राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तीन हजार आठ सौ किलोमीटर का सफर करीब पांच माह में पूरा करके पूर्ण होने जा रही है। आज की परिस्थितियों में यदि कोई राजनेता इस तरह की यात्रा का संकल्प लेकर उसे पूरा करके दिखा दे तो निश्चित रूप में यह मानना पड़ेगा कि उस नेता में कुछ तो ऐसा है जो उसे दूसरे समकक्षों से कहीं अलग पहचान देता है। इस यात्रा को यदि तपस्या का नाम दिया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि पांच माह तक हर रोज करीब पचीस किलोमीटर पैदल चलना और रास्ते में प्रतिदिन सैकड़ों लोगों से संवाद स्थापित करना तथा मीडिया से भी आमने सामने होना कोई आसान काम नहीं है। राहुल गांधी के इस इतिहास को कोई दूसरा नेता लांघ सकेगा ऐसा नहीं लगता। इतनी लम्बी यात्रा में बिना थकान, शांत बने रहकर समाज के हर वर्ग की बात सुनना, उसे राष्ट्रीय प्रश्नों के प्रति जागरूक करना अपने में ही एक बड़ा स्वाध्याय और सीख हो जाता है। पांच माह में यह यात्रा बारह राज्यों और दो केन्द्र शासित राज्यों से होकर गुजरी है। एक सौ उन्नीस सहयात्रियों के साथ शुरू हुई इस यात्रा में रास्ते में कैसे हजारों लाखों लोग जुड़ते चले गये वही इस यात्रा को एक तपस्या की संज्ञा दे देता है। इसी से यह यात्रा अनुभव और ज्ञान दोनों का पर्याय बन जाती है। राहुल ने स्वयं इस यात्रा को नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान करार दिया है।
राहुल एक सांसद हैं और अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। इस नाते देश की जनता के प्रति उनकी एक निश्चित जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी के नाते देश की समस्याओं को आम जनता के सामने रखना और उन पर जनता की जानकारी और प्रतिक्रिया को जानना एक आवश्यक कर्तव्य बन जाता है। इन समस्याओं पर जनता से सीधा संपर्क बनाना उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब लोकतांत्रिक मंच संसद और मीडिया में ऐसा करना कठिन हो गया हो। देश जानता है कि आज प्रधानमंत्री राष्ट्रीय समस्याओं पर जनता से सार्थक संवाद स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि मन की बात में अपनी ही बात जनता को सुनायी जा रही है। लेकिन जनता के मन में क्या है उसे सुनने का कोई मंच नहीं है। यहां तक की पिछले आठ वर्षों में मीडिया से भी खुले रुप में कोई संवाद नहीं हो पाया है। यही कारण है कि नोटबन्दी पर आम आदमी का अनुभव क्या रहा है उसकी कोई सीधी जानकारी प्रधानमन्त्री को नहीं मिल पायी है। जीएसटी का छोटे दुकानदार पर क्या प्रभाव पड़ा है और जीएसटी के करोड़ों के घपले क्यों हो रहे हैं। कोविड में आपदा को किन बड़े लोगों ने अवसर बनाया और ताली-थाली बजाने तथा दीपक जलाने पर आम आदमी की प्रतिक्रिया क्या रही है? आज सर्वोच्च न्यायालय में सरकार को शपथ पत्र देकर बार-बार यह क्यों कहना पड़ा है कि वैक्सीनेशन ऐच्छिक थी अनिवार्य नहीं? इसके प्रभावों/ कुप्रभावों की जानकारी रखना वैक्सीनेशन लेने वाले की जिम्मेदारी थी।
अन्ना आन्दोलन में जो लोकपाल की नियुक्ति जन मुद्दा बन गयी थी उसकी व्यवहारिक स्थिति आज क्या है। 2014 के चुनावों में हर भारतीय के खाते में पंद्रह लाख आने का वादा जुमला क्यों बन गया। सार्वजनिक बैंकों से लाखों करोड़ का कर्ज लेकर भाग जाने वालों के खिलाफ आज तक कोई प्रभावी कारवाई क्यों नहीं हुई। जब चीन के साथ रिश्ते सौहार्दपूर्ण नहीं है तो फिर उसके साथ व्यापार लगातार क्यों बढ़ रहा है। दो करोड़ नौकरियां देने का वादा पूरा न होने पर देश के युवा की प्रतिक्रिया क्या है? महंगाई से आम आदमी कैसे लगातार पीड़ित होता जा रहा है? आज के इन राष्ट्रीय प्रश्नों पर दुर्भाग्य से प्रधानमन्त्री या उनके किसी दूसरे निकट सहयोगी का जनता से सीधा संवाद नहीं रह गया है। इस वस्तुस्थिति में आज देश को एक ऐसे राजनेता की आवश्यकता है जो जनता के बीच जाकर उससे सीधा संवाद बनाने का साहस दिखाये। राहुल गांधी ने पांच माह में कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल चलकर एक संवाद स्थापित किया है जो उनका कोई भी समकक्ष नहीं कर पाया है। इसलिये यह उम्मीद की जानी चाहिये कि वह जन अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे।






आज जोशीमठ की तर्ज पर ही हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र ऐसी ही आपदा के मुहाने पर खड़े है।ं प्रदेश के आपदा सूचना प्रवाह प्रभाग की सूचनाओं के अनुसार पिछले करीब दो वर्षों से प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रायः औसतन हर रोज एक न एक भूकंप आ रहा है। प्रदेश भूकंप जोन पांच में है। सरकार की अपनी रिपोर्टों के मुताबिक राजधानी नगर शिमला भूकंप के मुहाने पर बैठा है।
1971 में शिमला के लक्कड़ बाजार क्षेत्र में जो नुकसान हुआ था उसके अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। ऐतिहासिक रिज का एक हिस्सा हर वर्ष धंसाव का शिकार हो रहा है। इस स्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुये एन.जी.टी. ने नये निर्माणों पर रोक लगा रखी है। लेकिन एन.जी.टी. की इस रोक की अवहेलना स्वयं सरकार और मुख्यमन्त्री के सरकारी आवास से शुरू हुई है। एन.जी.टी. के फैसले के बाद हजारों भवन ऐसे बने हैं जो इन आदेशों की खुली अवहेलना हैं। पिछली सरकार एन.जी.टी. के आदेशों को निष्प्रभावी बनाने के लिये शिमला का विकास प्लान लेकर आयी थी। लेकिन एन.जी.टी. ने इस प्लान को रिजैक्ट कर दिया है। इस कारण फैसले के बाद बने हजारों मकानों पर नियमों की अवहेलना के तहत कारवायी होनी है। लेकिन वोट की राजनीति के चलते कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आकर ऐसी कारवायी करने से बचना चाहता है। जबकि सरकार की अपनी ही रिपोर्ट के मुताबिक शिमला में भूकंप के हल्के से झटके में ही तीस हजार से ज्यादा लोगों की जान जायेगी और अस्सी प्रतिश्त निर्माणों को नुकसान पहुंचेगा। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि हिमाचल सरकार जोशीमठ से कोई सबक लेती है या नहीं।

















