किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि की सदस्यता रद्द करने के लिए कम से कम दो वर्ष की चाहिए। यदि राहुल को दो वर्ष से कम की सजा होती तो इस पर इतना शोर ही न उठता। अब एक माह में सारा ट्रायल पूरा हो जाना और सजा भी दो वर्ष की होना जिसका सीधा प्रभाव सांसदी पर पड़ेगा। यह सब संयोगवश हो गया या कोई और कारण भी रहे होंगे यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है इस पर अभी कुछ कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस फैसले ने पूरे देश की सियासत को हिला कर रख दिया है। राहुल गांधी इस फैसले से जरा भी विचलित नहीं है यह उनकी पत्रकारवार्ता से स्पष्ट हो गया। क्योंकि राहुल गांधी के इस ब्यान पर यह मानहानि मामला हुआ उससे भी गंभीर आरोप मोदी उपनाम पर राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुन्दर 2018 में लगा चुकी है बल्कि यह आरोप लगाने के बाद ही वह भाजपा में शामिल हुई है। उनके ब्यान से किसी मोदी की कोई मानहानि नहीं हुई है। कांग्रेस ने खुशबू के ब्यान को मुद्दा बना लिया है। बल्कि इस फैसले के बाद भाजपा के सारे नेताओं के ब्यान एकदम नये सिरे से चर्चा में आ गये हैं। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर शाहीनबाग आन्दोलन के प्रसंग में दिया ब्यान तक चर्चा का केन्द्र बन गये हैं। राहुल को लेकर आया फैसला एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। भाजपा जब इसे ओ.बी.सी. के अपमान का मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है तब उनके अपने ही नेताओं के ब्यान उस पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा और अदाणी के रिश्ते एक राष्ट्रीय सवाल बनता जा रहा है। अदाणी की भ्रष्टता पर प्रहार को राष्ट्र का अपमान बताना भाजपा को भारी पड़ेगा यह स्पष्ट होता जा रहा है। राहुल गांधी को उच्च न्यायालय से राहत मिलेगी ही क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय लिली थॉमस लोक प्रहरी और सुब्रमण्यम स्वामी के मामलों में जिस तरह की स्थापनाएं कर चुका है उनके मानकों पर शायद यह मामला पूरा नहीं उतरता है। ऐसे में इस फैसले के बाद राष्ट्रीय प्रश्नों पर उठने वाली बहस भाजपा और प्रधानमंत्री पर भारी पड़ेगी। वैसे यह देखना रोचक होगा कि प्रदेशों में बैठा हुआ कांग्रेस नेतृत्व किस तरह से जनता के बीच जाता है।