Monday, 15 December 2025
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व्यवस्था परिवर्तन ने पंहुचाया व्यवस्था अतिक्रमण तक

सुक्खू सरकार ने जब प्रदेश की सत्ता संभाली थी तब शासन का सूत्र जनता के सामने व्यवस्था परिवर्तन का रखा था। इस व्यवस्था परिवर्तन को कभी भी परिभाषित नहीं किया गया था। जबकि देश की व्यवस्था संविधान के तहत चलती है। जिसमें संसद द्वारा समय-समय पर संशोधन भी हुये हैं। संविधान के तहत स्थापित प्रशासन को बचाने के लिए रूल्स ऑफ बिजनेस बने हुये हैं। जिसमें एक छोटे से छोटे कर्मचारी से लेकर मुख्य सचिव और मंत्री परिषद तक सबके अधिकार क्षेत्र पूरी तरह से परिभाषित है एक स्थापित नियमावली है। फिर इस सबसे ऊपर जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक लाज सर्वाेपरि रहती है। इस व्यवस्था में से आप क्या बदलना चाहते थे वह अभी तक प्रदेश की जनता को स्पष्ट नहीं हो पाया है उसे समझाने का प्रयास करें। प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को इसलिये सत्ता सौंपी थी वह भाजपा से संतुष्ट नहीं थी। फिर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान सत्ता में आने के लिये दस गारंटियां दे रखी थी। इस सब पर भरोसा करते हुये जनता ने आपको सत्ता सौंप दी। सत्ता में आते ही आपने प्रदेश की जनता को यह चेतावनी देकर डरा दिया कि राज्य के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इस चेतावनी से लगा कि यह सरकार किसी भी तरह की फिजुल खर्ची नहीं करेगी। लेकिन व्यवहार में आपके खर्चे पिछली सरकार से कई गुना बढ़ गये। इन खर्चों को पूरा करने के लिये आम आदमी पर परोक्ष/अपरोक्ष करों का बोझ डालने और कर्ज लेने की नीति अपना ली। दो वर्षों में 5200 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व प्रदेश की जनता से उगवाया। कर्ज लेने में अब पुरानी सारी सीमाएं लांघ गये। जब आपने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश 76000 करोड़ के कर्ज के नीचे था। प्रदेश का कर्ज आज एक लाख करोड़ से बढ़ गया है। यह कर्ज और जनता से वसूला गया राजस्व कहां निवेश हुआ है शायद इसकी कोई जानकारी आपका तंत्र जनता के सामने रखने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि आप कर्मचारियों के हर वर्ग को समय पर वेतन और पैन्शनरों को पैन्शन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। आज आपको केंद्र से प्रदेश की कर्ज सीमा बढ़ाने का आग्रह करना पड़ रहा है। कंेद्र ने आपको ओ.पी.एस. की जगह यू.पी.एस. अपनाने का सुझाव दिया है। यही स्थिति अन्य गारंटीयों की है हरेक में किन्तु-परन्तु जोड़कर उनका दायरा कम करने का प्रयास किया जा रहा है। बेरोजगारी का मानक बढ़ता जा रहा है। यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस को प्रदेश की वितीय स्थिति की जानकारी नहीं थी? क्या कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिये आम आदमी से झूठ बोला था। क्या जनता में एक भी गारंटी व्यवहारिक शक्ल ले पायी है शायद नहीं। सारी मंत्री परिषद वरिष्ठ विधायकों की है क्या इनको सदन में पारित होते रहे बजटों की समझ नहीं थी। यह स्थापित नियम है कि राज्य सरकारों को अपना राजस्व व्यय अपने ही साधनों से पूरा करना पड़ता है। केवल विकासात्मक आय बढ़ाने वाले कार्यों के लिये ही एक सीमा तक कर्ज लेने का प्रावधान है। जो राज्य कर्ज सीमा बढ़ौत्तरी के लिये सुप्रीम कोर्ट गये थे उन्हें शीर्ष अदालत ने इन्कार कर दिया है। इस वित्तीय स्थिति को सामने रखते आने वाला समय और कठिन होने वाला है। लेकिन सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर जो फैसले आज तक ले रखे हैं वह सरकार पर भारी पढ़ने जा रहे हैं। आज सरकार के मुख्य सचिव के सेवाविस्तार को उच्च न्यायालय में चुनौती मिली हुई है क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सीबीआई ने चला रखा है। सरकार के मुख्य सलाहकारों के खिलाफ मुख्यमंत्री स्वयं बतौर विपक्षी विधायक सदन में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा चुके हैं। पावर कारपोरेशन में व्यापक भ्रष्टाचार ने एक व्यक्ति की जान ले ली है और इस पर सारा शीर्ष प्रशासन उच्च न्यायालय में नंगा हो गया है। प्रशासन में हर स्तर पर व्यवस्था का अतिक्रमण हो रहा है। भ्रष्टाचार को संरक्षण देना सरकार के साथ प्रदेश के स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव डाल रहा है। आज सरकार अपने ही कर्ज भार से दबने के कगार पर पहुंच चुकी है। जिस तरह के आरोप शिमला के एस.पी. ने पत्रकार वार्ता में लगाये हैं उनका जवाब भी देर सवेर जनता की अदालत में तो देना ही पड़ेगा। मुख्यमंत्री को सोचना होगा कि भ्रष्टाचार को संरक्षण देना व्यवस्था परिवर्तन नहीं अतिक्रमण होता है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद उठे सवालों का जवाब कब आयेगा?

पहलगाम की आंतकी घटना के बाद पूरे देश में आतंकवाद के खिलाफ भयंकर रोष था। इस आतंकवाद को सीमा पार से संचालित करार दिये जाने के बाद पूरे विपक्ष ने सरकार को खुला समर्थन देते हुये इससे निपटने के लिये प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया। बल्कि जब सरकार ने इस पर जवाबी कारवाई करने में कुछ समय लगा दिया तब इस देरी के लिए प्रश्न भी पूछे गये। अन्त में सरकार ने सैन्य कारवाई करने का फैसला लिया। पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया। इस कारवाई में सेना ने जो समझ और साहस दिखाया उस पर पूरे देश ने गर्व महसूस किया। लेकिन इस शुरुआत के चौथे दिन ही जब इसमें सीज फायर घोषित कर दी गयी तब देश को इस पर आश्चर्य हुआ क्योंकि भारतीय सेना इसमें लगातार सफल होती जा रही थी तब ऐसे में भारत द्वारा इस सीज फायर की घोषणा करना या इस पर सहमत होना अटपटा सा लगा। लेकिन जब इस युद्ध विराम का श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लिया और इसकी सूचना भी भारत से पहले दे दी तब से पूरी स्थितियों में एक मोड़ आ गया है। क्योंकि ट्रंप ने इस दखल का तीन बार अपने ब्यानों में श्रेय ले लिया। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने जब सीज फायर के बाद देश को संबोधित किया तब उन्होंने एक बार भी अपने संबोधन में ट्रंप का जिक्र तक नहीं किया है विपक्ष ने इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाने या संसद का सत्र बुलाकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है लेकिन सरकार ऐसा नही कर रही है। अपने देश और संसद के सामने स्थिति स्पष्ट करने की बजाये सरकार ने सांसदों का एक डेलीगेट विभिन्न देशों में भेजने का निर्णय लिया जो वहां पर भारत का पक्ष रखेंगे।
ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है देश और संसद या सर्वदलीय बैठक में स्थिति स्पष्ट करने की बजाये विदेशों में अपना पक्ष रखने का विकल्प क्यों चुना गया। क्योंकि जब आई एम एफ ने पाकिस्तान को एक बिलियन डॉलर का ऋण पहलगाम की घटना के बाद स्वीकार किया तब एक देश ने इसका विरोध नहीं किया। जबकि इस कमेटी में भारत समेत पच्चीस देश सदस्य थे। भारत ने इसके विरोध में मतदान करने की बजाये बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। किसी भी देश का समर्थन इस बैठक में हासिल क्यों नहीं कर पाया इसका जवाब भारत कैसे देगा? भारत-पाक के रिश्ते इस आतंक को लेकर तो देश के विभाजन के बाद से ही बिगड़ने शुरू हो गये थे। हर आतंकी घटना में पाक की परोक्ष/अपरोक्ष में भूमिका रही है। फिर प्रधानमंत्री मोदी पिछले ग्यारह वर्षों में इस विषय पर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को क्यों नहीं समझा पाये हैं? जबकि भारत तो विश्व गुरु होने का दावा करता आया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जिस तरह से विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री और उनके परिवार को ट्रोल किया गया उसका क्या जवाब है? कर्नल सोफिया कुरैशी को जिस भाषा में मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने अपशब्द कहे हैं उसका अदालत ने तो कड़ा संज्ञान ले लिया लेकिन भाजपा संगठन की इस बारे में आज तक खामोशी का क्या जवाब है। प्रधानमंत्री इस ट्रोल पर क्यों खामोश हैं?
अभी जो सांसद विदेश डैलीगेशन में भेजे जा रहे हैं उनके चयन में उनके दलों को विश्वास में क्यो नहीं लिया गया? जो नाम दलों ने भेजे उनकी जगह सरकार ने दूसरे ही लोगों का चयन क्यों कर लिया? क्या इसमें दलों की सहमति नहीं रहनी चाहिये थी। क्या इसे राजनीति के आईने में नही देखा जायेगा। जब विदेश में इस ट्रोल को लेकर पूछा जायेगा तो क्या जवाब दिया जायेगा? क्योंकि यह वीडियोज तो पूरे विश्व में देखे जा रहे होंगे। पाक पर कारवाई का विदेश मंत्री का वीडियो जिसमें वह कह रहे हैं कि हमने हम्लों की सूचना पहले ही पाकिस्तान को दे दी थी। इसका क्या जवाब दिया जायेगा। आज सबसे पहले अपने देश की जनता, सभी राजनीतिक दलों और संसद के सामने सारी स्थितियां स्पष्ट की जानी चाहिये थी क्योंकि पूरा देश सरकार और सेना के साथ खड़ा रहा है। इसलिये ऑपरेशन सिंदूर के बाद उठे सवालों पर यहां जवाब दिया जाना आवश्यक हो जाता है।

डोनाल्ड ट्रंप के दखल के मायने क्या हैं?

पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुये भारत ने पाक स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल दागे और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके लिये भारतीय सेना और देश का राजनीतिक नेतृत्व दोनों साधुवाद के पात्र हैं। भारत ने पाक के अन्दर घुसकर यह कारवाई की है। क्योंकि यह आतंकवाद पाक से संचालित और पोषित था। भारत-पाक के रिश्ते देश के विभाजन के समय से ही असहज हो गये थे। जब 1947 में ही यहां के कबाईलियों ने जम्मू-कश्मीर को अपने साथ मिलाने के लिये उस पर आक्रमण कर दिया था। तब वहां के राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। क्योंकि विभाजन के बाद यहां के राजाओं को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान किसी एक में विलय होने की छूट दी गयी थी। तब 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ और परिणामस्वरुप जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई भाग भारत का हिस्सा बन गया और पाक अधिकृत आजाद कश्मीर बन गया और उसे जनमत संग्रह से यह फैसला करने का अधिकार मिल गया कि वह किसके साथ जाना चाहता है। यह जनमत संग्रह कभी नहीं हुआ फिर भी भारत ने उसे विभाजन रेखा मान लिया। लेकिन अब आजाद कश्मीर तब से अब तक दोनों देशों के बीच एक समस्या बनकर खड़ा है। पाक इस क्षेत्र को अपने साथ मिलाने के लिये हर समय युद्ध और आतंकी वारदातों को प्रोत्साहित और संचालित करता रहता है। 1960 के दशक में दोनों देशों के बीच बड़े तनाव का परिणाम 1965 की लड़ाई है जिसमें पाकिस्तान हारा। इस हार के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने के ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया। इसका परिणाम 1971 के पाक विभाजन के रूप में सामने आया और शिमला समझौता हुआ।
लेकिन 1987 के चुनावों के बाद फिर हिंसा का दौर शुरू हो गया। कई उग्रवादी संगठन खड़े हो गये जिनमें जे.के.एल.एफ., लश्कर-ए तैयबा और एल.ई.टी प्रमुख है परिणामस्वरूप 1999 में दस सप्ताह तक संघर्ष चला। 2001 में संसद पर हमला हुआ जिसमें पांच आतंकी और 14 अन्य मारे गये। फिर 2008 में मुंबई में 166 लोग मारे गये। 2019 में सीआरपीएफ के 40 पुलिसकर्मी मारे गये। 2019 के अन्त में टी.आर.एफ. सामने आ गया और अब पहलगाम में 26 लोग मारे गये। यह कुछ मुख्य घटनाओं का विवरण है जो यह प्रमाणित करता है कि आतंकवाद लगातार दहशत का कारण बना रहा है। यह सही है कि हमारी सेनाओं ने हर बार सफलतापूर्वक इस आतंक को कुचला है। लेकिन यह अभी तक किसी न किसी शक्ल में सर उठाता ही रहा है। यह माना जा रहा है कि जब तक आजाद कश्मीर का स्थायी हल नहीं हो जाता है तब तक आतंकी घटनाएं किसी न किसी शक्ल में घटती ही रहेंगी। इस बार जिस तरह से पूरे विपक्ष में सरकार को समर्थन दिया और सरकार की ओर से यह संकेत और संदेश रहे कि अब आजाद कश्मीर भारत का हिस्सा बना दिया जायेगा उससे पूरा देश सेना के साथ खड़ा रहा। सेना लगातार सफल होती जा रही थी। लेकिन इस सफलता के बीच जिस तरह से युद्ध विराम घोषित हो गया और उस पर भी सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसकी सूचना दी यह अपने में एक नये संकट का संकेत है। क्योंकि इससे यह लगता है कि अमेरिका इसे एक अर्न्तराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका का यह दखल कई अनकहे सवालों को जन्म दे जाता है। वह सारे सवाल जो पृष्ठभूमि में चले गये थे वह अब फिर से सामने आ जायेंगे। प्रधानमंत्री मोदी इस पर अभी तक चुप हैं। राहुल गांधी ने पत्र लिखकर सर्वदलीय बैठक और संसद का सत्र बुलाने की मांग की है। प्रधानमंत्री को संसद के सामने अमेरिका के दखल का खुलासा रखना चाहिये। क्योंकि देश ने इस ऑपरेशन में जान और माल की हानि झेली है। क्योंकि देश से यह वायदा किया गया था कि आतंक का स्थायी हल करके रहेंगे। इस हल के बिना युद्ध विराम क्यों आवश्यक हो गया यह देश के सामने रखना ही पड़ेगा।

अपने ही उठाये सवालों में उलझे मोदी

पहलगाम आतंकी हमले के लिये पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने और उससे बदला लेने के जिस तरह के संकल्प प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री ने देश के सामने लिये हैं उसके मुताबिक तो अब तक बहुत कुछ घट जाना चाहिये था। लेकिन कुछ लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाने के अतिरिक्त अभी तक और कुछ नहीं हुआ है। पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी इस चूक को स्वीकारने के बाद भी इसके लिये न तो किसी को चिन्हित किया गया और न ही किसी को दण्डित किया गया। जबकि इस चूक ने 28 लोगों की जान ले ली है। यही नहीं इस घटना के बाद जिस तरह से कुछ मीडिया मंचों ने इसमें हिन्दू-मुस्लिम का वर्ग भेद खड़ा करते हुये जम्मू-कश्मीर के हर मुसलमान को इसके लिये जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया वह अपने में बहुत ही गंभीर हो जाता है। फिर एक यू टयूब चैनल 4 पीएम न्यूज़ और लोक गायिका नेहा ठाकुर के खिलाफ मामले दर्ज किये गये उससे कुछ और ही संकेत उभरते हैं। इस सारे परिदृश्य को समझने के लिये कुछ और सवाल उठाने आवश्यक हो जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कभी संघ के प्रचारक हुआ करते थे। प्रचारक से वह चौदह वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री रहे उनके शासनकाल में जिस तरह की स्थितियां गुजरात में बन गयी थी उनके साथ में अमेरिका ने उन्हें अपने यहां आने का वीजा नहीं दिया था। लेकिन जब मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन गये तब अमेरिका से उनके रिश्ते किस तरह के रहे यह पूरा देश जानता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह भाजपा के पर्याय हो गये। मोदी है तो मुमकिन है यह संज्ञा उनको दी गयी। एक व्यक्ति के जीवन में चौदह वर्ष मुख्यमंत्री और फिर ग्यारह वर्ष प्रधानमंत्री होना अपने में ही एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन आज उसी प्रधानमंत्री के काल में भाजपा अपना नया अध्यक्ष नहीं बना पा रही है। प्रचारक से प्रधानमंत्री तक पहुंचे मोदी के ही काल में संघ की भाजपा के लिये आवश्यकता पर भी सवाल उठे हैं और आज तक इन सवालों का कोई जवाब नहीं आ पाया है। यहां यह भी जिक्र करना आवश्यक हो जाता है कि जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब केन्द्र की कांग्रेस सरकार से सार्वजनिक मंचों पर गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, काला धन, डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरने और आतंकवाद पर जिस भाषा में सवाल पूछते थे आज भी वही सवाल उसी भाषा में मोदी और उनकी सरकार से जवाब मांग रहे हैं। उनके द्वारा पूछे गये हर सवाल का वीडियो वायरल हो रहा है। आज देश की आर्थिक स्थिति और विकास पर मोदी सरकार का हर दावा वहां आकर खोखला हो जाता है जब आज भी 140 करोड़ के देश में 80 करोड़ लोग अपने राशन तक का जुगाड़ न कर पा रहे हों। उन्हें सरकार के राशन पर निर्भर रहना पड़ रहा हो। इस वस्तुस्थिति में यदि पहलगाम प्रकरण पर हिन्दू-मुस्लिम करने के प्रयासों पर गंभीरता से विचार किया जाये तो उसकी गहराई में देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सच ही सामने आता है। मोदी के प्रधानमंत्री के अब तक के कार्यकाल पर यदि नजर डाली जाये तो इस दौरान उनका हर फैसला ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकार पर निर्भर करने का रहा है ताकि यह लोग ध्वनि मत से उनके फैसले का समर्थन करते रहें। लेकिन आज देश मोदी से उन्हीं की भाषा में उनके ही सवालों को उनके आगे परोस रहा है। इसलिये पहलगाम और वक्फ संशोधन पर उठते सवालों के परिदृश्य में यह नहीं लगता है कि सरकार कोई और बड़ी कारवाई करके देश का बिना शर्त समर्थन हासिल कर पायेगी। क्योंकि भ्रष्टाचार के जिस आन्दोलन के सहारे भाजपा केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई थी आज उस आन्दोलन के केन्द्रिय सवाल 2G स्पैक्ट्रम और कॉमनवैल्थ घोटाले इस सरकार में बुरी तरह से बेनकाब हो गये हैं।

पहलगाम-जवाब मांगते कुछ सवाल

पहलगाम की आतंकी घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। आतंकियों ने 28 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। इस घटना से पूरा देश स्तब्ध और रोष में है। हर स्वर इसका बदला लेने के लिये आतुर है। हर आदमी इस घटना की निंदा कर रहा है और आतंकियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहा है। यह हमला एक सरकार पर नहीं बल्कि पूरे देश पर है। इस समय पूरा देश सरकार के साथ खड़ा है। विपक्ष ने भी राजनीति से ऊपर उठकर सरकार के इस दिशा में उठने वाले हर कदम का पूरा समर्थन देने का वायदा किया है। प्रधानमंत्री ने इस घटना का पूरा बदला लेने का देश के साथ वायदा किया है। भारत ने बिना नाम लिये इसे सीमा पार से प्रायोजित करार दिया है। इस दिशा में सरकार ने कुछ तात्कालिक फैसला भी लिये हैं जिनका देश ने पूरा-पूरा समर्थन किया है। लेकिन इस घटना ने जो सवाल खड़े किये हैं उन्हें नजरअन्दाज करना भी सही नहीं होगा। इस घटना के बाद सेवानिवृत मेजर जनरल जी.डी.बक्शी और लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस.पनाग ने कुछ सवाल उठाये हैं। जिन पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। मेजर जनरल बख्शी ने कोविड काल में सेना में खाली हुए 1,80,000 पदों पर भर्ती न किये जाने पर चिन्ता व्यक्त की है। लेफ्टिनेंट जनरल पनाग ने सेना की तकनीकी दक्षता और पाकिस्तान के न्यूक्लियर संपन्न देश होने को ध्यान में रखने की सलाह दी है।
देश में इस तरह की आतंकी गतिविधियों एक लम्बे अरसे से चली आ रही है और अधिकांश में इन्हें सीमा पार से प्रायोजित करार दिया जाता रहा है। जम्मू कश्मीर में सीमा पार के कुछ संपर्क होने के भी आरोप लगते आये हैं। इन आरोपों के परिणाम स्वरुप नोटबन्दी लागू की गयी थी। कहा गया था कि इससे आतंकवाद की रीढ़ टूट जायेगी। लेकिन नोटबन्दी के बाद भी यह घटनाएं रुकी नहीं है। सीमा पार के जम्मू कश्मीर में संपर्क होने के कारण ही जब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा घट गया तब 5 अगस्त 2019 को संसद में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित करके प्रदेश को दो केन्द्र शासित राज्यों लद्दाख और जम्मू कश्मीर में विभाजित कर दिया गया। धारा 370 के तहत मिला विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस तरह जम्मू कश्मीर अब केन्द्र शासित प्रदेश है और ऐसे में वहां सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी केन्द्र पर आ जाती है। अब जब इस घटना के बाद सर्वदलीय बैठक हुई तो उस बैठक से प्रधानमंत्री गायब रहे। बैठक में गृह मंत्री और सुरक्षा सलाहकार डोभाल शामिल रहे। बैठक में सरकार ने स्वीकार किया कि सुरक्षा में चूक हुई है। लेकिन इस चूक के लिये जो कारण बताया वह एकदम गले नहीं उतरता। यह कहा गया कि जिस जगह यह घटना घटी है वह रास्ता अमरनाथ यात्रा के दौरान जून में खुलता है। वहां पर्यटक कैसे चले गये इसका पता ही नहीं चला। यह शुद्ध गलत ब्यानी है क्योंकि जो रिपोर्टस प्रैस के माध्यम से सामने आयी है उसके मुताबिक तो वहां पर हर समय पर्यटक जाते रहते हैं। पहलगाम का विकास प्राधिकरण बाकायदा पर्यटकों से टोल वसूल करता है। यह काम किसी प्राइवेट आदमी को दिया गया है। पहलगाम के डी.एम. को इसकी जानकारी रहती है। यह सब कुछ वीडियोज के माध्यम से देश के सामने आ चुका है। वहां पर दो हजार पर्यटक मौजूद थे ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि इतने लोगों के वहां होने की सूचना खुफिया एजैन्सी को न मिली हो। यह सामने आ चुका है कि आईबी के पास ऐसी सूचना थी की घाटी में कोई वारदात हो सकती है। इस सूचना पर उच्च स्तरीय बैठक होने की भी जानकारी है। इसी जानकारी के आधार पर प्रधानमंत्री का घाटी दौरा रद्द किया गया था। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि पुलवामा को लेकर जो सवाल तत्कालीन राज्यपाल सतपाल मलिक ने अपना पद छोड़ने के बाद उठाये हैं उनसे देश बहुत सतर्क और सजग हो चुका है।
इस समय जब पूरा देश सरकार और प्रधानमंत्री के साथ एक जूटता के साथ खड़ा है तब यह अपेक्षा तो सरकार और प्रधानमंत्री से रहेगी कि वह देश को पूरे तथ्यों से अवगत करवायें। जब सर्वदलीय बैठक में यह स्वीकार कर लिया है की सुरक्षा में चूक हुई है तो इस चूक के लिये किसी को दण्डित भी किया जाना आवश्यक है ताकि जनता आश्वस्त हो सके।

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