Wednesday, 17 December 2025
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राहुल की सजा का राजनीतिक प्रतिफल क्या होगा

राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता एक मानहानि मामले में मिली दो वर्ष की सजा के परिणाम स्वरूप रद्द कर दी गयी है। गुजरात के सूरत में एक सी.जे.एम. की अदालत का फैसला आने के बाद चौबीस घन्टे के भीतर ही इस फैसले पर अमल करते हुए लोकसभा सचिवालय ने एक विशेष अधिसूचना जारी करके राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी। लोकसभा सचिवालय का यह फैसला आने से पहले ही सी.जी.एम. की अदालत अपने फैसले पर एक माह की रोक भी लगा चुकी थी। राहुल गांधी के खिलाफ सूरत में एक भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने 2019 में यह मामला दायर किया था। मामला दायर करने के बाद पूर्णेश ने अदालत में गुहार लगाई थी कि राहुल को हर पेशी में अदालत में हाजिर रहने के निर्देश दिये जायें। ट्रायल कोर्ट ने इस आग्रह को नहीं माना। पूर्णेश मोदी ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय चले गये और ट्रायल कोर्ट की कारवाई पर स्टे की गुहार लगा दी। उच्च न्यायालय ने स्टे लगा दिया और मामला ठण्डे बस्ते में चला गया। अब जब अदाणी प्रकरण में पूरा परिदृश्य गरमा गया। लोकसभा में जे.पी.सी. की मांग आ गयी। राहुल के ब्रिटेन में दिये ब्यानों पर भाजपा राहुल से मांगी माफी की मांग करने लगी। राहुल संसद में ब्यान देने के स्टैंड पर आ गये। प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेताओं के पूर्व में दिये ब्यान चर्चा में आ गये। यह सवाल उठ गया कि देश की मानहानि विदेश में किसने की है।
इस बदले परिदृश्य में पूर्णेश मोदी पुनः उच्च न्यायालय चले गये और गुहार लगाई कि स्टे को वापस ले लिया जाये और ट्रायल कोर्ट अपनी अगली कारवाई शुरू करे। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को स्वीकार करते हुये स्टे हटा दिया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विपुल पांचोली के स्टे वापिस लेने के बाद मामला सी.जे.एम. की अदालत पहुंच गया। एक माह में सारी कारवाई की प्रक्रिया पूरी होकर फैसला आ गया। फैसले में राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा सुना दी गयी और मामला चर्चा में आ गया। क्योंकि इस कानून के तहत अधिकतम सजा ही दो वर्ष की है और पंचायत से लेकर संसद तक किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि की सदस्यता रद्द करने के लिए कम से कम दो वर्ष की चाहिए। यदि राहुल को दो वर्ष से कम की सजा होती तो इस पर इतना शोर ही न उठता। अब एक माह में सारा ट्रायल पूरा हो जाना और सजा भी दो वर्ष की होना जिसका सीधा प्रभाव सांसदी पर पड़ेगा। यह सब संयोगवश हो गया या कोई और कारण भी रहे होंगे यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है इस पर अभी कुछ कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस फैसले ने पूरे देश की सियासत को हिला कर रख दिया है। राहुल गांधी इस फैसले से जरा भी विचलित नहीं है यह उनकी पत्रकारवार्ता से स्पष्ट हो गया। क्योंकि राहुल गांधी के इस ब्यान पर यह मानहानि मामला हुआ उससे भी गंभीर आरोप मोदी उपनाम पर राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुन्दर 2018 में लगा चुकी है बल्कि यह आरोप लगाने के बाद ही वह भाजपा में शामिल हुई है। उनके ब्यान से किसी मोदी की कोई मानहानि नहीं हुई है। कांग्रेस ने खुशबू के ब्यान को मुद्दा बना लिया है। बल्कि इस फैसले के बाद भाजपा के सारे नेताओं के ब्यान एकदम नये सिरे से चर्चा में आ गये हैं। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर शाहीनबाग आन्दोलन के प्रसंग में दिया ब्यान तक चर्चा का केन्द्र बन गये हैं। राहुल को लेकर आया फैसला एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। भाजपा जब इसे ओ.बी.सी. के अपमान का मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है तब उनके अपने ही नेताओं के ब्यान उस पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा और अदाणी के रिश्ते एक राष्ट्रीय सवाल बनता जा रहा है। अदाणी की भ्रष्टता पर प्रहार को राष्ट्र का अपमान बताना भाजपा को भारी पड़ेगा यह स्पष्ट होता जा रहा है। राहुल गांधी को उच्च न्यायालय से राहत मिलेगी ही क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय लिली थॉमस लोक प्रहरी और सुब्रमण्यम स्वामी के मामलों में जिस तरह की स्थापनाएं कर चुका है उनके मानकों पर शायद यह मामला पूरा नहीं उतरता है। ऐसे में इस फैसले के बाद राष्ट्रीय प्रश्नों पर उठने वाली बहस भाजपा और प्रधानमंत्री पर भारी पड़ेगी। वैसे यह देखना रोचक होगा कि प्रदेशों में बैठा हुआ कांग्रेस नेतृत्व किस तरह से जनता के बीच जाता है।

सुक्खु सरकार के सौ दिन

कांग्रेस की सुक्खु सरकार को सत्ता संभाले सौ दिन हो गये हैं। वैसे तो पांच वर्ष के लिये चुनकर आयी सरकार पर सौ दिनों में ही कोई निश्चित राय नही बनाई जा सकती। लेकिन सरकार ने जिस तरह से सौ दिनों के फैसलों, योजनाओं और नीतियों को लेकर एक लम्बा चौड़ा विज्ञापन जारी किया है उसको सामने रखते हुए इन सौ दिनों का आकलन करना आवश्यक हो जाता है। विज्ञापन में जो दावे किये गये हैं उनका पूरा होना बजट की उपल्बधता पर निर्भर करेगा। बजट दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 2023-24 के कुल बजट का आकार पिछले वर्ष से कम है। जबकि सरकार ने तीन हजार करोड़ के कर लगाकर अपनी आय बढ़ाई है। वर्ष के विकासात्मक बजट का आंकड़ा बीते वर्ष जितना ही है। बजट के इन मोटे तथ्यों के परिदृश्य में कैसे यह दावे वायदे पूरे किये जाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि सरकार ने सत्ता संभालते ही पिछली सरकार के खिलाफ वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाना और कर्ज तथा देनदारियों के आंकड़े जारी कर इस आरोप को सही ठहराने का प्रयास शुरू कर दिया है। बजट और वितीय कुप्रबंधन का जिक्र करना इसलिये आवश्यक हो जाता है कि जो सरकार ऐसी वितीय स्थिति के चलते अपने बजट का आकार तक न बढ़ा पाये उसे सबसे पहले अपने अनावश्यक खर्चों पर रोक लगानी पड़ती है। लेकिन इस सरकार ने जिस मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की है और कैबिनेट दर्जा देते हुए अन्य नियुक्तियां की है वह सरकार की कथनी और करनी के अन्तर को सीधे स्पष्ट कर देता है। बल्कि इसी के कारण सरकार पर यह आरोप लगा है कि यह मित्रों दोस्तों की सरकार है। यह सही है कि कांग्रेस को जनता ने बहुमत दिया है तब उसकी सरकार बनी है। लेकिन इस बहुमत के बदले में यदि जनता को करां का ही बोझ मिलेगा और अपने मित्रों के अलावा अन्य के हितों का ख्याल नहीं रखा जायेगा तो जनता बहुत देर तक उसे सहन नहीं कर पायेगी। पिछली सरकार के अन्तिम छः माह के फैसलों को यह सरकार इसलिये जारी नहीं रख पायी क्योंकि उससे खजाने पर पांच हजार करोड़ का बोझ पड़ रहा था। जब यह स्थिति है तो क्यों सरकार द्वारा की गयी नियुक्तियां अपने में विरोधाभास नहीं पैदा कर देती है। कई लोगों पर गंभीर आरोप लगने शुरू हो गये हैं क्योंकि हर आदमी चीजों पर नजर रख रहा है। फिर यह तो प्रदेश ही छोटा सा है और सरकार का सचिवालय भी छोटा सा है। फिर विपक्ष लगातार सरकार की स्थिरता को लेकर सवाल उठाने लग पड़ा है। क्योंकि अभी तक मंत्रिमण्डल के खाली पदों को भरा नहीं जा सका है। प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा के साथ मंत्रिमण्डल में सन्तुलन नहीं बन पाया है। जातीय सन्तुलन को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। प्रशासन कितना सुचारू रूप से चल रहा है वह प्रधान निजी सचिव के पत्र से सामने आ चुका है। आज हर सवाल को व्यवस्था परिवर्तन का नाम लेकर टाला जा रहा है। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन से सरकार का अभिप्राय क्या है इसे सरकार का कोई भी आदमी स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। पिछले सौ दिनों में प्रशासन को लेकर सरकार का जो नजरिया सामने आया है उसके परिणाम बहुत दूरगामी होंगे यह तय है। क्योंकि जिस विपक्ष को मुद्दे तलाशने में समय लगता था उसे इस सरकार ने पहले दिन से ही मुद्दों से लैस कर दिया है।

क्या राहुल के ब्यानों पर भाजपा की प्रतिक्रियाएं मोदी सरकार का डर है

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ब्रिटेन में दिये बयानों से भारत का अपमान हुआ है? यह सवाल भाजपा और मोदी सरकार की प्रतिक्रियाओं के बाद एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिससे पिछले आठ वर्षों की सारी कार्यप्रणाली को जनता के आकलन के लिये लाकर खड़ा कर दिया है। वसुदेव कुटुंबकम के ब्रह्म वाक्य पर आचरण करने का दावा करने वाले जब एक व्यक्ति के ब्यान से आक्रोशित हो उठे तो यह मानना पड़ेगा कि चोट बहुत गहरे तक लगी है। 2014 में जब अन्ना आन्दोलन ने सत्ता परिवर्तन की नीव रखी थी तब उस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा था लोकपाल की स्थापना। 2G स्कैम के 1,76,000 करोड़ के आंकड़े ने पूरा देश हिला कर रख दिया था। लेकिन बाद में इस कैग रिपोर्ट के जनक विनोद राय ने अदालत में यह स्वीकार किया की 2G में कोई घपला हुआ ही नहीं है उन्हें गणना में गलती लगी है। क्या इससे देश की इज्जत बढ़ी थी? काले धन से हर भारतीय के खाते में पन्द्रह लाख आने का वायदा किया गया था जिसे बाद में जुमला कह कर टाल दिया गया। क्या इससे हर भारतीय का मान बढ़ा है? कोविड जैसी बीमारी को भगाने के लिये प्रधानमंत्री के निर्देश पर ताली थाली बजाई गयी। दीया जलाया गया क्या इससे देश का मान बढ़ा है? देश के अस्सी करोड़ लोग मुफ्त राशन पर जी रहे हैं क्या यह मान बढ़ाने वाली उपलब्धि है? क्या सरकार के इस दावे से ग्लोबल हंगर इन्डैक्स की भारत में भूख पर आयी रिपोर्ट मान बढ़ाने वाली बात है? विदेश की धरती पर जब देश का प्रधानमंत्री यह कहे कि देश में पिछले 70 वर्षों में कुछ नहीं हुआ है तो क्या उससे मान बढ़ा था। जब प्रधानमंत्री ने अमेरिका जाकर ट्रंप के लिये चुनाव प्रचार करते हुए यह कहा था कि ‘‘अबकी बार ट्रंप सरकार’’ तो क्या वह ट्रंप और अमेरिका को देश में दखल देने का न्योता नहीं था? आज जब भारतीय मूल के लोग विदेशों में कई मुल्कों की संसद और सरकार तक पहुंच गये हैं और देश के लोग उनकी इस उपलब्धि पर प्रसन्न होते हैं तो क्या वह लोग भारत की हर छोटी-बड़ी घटना पर नजर नहीं रख रहे हैं। क्या विदेशी मीडिया भारत में घटने वाली हर घटना को रिपोर्ट नही कर रहा है। राफेल सौदे पर उठे विवाद को लेकर भारत और फ्रांस के अलग स्टैंड पर विश्व में चर्चा नहीं हुई है। बीबीसी की डाक्यूमेंट्री क्या विदेशों में नहीं देखी गयी है? क्या बीबीसी के खिलाफ की गयी कारवाई विदेशों में रिपोर्ट नहीं हुई है? दी गार्जियन की रिपोर्ट क्या विदेशों में नही पढ़ी गयी है? क्या इसी रिपोर्ट के बाद चुनाव आयोग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं आया है। क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने विश्व के शेयर बाजार को प्रभावित नही किया है? राहुल गांधी के ब्यान पर उभरी प्रतिक्रिया ने पिछले आठ वर्षों की सारी छोटी-बड़ी घटनाओं को फिर से चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। विश्व गुरु और विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावों को बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के आयने ने एकदम नंगा करके खड़ा कर दिया है। जो देश अपने प्रधानमंत्री को निर्देश पर आज के कम्प्यूटर युग में भी बिमारी को भगाने के लिये ताली थाली बजाये और दीया जलाये वह विश्व गुरु बनने के कितना करीब होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसे आचरण से हमारी वैद्यिकता क्या आंकी गयी होगी यह सोचकर भी डर लगता है। आज जिस तरह से केंद्रीय जांच एजैन्सियां विपक्ष के नेताओं के खिलाफ सक्रिय की गयी है उससे यह जन चर्चा चल पड़ी है कि सारे भ्रष्टाचारी विपक्ष में ही हैं। भाजपा में जाकर सबके पाप धुल जाते हैं। भले ही हेमन्त बिस्वा सरमा जैसे नेता जब कांग्रेस में थे तब उनके भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा ने पुस्तिका छाप दी थी और जांच की मांग की थी लेकिन भाजपा में जाते ही वह पाक साफ हो गये हैं। विपक्षी दलों से टूटकर जितने भी नेता भाजपा में गये हैं वह सब आरोप लगने के बाद ही गये हैं और भाजपा में जाकर अपराध मुक्त हो गये हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता से जो वायदे किये गये थे अब 2024 के चुनाव में जनता उनका हिसाब न पूछे और विपक्ष का कोई नेता उन वायदों पर सवाल न उठाये इसलिये केंद्रीय जांच एजैन्सियों के सहारे विपक्ष और उसके महत्वपूर्ण नेताओं को घेरने का प्रयास किया जा रहा है। आज कांग्रेस ही एक ऐसा राजनीतिक दल है जो देश के प्रत्येक गांव में जाना जाता है। कांग्रेस में राहुल गांधी का चरित्र हनन करने के लिये किस तरह के क्या क्या प्रयास किये गये हैं वह कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में सामने आ चुके हैं। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जो चुनौती सरकार के सामने रखी है उससे सरकार हिल गयी है क्योंकि विदेशी मीडिया भी इस यात्रा को कवर कर रहा था। इस यात्रा में जो कुछ देश की जनता के सामने राहुल ने रखा है आज प्रवासी भारतीय उसी की पुष्टि के लिये उन्हें आमंत्रित कर रहे हैं और यही मोदी सरकार को डर है।

श्वेत पत्र के संद्धर्भ में कुछ संभावित प्रश्न

सुक्खु सरकार ने प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने का फैसला लिया है। बजट सत्र में यह श्वेत पत्र आयेगा। इसलिये प्रदेश के कर्ज की स्थिति पर कुछ प्रश्न उठाये जाने आवश्यक हो जाते हैं ताकि उनका जवाब इस श्वेत पत्र में आ जाये। इस सरकार के मुताबिक उसे 75000 करोड़ का कर्ज और 11000 करोड की पैन्शन वेतन की देनदारियों विरासत में मिली हैं। इस सरकार को भी अब तक 4500 करोड़ कर्ज लेना पड़ गया है। मुख्यमंत्री ने इस वित्तीय परिदृश्य में प्रदेश में श्रीलंका जैसी स्थितियां बन जाने की आशंका व्यक्त की है। इस आशंका पर दो पूर्व मुख्यमंत्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल ने अपनी प्रतिक्रियाएं जारी की हैं। शान्ता कुमार ने दिसम्बर 1992 में पद छोड़ा था और तब प्रदेश पर शुन्य कर्ज होने का दावा किया है। प्रेम कुमार धूमल ने दिसम्बर 2012 में पद छोड़ा था और अपने कार्यकाल में केवल छः हजार करोड़ का कर्ज लेने का दावा किया है। इसके बाद कांग्रेस और जयराम का कार्यकाल रह जाता है। धूमल ने उनके कार्यकाल में कुल कितना कर्ज प्रदेश पर था यह आंकड़ा जारी नहीं किया है। धूमल ने जब 1998 में पद संभाला था तब वह अपना श्वेत पत्र लाये थे और यह खुलासा किया था कि जब स्वर्गीय राम लाल ठाकुर ने प्रदेश छोड़ा था तब कर्ज की बजाये वित्तीय सरप्लस में प्रदेश था। इस वस्तुस्थिति में सुक्खु सरकार से यह अपेक्षा रहेगी कि वह सभी मुख्यमंत्रीयों के कार्यकाल में वित्तीय स्थिति क्या रही है इस पर मुख्यमंत्री वार खुलासा प्रदेश के सामने रखें ताकि सभी की नीतियों पर खुलकर चर्चा हो जाये और भविष्य के लिये एक सीख मिल जाये। हर बजट में हर सरकार कुछ नये कार्यों और नीतियों की घोषणा करती है। श्वेत पत्र में यह खुलासा भी रहना चाहिये कि किसने क्या घोषित किया था और उसके लिये बजट प्रावधान क्या था तथा कितनी घोषणाएं पूरी हो पायी थी और घोषणाओं की आज की स्थिति क्या है।
कर्ज को लेकर यह नियम रहा है कि जी.डी.पी. के 3% से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिये। अब कोविड काल में यह सीमा बढ़ाकर 6% कर दी गयी है। इस संद्धर्भ में यह सामने आना चाहिये की कर्ज की सीमा का कब और क्यों अतिक्रमण हुआ तथा कर्ज के अनुपात में जी.डी.पी. में कितनी बढ़ौतरी हुई। जी.डी.पी. और एस.डी.पी. दोनों के आंकड़े आने चाहिये। बजट से पहले और बाद में कब-कब सेवाओं और वस्तुओं के दामों में बढ़ौतरी होती रही है। श्वेत पत्र में यह जानकारीयां होना इसलिये आवश्यक है कि अभी सुक्खु सरकार ने जयराम के कार्यकाल के अन्तिम छः माह के फैसले यह कहकर पलटे हैं कि इनके लिये बजट का प्रावधान नहीं था और इन्हें पूरा करने के लिये 5000 करोड़ के अतिरिक्त धन की आवश्यकता होगी। अब कांग्रेस ने चुनावों से पहले ही दस गारंटीयों की वायदा जनता से कर रखा है। मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ओ.पी.एस. लागू कर दिया गया है अन्य गारंटीयों के लिये भी प्रतिब(ता है। युवाओं को प्रतिवर्ष एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाना है। इसलिये यह खुलासा भी बजट में आना चाहिये की इन गारंटीयों के औसत लाभार्थी कितने होंगे और इसके लिये कितना धन अपेक्षित होगा तथा कहां से आयेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि दस के लाभ के लिये नब्बे की जेब पर डाका डाला जायेगा।
अभी बजट प्रावधान और कर्ज को लेकर सुक्खु और जयराम में शिव धाम परियोजना के संद्धर्भ में वाक यद्ध शुरू हुआ है। इस वाक युद्ध के बाद यह सामने आया है कि एशियन विकास बैंक से पर्यटन अधोसंरचना के लिये 1311 करोड़ का कर्ज स्वीकृत हुआ है। इससे पहले यही बैंक 256.99 करोड़ हैरिटेज पर्यटन के नाम पर दे चुका है। जो स्थान हैरिटेज में चिन्हित हुए थे वही अब अधोसंरचना में भी चिन्हित हैं। ऐसे में यह खुलासा होना चाहिये की हैरिटेज में कितना काम हुआ है और उससे कितना राजस्व अर्जित हो रहा है। क्योंकि कर्ज का निवेश राजस्व अर्जित करने के लिये ही किये जाने का नियम है। पर्यटन के अतिरिक्त जल जीवन, बागवानी आदि और भी कई विभागों को इस बैंक से कर्ज मिला है। इन संस्थानों से राज्य सरकारों को कर्ज केन्द्र की गारंटी पर ही मिलता है लेकिन उसकी भरपाई तो राज्य सरकार को ही करनी होती है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश को कर्ज चुकाने के लिये भी कर्ज लेना पड़ रहा है। 2019 में विश्व बैंक ने प्रदेश की Debt Management Performance Assessment पर एक 42 पन्नों की रिपोर्ट जारी की है। भारत सरकार का वित्त विभाग भी इस संद्धर्भ में 2020 में चेतावनी जारी कर चुका है। इस परिदृश्य में प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र आना और उसमें इन सवालों का जवाब होना सरकार से अपेक्षा रहेगी।

क्या छापेमारी और गिरफ्तारी से कांग्रेस का बढ़ना रोक पाएंगे मोदी

अदानी प्रकरण से विश्व का शेयर बाजार भी हिल गया है। विदेशी निवेशकों ने इसमें से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। विदेशी बैंकों ने अदानी समूह के शेयरों पर कर्ज देना बन्द कर दिया। जो व्यक्ति अमीरों की सूची में 609 वें स्थान से उठकर विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया था वह अब हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद शायद 27 वें पायदान पर आ पहुंचा है। देश के हर बड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठान का प्रबन्धन अदानी समूह के पास कैसे पहुंचा? जो देश का नम्बर एक और विश्व का दूसरा बड़ा अमीर हो लेकिन टैक्स अदा करने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी न हो तो ऐसे करिश्मे को लेकर सवाल उठना स्वभाविक है। यह सवाल संसद के पटल पर आ चुके हैं। इन सवालों का जवाब देश की सरकार और देश की निगरान एजैन्सीयों से पूछा जाना है। संसद के अन्दर यह काम विपक्ष को करना है और बाहर मीडिया को करना है। जो लोग हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट को देश और अदानी पर हमला करार दे रहे हैं उनसे एक ही सवाल पूछा जाना चाहिये कि क्या देश के बैंकों और एलआईसी जैसी संस्थाओं के पास आम आदमी का पैसा जमा नही है? आम आदमी के इस जमा पर ब्याज दरें क्यों कम हुई हैं? जीरो बैलेन्स के नाम पर खोलें खातों पर न्यूनतम जमा की शर्त क्यों लगानी पड़ी। बैंक की सेवाएं फीस के दायरे में क्यों आ गयी? नोटबन्दी के बाद रियल एस्टेट और ऑटोमोबाईल क्षेत्रों को आर्थिक पैकेज क्यों दिये गये? क्या वह पैसा वापस आ गया है? मोदी सरकार ने जितना सहयोग अदानी समूह को दिया है ऐसा ही सहयोग और कितने घरानों को मिला है। जब देश बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है तो प्रति व्यक्ति कर्ज क्यों बढ़ रहा है? महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है। हर चुनाव में नये ही नारे क्यों उछालने पड़ रहे हैं पूरानों का हिसाब जनता के सामने क्यों नहीं रखा जाता।
ऐसे दर्जनों सवाल हैं जो आज हर आदमी के जहन में कौंध रहे हैं। क्योंकि वह इनका भुक्त भोगी है। उसकी विडण्बना यही है कि वह स्वयं व्यवस्था से सवाल नही पूछ पाता। वह उम्मीद करता है कि मीडिया और राजनीतिक नेतृत्व यह सवाल पूछे। आज मीडिया का एक बड़ा वर्ग यह सवाल पूछने का साहस नहीं कर रहा है और इसलिये गोदी मीडिया के संबोधन से संबोधित हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग अपने अपने सामर्थय के अनुसार सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं। भले ही उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य तरह के मामले बनाये जा रहे हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं की भी यही स्थिति चल रही है। जो सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं उनके खिलाफ जांच एजैन्सीयों की छापेमारी हो रही है। उनके नेताओं के खिलाफ मामले बनाकर उन्हें हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं के यहां छापेमारी और उसके बाद पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा की दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तारी असहनशीलता के प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रधानमंत्री तो ममता बैनर्जी को ‘‘ओ दी दी ओ दी दी’’ करके सार्वजनिक मंच से संबोधित कर सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री के खिलाफ गौतम अदानी को लेकर कोई कटाक्ष सहन नही किया जा सकता। इस मानसिकता और गिरफ्तारी के प्रसंग ने बहुत सारे पुराने संदर्भों को जिन्दा करके पुरानों की सहनशीलता और नयों की असहनशीलता को एकदम फिर से चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है।
यह सब अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उससे पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को लेकर बनी नयी जन धारणा का परिणाम माना जा रहा है। जिस राहुल गांधी के चरित्र हनन के लिये अरबों खर्च किये गये थे आज इस यात्रा के बाद वही राहुल व्यक्तिगत स्तर पर मोदी से बड़ा नाम बन गया है। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को लेकर फैलायी गयी सारी भ्रान्तियों को जड़ से उखाड़ फैंका है। समाज के हर वर्ग तक राहुल गांधी पहुंच गया है यह एक स्थापित सच्च है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उसके साथ बीबीसी और गॉर्जियन के खुलासों से समाज के हर वर्ग के सवालों के दायरे में आ गये हैं। अगली चुनावी जंग मोदी बनाम राहुल होने जा रही है। क्योंकि आज पूरे देश में कांग्रेस को छोड़कर ऐसा कोई दूसरा राजनीतिक दल नहीं है जिसकी पहचान देश के हर गांव तक हो। न चाहते हुए भी क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होना होगा। अन्यथा अपने-अपने राज्य से बाहर केन्द्र की सरकार को लेकर सबकी स्थिति दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसी होगी। आप लोकसभा के दोनों चुनावों में दिल्ली में कोई भी सीट क्यों नहीं जीत पायी? क्योंकि केन्द्र के लिये मोदी विकल्प थे। आज मोदी बनाम राहुल की अगली लड़ाई में क्षेत्रीय दलों के लिये यह सबसे बड़ा सवाल होगा। आज कांग्रेस को विपक्षी एकता से ज्यादा राज्यों में कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को पूरी कड़ाई के साथ सुधारना होगा या एक तरफ करना होगा।

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