क्या सरकार केन्द्र से विशेष राहत पैकेज ले पायेगी या कर्ज लेकर बांटेगी राहतें
शिमला/शैल। 4 मई से तालाबन्दी का तीसरा चरण शुरू हो गया है। सरकार ने नये सिरे से दिशा-निर्देश जारी किये हैं । पूरे देश का रेड, औरेंज, ग्रीन और कन्टेनमैन्ट क्षत्रों में वर्गीकरण किया गया है। 24 सेवाएं चिन्हित की गयी हैं। कन्टेनमैन्ट क्षेत्रों में इनमें से कोई भी सेवा शुरू नही होगी। रेड जोन में 13 सेवाओं को और औरेंज तथा ग्रीन क्षेत्रों में 17 सेवाओं को शुरू करने की अनुमति रहेगी। सात सेवाएं कहीं भी शुरू नही होंगी। केन्द्र सरकार द्वारा जारी इन निर्देशों को राज्य सरकारें अपने स्तर इन्हें और कड़ा तो कर सकती है परन्तु इनमें कोई ढील नही दे सकती है। हिमाचल प्रदेश कन्टेनमैन्ट और रेड दोनों क्षेत्रों से बाहर है। काफी समय से कोरोना का कोई नया मामला सामने नही आया है। उम्मीद की जा रही है कि प्रदेश शीघ्र ही कोरोना मुक्त हो जायेगा।
लेकिन इतनी सुखद स्थित में होने के बाद प्रदेश से कर्फ्यू नही हटाया गया है। केवल उसमें एक घन्टे का समय और दे दिया गया है। ओरेन्ज और ग्रीन क्षेत्रों में 50% सवारियों के साथ बस परिवहन की अनुमति केन्द्र की ओर से है। 50% यात्रीयों के ज़िले के भीतर एक ज़िले से दूसरे में जाने की अनुमति है। लेकिन राज्य सरकार ने अभी बस सेवा शुरू करने का फैसला नही लिया है। जबकि हिमाचल में बस सुविधा के बिना न तो सरकारी कार्यालयों और न ही उद्योगों मे काम सही से शुरू हो सकता है। सरकारी कार्यालय 30% कर्मचारियों और उ़द्योग 50% कर्मचारियों के साथ कितना काम शुरू कर सकते हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है। फिर हर कर्मचारी के पास अपना निजि वाहन हो ही ऐसा संभव नही हो सकता है। उद्योगों का बस परिवहन सुविधा के बिना खुलना न खुलना एक बराबर होकर रह गया है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब प्रदेश ओरेन्ज और ग्रीन क्षेत्रों में ही है फिर बस सेवा बहाल करने में क्यों और क्या कठिनाई है। इसमें यही लगता है कि जब से प्रवासी मज़दूरों और छात्रों को प्रदेश में वापिस लाने और प्रदेश से बाहर ले जाने का फैसला लिया गया तथा लाख से अधिक प्रदेश में आ भी गये है। इन लोगों का कोरोना परीक्षण हो पाना और उन्हे सही तरीके से संगरोध में रख पाना व्यवहारिक रूप से ही संभव नही है। हमारे संगरोध केन्द्र और आईसोलेशन वार्ड कितने अच्छे हैं इसका अन्दाजा डा परमार मैडिकल कालिज नाहन को लेकर सिरमौर के कोलर गांव के रहने वाले राम रत्न द्वारा बनाये गये विडियों से लगाया जा सकता है। इस विडियो में जो स्थिति आईसोलेशन वार्ड की सामने आयी है उससे लगता है कि वहां रह कर तो कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति संक्रमित हो जायेगा। राम रत्न के मुताबिक उनके बेटे का विवाह इसी 28 अप्रैल को हुआ था। उनकी पुत्र वधु 15 अप्रैल से फैक्टरी नही जा रही थी बावजूद इसके जब पुलिस ने उन्हे सैंपल के लिये कहा तो वह आधी रात को तैयार हो गये। उन्हें अस्पताल लाया गया और आईसोलेशन वार्ड में भेज दिया। इनके साथ अस्पताल में ऐसा बर्ताव किया गया जैसे कि इन्हे कोरोना हो ही गया है। इन्हे खाना तक नही दिया गया। राम रत्न ने इस बारे में सारे संवद्ध प्रशासन से शिकायत की है। जिस पर कोई प्रभावी कारवाई अब तक नही हो पायी है। इसलिये व्यवस्था का अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि अब प्रदेश में आ चुके और आ रहे लोगों को लेकर शासन प्रशासन डरा हुआ है इसलिये केन्द्र की अनुमति के बावजूद बस सेवा बहाल नही की जा पा रही है।
इसी के साथ एक और बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि जो उद्योग धन्धे तालाबन्दी के चलते बन्द हो गये हैं उन्हें राहत पैकेज केन्द्र की ओर से दिया गया है। इसी तालाबन्दी के चलते प्रदेश का पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कई राजनेता, मन्त्री और नौकरशाह परोक्ष/अपरोक्ष में पर्यटन के कारोबार में हैं। इस क्षेत्र के उद्योगपतियों ने भी सरकार से राहत की मांग की है और सरकार ने उन्हें 15 करोड़ की राहत प्रदान की है जो कामगार प्रभावित हुए हैं उन्हें भी 40 करोड़ की राहत दी गयी है। जो लोग अब प्रदेश में वापसी कर रहे हैं आने वाले दिनों मे उनके लिये भी रोज़गार के अवसर उपलब्ध करवाने होंगे। उनके लिये सरकार शहरी रोज़गार योजना शुरू करने जा रही है। उन्हे कौशन प्रशिक्षण दिया जायेगा। ऐसे कई वर्ग और सामने होंगे जिन्हें इसी तर्ज पर राहत की आवश्यकता होगी। तालाबन्दी से राजस्व में लगातार नुकसान हो रहा है। प्रदेश का कर्जभार कोरोना की दस्तक से पहले ही 55000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है। ऐसे में यह सवाल और अहम हो जाता है कि क्या सरकार यह सब कुछ और कर्ज लेकर करेगी या केन्द्र से कोई विशेष राहते पैकेज हासिल कर पायेगी।
क्योंकि बाहर से आने वाले लोगों से जो डर अभी चल रहा है वह जल्द खत्म होने वाला नही है। हो सकता है कि तालाबन्दी की अवधि और बढ़ानी पड़े। वैसे जब इन लोगों को लाने का फैसला लिया गया था तब प्रदेश भाजपा के ही वरिष्ठ नेताओं शान्ता कुतार और प्रेम कुमार धूमल ने ही कुछ सवाल खड़े किये थे। वैसे तो सूत्रों के मुताबिक मन्त्री परिषद में भी इसको लेकर मतभेद रहे हैं। ज़िलों में जिस तरह से डीसी और एसपी को एक तरह से मन्त्रियों से अधिक महत्व दे दिया गया है उस पर भी कुछ मन्त्रीयों ने अप्रसन्नता जाहिर की है। यह कहा जाने लगा है कि इस अधिकांश फैसले अधिकारियों के प्रभाव में लिये जा रहे हैं। प्रदेश में शैक्षिणक और धार्मिक संस्थान बन्द चल रहे हैं तब शराब के ठेकों को खोलने की प्राथमिकता देना देव भूमि के नागरिकों के गले आसानी से नही उतरेगी। वैसे पहले भी शराब को लेकर इस सरकार की फजीहत हो चुकी है और फैसला वापिस लेना पड़ा था। अब फिर शराब को प्राथमिकता देने और आबकारी नीति मे परिवर्तन करने से यह सन्देश तो चला ही गया है कि कोई तो ऐसा है जो शराब लाबी का पक्ष सरकार में पूरे जो़र के साथ रख रहा है।
शिमला/शैल। रिपल्बिक टीवी चैनल के प्रबन्ध निदेशक एवम् संपादक अर्नब रंजन गोवस्वामी के खिलाफ उनके द्वारा 21 अप्रैल को पालघर प्रकरण पर आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर की गयी टिप्पणीयों को लेकर शिमला सहित देश के कई भागों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा आई पी सी की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मामले दर्ज करवाये गये हैं। शिमला के थाना सदर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री द्वारा यह मामला दर्ज करवाया गया है। जब भी किसी राजनीतिक दल के किसी बड़े नेता द्वारा किसी अन्य दल के नेता द्वारा कोई प्रतिकूल टिप्पणीयां की जाती हैं तब ऐसे नेता के खिलाफ प्रभावित दल के छोटे बडे़ नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा ऐसे मामले दर्ज करवाने की एक राजनीतिक संस्कृति देश में बन चुकी है। राहूल गांधी की प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आयी टिप्पणीयों पर भी इसी तरह की कारवाई हो चुकी है। और भी कई नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है। पत्रकारों के खिलाफ भी नेताओं द्वारा आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज होते आये हैं। लेकिन इस समय अर्नब गोस्वामी का प्रकरण जिस तरह से घटा है उसने कई नये सवालों को जन्म दिया है। उससे यह मामला अपने में एक अलग गंभीरता का हो जाता है।
पूरे देश में 24 मार्च से पूर्णबन्दी चल रही है। सारी आर्थिक गतिविधियां बन्द पड़ी हैं। कोरोना से पूरा देश आतंकित चल रहा है। इस स्थिति का संकेत कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने फरवरी के शुरू में ही दे दिया था। लेकिन शायद राजनीतिक कारणों से उसे नजरअन्दाज कर दिया गया था। इस समय देश महामारी के साथ ही आर्थिक संकट में फंस गया है। सरकार ने आरबीआई से कर्ज लेने की सीमा अभी दो लाख करोड़ तक बढ़ा दी है जो मनमोहन सिंह के वक्त तक 75 हजार करोड़ थी। इस सीमा बढ़ौत्तरी के अतिरिक्त भी केन्द्र सरकार आरबीआई से लाखों करोड़ ले चुकी है। लेकिन इस सबके वाबजूद संासदो/मन्त्रीयों के वेत्तनभत्तों में कटौती करने के अतिरिक्त दो वर्ष के लिये सांसद निधि बन्द करने के बाद अब केन्द्रिय कर्मचारियों और पैन्शनरों के मंहगाई भत्ते की अदायगी भी रोक दी गयी है। कुल मिलाकर हालात यह बन गये हैं कि यदि कहीं आर्थिक मुद्दों पर बहस छिड़ जाती है तो इसका आकार महामारी से कंही बड़ा हो जायेगा। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि इस समय सरकार इस बहस से बचना चाहती है और इसमें मीडिया का एक बड़ा वर्ग ‘‘गोदी मीडिया’’ होने के आरोप सहते हुए सरकार को सहयोग कर रहा है। अर्णब गोस्वामी ने जिस तरह से अपने कार्यक्रम में सोनिया गांधी को संद्धर्भित किया है वह किसी भी तरह से उस कार्यक्रम में प्रसंगिक नही बनता है। अर्नब एक वरिष्ठ पत्रकार हैं लेकिन इस पूरे प्रकरण से यह संकेत और संदेश जाता है कि वह सोच समझ कर एक नयी बहस का मुद्दा तैयार कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार में भागीदार हैं वहां दो साधुओं की भीड़, द्वारा हत्या कर दी जाती है। पुलिस भीड़ को रोक नही पाती है। सरकार इस घटना का कड़ा संज्ञान लेकर कारवाई करती है। उसी दिन आरोपियों की गिरफ्तारी भी हो जाती है। फिर भी सरकार को इसके लिये कोसा जा सकता है कि पुलिस बल वहां पर और ज्यादा क्यों नही था। सरकार के तीनों भीगीदारों से यह सवाल पूछा जा सकता था लेकिन कार्यक्रम में सोनिया गांधी पर यह आरोप लगाना कि यदि किसी मौलवी या पादरी की हत्या हुई होती तो ईटालियन श्रीमति गांधी और उनकी पार्टी के लोग पहाड़ खड़ा कर देते। क्या इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हुए ‘‘मौलवी, पादरी और ईटालियन ’’ का जिक्र करना किसी भी तरह से जायज़ ठहराया जा सकता है। फिर जब कोरोना को लेकर जिस तरह से तबलीगीयों को निशाना बनाया गया है उस सबको सामने रखते हुए क्या मीडिया की बहस में इस तरह से विषय उठाना जायज़ बनता है? शायद कोई भी समझदार व्यक्ति इसमें अर्नब का समर्थन नही कर सकता है। इस संद्धर्भ में कांग्रेस का आहत होना और आपराधिक मामले दर्ज करवाने को प्रैस की आजादी पर हमला नही कहा जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने भी शायद ऐसे ही परिदृश्य में यह कहा है कि प्रैस निरंकुश नही है। लेकिन इसी के साथ अर्नब और उसकी पत्नी पर हुए हमले को भी जायज़ नही ठहराया जा सकता और उसकी भी जांच होनी चाहिये।
लेकिन इस प्रकरण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई अर्नब की याचिका बन जाती है। अर्नब ने अपने खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर के खिलाफ वीरवार रात को याचिका दायर की और इस पर शुक्रवार सुबह सुनवाई भी हो गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इन एफआईआर के परिणामरूप होने वाली कारवाई पर दो सप्ताह के लिये रोक लगा दी है। क्योंकि एफआईआर की कुछ धाराएं गैर ज़मानती है। अर्नब का पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने रखा है। जबकि महाराष्ट्र सरकार की ओर से कपिल सिब्बल, राजस्थान के लिये डा. सिंघवी पेश हुए हैं। लेकिन अर्नब की याचिका को प्राथमिकता दिये जाने पर रोष प्रकट करते हुए वकील कसंल ने सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को एक पत्र लिखकर शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री पर पक्षपात करने का आरोप लगाया हैं।
शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 14 अप्रैल को तालाबन्दी के दूसरे चरण की घोषणा की थी तब यह आश्वासन भी दिया था कि 20 अप्रैल से इसमें कुछ क्षेत्रों मे राहत भी दी जायेगी। प्रधानमंत्री के इस आश्वासन के बाद 15 अप्रैल को ही केन्द्रिय गृह सचिव की ओर से दिशा निर्देश भी जारी कर दिये गये । इन निर्देशों में कुछ गतिविधियों को 20 अप्रैल से छूट देने का भी उल्लेख किया गया। लेकिन इस छुट के लिये शर्त भी लगा दी है कि सभी कार्यस्थलों पर सोशल डिस्टैन्सिंग आदि की अनुपालना सुनिश्चित की जोयगी। Before operating these relaxations, States/UTs/District Administrations shall ensure that all preparatory arrangements with regard to social distancing in offices, work places, factories and establishments as also other sectoral requirements are in place. इसका अर्थ है कि जहां पर इन प्रावधानों की अनुपालना नही होगी वहां पर कोई भी कार्य शुरू नही हो पायेगा। केन्द्र के इन दिशा निर्देशों में राज्य सरकारें अपने स्तर पर कोई बदलाव नही कर पायेगी यह भी स्पष्ट कर दिया है। State /UT Governments shall not dilute these guidelines issued under the Disaster Mangement Act 2005 in any manner and shall strictly enforce the same. State /UT Governments, May, however, impose stricter measures than these guidelines as per requirement of the local areas.
इस समय उद्योगों की गतिविधियां पूरी तरह बन्द हैं और करोड़ों लोग इससे प्रभावित हो गये हैं। इन गतिविधियों को अब शुरू करने की छूट दी गयी है। इस छूट में यह कहा गया है कि यह स्थापनाएं अपने उद्योगों में अपने कामगारों के ठहरने की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। यदि उनके यहां इनके ठहरने कि सुविधा नही है तो वह इसके लिये उनके साथ लगते भवनों को लें और वहां इनके ठहरने का प्रबन्ध करें i. Industries operating in rural areas i.e. outside the limits of municipal corporations and municipalities.
ii. Manufacturing and other industrial establishments with access control in special Economic Zone (SEZs) and Export Oriented Units (EoUs) industrial estates , and industrial townships these establishments shall make arrangements for stay of workers within their premises as far as possible and or adjacent buildings and for implementation of the standard oprating / protocol (SOP) as referred to in para 21 (ii) below. The transportation of workers to work place shall be arranged by the employers in dedicated transport by ensuring social distancing
iii. Manufacturing units of essential goods, including drugs pharmaceuticals, medical devices, their raw material and intermediates.
iv. Food processing industries in rural areas. i.e. outside the limits of municipal corporations and municipalities.
v. Production units which require continuous process and their supply chain.
vi. Manufacturing of IT hardware.
vii. Coal production, mines and mineral production, their transportation, supply of explosives and activities incidental to mining operations.
viii. Manufacturing units of packaging material.
ix. Jute industries with staggered shifts and social distancing.
x. Oil and gas exploration/refinery.
xi. Brick kilns in rural areas i.e. outside the limits of municipal corporations and municipalities.
Construction activities, Listed as below, will be allowed to operate:
i. Construction of roads, irrigation projects, buildings and all kinds of industrial projects, including MSMEs. In rural areas i.e. outside the limits of municipal corporations and municipalities: and all kinds of projects in industrial estates.
ii. Construction of renewable energy projects.
iii. Continuation of works in construction projects, within the limits of municipal corporations and municipalities, where workers are available on site and no workers are required to be brought in from outside (in situ construction)
इसी तरह कृषि कार्यों को छूट दी गयी है। उसमें यह कार्य किया जा सकेंगे। इनमें सोशल डिस्टैसिंग की अनुपालना आवश्यक शर्त होगी जो हर कार्य के लिये अनिवार्यता रहेगी। कृषि कार्यों में यह सब शामिल रहेगा।
Agricultural and related activities:
All agricultural and horticultural activities to remain fully functional, such as:
i. Farming operations by farmers and farm workers in field.
ii. Agencies engaged in procurement of agriculture products, including MSP operations.
iii. 'Mandis' operated by the Agriculture Produce Market Committee (APMC) as notified by the state /UT Government (e.g. satellite mandis) Direct marketing operations by the state /UT Government or by industry, directly from farmers /group of farmers, FPOs’ co-operativies etc. States /UTs may promote decentralized marketing and procurement at village level.
iv. Shops of agriculture machinery, its spare parts (including its supply chain) and repairs to remain open.
v. Custom Hiring Centres (CHC) related to farm manhinery.
vi. Manufacturing, distribution and retail of fertilizers, pesticides and seeds.
vii. Movement (inter and intra State ) of harvesting and sowing related machines like combined harvester and other agriculture /horticulture implements.
कृषि, मनरेगा और उद्योग ऐसे अदारें हैं जहां पर करोड़ों लोग अपना रोज़गार पाते हैं। कृषि और मनरेगा के कार्यों का व्यवहारिक ज्ञान रखने वाले जानते हैं कि इनमें सोशल डिस्टैंसिंग की अनुपालना क्रियात्मक रूप से संभव हो ही नही सकती है। इनके साथ उद्योग तीसरा बड़ा अदारा है रोज़गार का। अब उद्योगों के लिये यह शर्त लगा दी गयी है कि वह अपने कामगारों के ठहरने की व्यवस्था अपने उद्योग के अन्दर ही करें या उसके साथ लगते भवन लें। मज़दूरों को लाने के लिये परिवहन व्यवस्था भी यह उद्योग स्वयं सुनिश्चित करेंगे। उद्योगों के लिये यह शर्त पहली बार रखी गयी है। आज जब सारी गतिविधियों पर विराम लगा हुआ है तब यह उद्योग ऐसी व्यवस्था कैसे कर पायेंगे यह अपने में बड़ा सवाल बन गया है। इस महामारी के परिप्रेक्ष में यह दिशा निर्देश जारी किये गये हैं इनकी अवहेलना करने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है और इन्ही दिशा निर्देशों में उसका भी जिक्र दर्ज है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि आज कोई भी उद्योग अपने कामगारों को अपने यहां ठहराने की व्यवस्था नही कर पायेगा। क्योंकि यह व्यवस्था खड़ी करने में महीनों के हिसाब से समय लग जायेगा। इसलिये बहुत संभव है कि उद्योगपति इन हालात में उ़द्योग ईकाई को चलाने की बजाये उसे बन्द रखना ही पसन्द करेंगे। इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या भविष्य में लगने वाले उद्योगों के लिये यह व्यवस्था बनाने की शर्त अनिवार्य की जायेगी?
हिमाचल सरकार ने भी केन्द्र की ओर से जारी इन निर्देशों पर अपनी मोहर लगा दी है। प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा 18 अप्रैल को जारी पत्र में केन्द्र के निर्देशों में कोई बदलाव नही किया गया है। इस संबध में जब पत्रकार वार्ता में मुख्यमन्त्राी से पूछा गया तो वह केवल यही कह पाये कि इस पर विचार किया जायेगा। इससे स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार ने इस विषय में कोई विचार ही नही किया है। ऐसे में प्रदेश में उद्योग कार्यों के शुरू हो पाने पर अभी तक प्रश्नचिन्ह बना ही हुआ है।
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