बिहार विधानसभा चुनावों का देश की राजनीति पर दुरगामी प्रभाव पड़ेगा यह निश्चित है। बल्कि इन चुनावों सेे देश का राजनीतिक चरित्र ही बदल जायेगा यह कहना ज्यादा सही होगा। क्योंकि इन चुनावों से पूर्व देश के चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर बहुत ही गंभीर आरोप लग चुके हैं। इन आरोपों का व्यवहारिक प्रभाव केंद्र सरकार और शीर्ष न्यायपालिका पर भी देखने को मिल गया है। केंद्र सरकार चुनाव आयोग के साथ खड़ी हो गयी है और शीर्ष अदालत ने उस याचिका को अस्वीकार कर दिया है जिसमें इन आरोपों की जांच के लिये एक एसआईटी गठित करने की मांग की गयी थी। जब चुनाव आयोग शीर्ष अदालत और केंद्र सरकार सब एक साथ विश्वसनीयता के संकट में आ जाये तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सब का अंतिम परिणाम क्या होगा। बिहार में हुये एस आई आर पर ही इन चुनावों से पूर्व शीर्ष अदालत कोई अंतिम फैसला नहीं दे पायी है इसको आम आदमी कैसे देखेगा यहां अंदाजा लगाया जा सकता है। बिहार चुनावों की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने बिहार की 75 लाख महिलाओं के खातों में दस-दस हजार ट्रांसफर करने का फैसला लिया है। इससे प्रधानमंत्री का ‘चुनावी रेवड़ी’ संस्कृति पर भी व्यवहारिक पक्ष सामने आ जाता है। पिछले लोकसभा चुनावों से पूर्व राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का परिणाम था कि भाजपा अपने दम पर केंद्र में सरकार नहीं बना पायी उसे नीतीश और नायडू का सहयोग लेना पड़ा है। लोकसभा चुनावों के बाद हुये हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर इतना कुछ देश के सामने लाकर खड़ा कर दिया कि इसके कारण राहुल गांधी को चुनाव आयोग पर हमला बोलने के लिये पर्याप्त सामग्री मिल गयी। राहुल गांधी के चुनाव आयोग के खिलाफ जिस तरह के प्रमाणिक साक्ष्य जुटाकर पत्रकार वार्ताओं के माध्यम से हमला बोला है उससे पूरे प्रदेश में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ अभियान चल निकला है। पिछले ग्यारह वर्षों में केंद्र सरकार ने जो कुछ किया है उस पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सारे चुनावी वायदे आज सवालों के घेरे में आ खड़े हुये हैं। बेरोजगारी और महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड ़दी है। अभी सरकार ने जीएसटी संशोधन से जो राहत आम आदमी को पहुंचाने का फैसला लिया है उसका आम आदमी को कोई लाभ नहीं मिला। क्योंकि बाजार में वस्तुओं के दाम व्यवहारिक रूप से कम नहीं हो पाये हैं। इस पृष्ठभूमि में हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव हर राजनीतिक दल, नेता और आम आदमी सबकी व्यक्तिगत परीक्षा होगी यह तय है। बिहार में कुल 7.4 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें से 1.63 करोड़ मतदाता वह हैं जो बीस से अठाईस वर्ष के हैं और चौदह लाख वह हैं जो पहली बार वोट डालेंगे। यह वह लोग हैं जो बेरोजगारी से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। जिनके लिये अब तक चुनावी वायदे आज सत्ता से सवाल बन गये हैं। बिहार में राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा में यह लोग ही सबसे बड़े भागीदार थे। इनका भविष्य ही सबसे ज्यादा दाव पर लगा है। इसी युवा ने नेपाल और बांग्लादेश में सत्ता के खिलाफ सफल लड़ाई लड़ी है। इसलिये आज बिहार चुनाव में आम आदमी के सामने सारे राष्ट्रीय प्रश्न खुलकर खड़े हैं। इन चुनावों के परिणाम देश की राजनीतिक स्थिति को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा करने वाले हैं जिसका परिणाम दूरगामी होगा।