

इसी में एक महत्वपूर्ण पक्ष यह सामने आया है कि सरकार ने 2024-25 में 29046 करोड़ का कर्ज लिया। 2024-25 के बजट का कुल आकार 58443.61 करोड़ था। 2024-25 में राजकोषीय घाटा 10783.87 करोड़ था। बजट के इन आंकड़ों के अनुसार इस बजट को पूरा करने के लिये 10783.87 करोड़ का ही कर्ज लिया जाना चाहिये था जबकि सरकार ने 29046 करोड़ का कर्ज ले लिया। यह ज्यादा कर्ज क्यों लेना पड़ा? क्या विधानसभा पटल पर रखे बजट आंकड़े सही नहीं थे? क्या राज्य की समेकित निधि से अधिक खर्च करना पड़ा है? इन सवालों पर सरकार खामोश है। लेकिन इन आंकड़ों से बजट की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह आ जाता है। यहां यह सवाल स्वभाविक रूप से बड़ा हो जाता है कि जब 31 मार्च 2010 को सरकार का कुल कर्जभार 15830 करोड़ था वह आज एक लाख करोड़ तक कैसे पहुंच गया? जबकि कुल कर्मचारियों की संख्या आज उससे कम है? इस कर्ज का निवेश कहां पर हुआ है और उससे प्रदेश के राजस्व में कितनी वृद्धि हुई है? क्योंकि आज इस सरकार ने तो कार्यभार संभालते ही यह चेतावनी दे दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इतने कर्ज के बाद भी सरकार की कर्मचारियों के प्रति देनदारियां यथास्थिती बनी हुई है। यहां तक पैन्शन और मेडिकल के बिलों के लिये कर्मचारियों को आये दिन सड़कों पर आना पड़ रहा है।
इस बढ़ते कर्जभार के कारण सरकार को अपने प्रतिबद्ध खर्चाे पर कटौती करनी पड़ेगी और उस कटौती का पहला शिकार सरकार में स्थायी रोजगार की उपलब्धता होगी? आज सरकार ने राजस्व जुटाने के लिये हर वर्ग और सेवा को निशाना बना रखा है। प्रक्रियाओं को सरलीकरण के नाम पर लगातार उलझाया जा रहा है। सरकारी राशन की दुकानों पर पूरा राशन नहीं मिल रहा है और इस राशन की कीमतों में पिछले तीन वर्षों में दो गुणे से भी ज्यादा वृद्धि हुई है। आपदा में राहत का बंटवारा सरकार की घोषणाओं से निकलकर अमली शक्ल लेने तक नहीं पहुंच पाया है। यहां तक की भारत सरकार से जो आपदा राहत प्रदेश सरकार को मिल चुकी है वह भी यह तंत्र आम प्रभावित तक नहीं पहुंचा पाया है। कुल मिलाकर सरकार की नीयत और नीति दोनों पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह स्थिति सरकार की सेहत के लिये खतरे का संकेत होती जा रही है।