Friday, 19 September 2025
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अदालती आदेशों को हल्के से लेने पर सर्वोच्च न्यायालय में लगा पांच लाख का जुर्माना

शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल सरकार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना ‘‘कम्यूनिटी किचन’’ मुद्दे पर आयी एक याचिका पर समय रहते जवाब दायर न करने के कारण लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर पूरे देश की राज्य सरकारों से जवाब मांगा था। यह याचिका पिछले वर्ष दायर की गयी थी। इसमें हिमाचल सरकार पिछले वर्ष ही एक पेशी पर हाज़िर हो गयी थी और तब शीर्ष अदालत ने इस पर राज्य सरकार से उसका पक्ष रखने के लिये कहा था। उसी समय याचिका राज्य सरकार के पास आ गयी थी और सरकार के पास इसमें जवाब दायर करने के लिये काफी समय था। लेकिन प्रदेश सचिवालय में यह विषय कई विभागों में घूमता रहा और कोई भी विभाग इसे उसका विषय मानने से इन्कार करता रहा। इसी दौरान जवाब दायर करने की तारीख आ गयी और सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का पक्ष रखने के लिये शायद कोई भी उपलब्ध नही था। सर्वोच्च न्यायालय ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार पर पांच लाख का जुर्माना लगा दिया। इस पर मामले को मुख्य सचिव के संज्ञान में लाया गया और तब यह मामला सचिव सिविल सप्लाई को भेजा गया और इसका जवाब भेजा गया। इस मामले मे सर्वोच्च न्यायालय में अदा किया गया पांच लाख का जुर्माना बचाया जा सकता था यदि अधिकारी इसमें टाल मटोल की राह पर न चलते।
प्रदेश उच्च न्यायालय ने 3237 सरकारी कर्मचारियों को दी गयी नौतोड़ भूमि को वापिस लेने का फैसला 2015 में सुनाया था। सरकारी कर्मचारियों को हुए इस आवंटन को फ्राड की संज्ञा देते हुए इस पर कारवाई के कड़े निर्देश दिये थे जिन पर तीन वर्षों के भीतर अमल किया जाना था लेकिन नही हुआ और न ही किसी की जिम्मेदारी तय की गयी। यह मामला भी जब पुनः अदालत के संज्ञान में आयेगा तब इसमें भी जुर्माना लगने की नौबत आ जायेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने राज कुमार, राजेन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल मामले में राजेन्द्र सिंह के आचरण को फ्राड करार देते हुए इस परिवार को मिले करीब छः करोड़ के मुआवज़े को 12% ब्याज सहित वापिस लेने के आदेश किये हैं। लेकिन इसमें फ्राड और पूरी सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा अधिग्रहित की गयी जमीनों पर कारवाई करने की बजाये इसे एसजेवीएनएल तक ही सीमित रखा जा रहा है। एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश में हुए रेप के मामलों मे की गयी कारवाई के बारे में सभी राज्य सरकारों से जानकारी मांगी है। इसमें प्रदेश के मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पत्र भेजा गया है। प्रदेश में पिछले दो वर्षो में विधानसभा में रखे गये रिकार्ड के अनुसार 500 से अधिक रेप के मामले हुए हैं। इनमें कितनी गिरफ्तारीयां हुई, कितने मामलों में अदालत से सजा़ हो चुकी है और कितने मामले क्यों लंबित हैं यह सारी जानकारी मांगी गयी है लेकिन अभी तक इसका कोई जवाब सर्वोच्च न्यायालय को नही गया है। 
एक अन्य मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने कोल डैम से बिजली ले जाने के प्रकरण में स्थाानीय लोगों की जमीनों पर बिना उनकी अनुमति के टावर लगाने और लाईनें बिछाने के प्रकरण में रिलाईंस की कंपनी के खिलाफ मामले दर्ज करने के निर्देश दिये थे। निचली अदालत ने इसमें एफआईआर दर्ज होना सुनिश्चित भी किया था। लेकिन अब इस मामले को भी दबाने और रिलाॅंयंस को बिजली के खम्भे ही बेचने का फैसला ले लिया गया है। 
इस समय अकेले शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में ही अदालती आदेशों की अनुपालना न होने के कारण अवमानना के 200 से ज्यादा मामले लंबित चल रहे हैं। इनके कारण शिक्षा विभाग में पिछले 18 माह से प्रधानाचार्या और मुख्याध्यापकों के 200 मामले पदोन्नतियों के लंबित पड़े हुए हैं। बिना इमरजैंसी कमीशन के सेना में भर्ती हुए पूर्व सैनिकों को सेवा लाभ दिये जाने के मामले में 2017 सर्वोच्च न्यायालय के R.K Barwaal बनाम हिमाचल सरकार एवं अन्य में आये फैसले पर आज तक अनुपालना नही हो पायी है इसमें अदालत ने कहा हैDivision Bench of this Court in V.K.Behal and ors. vs. State of H.P. and ors. 2009 LIC 1812 and the judgment rendered by the Hon'ble Supreme Court in R.K.Barwal and ors. vs. State of H.P. and ors. (2017) 16 SCC 803, wherein judgment in V.K. Behal's case has been affirmed. एक अन्य फैसले में हिमाचल उच्च न्यायालय के फैसले के विरूद्ध आयी अपील में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए 1993 के अपने फैसले पर मोहर लगा दी थी जिसमें DEMOBLISED SERVICES Rule 5 ,1972, Released Armed Forces Personnel in Administrative Services as well. These Rules were framed in the year 1974 and are called the ‘Demobilised Armed Forces Personnel (Reservation of Vacancies in the Himachal Pradesh Administrative Services) Rules, 1974 (hereinafter referred to as the ‘1974 Rules’) इन नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। ऐसे अनेक मामले हैं जिन पर प्रशासन आज तक अमल नही कर पाया है।
प्रशासन में अदालती आदेशों के प्रति कितनी संवदेना है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय से 2003 में दर्ज एक झूठे मुकदमे में बाइज्जत बरी हुए एक अन्य प्रशासनिक अधिकारी के विरुद्ध उसी FIR पर जिसमें उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय बरी कर चुका है विभागीय जाँच कार्मिक विभाग की ‘‘मैं न मानु’’ प्रवृति के चलते जारी है जब की 1999 से 2018 तक सर्वोच्च न्यायालय यह निरंतर व्यवस्था दे चुका है कि आपराधिक मामले में बरी होने पर IENTICAL CHARGE पर विभागीय जाँच नहीं हो सकती, 2016 में सेवा निवृति पाए इस अधिकारी को प्रशासनिक हठधर्मिता के चलते 50-60 लाख के लंबित देय पेंशन लाभ से भी वंचित रखा गया है। इसी तरह के मामलों में गोयल जैसे कुछ WHISTLE ब्लोवर सर्वोच्च न्यायालय से स्पष्ट आदेशों के बावजूद धक्के खा रहे हैं।

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