Monday, 15 December 2025
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इस बढ़ते कर्ज का अन्तिम परिणाम क्या होगा?

सुक्खू सरकार ने अभी दो सौ करोड़ का कर्ज लिया है। यह कर्ज लेने के बाद अगले दो माह में यह सरकार तीन सौ करोड़ का कर्ज और ले पायेगी। यह कर्ज लेने के बाद प्रदेश का कर्जभार एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगा। अभी जो कर्ज लिया गया है इसकी भरपायी अक्तूबर 31 से शुरू होगी। अभी जो कर्ज लिया गया है उसी के साथ यह भी सामने आया है कि इस सरकार ने पिछले वर्ष 2024-25 में करीब 29000 करोड़ का कर्ज लिया था जिसमें से विकास कार्यों पर केवल 8693 करोड़ ही खर्च हुआ और 20000 करोड़ पिछला कर्ज चुकाने में ही खर्च हो गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले समय में कर्ज की किस्त और ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज ही लेना पड़ेगा। हिमाचल जैसे राज्य पर इतना कर्जभार निश्चित रूप से चिन्ता का विषय है। क्योंकि जिस अनुपात में यह कर्ज बढ़ रहा है उसी अनुपात में सरकार में स्थाई रोजगार कम होता जा रहा है। जबकि हिमाचल में सरकार ही सबसे बड़ी रोजगार प्रदाता है। इस बढ़ते कर्जभार के कारण सरकार आउटसोर्स, मल्टी टास्क वर्कर और वन मित्र तथा पशु मित्र जैसी रोजगार व्यवस्थाएं करने पर आ गयी है जहां दस हजार से भी कम पगार मिलेगी। इससे अन्ततः युवाओं में हताशा और रोष का वातावरण निर्मित होगा। 2009-10 में सरकार आउटसोर्स योजना लेकर आयी है। उस समय प्रदेश में 1,89,065 स्थायी, 13050 अंशकालिक, 2167 वर्कचार्ज और 11908 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी थे। आज यह संख्या नियमित 1,85,698 स्थायी, 5726 अंशकालिक, वर्क चार्ज शून्य और दैनिक वेतन भोगी 4593 रह गये हैं। 31 मार्च 2010 को सरकार का कर्जभार सीएजी के मुताबिक 15830 करोड़ था जो अब एक लाख करोड़ हो रहा है। आज आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 45000 के पास पहुंच चुकी है। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है की कर्ज और कर्मचारियों के इसी अनुपात से आगे चलकर सरकार में स्थायी रोजगार की स्थिति क्या हो जायेगी।
इसी में एक महत्वपूर्ण पक्ष यह सामने आया है कि सरकार ने 2024-25 में 29046 करोड़ का कर्ज लिया। 2024-25 के बजट का कुल आकार 58443.61 करोड़ था। 2024-25 में राजकोषीय घाटा 10783.87 करोड़ था। बजट के इन आंकड़ों के अनुसार इस बजट को पूरा करने के लिये 10783.87 करोड़ का ही कर्ज लिया जाना चाहिये था जबकि सरकार ने 29046 करोड़ का कर्ज ले लिया। यह ज्यादा कर्ज क्यों लेना पड़ा? क्या विधानसभा पटल पर रखे बजट आंकड़े सही नहीं थे? क्या राज्य की समेकित निधि से अधिक खर्च करना पड़ा है? इन सवालों पर सरकार खामोश है। लेकिन इन आंकड़ों से बजट की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह आ जाता है। यहां यह सवाल स्वभाविक रूप से बड़ा हो जाता है कि जब 31 मार्च 2010 को सरकार का कुल कर्जभार 15830 करोड़ था वह आज एक लाख करोड़ तक कैसे पहुंच गया? जबकि कुल कर्मचारियों की संख्या आज उससे कम है? इस कर्ज का निवेश कहां पर हुआ है और उससे प्रदेश के राजस्व में कितनी वृद्धि हुई है? क्योंकि आज इस सरकार ने तो कार्यभार संभालते ही यह चेतावनी दे दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इतने कर्ज के बाद भी सरकार की कर्मचारियों के प्रति देनदारियां यथास्थिती बनी हुई है। यहां तक पैन्शन और मेडिकल के बिलों के लिये कर्मचारियों को आये दिन सड़कों पर आना पड़ रहा है।
इस बढ़ते कर्जभार के कारण सरकार को अपने प्रतिबद्ध खर्चाे पर कटौती करनी पड़ेगी और उस कटौती का पहला शिकार सरकार में स्थायी रोजगार की उपलब्धता होगी? आज सरकार ने राजस्व जुटाने के लिये हर वर्ग और सेवा को निशाना बना रखा है। प्रक्रियाओं को सरलीकरण के नाम पर लगातार उलझाया जा रहा है। सरकारी राशन की दुकानों पर पूरा राशन नहीं मिल रहा है और इस राशन की कीमतों में पिछले तीन वर्षों में दो गुणे से भी ज्यादा वृद्धि हुई है। आपदा में राहत का बंटवारा सरकार की घोषणाओं से निकलकर अमली शक्ल लेने तक नहीं पहुंच पाया है। यहां तक की भारत सरकार से जो आपदा राहत प्रदेश सरकार को मिल चुकी है वह भी यह तंत्र आम प्रभावित तक नहीं पहुंचा पाया है। कुल मिलाकर सरकार की नीयत और नीति दोनों पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह स्थिति सरकार की सेहत के लिये खतरे का संकेत होती जा रही है।

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