शिमला/शैल। विधानसभा के बजटसत्र से पहले ही प्रदेश भाजपा की नयी कार्यकारिणी घोषित हो गयी है। कार्यकारिणी की यह घोषणा डाॅ. बिन्दल की राजनीतिक सूझबूझ और क्षमता का परिचय मानी जा रही है क्योंकि यह चयन करने में कोई ज्यादा समय नही लिया गया है। जबकि मुख्यमन्त्री आठ माह से खाली चले आ रहे पदों को अभी तक नही भर पाये हैं। भाजपा की राजनीति में दिल्ली चुनावों के बाद केन्द्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति में चुनाव परिणामों का असर हुआ है। क्योंकि दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष बिहार के एक हिस्से से ही ताल्लुक रखने वाले थे जबकि वहां पर पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश का ज्यादा दखल है और चुनाव परिणामों के बाद यह चर्चा में भी आ चुका है। इसी परिप्रेक्ष में हिमाचल की राजनीति पर भी दिल्ली का असर स्पष्ट देखा जा सकता है। बिन्दल की कार्यकारिणी में उन सभी लोगों को स्थान मिला है जिनके अपने नाम अध्यक्ष की चर्चा में आये थे। इसी के साथ उन लोगों को भी स्थान मिला है जिनके नाम लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों केे रूप में सामने आये थे। इसलिये बिन्दल की कार्यकारिणी में ऐसे सभी नेताओं को जगह मिलना जो स्वयं उच्च पद की दौड़ में थे यह दर्शाता है शुरू में ही उन स्वरों को बांध दिया गया है जिनके मुख से कभी भी मतभिन्नता की आवाज़ सुनायी पड़ सकती थी। क्योंकि कृपाल परमार, प्रवीण शर्मा, राम सिंह त्रिलोक जमबाल और रणधीर शर्मा ये सभी प्रदेश अध्यक्ष की चर्चा में रहे हैं। बिन्दल क्यों और कैसे प्रदेश अध्यक्ष बन गये उसमें यह तो स्पष्ट है कि बिन्दल का नाम इस चर्चा में बिल्कुल नही था और शायद मुख्यमंत्री के लिये भी यह अनापेक्षित ही था। इसलिये बिन्दल की कार्यकारिणी को कुछ बड़े नेताओं के साथ जोड़कर देखना ज्यादा सही नही होगा।
इस समय भाजपा की प्रदेश राजनीति में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. बिन्दल केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर सत्ता के प्रमुख केन्द्र हैं। जगत प्रकाश नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते वह प्रदेश में किसी के ‘एक नेता के एक साथ होना’ यह संकेत और संदेश नही दे सकते लेकिन वह प्रदेश की राजनीति की आंख ओझल भी नही होने दे सकते यह भी आवश्यक है और इसके लिये प्रदेश अध्यक्ष से ज्यादा अच्छा माध्यम नही हो सकता। दिल्ली चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाले समय में राज्यों में भाजपा सरकारों को अपनी परफॅामैन्स पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। केन्द्र की विरासत पर ज्यादा निर्भरता से कोई अधिक लाभ नही मिल पायेगा। आने वाले समय में विपक्ष की आक्रामकता बढ़ेगी यह तय है। इस आक्रामकता का संगठन की ओर से तभी जवाब दिया जा सकेगा जब सरकार की परफाॅमैन्स ठोस तथ्यों पर आधारित होगी। इसके लिये सरकार और संगठन में यदि लगातार सार्थक संवाद बना रहता है यह तभी संभव होगा। सरकार की परफाॅमैन्स साधनों और उनके सदुपयोग पर निर्भर करेगी। ऐसे में साधनों के लिये सरकार और संगठन को मिलकर प्रयास करना होगा। प्रदेश पर कर्जभार लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सरकार और संगठन के लिये यह आवश्यक होगा कि वह कर्ज से हटकर कुछ और साधनों का सृजन कर पाये।
इस समय बिन्दल की कार्यकारिणी का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाना संगत नही होगा कि किस बड़े नेता के कितने नज़दीकीयों को क्या क्या पद मिले हैं। क्योंकि जिस तरह से मुख्यमंत्री के कुछ निकट चेहरों को कार्यकारिणी में स्थान दिया गया है उससे यही संदेश देने का प्रयास किया गया है कि मुख्यमन्त्री के खेमे को इसमें नाराज़ और नज़रअन्दाज नही किया गया है।
उपाध्यक्ष:-
1) प्रवीण शर्मा (पूर्व मंत्री),
2) कृपाल परमार,
3) राम सिंह,
4) पुरषोतम गुलेरिया
5) संजीव कटवाल
6) रतन सिंह पाल
7) कमलेश कुमारी मा. विधायिका
8) धनेेश्वरी ठाकुर
महामत्री:-
1) त्रिलोक जम्वाल
2) त्रिलोक कपूर तथा
3) राकेश जम्वाल व
सचिव:-
1) पायल वैद्य
2) बिहारी लाल शर्मा
3) विशाल चौहान
4) कुसुम सदरेट
5) डा0 सीमा ठाकुर
6) वीरेन्द्र चौधरी
7) जय सिंह
8) श्रेष्ठा चौधरी
कोषाध्यक्ष:-
1) संजय सूद रहेंगे।
मुख्य प्रवक्ताः-
1) रणधीर शर्मा व
मीडिया प्रभारी:
1) राकेश शर्मा (धर्मशाला)
भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष पद का दायित्व सुरेश कश्यप, सांसद, अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष का दायित्व जवाहर लाल (लाहौल स्पिति), ओ.बी.सी. मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व ओ.पी. चौधरी (कांगड़ा), किसान मोर्चा के अध्यक्ष पद का दायित्व राकेश शर्मा (बबली) (हमीरपुर), महिला मोर्चा के अध्यक्ष पद का दायित्व रश्मिधर सूद (सोलन), युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद का दायित्व अमित ठाकुर (चम्बा) तथा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व मोहम्मद राजबली (मण्डी) संभालेंगे।