Sunday, 14 December 2025
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क्या देश का हर आदमी 4.8 लाख का कर्जदार है

इस समय देश के हर व्यक्ति पर करीब 4.8 करोड़ का कर्ज है। 2014 में देश पर करीब 49 लाख करोड़ का कर्ज था जो अब बढ़कर 185.94 लाख करोड़ हो गया है। कर्ज के यह आंकड़े राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में आये हैं। व्यापार में आयात लगातार बढ़ रहा है और निर्यात कम होता जा रहा है। रूपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि डॉलर की कीमत 100 रूपये तक जा सकती है। आर्थिकी के यह आंकड़े किसी को भी विचलित कर सकते हैं क्योंकि बढ़ता कर्ज हर अनुमान को तहस-नहस कर सकता है। इसी बढ़ते कर्ज का परिणाम है कि महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन क्या देश की सरकार इसके प्रति चिंतित है? क्या सरकारी ईमानदारी से इस समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है? बढ़ते कर्ज, महंगाई और बेरोजगारी का अंतिम परिणाम क्या होगा? पिछले दस वर्षों में कर्ज में चार गुना से भी अधिक की बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह कर्ज कहां निवेश हो रहा है? क्योंकि इस अवधि में सरकार ने कोई नया सार्वजनिक उपक्रम तो स्थापित नहीं किया है उल्टे पहले से चले आ रहे संस्थानों को प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने का ही काम किया है। विश्व की तीसरी, चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के जो सपने परोसे गये हैं क्या उसका परिणाम है यह बढ़ता कर्च? आर्थिकी के यह आंकड़े हर व्यक्ति के सामने रहने चाहिये क्योंकि इसी दौर में देश ने नोटबंदी भी भोगी है। इन्हीं आंकड़ों के आईने में सरकार के चुनावी वायदों को तोलना होगा। यह फैसला करना होगा कि एक सौ चालीस करोड़ के देश में अस्सी करोड़ लोगों की सरकारी राशन पर निर्भरता एक उपलब्धि है या अभिशाप।
इसी परिदृश्य में यह समझना भी आवश्यक हो जाता है कि भ्रष्टाचार और काले धन के जिन आंकड़ों पर अन्ना और रामदेव के आन्दोलन हुये थे उनका व्यावहारिक सच क्या है? काले धन के आंकड़ों में बढ़ौतरी हुई है और जिस भी भ्रष्टाचारी पर जितने बड़े आरोप लगे वह भाजपा में शामिल होते ही पाक साफ हो गया। आज भाजपा खुद कांग्रेस युक्त हो गयी है। हर दल का बड़ा भ्रष्टाचारी भाजपा में शामिल होकर पाक साफ हो गया है। पिछले एक दशक में न्याय बुलडोजर जस्टिस तक पहुंच गया है। चुनावों में लगातार सफलता का श्रेय देश के चुनाव आयोग के नाम जाता है क्योंकि वोट चोरी के आरोपों ने यह सच देश के सामने पूरे प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ परोस दिया है। वोट चोरी का आरोप आज हर आदमी की जुबान पर आ गया है। भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को अपने दम पर नेता प्रतिपक्ष के मुकाम तक पहुंचा दिया है। अब यह ‘‘वोट चोर गद्दी छोड़’’ कांग्रेस को और सशक्त बनाएगा यह तय है।
लेकिन इसी वस्तुस्थिति में कांग्रेस को अपने ही भीतर बैठे भाजपा और दूसरे दलों के स्लीपर सैलों से सावधान रहने की आवश्यकता है। क्योंकि हर चुनाव के दौरान कांग्रेस का कोई न कोई नेता ऐसा ब्यान देता आया है जिसने पार्टी को अर्श से फर्श पर लाने का काम किया है। राहुल गांधी ने जब कांग्रेस के अन्दर बैठे स्लीपर सैलों को ललकारा था उन्हें अब सही में पार्टी से बाहर करने का समय आ गया है। आज के कांग्रेसियों को संघ के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक चिन्तन के बारे में कोई बुनियादी जानकारी नहीं है। उन्हें संघ के चिन्तन की जानकारी देनी होगी। क्योंकि भाजपा का संघ के बिना कोई बुनियादी आधार ही नहीं है। यदि कांग्रेस यह नहीं कर पाती है तो देश और पार्टी दोनों के का ही बड़ा अहित होगा। कांग्रेस को संघ के चिन्तन को समझना होगा।

एस आई आर पर उठते सवाल

बिहार में जब एस आई आर चल रहा था तब इस पर उठते सवालों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय इस पर अन्तिम फैसला नहीं दे पाया था। मामले को बिहार चुनावों के बाद सुनवाई के लिये रख लिया गया। लेकिन इन्हीं चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने एस आई आर को देश के बारह राज्यों में करवाये जाने का ऐलान कर दिया और वहां पर इसका काम शुरू भी हो चुका है। परन्तु इसी बीच जो परिणाम बिहार चुनाव के आये हैं उसमें एस आई आर पर सवाल उठाने वाले महागठबंधन को शर्मनाक हार और एनडीए को प्रचण्ड बहुमत हासिल हुआ है। परन्तु इन चुनाव परिणाम का अध्ययन करने के बाद अधिकांश सीटों पर हार जीत के अन्तर से वहां पर एस आई आर में कांटे गये वोटरों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। इससे अनायास ही यह सन्देश चला गया कि एस आई आर की प्रक्रिया में सत्ता पक्ष के विरोधियों के ही वोट काटे जा रहे हैं।
इस पर एस आई आर के खिलाफ एक बड़ा विरोध खड़ा हो गया है। एस आई आर को तुरन्त प्रभाव से बन्द करने की मांग उठ गयी है। इसी मांग के साथ एस आई आर के काम में लगे बी एल ओ पर अत्याधिक दबाव और तनाव आ गया है। इसके कारण कई स्थानों पर बी एल ओज द्वारा आत्महत्या कर लिये जाने के समाचार भी आ गये हैं। यह भी समाचार आया है कि मध्य प्रदेश में भाजपा और संघ के कार्यकर्ता भी बी एल ओज की सूची में शामिल है। एस आई आर के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कई शिकायतें भी दायर हो चुकी हैं। ऐसी संभावना है कि यदि इन शिकायतों पर समय रहते पूरी निष्पक्षता के साथ सुनवाई नहीं हुई तो यह राजनीतिक दल चुनावों तक का बहिष्कार कर सकते हैं। क्योंकि जब चुनाव निष्पक्षता से होने ही नहीं है तो उनमें भागीदारी से कोई लाभ नहीं हो सकता। ऐसे में देश की जनता के सामने इस सच को पूरी नग्नता के साथ रखने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
अब जब बिहार चुनावों के लगभग एक तरफा परिणाम आने के बाद ही चुनाव आयोग पर उठते सवाल शान्त नहीं हुये हैं तब देश के दो सौ सतर पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों और वरिष्ठ नौकर शाहों ने राहुल गांधी के नाम खुला पत्र जारी करके उसकी मंशा पर सवाल उठाते हुये उसके आरोपों को चुनाव आयोग को बदनाम करने की साजिश करार दिया है। तब पूरा देश इन लोगों की निष्ठाओं पर सवाल उठाने लग गया है। यह आरोप लग रहा है कि यह लोग किसी न किसी रूप में इस सरकार के विशेष लाभार्थी रहे हैं। क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट में राहुल के आरोपों की जांच के लिये एक एसआईटी गठित किये जाने की मांग की गयी थी और शीर्ष अदालत ने इस मांग को अस्वीकार करते हुये इस मुद्दे को उसी चुनाव आयोग के पास उठाने की राय दी थी जिसके खिलाफ यह आरोप थे। तब यह बुद्धिजीवी लोग क्यों सामने नहीं आये थे? कोई भी यह नहीं कह पाया कि यह सवाल गलत है। आज बिहार के चुनाव परिणामों ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रह गया है। पूरे देश में आयोग की नीयत और एस आई आर पर जो सन्देह आम आदमी के मन में घर कर गया है उसे दूर करने के लिये चुनाव आयोग और शीर्ष न्यायालय को उस संदेह को दूर करने के लिए कुछ ठोस व्यवहारिक कदम उठाने होंगे। क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद ही लोगों का विश्वास है और जब यह विश्वास ही प्रश्नित हो जाये तो फिर लोकतंत्र का बचना कठिन हो जायेगा। यह देश बहुधर्मी और बहुभाषी है। इसमें एक धर्म को दूसरे से छोटा बात कर आचरण नहीं किया जा सकता। मुस्लिम समुदाय इस देश का अभिन्न हिस्सा है उसे मानने वालों को दूसरे से छोटा आंकना देश के लिये घातक होगा। देश में एक धर्म को दूसरे के विरोध में खड़ा करके देश को नहीं चलाया जा सकता। पिछले कुछ अरसे से सुनियोजित तरीके से धर्म के आधार पर भेदभाव चल रहा है और देश की जनता अब इसे समझने भी लग पड़ी है। इसलिये लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिये इसमें संवैधानिक संस्थाओं को अपना आचरण व्यवहारिक रूप से सुधारना होगा। यदि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता को प्रमाणित नहीं कर सकता तो फिर जन आन्दोलन को रोकना असंभव हो जायेगा। इस निष्पक्षता के लिये एस आई आर की प्रक्रिया पर समय रहते बदलाव न किये गये तो परिणाम बहुत अराजक हो जाएंगे यह तय हैं।

एस आई आर पर उठते सवाल

बिहार में जब एस आई आर चल रहा था तब इस पर उठते सवालों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय इस पर अन्तिम फैसला नहीं दे पाया था। मामले को बिहार चुनावों के बाद सुनवाई के लिये रख लिया गया। लेकिन इन्हीं चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने एस आई आर को देश के बारह राज्यों में करवाये जाने का ऐलान कर दिया और वहां पर इसका काम शुरू भी हो चुका है। परन्तु इसी बीच जो परिणाम बिहार चुनाव के आये हैं उसमें एस आई आर पर सवाल उठाने वाले महागठबंधन को शर्मनाक हार और एनडीए को प्रचण्ड बहुमत हासिल हुआ है। परन्तु इन चुनाव परिणाम का अध्ययन करने के बाद अधिकांश सीटों पर हार जीत के अन्तर से वहां पर एस आई आर में कांटे गये वोटरों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। इससे अनायास ही यह सन्देश चला गया कि एस आई आर की प्रक्रिया में सत्ता पक्ष के विरोधियों के ही वोट काटे जा रहे हैं।
इस पर एस आई आर के खिलाफ एक बड़ा विरोध खड़ा हो गया है। एस आई आर को तुरन्त प्रभाव से बन्द करने की मांग उठ गयी है। इसी मांग के साथ एस आई आर के काम में लगे बी एल ओ पर अत्याधिक दबाव और तनाव आ गया है। इसके कारण कई स्थानों पर बी एल ओज द्वारा आत्महत्या कर लिये जाने के समाचार भी आ गये हैं। यह भी समाचार आया है कि मध्य प्रदेश में भाजपा और संघ के कार्यकर्ता भी बी एल ओज की सूची में शामिल है। एस आई आर के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कई शिकायतें भी दायर हो चुकी हैं। ऐसी संभावना है कि यदि इन शिकायतों पर समय रहते पूरी निष्पक्षता के साथ सुनवाई नहीं हुई तो यह राजनीतिक दल चुनावों तक का बहिष्कार कर सकते हैं। क्योंकि जब चुनाव निष्पक्षता से होने ही नहीं है तो उनमें भागीदारी से कोई लाभ नहीं हो सकता। ऐसे में देश की जनता के सामने इस सच को पूरी नग्नता के साथ रखने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
अब जब बिहार चुनावों के लगभग एक तरफा परिणाम आने के बाद ही चुनाव आयोग पर उठते सवाल शान्त नहीं हुये हैं तब देश के दो सौ सतर पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों और वरिष्ठ नौकर शाहों ने राहुल गांधी के नाम खुला पत्र जारी करके उसकी मंशा पर सवाल उठाते हुये उसके आरोपों को चुनाव आयोग को बदनाम करने की साजिश करार दिया है। तब पूरा देश इन लोगों की निष्ठाओं पर सवाल उठाने लग गया है। यह आरोप लग रहा है कि यह लोग किसी न किसी रूप में इस सरकार के विशेष लाभार्थी रहे हैं। क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट में राहुल के आरोपों की जांच के लिये एक एसआईटी गठित किये जाने की मांग की गयी थी और शीर्ष अदालत ने इस मांग को अस्वीकार करते हुये इस मुद्दे को उसी चुनाव आयोग के पास उठाने की राय दी थी जिसके खिलाफ यह आरोप थे। तब यह बुद्धिजीवी लोग क्यों सामने नहीं आये थे? कोई भी यह नहीं कह पाया कि यह सवाल गलत है। आज बिहार के चुनाव परिणामों ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रह गया है। पूरे देश में आयोग की नीयत और एस आई आर पर जो सन्देह आम आदमी के मन में घर कर गया है उसे दूर करने के लिये चुनाव आयोग और शीर्ष न्यायालय को उस संदेह को दूर करने के लिए कुछ ठोस व्यवहारिक कदम उठाने होंगे। क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद ही लोगों का विश्वास है और जब यह विश्वास ही प्रश्नित हो जाये तो फिर लोकतंत्र का बचना कठिन हो जायेगा। यह देश बहुधर्मी और बहुभाषी है। इसमें एक धर्म को दूसरे से छोटा बात कर आचरण नहीं किया जा सकता। मुस्लिम समुदाय इस देश का अभिन्न हिस्सा है उसे मानने वालों को दूसरे से छोटा आंकना देश के लिये घातक होगा। देश में एक धर्म को दूसरे के विरोध में खड़ा करके देश को नहीं चलाया जा सकता। पिछले कुछ अरसे से सुनियोजित तरीके से धर्म के आधार पर भेदभाव चल रहा है और देश की जनता अब इसे समझने भी लग पड़ी है। इसलिये लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिये इसमें संवैधानिक संस्थाओं को अपना आचरण व्यवहारिक रूप से सुधारना होगा। यदि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता को प्रमाणित नहीं कर सकता तो फिर जन आन्दोलन को रोकना असंभव हो जायेगा। इस निष्पक्षता के लिये एस आई आर की प्रक्रिया पर समय रहते बदलाव न किये गये तो परिणाम बहुत अराजक हो जाएंगे यह तय हैं।

बिहार परिणामों से निकलता सन्देश

बिहार चुनावों पर सारे देश की निगाहें लगी हुई थी क्योंकि इस चुनाव से पहले चुनाव आयोग को लेकर कुछ राष्ट्रीय प्रश्न देश के सामने उछल चुके थे। चुनाव के दौरान भी और अब इस चुनाव के परिणाम आने के बाद वह राष्ट्रीय प्रश्न और भी गंभीर हो गये हैं। यह चुनाव परिणाम पूरी तरह एक तरफा है। विपक्ष को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन परिणाम पर जो प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दी है उसमें उन्होंने कांग्रेस का नया नामकरण किया है ‘‘मुस्लिम लीग माओवादी’’ कांग्रेस। प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो जाता है कि वह अभी भी कांग्रेस से कहीं न कहीं डरते हैं। संभव है कि इस डर के प्रतिफल के रूप में कांग्रेस के अन्दर एक विभाजन हो जाये। कांग्रेस की कुछ सरकारें इस संभावित विभाजन की भेंट चढ़ जायें। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी को इसी तरह का चुनावी परिणाम गैर भाजपाई राज्यों में आगे होने वाले चुनावों में प्रदर्शित करना होगा। चुनाव आयोग के चुनाव आयुक्तों को आजीवन कानूनी संरक्षण प्राप्त है। उनके खिलाफ कहीं भी कोई भी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता है। इसलिये चुनाव आयोग को भी सत्ता के इशारे पर नाचने की विवशता आ खड़ी होगी। क्योंकि बिहार में हुये एस आई आर का मामला अभी भी सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित है। बिहार में पैंसठ लाख नाम मतदाता सूचियों से काट दिये गये। बाईस लाख वोटर जोड़ दिये गये। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद मतदान होने के बाद जो सूची आयोग ने जारी की उसमें तीन लाख वोटर और सूचियों में जोड़ दिये गये। यह सामने आ गया है कि एक सौ अठ्ठाईस सीटों पर जहां एनडीए के उम्मीदवार विजयी हुये हैं वहां जीत का अंतर मतदाता सूची से हटाये गये मतदाताओं की संख्या से बहुत ही कम है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि यदि यह नाम सूची से न हटाए गये होते तो इन सीटों पर एनडीए का जीतना संभव नहीं था।
यह सवाल आने वाले दिनों में उठेंगे यह तय है। लेकिन इनका कोई भी जवाब आयोग की ओर से पहले की तरह नहीं आयेगा यह भी तय है। सर्वाेच्च न्यायालय भी पहले की तरह तारीखें देने से ज्यादा कुछ नहीं करेगा और चुनाव आयोग तो कानूनन कहीं जवाब देह है ही नहीं। आयोग की जगह सरकार और हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर जवाब देंगे। ऐसी स्थिति में देश का युवा और आम आदमी क्या करेगा? क्योंकि हिन्दू राष्ट्र के पक्षधरों को तो हिन्दू राष्ट्र के आगे सरकार पर उठने वाला हर सवाल राष्ट्र विरोधी नजर आयेगा। इसमें यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विपक्ष अपनी इस हार पर किस तरह की प्रतिक्रिया देता है और जनता के बीच क्या लेकर जाता है। इन परिणामों के बाद क्या सरकार महंगाई पर नियंत्रण पायेगी? क्या बेरोजगारी का सवाल हल हो पायेगा? शायद यह सारे सवाल हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना में दफन हो जायेंगे।
आज इन चुनाव परिणामों के बाद विपक्ष के हर दल को अपने अन्दर झांकने की आवश्यकता है क्योंकि हर दल में भाजपा संघ के स्लीपर सैल मौजूद हैं। कांग्रेस में तो राहुल गांधी ने इन स्लीपर सैलों को चेतावनी भी दी थी लेकिन व्यवहारिक तौर पर कोई कारवाई नहीं हुई। कांग्रेस को अब अपनी विचारधारा को लेकर अपने कार्यकर्ताओं को जागरूक करना होगा। क्योंकि इस समय कांग्रेस नीत सरकारों में भी ठेकेदारी की मानसिकता प्रबल हो गयी है। कांग्रेस की सरकारें भी अनचाहे ही संघ भाजपा के एजैन्डे पर ही काम कर रही है। इन सरकारों को अपने चुनावी घोषणा पत्र राज्य की आर्थिक स्थितियों के आधार पर लाने होंगे। अन्यथा यह घोषणा पत्र ही इन सरकारों और पार्टी को डुबोने में काफी होंगे। अब कांग्रेस को निष्पक्षता के साथ आत्म मंथन करने की अति आवश्यकता है।

चुनाव आयोग और सरकार पर उठते सवालों का अन्तिम परिणाम क्या होगा?

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब चुनाव आयोग और सरकार की विश्वसनीयता दोनों पर एक साथ सवाल उठने शुरू हो जायें तो यह स्थिति एक बड़े खतरे का संकेत मानी जाती है। आज देश में इन्हीं के साथ न्यायपालिका भी सवालों के घेरे में आती जा रही है। क्योंकि सत्ता न्यायपालिका को अपने अनुसार चलाना चाहती हैं। जब सत्ता अपने को श्रेष्ठतम मान लेती है और संविधान द्वारा स्थापित संस्थाएं उनके नियोजकों द्वारा सत्ता के आगे गिरवी रख दी जाती है तब शुद्ध रूप से अराजकता का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। एक समय ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर उठे सवाल आज चुनाव आयोग ही नहीं वरन् स्वयं मुख्य चुनाव आयुक्त तक पहुंच गये हैं। बिहार के पहले चरण के मतदान में जिस स्तर की गड़बड़ियां होने के वीडियो वायरल हुये हैं और इस आशय की शिकायतों पर जो चुप्पी मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपना रखी है उसके बाद कुछ भी कहने के लिये शेष नहीं रह जाता है। क्योंकि सवाल मुख्य चुनाव आयुक्त से किये जा रहे हैं और उनका जवाब आने की बजाये सत्ता सवाल उठाने वालों पर ही आक्रामक हो उठी है।
राहुल गांधी ने जिस दस्तावेजी प्रमाणिकता के साथ सवाल उठाये हैं उसके कारण देश का ‘‘जन जी’’ उसके साथ खड़ा होता जा रहा है। क्योंकि यह सवाल इस युवा पीढ़ी के भविष्य को प्रभावित करने वाले हैं। केन्द्र से लेकर राज्यों तक जब सरकार वोट चोरी से बनने लग जायेगी तो निश्चित रूप से उन सरकारों की विश्वसनीयता स्थायी नहीं रह पायेगी। ऐसी सरकारें अपने को सत्ता में बनाये रखने के लिये हर मर्यादा लांघने को तैयार हो जायेगी। पिछले ग्यारह वर्षों से जिस तरह की सरकार देश देख रहा है भोग रहा है उसमें महंगाई और बेरोजगारी ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा करने वाली सरकार आज विश्व बैंक के कर्जदारों की सूची में पहले स्थान पर पहुंच चुकी है। रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिरता जा रहा है। विदेशी मुद्रा भण्डार हर सप्ताह कम होता जा रहा है। रिजर्व बैंक को सोने तक बेचना पड़ गया है। आने वाले समय में इस सब का देश पर क्या असर पड़ेगा। नयी पीढ़ी जो हर समय इन्टरनेट के माध्यम से हर जानकारी तक पहुंच रही है उसे लम्बे अरसे तक बहलाया नहीं जा सकेगा।
यह देश बहुभाषी और बहू धर्मी है इस देश में भाषायी और धार्मिक मतभेद खड़े करके बहुत देर तक सत्ता में बने रहना संभव नहीं होगा यह तय है। इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के प्रयास देश की एकता और अखण्डता के लिये कालान्तर में एक बड़ा खतरा प्रमाणित होंगे। इस सच्चाई को सत्ता में बैठे लोगों को जल्द से जल्द स्वीकार करना ही होगा। आज वोट चोरी के आरोपों ने देश में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। हरियाणा में पच्चीस लाख फर्जी वोटों का आरोप है। एक ब्राजील की महिला का नाम एक बूथ में बाईस बार मतदाता सूचियों में आ जाता है। इस आरोप की जांच करवाने का ऐलान करने की बजाये जब आरोप लगाने वाले को ही गाली देना शुरू कर दोगे तो उससे समस्या का हल नहीं निकलेगा। राहुल गांधी ने जितने भी आरोप लगाये हैं उनकी जांच आदेशित करके उसके परिणाम के बाद तो राहुल पर सवाल उठाये जा सकते हैं परन्तु उससे पहले ही सवाल उठाकर सत्ता अपने आप को जनता में हास्य का पात्र बना रही है।
संभव है कि बिहार के परिणाम के बाद देश की राजनीति में बड़ा फेरबदल देखने को मिले। क्योंकि वोट चोरी के आरोप यहीं रुकने वाले नहीं है यह एक जन आन्दोलन की शक्ल लेंगे क्योंकि आरोपों में घिरी सत्ता आसानी से सब स्वीकार नहीं करेगी। इसके लिये बड़े स्तर पर एक बार फिर राजनीतिक दलों में तोड़फोड़ का दौड़ शुरू होगा। क्योंकि आरोप लगाने वालों को सत्ता के काबिज न होने को प्रमाणित करने के लिये कांग्रेस की सरकारों पर हाथ डाला जायेगा क्योंकि हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए पूरे देश में एक ही दल की सरकार लाने का प्रयास किया जायेगा।

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