Thursday, 18 September 2025
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डोनाल्ड ट्रंप के दखल के मायने क्या हैं?

पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुये भारत ने पाक स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल दागे और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके लिये भारतीय सेना और देश का राजनीतिक नेतृत्व दोनों साधुवाद के पात्र हैं। भारत ने पाक के अन्दर घुसकर यह कारवाई की है। क्योंकि यह आतंकवाद पाक से संचालित और पोषित था। भारत-पाक के रिश्ते देश के विभाजन के समय से ही असहज हो गये थे। जब 1947 में ही यहां के कबाईलियों ने जम्मू-कश्मीर को अपने साथ मिलाने के लिये उस पर आक्रमण कर दिया था। तब वहां के राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। क्योंकि विभाजन के बाद यहां के राजाओं को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान किसी एक में विलय होने की छूट दी गयी थी। तब 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ और परिणामस्वरुप जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई भाग भारत का हिस्सा बन गया और पाक अधिकृत आजाद कश्मीर बन गया और उसे जनमत संग्रह से यह फैसला करने का अधिकार मिल गया कि वह किसके साथ जाना चाहता है। यह जनमत संग्रह कभी नहीं हुआ फिर भी भारत ने उसे विभाजन रेखा मान लिया। लेकिन अब आजाद कश्मीर तब से अब तक दोनों देशों के बीच एक समस्या बनकर खड़ा है। पाक इस क्षेत्र को अपने साथ मिलाने के लिये हर समय युद्ध और आतंकी वारदातों को प्रोत्साहित और संचालित करता रहता है। 1960 के दशक में दोनों देशों के बीच बड़े तनाव का परिणाम 1965 की लड़ाई है जिसमें पाकिस्तान हारा। इस हार के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने के ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया। इसका परिणाम 1971 के पाक विभाजन के रूप में सामने आया और शिमला समझौता हुआ।
लेकिन 1987 के चुनावों के बाद फिर हिंसा का दौर शुरू हो गया। कई उग्रवादी संगठन खड़े हो गये जिनमें जे.के.एल.एफ., लश्कर-ए तैयबा और एल.ई.टी प्रमुख है परिणामस्वरूप 1999 में दस सप्ताह तक संघर्ष चला। 2001 में संसद पर हमला हुआ जिसमें पांच आतंकी और 14 अन्य मारे गये। फिर 2008 में मुंबई में 166 लोग मारे गये। 2019 में सीआरपीएफ के 40 पुलिसकर्मी मारे गये। 2019 के अन्त में टी.आर.एफ. सामने आ गया और अब पहलगाम में 26 लोग मारे गये। यह कुछ मुख्य घटनाओं का विवरण है जो यह प्रमाणित करता है कि आतंकवाद लगातार दहशत का कारण बना रहा है। यह सही है कि हमारी सेनाओं ने हर बार सफलतापूर्वक इस आतंक को कुचला है। लेकिन यह अभी तक किसी न किसी शक्ल में सर उठाता ही रहा है। यह माना जा रहा है कि जब तक आजाद कश्मीर का स्थायी हल नहीं हो जाता है तब तक आतंकी घटनाएं किसी न किसी शक्ल में घटती ही रहेंगी। इस बार जिस तरह से पूरे विपक्ष में सरकार को समर्थन दिया और सरकार की ओर से यह संकेत और संदेश रहे कि अब आजाद कश्मीर भारत का हिस्सा बना दिया जायेगा उससे पूरा देश सेना के साथ खड़ा रहा। सेना लगातार सफल होती जा रही थी। लेकिन इस सफलता के बीच जिस तरह से युद्ध विराम घोषित हो गया और उस पर भी सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसकी सूचना दी यह अपने में एक नये संकट का संकेत है। क्योंकि इससे यह लगता है कि अमेरिका इसे एक अर्न्तराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका का यह दखल कई अनकहे सवालों को जन्म दे जाता है। वह सारे सवाल जो पृष्ठभूमि में चले गये थे वह अब फिर से सामने आ जायेंगे। प्रधानमंत्री मोदी इस पर अभी तक चुप हैं। राहुल गांधी ने पत्र लिखकर सर्वदलीय बैठक और संसद का सत्र बुलाने की मांग की है। प्रधानमंत्री को संसद के सामने अमेरिका के दखल का खुलासा रखना चाहिये। क्योंकि देश ने इस ऑपरेशन में जान और माल की हानि झेली है। क्योंकि देश से यह वायदा किया गया था कि आतंक का स्थायी हल करके रहेंगे। इस हल के बिना युद्ध विराम क्यों आवश्यक हो गया यह देश के सामने रखना ही पड़ेगा।

अपने ही उठाये सवालों में उलझे मोदी

पहलगाम आतंकी हमले के लिये पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने और उससे बदला लेने के जिस तरह के संकल्प प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री ने देश के सामने लिये हैं उसके मुताबिक तो अब तक बहुत कुछ घट जाना चाहिये था। लेकिन कुछ लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाने के अतिरिक्त अभी तक और कुछ नहीं हुआ है। पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी इस चूक को स्वीकारने के बाद भी इसके लिये न तो किसी को चिन्हित किया गया और न ही किसी को दण्डित किया गया। जबकि इस चूक ने 28 लोगों की जान ले ली है। यही नहीं इस घटना के बाद जिस तरह से कुछ मीडिया मंचों ने इसमें हिन्दू-मुस्लिम का वर्ग भेद खड़ा करते हुये जम्मू-कश्मीर के हर मुसलमान को इसके लिये जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया वह अपने में बहुत ही गंभीर हो जाता है। फिर एक यू टयूब चैनल 4 पीएम न्यूज़ और लोक गायिका नेहा ठाकुर के खिलाफ मामले दर्ज किये गये उससे कुछ और ही संकेत उभरते हैं। इस सारे परिदृश्य को समझने के लिये कुछ और सवाल उठाने आवश्यक हो जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कभी संघ के प्रचारक हुआ करते थे। प्रचारक से वह चौदह वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री रहे उनके शासनकाल में जिस तरह की स्थितियां गुजरात में बन गयी थी उनके साथ में अमेरिका ने उन्हें अपने यहां आने का वीजा नहीं दिया था। लेकिन जब मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन गये तब अमेरिका से उनके रिश्ते किस तरह के रहे यह पूरा देश जानता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह भाजपा के पर्याय हो गये। मोदी है तो मुमकिन है यह संज्ञा उनको दी गयी। एक व्यक्ति के जीवन में चौदह वर्ष मुख्यमंत्री और फिर ग्यारह वर्ष प्रधानमंत्री होना अपने में ही एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन आज उसी प्रधानमंत्री के काल में भाजपा अपना नया अध्यक्ष नहीं बना पा रही है। प्रचारक से प्रधानमंत्री तक पहुंचे मोदी के ही काल में संघ की भाजपा के लिये आवश्यकता पर भी सवाल उठे हैं और आज तक इन सवालों का कोई जवाब नहीं आ पाया है। यहां यह भी जिक्र करना आवश्यक हो जाता है कि जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब केन्द्र की कांग्रेस सरकार से सार्वजनिक मंचों पर गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, काला धन, डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरने और आतंकवाद पर जिस भाषा में सवाल पूछते थे आज भी वही सवाल उसी भाषा में मोदी और उनकी सरकार से जवाब मांग रहे हैं। उनके द्वारा पूछे गये हर सवाल का वीडियो वायरल हो रहा है। आज देश की आर्थिक स्थिति और विकास पर मोदी सरकार का हर दावा वहां आकर खोखला हो जाता है जब आज भी 140 करोड़ के देश में 80 करोड़ लोग अपने राशन तक का जुगाड़ न कर पा रहे हों। उन्हें सरकार के राशन पर निर्भर रहना पड़ रहा हो। इस वस्तुस्थिति में यदि पहलगाम प्रकरण पर हिन्दू-मुस्लिम करने के प्रयासों पर गंभीरता से विचार किया जाये तो उसकी गहराई में देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सच ही सामने आता है। मोदी के प्रधानमंत्री के अब तक के कार्यकाल पर यदि नजर डाली जाये तो इस दौरान उनका हर फैसला ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकार पर निर्भर करने का रहा है ताकि यह लोग ध्वनि मत से उनके फैसले का समर्थन करते रहें। लेकिन आज देश मोदी से उन्हीं की भाषा में उनके ही सवालों को उनके आगे परोस रहा है। इसलिये पहलगाम और वक्फ संशोधन पर उठते सवालों के परिदृश्य में यह नहीं लगता है कि सरकार कोई और बड़ी कारवाई करके देश का बिना शर्त समर्थन हासिल कर पायेगी। क्योंकि भ्रष्टाचार के जिस आन्दोलन के सहारे भाजपा केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई थी आज उस आन्दोलन के केन्द्रिय सवाल 2G स्पैक्ट्रम और कॉमनवैल्थ घोटाले इस सरकार में बुरी तरह से बेनकाब हो गये हैं।

पहलगाम-जवाब मांगते कुछ सवाल

पहलगाम की आतंकी घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। आतंकियों ने 28 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। इस घटना से पूरा देश स्तब्ध और रोष में है। हर स्वर इसका बदला लेने के लिये आतुर है। हर आदमी इस घटना की निंदा कर रहा है और आतंकियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहा है। यह हमला एक सरकार पर नहीं बल्कि पूरे देश पर है। इस समय पूरा देश सरकार के साथ खड़ा है। विपक्ष ने भी राजनीति से ऊपर उठकर सरकार के इस दिशा में उठने वाले हर कदम का पूरा समर्थन देने का वायदा किया है। प्रधानमंत्री ने इस घटना का पूरा बदला लेने का देश के साथ वायदा किया है। भारत ने बिना नाम लिये इसे सीमा पार से प्रायोजित करार दिया है। इस दिशा में सरकार ने कुछ तात्कालिक फैसला भी लिये हैं जिनका देश ने पूरा-पूरा समर्थन किया है। लेकिन इस घटना ने जो सवाल खड़े किये हैं उन्हें नजरअन्दाज करना भी सही नहीं होगा। इस घटना के बाद सेवानिवृत मेजर जनरल जी.डी.बक्शी और लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस.पनाग ने कुछ सवाल उठाये हैं। जिन पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। मेजर जनरल बख्शी ने कोविड काल में सेना में खाली हुए 1,80,000 पदों पर भर्ती न किये जाने पर चिन्ता व्यक्त की है। लेफ्टिनेंट जनरल पनाग ने सेना की तकनीकी दक्षता और पाकिस्तान के न्यूक्लियर संपन्न देश होने को ध्यान में रखने की सलाह दी है।
देश में इस तरह की आतंकी गतिविधियों एक लम्बे अरसे से चली आ रही है और अधिकांश में इन्हें सीमा पार से प्रायोजित करार दिया जाता रहा है। जम्मू कश्मीर में सीमा पार के कुछ संपर्क होने के भी आरोप लगते आये हैं। इन आरोपों के परिणाम स्वरुप नोटबन्दी लागू की गयी थी। कहा गया था कि इससे आतंकवाद की रीढ़ टूट जायेगी। लेकिन नोटबन्दी के बाद भी यह घटनाएं रुकी नहीं है। सीमा पार के जम्मू कश्मीर में संपर्क होने के कारण ही जब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा घट गया तब 5 अगस्त 2019 को संसद में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित करके प्रदेश को दो केन्द्र शासित राज्यों लद्दाख और जम्मू कश्मीर में विभाजित कर दिया गया। धारा 370 के तहत मिला विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस तरह जम्मू कश्मीर अब केन्द्र शासित प्रदेश है और ऐसे में वहां सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी केन्द्र पर आ जाती है। अब जब इस घटना के बाद सर्वदलीय बैठक हुई तो उस बैठक से प्रधानमंत्री गायब रहे। बैठक में गृह मंत्री और सुरक्षा सलाहकार डोभाल शामिल रहे। बैठक में सरकार ने स्वीकार किया कि सुरक्षा में चूक हुई है। लेकिन इस चूक के लिये जो कारण बताया वह एकदम गले नहीं उतरता। यह कहा गया कि जिस जगह यह घटना घटी है वह रास्ता अमरनाथ यात्रा के दौरान जून में खुलता है। वहां पर्यटक कैसे चले गये इसका पता ही नहीं चला। यह शुद्ध गलत ब्यानी है क्योंकि जो रिपोर्टस प्रैस के माध्यम से सामने आयी है उसके मुताबिक तो वहां पर हर समय पर्यटक जाते रहते हैं। पहलगाम का विकास प्राधिकरण बाकायदा पर्यटकों से टोल वसूल करता है। यह काम किसी प्राइवेट आदमी को दिया गया है। पहलगाम के डी.एम. को इसकी जानकारी रहती है। यह सब कुछ वीडियोज के माध्यम से देश के सामने आ चुका है। वहां पर दो हजार पर्यटक मौजूद थे ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि इतने लोगों के वहां होने की सूचना खुफिया एजैन्सी को न मिली हो। यह सामने आ चुका है कि आईबी के पास ऐसी सूचना थी की घाटी में कोई वारदात हो सकती है। इस सूचना पर उच्च स्तरीय बैठक होने की भी जानकारी है। इसी जानकारी के आधार पर प्रधानमंत्री का घाटी दौरा रद्द किया गया था। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि पुलवामा को लेकर जो सवाल तत्कालीन राज्यपाल सतपाल मलिक ने अपना पद छोड़ने के बाद उठाये हैं उनसे देश बहुत सतर्क और सजग हो चुका है।
इस समय जब पूरा देश सरकार और प्रधानमंत्री के साथ एक जूटता के साथ खड़ा है तब यह अपेक्षा तो सरकार और प्रधानमंत्री से रहेगी कि वह देश को पूरे तथ्यों से अवगत करवायें। जब सर्वदलीय बैठक में यह स्वीकार कर लिया है की सुरक्षा में चूक हुई है तो इस चूक के लिये किसी को दण्डित भी किया जाना आवश्यक है ताकि जनता आश्वस्त हो सके।

क्या वक्फ संशोधन धार्मिक राष्ट्र घोषित करने का संकेत है?

क्या वक्फ संशोधन हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक सुनियोजित कदम है? यह सवाल इसलिय प्रसांगिक हो जाता है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा संघ परिवार का एक अनुषांगिक संगठन है। 1925 में विजयदशमी के दिन हुई इसकी प्रारंभिक बैठक में हेडगेवार के साथ हिन्दू महासभा के जिन चार नेताओं बी.एस.मुंजे, गणेश सावरकर, एल.वी.परांजपे और बी.बी. डोलकर की मन्त्रणा हुई थी उसमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ही संकल्प लिया गया था। स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिन्दू महासभा और आर.एस.एस. के नेतृत्व का योगदान कितना रहा होगा यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में यह तथ्य सामने आया कि उन्होंने स्वतन्त्रता सेनानियों के खिलाफ अदालत में गवाही तक दी हुई है। गवाही देने के इस प्रमाण को भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने ही देश के सामने रखा है। इस देश में मुस्लिम और अंग्रेज दोनों ही शासन कर चुके हैं। लेकिन मुस्लिम शासकों के खिलाफ उस तरह का आन्दोलन कभी नहीं हुआ जिस तरह का अंग्रेजों के खिलाफ हुआ है। मुस्लिम नेताओं का देश की आजादी के आन्दोलन में भी बराबर का योगदान रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ हुई लड़ाईयों में भी मुस्लिमों का योगदान सराहनीय रहा है अब्दुल हमीद जैसे कई नाम रिकॉर्ड पर हैं। आज भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के पारिवारिक रिश्ते मुस्लिमों के साथ हैं। कई बार ऐसे ही नेताओं की सूचीयां वायरल हो चुकी है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि आज का सारा हिन्दू मुस्लिम विवाद कुछ राजनीतिक कारणों के प्रतिफल से अधिक कुछ नहीं है। प्रश्न सत्ता में बने रहने का ही है।
आर.एस.एस. के बिना भाजपा की कल्पना करना भी संभव नहीं है। 2019 में आयी संघ की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक इसकी 84877 शाखाएं चल रही हैं जिनमें से 59266 प्रतिदिन चल रही है। दर्जनों इसके अनुषांगिक संगठन है। 1973 से तो इसका इतिहास लेखन प्रकोष्ठ भी चल रहा है जो इतिहास पर अपने दृष्टिकोण से काम कर रहा है। वीर सावरकर के बारे में पूर्व मन्त्री और वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी ने अपनी किताब में संघ को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। आज जिस तरह का नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है उसका अन्तिम परिणाम देश के लिये घातक होगा। क्योंकि हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा में मुस्लिम और अन्य कोई भी गैर हिन्दू शासन की मुख्य धारा में नहीं आता है। भारत एक बहुभाषी और बहुधर्मी देश है। मुस्लिम देश की दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी है। इसी बहुधर्मिता के कारण संविधान में सरकार का चरित्र धर्म निरपेक्षता का रखा गया है। यदि किसी भी आधार पर किसी भी धर्म के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया जायेगा तो उसका अन्तिम परिणाम फिर बंटवारा ही होगा यह एक कटु सत्य है।
भारत को धार्मिक देश बनाने की दिशा में जो प्रयास शुरू हुये हैं उन पर एक नजर डालना आवश्यक हो जाता है। 2014 में देश में भाजपा भ्रष्टाचार, काले धन और हर एक के हिस्से में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने के नाम पर सत्ता में आयी। लेकिन क्या इन मुद्दों पर कुछ हुआ शायद नहीं। 2014 के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गये आन्दोलन का संचालन आर.एस.एस. के हाथ में था। लोकपाल की नियुक्ति इस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा था। हर चुनाव में नये मुद्दे उछाले गये और पुराने को भुलाते गये। नोटबन्दी और करोना ने बहुत कुछ बदल दिया। करोना में ही तबलीगी समाज पर इसे फैलने का आरोप लगा। लव जिहाद और गौ रक्षा में भीड़ हिंसा तक सामने आयी। फिर तीन तलाक, धारा 370 और समान नागरिक संहिता के मुद्दे सामने आये। इन सारे मुद्दों के साये में सारे सार्वजनिक संस्थान निजी हाथों में चले गये। यह पहली सरकार है जिसके शासन में कोई नया सार्वजनिक संस्थान नहीं खुला। स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया तक में अदानी की सहभागिता हो गयी। आज देश का कर्ज जीडीपी के बराबर होने जा रहा है यह विश्व बैंक का आकलन है। 140 करोड़ की आबादी वाले देश में जब 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर निर्भर होने को बाध्य हो जायें तो वहां विकास के सारे दावों का सच अपने आप प्रश्नित हो जाता है। दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष का दावा और कृषि के लिये लाये गये तीन कानून क्या हकीकत बयां करते हैं यह अन्दाजा लगाया जा सकता है।
इस वस्तु स्थिति में वक्फ कानून में संशोधन लाकर जिस तरह से देश की दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी को छेड़ दिया गया है वह संविधान की धारा 26 पर सीधा हमला है। जिससे यह इंगित होता है कि सरकार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिये अपने कदम बढ़ाती जा रही है। जब संसद के नये भवन में सांसदों ने प्रवेश किया था तब उन्हें संविधान की जो प्रतियां दी गई थी उन में धर्मनिरपेक्ष शब्द प्रस्तावना से हटा दिया गया था। अब वक्फ संशोधन के खिलाफ जिस तरह का वातावरण बनता नजर आ रहा है यदि वह कन्ट्रोल न हुआ तों कई प्रदेशों में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बन जायेंगी। कांग्रेस शासित कुछ राज्य अपने ही भार से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच जायेंगे। कुछ ऐसी परिस्थितियों बनती नजर आ रही हैं जहां सरकार देश को धार्मिक राज्य घोषित करने का कदम उठा सकती है।

दो वर्षों में 5200 करोड़ का कर भार जनता पर डालकर भी नहीं सुधरी स्थिति

सुक्खू सरकार अपने दो वर्ष के कार्यकाल में 5225 करोड़ के कर्ज प्रदेश की जनता पर लगा चुकी है। यह सब तब हुआ है जब सरकार ने दोनों वर्ष कर मुक्त बजट दिये हैं। प्रदेश सरकार की वर्ष 2025-26 के लिये संभावित आय 42342.97 करोड़ रहने का अनुमान है। इसमें राज्य सरकार के अपने साधनों से 20291.46 करोड़ की आय रहेगी। केंद्र सरकार से विभिन्न मद्दों में 22051.51 करोड़ मिलेंगे। वर्ष 2025-26 के लिए कर्ज लेने की कुल सीमा 7000 करोड़ रहेगी। अभी वित्तीय वर्ष के पहले ही दिन सरकार को कर्ज लेना पड़ा है। वर्ष 2025-26 के लिये कुल राजस्व 48733.04 करोड़ रहने का अनुमान है। इस चालू वर्ष में पूंजीगत व्यय 8281.27 करोड़ अनुमानित है जबकि पिछले वर्ष 10276.98 करोड़ पूंजीगत व्यय के लिये थे। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि चालू वित्त वर्ष की स्थिति क्या रहने वाली है। इस वर्ष कर्ज और ब्याज की अदायगी पर पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा खर्च होगा।
मुख्यमंत्री ने जब दिसम्बर 2022 में सत्ता संभाली थी तब प्रदेश के लोगों को चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इस चेतावनी से यह समझ आता है कि मुख्यमंत्री को प्रदेश की कठिन वितीय स्थिति की जानकारी थी। यह जानकारी होते हुये सरकार ने अपने अवांच्छित खर्चे कम करने और वित्तीय संसाधन बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाये यह व्यवहारिक आकलन का विषय है। सरकार ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की जबकि पिछले सरकार इन नियुक्तियों से बची रही थी। इन नियुक्तियों के अतिरिक्त करीब दो दर्जन सलाहकार और ओएसडी नियुक्त कर लिये गये। ऐसे सेवानिवृत अधिकारियों को सलाहकार नियुक्त कर लिया जिन्हें स्वयं पिछली सरकार में भ्रष्ट होने का तमगा दिया था। संसाधन जुटाने के नाम पर कर और शुल्क बढ़ाये। आज अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान भी इस बढ़ौतरी से बचे नहीं है। तकनीकी महाविद्यालयों में बच्चों की रीवैल्युएशन फीस सीधे 500 से बढ़कर 1500 कर दी गयी है। कर और शुल्क इस कदर बढ़ाये गये हैं कि समाज का हर वर्ग उससे प्रभावित हुआ है। 77 लाख की आबादी वाले प्रदेश में जब 5200 करोड़ रूपया टैक्स के माध्यम से इकटठा किया जाएगा तो अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उस पर आम आदमी की प्रतिक्रिया क्या रही होगी?
अभी पंचायत महासंघ ने आरोप लगाया है कि पिछले चार माह से मनरेगा में कोई अदायगी नहीं हो रही है। लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारों के बिलों की अदायगी रुकी हुई है। अस्पतालों में मैडिकल सप्लायरों के बिल रुके पड़े हैं। कर्मचारियों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। इन्हीं कारणों से हिम केयर कार्ड का ऑपरेशन प्रभावित हुआ पड़ा है। यह सरकार कुछ गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी। लेकिन वित्तीय आंकड़ों के आईने से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार हर चीज भाषण में तो पूरी कर देगी लेकिन व्यवहार में नहीं कर पायेगी। इस वस्तु स्थिति में यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि सरकार को इसके लिये क्या कदम उठाने होंगे। सबसे पहले सरकार को अपने अवांच्छित खर्चें कम करने होंगे। सलाहकारों और विशेष कार्य अधिकारियों के नाम पर सेवानिवृत्त अधिकारियों को हटाकर यह काम सेवारत अधिकारियों से लेना होगा। सरकार जब अफसरों के लिये 40-40 लाख की गाड़ियों की खरीद करेगी तो उसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पडेगा। इस समय एक अधिकारी के पास जितने विभाग हैं उतनी ही गाड़ियां उसके पास हैं। हिमाचल में प्रदूषण की कोई समस्या नहीं है और न ही होने की संभावना है। ऐसे में ई-वाहनों की खरीद आज की आवश्यकता नहीं है यह बन्द होनी चाहिए। इस तरह अटल आदर्श विद्यालय और राजीव गांधी डे-बोर्डिंग स्कूलों की आज आवश्यकता नहीं है। हिमाचल में पर्यटन के क्षेत्र में सरकार की भूमिका केवल नियामक की रहनी चाहिये निवेशक की नहीं। आज सरकार को लेकर यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है। इस धारणा से बचना होगा। सरकार को यह समझना होगा की जनता पर जितना ज्यादा टैक्स भार बढ़ाया जायेगा उतनी निराशा जनता में फैलेगी। सरकार अपने खर्चे कम करके यदि जनता में कठिन वितीय स्थिति के नाम पर गारंटीयां पूरी न कर पाने के लिये खुले मन से क्षमा याचना कर लेगी तो जनता क्षमा भी कर देगी अन्यथा जनता का आक्रोश सब कुछ खत्म कर देगा।

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