Thursday, 18 September 2025
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मुस्लिम समाज सरकार पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहा है

वक्फ धार्मिक उद्देश्यों के लिये अपनी संपत्ति दान देने की अवधारणा है जो 1923 से ब्रिटिश शासन काल से चली आ रही है। 1954 में पहली बार संसद में इस संबंध में कानून बनाकर ऐसी संपत्तियों के प्रबंधन संचालन के लिये वक्फ बोर्ड के गठन का प्रावधान किया। 1995 में इसमें संशोधन करके इसे और शक्तियां दी। लेकिन यह शक्तियां देने के बाद इसमें अतिक्रमण अवैध पट्टे देने और अवैध बिक्री की शिकायतें बढ़ी। 2013 में इसमें और संशोधन करके वक्फ संपत्तियों की बिक्री को अवैध करार दे दिया। वक्फ में उपजे किसी भी विवाद के निपटारे के लिये एक ट्रिब्यूनल गठित है और इसके फैसलों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। यह सब नए वक्फ अधिनियम पर संसद में चली बहस के दौरान सामने आ चुका है। नये संशोधन में गैर मुस्लिमों को भी वक्फ का सदस्य बनाने का प्रावधान किया गया। नये कानून में संपत्तियों पर उठे किसी भी विवाद के निपटारे के लिये डीएम को अधिकृत किया गया है। डीएम का फैसला अन्तिम होगा और उसे कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी। भारत बहुभाषी और बहुधर्मी देश है। इसलिये संविधान के अनुच्छेद 26 में धार्मिक स्वतन्त्रता का प्रावधान किया गया है। धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिये संस्थाएं स्थापित करना उनका संचालन और धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने के लिये हर धर्म का आदमी स्वतंत्र है। संविधान के इसी अनुच्छेद के आधार पर नये वक्फ विधेयक को असंवैधानिक मानकर इसे सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है। अब यह मामला देश की सुप्रीम अदालत के सामने हैं। आशा की जानी चाहिये की अदालत बहुत जल्द इस संबंध में आयी याचिकाओं का निपटारा करके इसकी वैधता पर अपना फैसला देगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इन्तजार किया जाना चाहिए। लेकिन इस विवाद से ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो गया है कि देश की दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी को सरकार पर अविश्वास क्यों पैदा हो गया है। आखिर इस अविश्वास का आधार और कारण क्या है। इसकी पड़ताल करने के लिये 2014 में आये राजनीतिक सत्ता के बदलाव के बाद उपजी व्यवहारिक स्थितियों पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। भाजपा संघ परिवार की राजनीतिक इकाई है। इसलिये भाजपा के संगठन सचिव का दायित्व हर स्तर पर संघ के ही प्रतिनिधि के पास रहता है। भाजपा का वैचारिक स्रोत संघ है। संघ भारत को शुद्ध हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। संघ की सारी अनुसांगिक इकाईयां इसी के लिये प्रयासरत है। इस प्रयास में भाजपा की भूमिका और जिम्मेदारी सबसे अहम है। क्योंकि राजनीतिक सत्ता भाजपा के हिस्से में है। हिन्दू राष्ट्र बनाने का रास्ता राजनीतिक सत्ता से होकर गुजरेगा। इस समय भारत में दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी मुस्लिमों की है और वह हर राज्य में हैं। मुस्लिमों के बाद सिक्ख आते हैं। और वह संयोगवश एक ही राज्य तक है। इसी हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना में मुस्लिम बाधक हो जाते हैं। फिर देश का बंटवारा भी धार्मिक आधार पर हुआ था और पाकिस्तान मुस्लिम देश बन गया। पाकिस्तान भारत की तरह धर्मनिरपेक्ष चरित्र का नहीं है। जबकि भारत का मूल धर्मनिरपेक्षता है। यदि भारत भी एक ही धर्म को राजनीतिक धर्म बना ले तो इतने बड़े देश में एकता बनाये रखना बड़ा प्रश्न हो जायेगा । इस परिपेक्ष में यदि 2014 के सत्ता परिवर्तन के बाद जिस तरह का व्यवहार मुस्लिम समुदाय के प्रति रहा है उससे स्पष्ट हो जाता है कि एक निश्चित योजना के तहत हिन्दू राष्ट्र की दिशा में प्रयास चल रहे हैं। यह सामने आ चुका है मुस्लिम समाज के प्रति सहानुभूति रखने वाले पाकिस्तान चले जाने की राय मंत्री स्तर के लोगों से आ चुकी है। मेघालय हाईकोर्ट में जब जस्टिस एस आर सेन ने 2018 में भारत को हिन्दू राष्ट्र हो जाने का फैसला दिया था तब वह इस दिशा का एक बड़ा संकेत था। इस फैसले पर आपत्तियां आयी और यह रद्द हुआ। लेकिन फैसला तो आया। फिर संघ प्रमुख डॉ. भागवत के नाम से भारत का संविधान वायरल हुआ। इसमें महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश की बात कही गई थी लेकिन यह संविधान कैसे वायरल हुआ इसकी कोई जांच सामने नहीं आयी न ही इसका कोई खण्डन सामने आया। फिर स्कूलों में मनुस्मृति को पाठयक्रम का हिस्सा बनाने का सुझाव आया। गौ रक्षा के नाम पर एक समुदाय के खिलाफ भीड़ हिस्सा का तांडव इस देश ने देखा। नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर सांसदों को दी गयी संविधान की प्रति से धर्मनिरपेक्षता शब्द का गायब होना। सम्मान नागरिक संहिता पर उभरा आन्दोलन देश ने देखा है। आज भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है लेकिन इस बड़े दल में एक भी मुस्लिम न विधायक है और न ही सांसद है। केन्द्रीय मंत्री परिषद में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। क्या इस तरह की व्यवहारिकता से मुस्लिम समाज सरकार पर विश्वास कर पायेगा। देश के लिये यह बहुत ही कठिन समय है। सरकार को व्यवहारिक स्तर पर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे जिससे विश्वास बहाल हो सके।

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