क्या वक्फ संशोधन हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक सुनियोजित कदम है? यह सवाल इसलिय प्रसांगिक हो जाता है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा संघ परिवार का एक अनुषांगिक संगठन है। 1925 में विजयदशमी के दिन हुई इसकी प्रारंभिक बैठक में हेडगेवार के साथ हिन्दू महासभा के जिन चार नेताओं बी.एस.मुंजे, गणेश सावरकर, एल.वी.परांजपे और बी.बी. डोलकर की मन्त्रणा हुई थी उसमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ही संकल्प लिया गया था। स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिन्दू महासभा और आर.एस.एस. के नेतृत्व का योगदान कितना रहा होगा यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में यह तथ्य सामने आया कि उन्होंने स्वतन्त्रता सेनानियों के खिलाफ अदालत में गवाही तक दी हुई है। गवाही देने के इस प्रमाण को भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने ही देश के सामने रखा है। इस देश में मुस्लिम और अंग्रेज दोनों ही शासन कर चुके हैं। लेकिन मुस्लिम शासकों के खिलाफ उस तरह का आन्दोलन कभी नहीं हुआ जिस तरह का अंग्रेजों के खिलाफ हुआ है। मुस्लिम नेताओं का देश की आजादी के आन्दोलन में भी बराबर का योगदान रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ हुई लड़ाईयों में भी मुस्लिमों का योगदान सराहनीय रहा है अब्दुल हमीद जैसे कई नाम रिकॉर्ड पर हैं। आज भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के पारिवारिक रिश्ते मुस्लिमों के साथ हैं। कई बार ऐसे ही नेताओं की सूचीयां वायरल हो चुकी है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि आज का सारा हिन्दू मुस्लिम विवाद कुछ राजनीतिक कारणों के प्रतिफल से अधिक कुछ नहीं है। प्रश्न सत्ता में बने रहने का ही है।
सुक्खू सरकार अपने दो वर्ष के कार्यकाल में 5225 करोड़ के कर्ज प्रदेश की जनता पर लगा चुकी है। यह सब तब हुआ है जब सरकार ने दोनों वर्ष कर मुक्त बजट दिये हैं। प्रदेश सरकार की वर्ष 2025-26 के लिये संभावित आय 42342.97 करोड़ रहने का अनुमान है। इसमें राज्य सरकार के अपने साधनों से 20291.46 करोड़ की आय रहेगी। केंद्र सरकार से विभिन्न मद्दों में 22051.51 करोड़ मिलेंगे। वर्ष 2025-26 के लिए कर्ज लेने की कुल सीमा 7000 करोड़ रहेगी। अभी वित्तीय वर्ष के पहले ही दिन सरकार को कर्ज लेना पड़ा है। वर्ष 2025-26 के लिये कुल राजस्व 48733.04 करोड़ रहने का अनुमान है। इस चालू वर्ष में पूंजीगत व्यय 8281.27 करोड़ अनुमानित है जबकि पिछले वर्ष 10276.98 करोड़ पूंजीगत व्यय के लिये थे। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि चालू वित्त वर्ष की स्थिति क्या रहने वाली है। इस वर्ष कर्ज और ब्याज की अदायगी पर पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा खर्च होगा।
मुख्यमंत्री ने जब दिसम्बर 2022 में सत्ता संभाली थी तब प्रदेश के लोगों को चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इस चेतावनी से यह समझ आता है कि मुख्यमंत्री को प्रदेश की कठिन वितीय स्थिति की जानकारी थी। यह जानकारी होते हुये सरकार ने अपने अवांच्छित खर्चे कम करने और वित्तीय संसाधन बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाये यह व्यवहारिक आकलन का विषय है। सरकार ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की जबकि पिछले सरकार इन नियुक्तियों से बची रही थी। इन नियुक्तियों के अतिरिक्त करीब दो दर्जन सलाहकार और ओएसडी नियुक्त कर लिये गये। ऐसे सेवानिवृत अधिकारियों को सलाहकार नियुक्त कर लिया जिन्हें स्वयं पिछली सरकार में भ्रष्ट होने का तमगा दिया था। संसाधन जुटाने के नाम पर कर और शुल्क बढ़ाये। आज अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान भी इस बढ़ौतरी से बचे नहीं है। तकनीकी महाविद्यालयों में बच्चों की रीवैल्युएशन फीस सीधे 500 से बढ़कर 1500 कर दी गयी है। कर और शुल्क इस कदर बढ़ाये गये हैं कि समाज का हर वर्ग उससे प्रभावित हुआ है। 77 लाख की आबादी वाले प्रदेश में जब 5200 करोड़ रूपया टैक्स के माध्यम से इकटठा किया जाएगा तो अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उस पर आम आदमी की प्रतिक्रिया क्या रही होगी?
अभी पंचायत महासंघ ने आरोप लगाया है कि पिछले चार माह से मनरेगा में कोई अदायगी नहीं हो रही है। लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारों के बिलों की अदायगी रुकी हुई है। अस्पतालों में मैडिकल सप्लायरों के बिल रुके पड़े हैं। कर्मचारियों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। इन्हीं कारणों से हिम केयर कार्ड का ऑपरेशन प्रभावित हुआ पड़ा है। यह सरकार कुछ गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी। लेकिन वित्तीय आंकड़ों के आईने से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार हर चीज भाषण में तो पूरी कर देगी लेकिन व्यवहार में नहीं कर पायेगी। इस वस्तु स्थिति में यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि सरकार को इसके लिये क्या कदम उठाने होंगे। सबसे पहले सरकार को अपने अवांच्छित खर्चें कम करने होंगे। सलाहकारों और विशेष कार्य अधिकारियों के नाम पर सेवानिवृत्त अधिकारियों को हटाकर यह काम सेवारत अधिकारियों से लेना होगा। सरकार जब अफसरों के लिये 40-40 लाख की गाड़ियों की खरीद करेगी तो उसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पडेगा। इस समय एक अधिकारी के पास जितने विभाग हैं उतनी ही गाड़ियां उसके पास हैं। हिमाचल में प्रदूषण की कोई समस्या नहीं है और न ही होने की संभावना है। ऐसे में ई-वाहनों की खरीद आज की आवश्यकता नहीं है यह बन्द होनी चाहिए। इस तरह अटल आदर्श विद्यालय और राजीव गांधी डे-बोर्डिंग स्कूलों की आज आवश्यकता नहीं है। हिमाचल में पर्यटन के क्षेत्र में सरकार की भूमिका केवल नियामक की रहनी चाहिये निवेशक की नहीं। आज सरकार को लेकर यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है। इस धारणा से बचना होगा। सरकार को यह समझना होगा की जनता पर जितना ज्यादा टैक्स भार बढ़ाया जायेगा उतनी निराशा जनता में फैलेगी। सरकार अपने खर्चे कम करके यदि जनता में कठिन वितीय स्थिति के नाम पर गारंटीयां पूरी न कर पाने के लिये खुले मन से क्षमा याचना कर लेगी तो जनता क्षमा भी कर देगी अन्यथा जनता का आक्रोश सब कुछ खत्म कर देगा।










सरकार के लिये मूल सूत्र बन गया। राजनेताओं के साथ ही प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही ने भी स्वर मिला दिया है। किसी ने भी इमानदारी से यह नहीं सोचा कि उद्योगों के लिये प्रदेश में न तो कच्चा माल है और न ही पर्याप्त उपभोक्ता हैं। केवल सरकारी सहायता के सहारे ही प्रदेश में उद्योग आये। जैसे-जैसे सरकारी सहायता में कमी आयी तो उद्योगों का प्रवाह भी कम हो गया। इन्हीं उद्योगों की सहायता में प्रदेश का वित्त निगम और खादी बोर्ड जैसे कई अदारे खत्म हो गये। उद्योग विभाग के एक अध्ययन के मुताबिक प्रदेश में स्थापित हुये उद्योगों को कितनी सब्सिडी राज्य और केंद्र सरकार दे चुकी है उतना उद्योगों का अपना निवेश नहीं है। रोजगार के क्षेत्र में आज भी यह उद्योग सरकार के बराबर रोजगार नहीं दे पाये हैं। जबकि हर सरकार अपने-अपने कार्यकाल में नई-नई उद्योग नीतियां लेकर आयी है।
हिमाचल में गैर कृषकों को सरकार की अनुमति के बिना जमीन खरीदने पर प्रतिबन्ध है। जहां-जहां उद्योग क्षेत्र स्थापित हुये थे वहां श्रमिकों और उद्योग मालिकों को आवास उपलब्ध करवाने के लिये भवन निर्माणों की नीति कब बिल्डरों तक पहुंच गयी किसी को पता भी नहीं चला। जबकि धारा 118 की उल्लंघना पर चार आयोग जांच कर चुके हैं और एक रिपोर्ट पर भी अमल नहीं हुआ है। 1977 के दौर में जो उद्योग आये थे उनमें से शायद एक प्रतिशत भी आज उपलब्ध नहीं हैं। पूरा होटल सरकारी जमीन पर बन जाने के बाद जब चर्चा उठी तो सरकारी जमीन का प्राइवेट जमीन के साथ तबादला कर दिया गया। लेकिन ऐसी सुविधा कितनों को मिली यह चर्चा उठाने का मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि आज ईमानदारी से सारी नीतियों पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत है। पिछली सरकार के दौरान एक हजार करोड़ निवेश ऐसे भवनों पर कर दिये जाने का आरोप है जो आज बेकार पड़े हैं यह आरोप लगा है। लेकिन इसी के साथ आज जो निवेश एशियन विकास बैंक के कर्ज के साथ किया जा रहा है क्या वह कभी लाभदायक सिद्ध हो पायेगा शायद नहीं। इसलिये आज हर सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि यह बढ़ता कर्जभार पूरे भविष्य को गिरवी रखने का कारण बन जायेगा।
आज जो कैग रिपोर्ट वर्ष 2023-24 की आयी है उसमें यह कहा गया है कि इस सरकार ने 2795 करोड़ रूपये कहां खर्च कर दिये हैं इसका कोई जवाब नहीं दिया जा सकेगा। कैग में पहली बार ऐसी टिप्पणी आयी है कि शायद यह निवेश उन उद्देश्यों के लिये खर्च नहीं किया गया है जिनके लिये यह तय था। कैग में यह टिप्पणी भी की गयी है कि 2023 में आयी आपदा के लिये सरकार ने 1209.18 करोड़ खर्च किया है जिसमें से केन्द्र सरकार ने 1190.35 करोड़ दिया है। आपदा राहत के इन आंकड़ों से सरकार के दावों और आरोपों पर जो गंभीर प्रश्न चिन्ह लग जाता है उसके परिदृश्य में राज्य सरकार केन्द्र सरकार से कैसे सहायता की उम्मीद कर सकती है। 2795 करोड़ का कोई हिसाब न मिलना अपने में प्रशासन पर एक गंभीर आरोप हो जाता है। एग्रो पैकेजिंग कॉरपोरेशन का एक समय विशेष ऑडिट करवाया गया था उस ऑडिट रिपोर्ट पर प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। क्या आज भी सरकार ऐसा करने का साहस करेगी? जब तक सरकार का वित्तीय प्रबंधन प्रश्नित रहेगा तब तक कोई सहायता मिल पाना कैसे संभव होगा।





जब से सारी व्यवसायिक शिक्षा के लिये प्लस टू की पात्रता बना दी गयी है तब से एक नयी प्रतिस्पर्धा पैदा हो गयी है। इस प्रतिस्पर्धा को प्राईवेट कोचिंग सैन्टरों ने और बढ़ा दिया है। इन्हीं कोचिंग सैन्टरों में आत्महत्याएं बढ़ती जा रही है। यह कोचिंग इतने महंगे हो गये हैं कि आम आदमी इन सैन्टरों में बच्चों को कोचिंग दिलाने की सोच भी नहीं सकता। फिर नीट की प्रतियोगी परीक्षा में जिस तरह से पेपर लीक का प्रकरण घटा है और उसमें इन प्राईवेट संस्थानों की भूमिका सामने आयी है वह अपने में ही एक गंभीर संकट का संकेत है। इसलिये इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि एक भीख मांगने वाला भी चाहता है कि उसके बच्चे को भी अच्छी शिक्षा मिले और वह कुछ बने।
शिक्षा केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों की सांझी सूची का विषय है। दोनों इस पर कानून बना सकते हैं। यदि केन्द्र और राज्य के कानून में कोई टकराव आये तब राज्य के कानून पर केन्द्र का कानून हावी होता है। हर राज्य सरकार ने अपने-अपने शिक्षा बोर्ड बना रखे हैं। जो पाठयक्रम और परीक्षा का आयोजन करते हैं। तकनीकी शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालय भी गठित है। केन्द्र सरकार ने भी शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालय गठित कर रखे हैं। पाठय पुस्तकों के लिये एन.सी.ई.आर.टी. गठित है। लेकिन यह सब होते हुये भी शिक्षा केन्द्र और राज्य दोनों का विषय बनी हुई है। इसी के कारण व्यवसायिक शिक्षा के लिये जे.ई.ई. और नीट की प्रतियोगिता परीक्षाएं आयोजित की जा रही है। इसलिये यह विचारणीय हो जाता है कि जब इन प्रतियोगी परीक्षाओं की मूल शैक्षणिक योग्यता प्लस टू है तब यदि पूरे देश में प्लस टू का पाठयक्रम ही एक जैसा कर दिया जाये और परीक्षा का प्रश्न पत्र भी एक ही हो तब इन प्रतियोगी परीक्षाओं की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। जब प्रतियोगी परीक्षा के लिये एक ही प्रश्न पत्र होता है तब उसी गणित से प्लस टू के लिये भी एक ही प्रश्न पत्र की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती।
इस समय पूरे देश में एक ही पाठयक्रम एक ही प्रश्न पत्र की व्यवस्था जब तक नहीं की जाती है तब तक इस प्रणाली में सुधार नहीं किया जा सकता। इस शिक्षा को व्यापार बनाये जाने से रोकने की आवश्यकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य हर आदमी की बुनियादी जरूरत है। इसमें जब तक प्राईवेट सैक्टर का दखल रहेगा तब तक शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्याएं और नकली दवायें तथा अस्पतालों में मरीजों का शोषण नहीं रोका जा सकता। इन क्षेत्रों में प्राईवेट सैक्टर का बढ़ता दखल एक दिन पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देगा। समय रहते इस पर एक सार्वजनिक बहस आयोजित की जानी आवश्यक है।