शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने अभी फिर 350 करोड़ का कर्ज विकास के नाम पर लिया है। यह कर्ज लेने के बाद सरकार का कर्जभार एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर गया है। अभी सरकार का कार्यकाल करीब दो वर्ष शेष है। चालू वित्त वर्ष में ही सरकार का राजकोषीय घाटा दस हजार करोड़ से बढ़कर बारह हजार करोड़ होने का अनुमान है। यह आंकड़े इस बात का सूचक है कि आने वाले समय में यह कर्जभार और भी बढ़ेगा। भारत सरकार भी प्रदेश सरकार को अन्ततः कर्ज की अनुमतियां देती रहेगी। प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा इसके लिये एक दूसरे को दोष देने की रस्म अदायगी भी निभाती रहेगी। सुक्खू सरकार ने भ्रष्टाचार पर व्यवस्था परिवर्तन करते हुये अपने सौंपे आरोप पत्रों पर जब कोई कारवाई नहीं की तो भाजपा ने भी इसी सद्भावना को बढ़ाते हुये आरोप पत्रों की संस्कृति को ही नकार दिया है। दोनों दलों के इस आपसी सौहार्द का ही परिणाम है कि रोजगार के क्षेत्र में मल्टीटास्क वर्कर से शुरू होकर आज प्रदेश मित्र योजना तक पहुंच गया है। इन योजनाओं का प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि भ्रष्टाचार पर सरकार का व्यवहारिक रूप क्या है यह सदन में रखी गयी कैग रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है। कर्ज के इस पहाड़ को देखकर आम आदमी भी यह सोचने लग पड़ा है कि आखिर यह कर्ज निवेश कहां हुआ है। सरकार की योजनाओं और वायदों की व्यवहारिकता पर प्रश्न उठने लग पड़े हैं। क्योंकि सरकार के ब्यानी दावों और जमीनी हकीकत में कहीं कोई मेल नहीं है। क्योंकि योजनाओं के लाभार्थियों और उसके लिये करों के रूप में भरपाई करने वालों में तो हर आदमी शामिल है। इस स्थिति ने आम आदमी को सरकार के हर फैसले पर गुण दोष के आधार पर विवेचना शुरू कर दी है। जब इस सरकार ने कार्यभार संभाला था तब मंत्रिमंडल के गठन से पहले मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की गयी थी। इन नियुक्तियों के पक्ष में कई तर्क दिये गये थे। लेकिन जब इन नियुक्तियों पर उच्च न्यायालय का चाबुक चला तो इन्हें हटना पड़ा है। आज तक प्रदेश उनके बिना चल रहा है और सरकार के कामों पर कोई प्रतिफूल प्रभाव नहीं पड़ा है। इससे यह सवाल स्वतः ही खड़ा हो जाता है कि उनकी कोई कानूनी आवश्यकता नहीं थी। केवल मित्र संस्कृति का निर्वाह था। इसी तरह मुख्यमंत्री की सहायता के लिये पांच सलाहकार नियुक्त हैं। सलाहकारों की नियुक्ति के लिये कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। मुख्यमंत्री की कार्यकारी शक्तियों के तहत यह नियुक्तियां की जाती हैं। इसलिये इनके पास कोई फाइल वर्क नहीं होता है। लेकिन इनके वेतन भत्ते और अन्य सुविधायें सरकारी कोष से दी जाती है। जिस भी व्यक्ति को सरकारी कोष से भुगतान होता है वह आरटीआई के दायरे में आ जाता है। विधानसभा में विधायक सुधीर शर्मा और आशीष शर्मा के एक प्रश्न के उत्तर में मुख्यमंत्री ने यह सूचना दी है कि यह सलाहकार उन्हें मौखिक रूप में सलाह ही देते हैं। इस सूचना से यह सवाल खड़ा हो जाता है कि जब प्रदेश पहले से ही वित्तीय संकट में चल रहा था और मुख्यमंत्री को यह चेतावनी देनी पड़ी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं तो फिर मौखिक सलाह के लेने के लिए इतना बड़ा खर्च करने की क्या आवश्यकता थी। आने वाले दिनों में सरकार के इस तरह के खर्चे निश्चित रूप से चर्चा का विषय बनेगें यह तय है ।
शिमला/शैल। क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हाईकमान की अपेक्षाओं पर खरे उत्तर पाएंगे? क्या वह भाजपा को चुनौती दे पाएंगे? क्या कांग्रेस को पुनः सत्ता की दहलीज तक पहुंचा पाएंगे? ऐसे अनेकों सवाल आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सामने सत्ता के गलियारों से लेकर सड़क तक खड़े हो गये हैं। क्योंकि नया प्रदेश अध्यक्ष तलाश करने में एक वर्ष का समय पार्टी का लग गया है। जब एक वर्ष से लेकर ब्लॉक स्तर तक की सारी कार्यकारिणीयों को भंग कर दिया गया था तब हाईकमान ने पर्यवेक्षकों की टीम संगठन के कर्मठ और सक्रिय कार्यकर्ताओं की तलाश के लिये भेजी थे। लेकिन इस टीम की रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं हुआ। प्रदेश में संगठन की खराब हालत का दोष हर नेता ने सीधे हाईकमान के नाम लगाया परन्तु कोई असर नहीं हुआ। इस वस्तुस्थिति में यदि प्रदेश सरकार और संगठन के पिछले तीन वर्षों के रिश्तों तथा सरकार की उपलब्धियां पर नजर डालें तो यह सच्चाई सामने आती है कि सरकार के अब तक के कार्यकाल में हुए लोकसभा चुनाव में चारों सीटें पार्टी हार गयी और राज्यसभा हारने के साथ ही पार्टी के छः विधायक दलबदल कर गये। अब स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव किसी न किसी बहाने टाले जा रहे हैं। नगर निगम अधिनियम में संशोधन का असर यह हुआ है कि पार्षदों का एक बड़ा वर्ग विद्रोह के कगार पर पहुंच गया है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव में हिमाचल सरकार के कुछ फैसले विशेष चर्चा का विषय रहे हैं। सरकार हर समय प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति के लिए पूर्व की सरकार को लगातार दोष देती आ रही है। लेकिन आज तक पिछले सरकार के कार्यकाल में घटे भ्रष्टाचार का कोई भी मामला कायम नहीं कर पायी है। कांग्रेस विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता को दस गारंटियां देकर सत्ता में आयी थी। इन गारंटियों कि आज व्यवहारिक स्थिति क्या है इस पर सरकार के ब्यानी दावों के अतिरिक्त जमीन पर स्थिति पूरी तरह अलग है। पार्टी का कोई भी विधायक और कार्यकर्ता जमीनी सच्चाई पर कुछ भी खुलकर बोलने और सवाल पूछने की स्थिति में नहीं है। लेकिन जनता जो भुक्त भोगी है वह आगे-आगे पूरी तरह मुखर होती जायेगी। विपक्ष सरकार और व्यक्तिगत रूप से नेताओं के भ्रष्टाचार को निशाना बनायेगी। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर देश की राजनीति जिस मुकाम पर पहुंच चुकी उसका असर हर प्रदेश पर होगा। प्रदेश भाजपा को पार्टी के राष्ट्रीय निर्देशों पर सरकार को ठोस प्रमाणों के साथ घेरने की बाध्यता आ जायेगी भले ही आज तक भाजपा का अघोषित समर्थन सुक्खू सरकार को रहा है। लेकिन आने वाले समय में स्थितियां एकदम बदल जायेगी। इस परिदृश्य में पार्टी के नये अध्यक्ष के सामने भारी चुनौतियां होगी। सरकार और संगठन को व्यवस्था परिवर्तन के जुमले से बाहर निकलना होगा। स्व. विमल नेगी की मौत प्रकरण सरकार से जवाब मांगेगा यह तय है। प्रशासन में पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना का सेवा विस्तार और फिर पुनर्नियुक्ति निश्चित रूप से उच्च न्यायालय के फैसले के बाद जनता में चर्चा का विषय बनेगा ही। क्योंकि उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका को मैनटेनेबल करार देकर गेंद राज्य सरकार के पाले में धकेल दी है। इन व्यवहारिक स्थितियों के परिदृश्य में अध्यक्ष का काम काफी चुनौती पूर्ण हो जायेगा।
खनन कारोबारी कांग्रेस नेता ज्ञान चन्द की जमानत से ई.डी. पर उठे सवाल
शिमला/शैल। नादौन के खनन कारोबारी और कांग्रेस नेता ज्ञान चन्द को ई.डी. द्वारा दर्ज किये गये मनी लॉन्ड्रिंग में सी.बी.आई. के स्पेशल जज की गाजियाबाद स्थित अदालत से 6-7-2025 को जमानत मिल गयी है। इस जमानत से ई.डी. की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में आ गयी है। क्योंकि विशेष जज ई.डी. की कार्य प्रणाली के जांच अधिकारी और इस मामले के शिकायतकर्ता के खिलाफ आवश्यक कारवाई करने के निर्देश सी.बी.आई. निदेशक को दिये हैं। सम्रणीय है कि ई.डी.ने 2-7-2024 को धन संशोधन की विभिन्न धाराओं में यह मामला दर्ज किया था और 18-11-2024 को इसमें ज्ञान चन्द की गिरफ्तारी हो गयी थी। उस दौरान इस संद्धर्भ में नादौन, हमीरपुर में छापेमारी हुई थी। इस छापेमारी के बाद चार लोगों के खिलाफ मामला बनाये जाने की चर्चाएं सामने आयी थी। लेकिन गिरफ्तारी केवल दो लोगों ज्ञान चन्द और संजय धीमान की हुई थी। लेकिन जमानत केवल ज्ञान चन्द को ही मिली है। शायद संजय की जमानत याचिका अभी तक आयी ही नहीं है। ज्ञान चन्द के खिलाफ यह मामला कुछ शिकायतों और गुप्तचर सूचनाओं के आधार पर दायर किया गया था। इन सूचनाओं और शिकायतों का आधार इन लोगों के खिलाफ कांगड़ा और ऊना में 2018 से लेकर 2024 तक दर्ज किये गये सात मामलों को बनाया गया था। जबकि यह सारे मामले ई.डी. द्वारा 2-7-2024 को दर्ज किये गये मनी लांडरिंग के मामले से पहले ही अदालतों द्वारा निपटा दिये गये थे। सारे मामलों में क्लोजर रिपोर्ट अदालत में दायर और स्वीकार हो चुकी थी। जिसका अर्थ है कि ई.डी. द्वारा मामला दर्ज करने के समय ज्ञान चन्द के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला कहीं पर भी लंबित नहीं था। जबकि ई.डी. द्वारा मामला दर्ज करने के लिये यह अनिवार्य है कि कथित अभियुक्त के खिलाफ कहीं पर कोई मामला चल रहा होना चाहिये। सी.बी.आई. के विशेष जज ने इस वस्तुस्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुये ई.डी. के जांच अधिकारी और शिकायतकर्ता के खिलाफ कारवाई किये जाने की संस्तुति की है। इस मामले में जब छापेमारी हुई थी तब यह मामला बहुत चर्चित हुआ था। विपक्ष ने इस मामले में मुख्यमंत्री को यह कह कर घेरने का प्रयास किया था कि ज्ञान चन्द उनका एक खास समर्थक है। मुख्यमंत्री ने इसका जवाब देते हुए कहा था कि ज्ञान चन्द विधानसभा में मेरा समर्थक है परन्तु लोकसभा में वह अनुराग ठाकुर का समर्थक है। ज्ञान चन्द के साथ जो दूसरा व्यक्ति संजय धीमान गिरफ्तार हुआ था उसकी जमानत को लेकर अभी तक कुछ भी सामने नहीं आया है। जबकि वह इसी मामले में ज्ञान चन्द के साथ सह अभियुक्त है। इसमें यह भी स्मरणीय है कि जिन मामलों का जिक्र अदालत में आया वह सारे मामले पूर्व भाजपा सरकार के समय में ही दर्ज हुये और क्लोज भी हुए। कांग्रेस सरकार के समय 2023 में एक मामला ऊना के गगरेट में दर्ज हुआ और उसमें 30 -11-2024 को क्लोजर रिपोर्ट भी आ गई तथा स्वीकार भी हो गयी। यह जमानत का फैसला 3-7-2025 को आया है लेकिन जांच अधिकारी और शिकायतकर्ता के खिलाफ अभी तक कोई कारवाई होना भी सामने नहीं आया है।
यह है दर्ज मामले की सूची और अदालत का जमानत आदेश
आयुष्मान और हिमकेयर में हुये भ्रष्टाचार की सजा गरीब जनता को क्यों?
शिमला/शैल। क्या आयुष्मान भारत और हिमकेयर स्वास्थ्य योजनाओं में हुये भ्रष्टाचार की सजा प्रदेश की गरीब जनता को दिया जाना उचित है? क्योंकि इन सेवाओं में जनता को मिल रहा लाभ नही के बराबर हो गया है। स्मरणीय है कि केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के स्थान पर 2018 में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना शुरू की थी। इस योजना में प्रत्येक कार्ड धारक परिवार को वर्ष में पांच लाख रूपये तक की निःशुल्क इलाज सुविधा प्रदान की गयी थी। इसी के तर्ज पर हिमाचल सरकार ने भी 2019 में हिमकेयर योजना शुरू की थी। इन योजनाओं का लाभ केवल सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि इसमें प्राइवेट अस्पतालों को भी सूचीबद्ध किया गया। प्रदेश में यह सुविधा 147 सरकारी और 115 प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध करवाई गयी। लेकिन आज यह सुविधा इन प्राइवेट अस्पतालों में बंद कर दी गयी है और सरकारी अस्पतालों में भी इसका लाभ बहुत सीमित हो गया है। क्योंकि इन सुविधाओं के लिये दवाई और अन्य आवश्यक सामग्री की सप्लाई जो मेडिकल सप्लायर कर रहे थे उन्हें सप्लाई की गयी सामग्री के बिलों का भुगतान सरकार नहीं कर पायी है। आयुष्मान में 108 करोड़ के बिल भुगतान के लिये लंबित हैं और हिमकेयर में करीब 250 करोड़ के बिल लंबित हैं। स्वभाविक है कि जिन सप्लायरों के इस राशि के बिल भुगतान के लिये लंबित होंगे वह कैसे अगली सप्लाई दे पाएंगे और जब अस्पतालों में आवश्यक दवाई और दूसरा सामान नहीं होगा तो इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ेगा। यह बिल इतनी मात्रा में लंबित क्यों चल रहे हैं। इसका कोई जवाब नहीं आ रहा है। क्या भारत सरकार आयुष्मान में प्रदेश को भुगतान नहीं कर रही है? क्योंकि केंद्र सरकार सूचीबद्ध अस्पतालों को सीधे भुगतान न करके राज्य की इस काम में लगी एजेन्सियों के माध्यम से करती है। हिमाचल में यह काम सरकार ने हिमाचल स्वास्थ्य बीमा योजना सोसायटी को दे रखा है। यह सोसाइटी सरकार की देखरेख में काम करती है। अन्य राज्यों में केंद्र और प्रदेश की भागीदारी 60ः40 के अनुपात में रहती है परन्तु हिमाचल में यह 90ः10 के अनुपात में है। क्योंकि केंद्र की हर योजना में यही अनुपात रहता है। केंद्र राज्यों को अपना हिस्सा तब भेजता है जब राज्य अपने हिस्से का पूरा भुगतान करके उसका यूटिलाइजेशन प्रमाण पत्र केंद्र को भेज देता है। लेकिन मार्च 2025 तक प्रदेश ने इन योजनाओं में अपने हिस्से के 464.88 करोड़ का भुगतान नहीं किया था। इसी के साथ इन योजनाओं में प्रदेश में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होने के भी आरोप हैं। इन आरोपों पर राज्य के विजिलैन्स ब्यूरो ने भी एक मामला दर्ज किया था लेकिन उस जांच का परिणाम आज तक सामने नहीं आ पाया है। विजिलैन्स ब्यूरो के बाद ई.डी. ने भी प्रदेश के कुछ प्राइवेट अस्पतालों बांके बिहारी, फॉर्टीज, श्री बालाजी, सूद नर्सिंग होम आदि पर कांगड़ा, ऊना, शिमला, मण्डी और कुल्लू में करीब 20 जगहों पर छापेमारी की थी। इसमें करीब 25-26 करोड़ का भ्रष्टाचार होने का अनुमान है। इस छापेमारी के बाद प्रदेश में 8937 गोल्डन कार्ड निष्क्रिय किये गये हैं। इस छापेमारी के बाद सरकार ने अगस्त 2025 में हिमकेयर प्राइवेट अस्पतालों में बंद कर दी है। इसमें आम आदमी निःशुल्क इलाज सुविधा से वंचित हो गया है। सप्लायरों ने भुगतान न होने पर सप्लाई बंद कर दी है उससे सरकारी अस्पताल भी प्रभावित हो गये हैं। लेकिन इसमें जो प्रश्न खड़े हैं उनमें सबसे बड़ा तो यह है कि क्या यह भ्रष्टाचार संबद्ध सरकारी तंत्र और जो सोसायटी इस काम को अंजाम दे रही थी उनकी जानकारी के बिना घट जाना संभव है? शायद नहीं। अभी तक यह जांच पूरी क्यों नहीं हो पा रही है?
क्या सुक्खू सरकार सक्सेना की नियुक्ति रद्द करेगी अतुल शर्मा के पत्र से उठी चर्चा
शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को दी गयी पुनर्नियुक्ति को रद्द कर पायेगी? यह सवाल अतुल शर्मा के प्रदेश के ऊर्जा सचिव को इस आशय के लिखे पत्र के बाद चर्चा में आया है। अतुल शर्मा ने सरकारी कर्मचारीयों/अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति दिये जाने के मामले में handbook of personnel matters के चैप्टर बाईस में दिए गये दिशा-निर्देशों का अपने पत्र में जिक्र उठाया है। क्योंकि चैप्टर बाईस के प्रावधानों को प्रदेश उच्च न्यायालय में उन्नीस दिसम्बर 2017 को निपटाई गयी CWPIL No 201 of 2017 में भी अनुमोदन प्राप्त है। इस याचिका के फैसले में चैप्टर बाईस पर विस्तार से चर्चा करते हुये उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि किसी भी सेवा विस्तार और पुनर्नियुक्ति में इन दिशा-निर्देशों की अनुपालन किया जाना आवश्यक है।
स्मरणीय है की अतुल शर्मा ने प्रबोेध सक्सेना को बतौर मुख्य सचिव सेवानिवृत्ति के बाद दिये गये सेवा विस्तार को केंद्र सरकार के क्रामिक विभाग द्वारा 9-10-2024 को अधिसूचित दिशा-निर्देशों की सीधी अवहेलना करार देते हुये प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। लेकिन संयोगवश इस चुनौती पर उच्च न्यायालय का फैसला अभी तक नहीं आ पाया है। लेकिन प्रदेश सरकार ने इस विस्तार के समाप्त होते ही प्रबोेध सक्सेना को बिजली बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति दे दी है। बल्कि इस नियुक्ति की अधिसूचना जारी होने और सक्सेना द्वारा नया पदभार संभालने के बाद इंटीग्रिटी प्रमाण पत्र मांगा गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सक्सेना की सेवायें सुक्खू सरकार के लिए क्या अहमियत रखती हैं।
इस वस्तु स्थिति के परिदृश्य में यह देखना रोचक हो गया है की अतुल शर्मा के इस प्रतिवेदन पर सरकार क्या रुख अपनाती हैं। क्योंकि जिस आई एन एक्स मीडिया मामले में सक्सेना पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम के साथ सहअभियुक्त हैं वह दिल्ली में सीबीआई अदालत में अभी तक लंबित चल रहा है। यह मामला प्रदेश सरकार के संज्ञान में लम्बे अरसे से चला आ रहा है। सरकार ने भ्रष्टाचार के प्रति जिस प्रतिबद्धता के साथ जीरो टॉलरैन्स का दावा कर रखा है उसके संद्धर्भ में इस मामले के राजनीतिक मायने पूरी कांग्रेस पार्टी के लिये एक बड़ा मुद्दा बन जाएंगे यह तय है। इसीलिये पूरे प्रदेश की निगाहें इस मामले पर लग गयी है।