शिमला/शैल। कांग्रेस सांसद विप्लव ठाकुर का कार्यकाल पूरा होने पर खाली हुई राज्यसभा सीट के लिये भाजपा ने भी कांगड़ा से ही आने वाली नेत्री इन्दु गोस्वामी को उम्मीदवार बनाकर ‘कांगड़ा और महिला’ दोनो ही समीकरणों को एक साथ सन्तुलित कर लिया है। लेकिन ‘‘जन हित’’ मानक पर साधे गये इस समीकरण का पार्टी के भीतरी समीकरणों पर कितना और क्या असर पड़ेगा यह एक चर्चा का नया विषय बन गया है। यह चर्चा इसलिये आ खड़ी हुई है जब 2017 में पार्टी ने उन्हे पालमपुर से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया था तब पार्टी के ही व्यक्ति ने बागी बनकर उनका विरोध किया और वह चुनाव हार गयी। पालमपुर भाजपा के वरिष्ठतम नेता पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् केन्द्रिय मन्त्री शान्ता कुमार का अपना घर है। शायद इन्दु गोस्वामी को यहां से उम्मीदवार बनाये जाने के लिये शान्ता सहमत नही थे। इसीलिये बागी उम्मीदवार का खड़ा होना शान्ता कुमार के नाम लगा था और इसके लिये सीधे संकेत देते हुए उसी दौरान इस आश्य का एक वीडियो भी वायरल हो गया था जिसका कभी खण्डन नही आया।
उस समय इन्दु गोस्वामी प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष थी। लेकिन 9.7.2019 को उन्होने महिला मोर्चा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। यह त्यागपत्र देते समय जो पत्रा उन्होने लिखा था उसमें एक महत्वपूर्ण जिक्र यह किया गया था कि ‘‘मेरे अध्यक्ष बनने से लेकर विधानसभा चुनाव लड़ने तक मुझे कई विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन मेरा विधानसभा चुनाव लड़ना प्रदेश संगठन और सरकार दोनो को शायद सुखद नही लगा। बहुत बार अपनी परिस्थिति से प्रदेश नेतृत्व और सरकार को अवगत करवाया लेकिन समस्या कम होने की बजाये बढ़ती गयी। ‘‘शैल ने यह पत्र उस समय भी अपने पाठकों के सामने रखा है। इन्दु गोस्वामी के लिये प्रदेश संगठन और सरकार में पत्र लिखने से लेकर आज तक स्थितियां नही बदली है। इसका पता इसी से चल जाता है कि अब भी संगठन की ओर से राज्यसभा के लिये जो नाम अनुमोदित किये गये थे उनमें इन्दु गोस्वामी का नाम नही था यह खुल कर सामने आ चुका है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि इन्दु गोस्वामी को केन्द्र ने राज्यसभा में प्रदेश नेतृत्व की ईच्छा के बिना भेजा है और जब ईच्छा के बिना भेजा है तो तय है कि वह केन्द्र के सामने प्रदेश संगठन तथा सरकार के बारे में पूरी वेबाकी से जमीनी हकीकत ब्यान करेंगी।
राजनीतिक विश्लेष्क जानते हैं कि पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष और विधानसभा स्पीकर को लेकर लिये गये राजनीतिक फैसलों में भी प्रदेश नेतृत्व को ज्यादा विश्वास में नही लिया गया है। अब राज्यसभा का उम्मीदवार तय करने में भी यही स्थिति सामने आयी है। अब खाली चले आ रहे मन्त्री पद भरे जाने हैं इसमें और स्पष्ट हो जायेगा कि जो लोग मन्त्री पद के लिये मुख्यमन्त्री के ही सहारे उम्मीद लगाकर बैठे हुए हैं उनमें से किसी का नाम आ पाता है या नही। क्योकि सरकार पर यह आरोप लगातार गहराता जा रहा है कि सरकार अफसरशाही पर ही ज्यादा निर्भर होकर चल रही है। यह आम चर्चा है कि दो चार अधिकारी ही सरकार चला रहे हैं और इन अधिकारियों की अपनी छवि भी कोई बहुत अच्छी नही है। यहां तक चर्चाएं चल निकली हैं कि यदि आज फिर चुनाव हो जायें तो कांग्रेस को बिना नेतृत्व और काम के भी लोग सरकार सौंप देंगे।
कई निगरान ऐजैन्सीयां सरकार के काम काज पर निगाहे रखे हुए हैं। कई गुमनाम पत्र अब तक वायरल हो चुके हैं लेकिन सरकार की ओर से इनका कोई संज्ञान नही लिया गया है। परन्तु यह तय है कि समय आने पर यही पत्रा गंभीर मुद्दों के रूप में सामने आयेंगे। प्रशासन की कार्यप्रणाली का इसी से पता चल जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय ही कई मामलों में दो वर्षों में सरकार को जुर्माना लगा चुका है। भ्रष्टाचार के कई मामले चर्चा में चल रहे हैं जो आने वाले दिनों में हैडलाईन बनेंगे लेकिन अफसरशाही इसे मुख्यमन्त्री के संज्ञान में आने नही दे रही है। जिस हाईड्रो काॅलिज के भवन का निर्माण जून 2019 में पूरा हो जाना था वह अभी और लम्बा समय लेगा जबकि इसके निर्माण का ठेका देने मे ही आठ करोड़ का घपला किया गया। मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर द्वारा यह मामला उठाये जाने के बाद भी सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नही दिया क्योंकि रामलाल ही बाद में चुप हो गये परन्तु मामला तो अपनी जगह खड़ा है जो समय आने पर जवाब मांगेगा।
इस परिदृश्य में आज इन्दु गोस्वामी के राज्यसभा में जाने को प्रदेश राजनीति के नये समीकरणों के स्पष्ट संकेत के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि आगे सत्ता में बने रहने के लिये परफारमैन्स एक बड़ा मानक रहेगी जिस पर आज सरकार की ब्यानों से ज्यादा कोई उपलब्धि नही है।