Friday, 19 September 2025
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क्या कंगना प्रयोग सफल हो पायेगा?

सिने तारिका हिमाचल की बेटी पद्मश्री कंगना रणौत ने 1947 में अंग्रेजों के तीन सौ वर्ष के शासन से मिली आजादी को भीख की संज्ञा दी है। कंगना के मुताबिक देश को सही में आजादी 2014 मे मिली है। कंगना के इस ब्यान से पूरे देश में प्रतिक्रियाएं उभरी हैं। ब्यान को स्वत़न्त्रता सेनानियों से लेकर संविधान का अपमान माना जा रहा है। पद्मश्री वापस लेने और देशद्रोह का मुकद्दमा दायर करने की मांग उठ रही है। कंगना के ब्यान पर सभी गैर भाजपा दल आक्रोषित हैं। केवल भाजपा ही इस ब्यान पर खामोश है। भाजपा की खामोशी से ही इस ब्यान के पीछे की राजनीति स्पष्ट हो जाती है। कंगना की उम्र और उसकी शैक्षणिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे क्षमा कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि अभिनेता अभिनेत्रियां अधिकांश में दूसरों द्वारा लिखी स्क्रीप्ट पर ही अभिनय करते हैं और उसी से अवार्ड प्राप्त कर लेते हैं। ग्लैमर की दुनिया के लोगों को अपना प्रचार और पैसा चाहिए होता है और इसके लिए वह किसी की भी टयून पर डांस कर देते हैं। फिर जब से राजनेताओं को सुनने के लिए आने में जनता की रूची कम होने लगी है तब से राजनेता भीड़ जुटाने के लिए अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और खिलाड़ियों का प्रयोग करने लगे हैं। लम्बे अरसे से यह लोग राजनीतिक दलों और मनोनयन के माध्यम से संसद में आ रहे हैं। लेकिन इनमें से कितने लोगों का संवैधानिक योगदान रहा है तो बड़ा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं मिलता है। कंगना रणौत के ब्यान को भी इसी परिपेक्ष में देखना होगा। कंगना को जो पटकथा दी गयी उसने उसका पाठ कर दिया। अन्यथा जिस अभिनेत्री को झांसी की रानी के किरदार के लिए पदमश्री मिला हैं उससे आजादी को भीख करार देने का ब्यान आना अपने में ही एक अंतः विरोध हो जाता है।
ऐसे में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि इस समय कंगना से यह ब्यान क्यों दिलाया गया। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण पर कंगना जिस तरह से मुखर हुई और उस मुखरता के बाद जो अदालती मामलों का सिलसिला शुरू हुआ है उससे बाहर निकलना कठिन होता जा रहा है। कंगना ने केस ट्रांसफर करने के लिए आवेदन किया था जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। उस दौरान हिमाचल भाजपा का सारा शीर्ष नेतृत्व उसके गिर्द इक्कठा हो गया था। शिमला में उसके लिये प्रदर्शन किया गया था। मण्डी की लोकसभा सीट से कंगना के प्रत्याशी होने की संभावनाएं जताई जा रही थी। पद्मश्री मिलने पर मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से बधाई दी है। अब उसे राज्यसभा में भेजने की चर्चाएं भी कुछ हल्कों में चल पड़ी है। यह सब प्रमाणित करता है कि कंगना को भाजपा समर्थन हासिल है। 2014 में जिस तरह से भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर भाजपा सत्ता में आयी थी उसका सच सामने आ चुका है कि एक भी मामले में कोई प्रमाण सामने नहीं आया है। भ्रष्टाचार के बाद दूसरा बड़ा मुद्दा गौ रक्षा और लव जिहाद का सत्ता में आने के बाद उठाया। इन मुद्दों से उभरा आक्रोष भीड़ हिंसा तक जा पहुंचा। इसके बाद नागरिकता कानून में संशोधन और 370 तथा तीन तलाक हटाने के मुद्दों का प्रयोग हुआ। राम मंदिर पर फैसला आया और निर्माण शुरू हुआ। लेकिन सारे मुद्दों का अंतिम परिणाम बंगाल के चुनावों में सामने आया। जहां ‘‘दो मई दीदी गई’’ के नारे की हवा निकल गयी। अब उप चुनावों के परिणामों ने भी भाजपा के सारे दावों का जमीनी सच जनता के सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
इस समय भाजपा के सामने अगले वर्ष के शुरू में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव हैं। इन चुनावों का कितना दबाव है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि लंबे अन्तराल के बाद भी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में न तो कोई किसी भी तरह का प्रस्ताव तक पारित नहीं हुआ। यहां तक की उपचुनावों के परिणामों पर भी कोई चर्चा नहीं हुई। 2014 से अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं हरेक में देश के अन्दर वैचारिक विभाजन खड़ा करने की रणनीति पर काम किया गया। जबकि 2014 से लेकर अब तक के लिए सारे आर्थिक फैसलों ने आम आदमी को लगातार कमजोर किया है। केवल वैचारिक विभाजन से सफलता मिलती रही। आज किसान आन्दोलन ने सरकार के पावों से सारी जमीन खींच ली है। ऐसे में कंगना रणौत जैसी कमजोर बैसाखियों के सहारे फिर से एक वैचारिक विभाजन की जमीन तैयार करने का प्रयास किया गया है।

क्यों हारी जयराम सरकार

जयराम सरकार प्रदेश में हुए चारों उपचुनाव हार गयी है। उपचुनाव पार्टी की नीतियों या कार्यक्रमों पर नहीं वरन् सरकार की कारगुजारीयों पर जनता की मोहर होते हैं। यह उपचुनाव सरकार के चार साल के कार्यकाल पर जनता का फैसला है जिसमें यह सामने आ गया कि जनता सरकार के कामकाज और उसकी शैली से सहमत नहीं है। शैल के पाठक जानते हैं कि हमने समय-समय पर सच जनता और सरकार के सामने रखने का पूरा प्रयास किया है। यहां तक कह दिया कि चुनाव परिणाम एक तरफा होने जा रहे हैं क्योंकि सरकार के पक्ष में कुछ नही है। यह आकलन सही सिद्ध हुआ। जब मण्डी में पिछली बार के 4 लाख से भी अधिक के अंतराल से हुई हार को पारकर कांग्रेस ने यह सीट 7490 के अन्तर से जीत ली और जुब्बल कोटखाई में भाजपा प्रत्यासी जमानत भी नहीं बचा पायी सभी बीस विधानसभा क्षेत्रों में नोटा का प्रयोग होना भी यही प्रमाणित करता है। मुख्यमंत्री ने इस हार का कारण महंगाई को बताया है लेकिन वह यह भूल गये कि इसी महंगाई के चलते हरियाणा को छोड़कर अन्य भाजपा शासित राज्यों में भाजपा ने जीत की तर्ज की है। इसलिए इस हार के कारण कुछ और हैं।
इन कारणों पर चर्चा करने के लिए 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा द्वारा उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लगाये गये कुछ आरोपों पर नजर डालना आवश्यक होगा। उस समय की सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन के कारण प्रदेश पर कर्ज का बढ़ना, भ्रष्टाचार, रिटायर्ड और टायर्ड लोगों द्वारा सरकार चलाया जाना तथा लोक सेवा आयोग में मीरा वालिया कि नियुक्ति को नियमों के विरूध करार देना मुख्य आरोप थे। इन आरोपों को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान एक विशेष पर्चा जारी किया गया था। सरकार बनने के बाद पहले बजट भाषण में वीरभद्र सरकार पर अठारह हजार करोड का अतिरिक्त कर्ज लेने का आरोप लगाया गया। लेकिन प्रदेश की वितिय स्थिति पर कोई श्वेत पत्र जारी नहीं किया। बल्कि वित विभाग के सचिव तक को नहीं बदला गया। लोक सेवा आयोग में नियमों के विरूद्ध नियुक्ति होने का आरोप लगाकर उन्हीं नियमों के तहत आयोग में दो पद सृजित करके एक को भर भी लिया गया। सर्वोच्च न्यायालय और प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद आज तक लोक सेवा आयोग के लिए नियम नहीं बनाये गये। पूर्व सरकार पर रिटायरड और टायरड अधिकारियों द्वारा सरकार चलाने के आरोप लगाकर अपनी सरकार मे भी वही सब कुछ किया गया। आज चार वर्षों से भी कम समय में बीस हजार करोड़ से अधिक का कर्ज सरकार ले चुकी है। भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सता में आर्यी सरकार ने पहले दो माह में भी हाइड्रो कॉलेज के निर्माण में दस करोड़ से अधिक का नुकसान प्रदेश का किया और जब यह सवाल विधानसभा तक भी पहुंच गया तब भी सरकार ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया। इसी तरह पिछली सरकार में जिस स्कूल वर्दी घोटाले ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था उसमें हुई जांच के बाद सप्लायरों को पांच करोड़ का जुर्माना वसूल कर लिया गया था। उस जुर्माने को आब्रिट्रेशन के कमजोर फैसले पर लौटा दिया गया। उसमें शिक्षा विभाग और शिक्षामंत्री के फाइल पर लिखित आग्रह के बावजूद उच्च न्यायालय में अपील नहीं की गयी।
जब सरकार के शुरु के फैसले में ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे संरक्षण देने की नीयत और नीति सामने आ गयी तब सबके हौसले बुलंद हो गये। इससे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो गया। एक मंत्री द्वारा अपने क्षेत्र के कुछ लोगों को नौकरियां देने के लिये लिखे सिफारशी पत्र वायरल हुए। इसके बाद तो सरकार के खिलाफ ऐसे पत्रों की एक तरह से बाढ़ ही आ गयी। ऐसे पत्रों में उठाये गये मामलों की जांच करने की बजाये यह पत्र लिखने के लिये शक के आधार पर कुछ लोगों के खिलाफ पुलिस में मामले दर्ज कर लिये गये ताकि विरोधियों की आवाज को दबाया जा सके। इस तरह के पत्रों को जनता के सामने रखने का साहस जब शैल ने दिखाया तो उसकी आवाज को दबाने के लिये सरकार ने विज्ञापन बंद करने से लेकर विजिलेन्स में फर्जी मामले तक बना दिये। इन्ही भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर स्वास्थ्य विभाग के निदेशक की गिरफ्तारी तक हुई। स्वास्थ्य मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तक के पदों की बदला-बदली की गयी। यही नहीं आज भ्रष्टाचार की चर्चा यहां तक पहुंच चुकी है कि एक उपसचिव स्तर के अधिकारी का परिवार तीन पैट्रोल पम्पां का मालिक हो गया है। कई सत्ता में बैठे लोगों ने चंडीगढ़, दिल्ली, लुधियाना और अमृतसर में संपत्ति खड़ी कर रखी हैं। सरकार के अधिकांश शीर्ष पदों पर ऐसे अधिकारी तैनात हैं जिन्हें नियमानुसार संदिग्ध चरित्र की श्रेणी में होना चाहिये परंतु वह सरकार चला रहे हैं। अदालत के फैसलां पर अमल न करना और इस आशय के पत्रों का जवाब तक ना देना सरकार की नीति बन चुकी है। जिस सरकार के मंत्रीमण्डल की बैठकां की लाइव जानकारी कुछ पत्रकारों तक पहुंच जाये उस सरकार के सलाहकारां के स्तर का अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसे दर्जनों प्रकरण हैं जिनके कारण मुख्यमंत्री और सरकार की छवि लगातार गिरती चली गयी। सरकार को मीडिया का एक बड़ा वर्ग हरा ही हरा दिखाता रहा और सूखा सामने रखने वालों की आवाज दबाने का प्रयास लोकसंपर्क विभाग करता रहा। जो सरकार दिवार पर लिखे हुए को पढ़ने की बजाये उस पर आंखें बंद कर ले तो उसका परिणाम चार शुन्य ही होना था।

कर्ज लेकर घी पीने का परिणाम है कीमतों का बढ़ना

अभी जयराम सरकार ने सस्ते राशन के तहत मिलने वाली दालों चने और माश की कीमतों में दो रुपए की बढ़ोतरी की घोषणा की है। इसका सीधा असर करीब 19 लाख लोगों पर पड़ेगा। इससे पहले खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ाई गयी थी। यह कीमतें उस समय बढ़ाई गयी हैं जब प्रदेश में उपचुनावों का चुनाव प्रचार पूरे जोरों से चल रहा है क्योंकि तीस अक्तूबर को मतदान होना है। महंगाई पहले ही चुनाव में केंद्रीय मुद्दा बन चुकी है इसके बावजूद इन कीमतों का बढ़ाया जाना यह प्रमाणित करता है कि ऐसा कुछ जरूर है जिसके ऊपर सरकार चाह कर भी नियंत्रण नहीं कर पा रही है। इन कीमतों का असर सस्ता राशन लेने वालों पर ही नही वर्ण प्रदेश की 72 लाख जनता पर पड़ेगा ही तय है। केंद्र सरकार को हर रोज पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं इसलिए राज्य सरकारों को भी चीजों की कीमतें बढ़ानी पड़ेगी। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह कीमतें क्यों बढ़ानी पड़ रही हैं पाठकों को याद होगा कि जब मैंने ‘बैड बैंक’ क्यों बनाना पढ़ा लिखा था तब यह आशंका जताई थी कि महंगाई और बेरोजगारी पर नियंत्रण करना असंभव हो जाएगा वह आशंका सही सिद्ध हो रही है। सरकार के कुछ मंत्रियों और अन्य लोगों ने कीमतें बढ़ने को कोरोना के लिए खरीदी गयी वैक्सीन को कारण बताया है क्योंकि वैक्सीन लोगों को मुफ्त लगाई गई है। यह भी तर्क दिया गया है कि कांग्रेस शासन में भी तो महंगाई हुई थी। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने तो बढ़ोतरी की तुलना प्रति व्यक्ति आय में हुई वृद्धि के साथ करते हुए यहां तक कह दिया है चीजें महंगी नहीं सस्ती हुई जब सरकार के मंत्री अर्थशास्त्र के इतने ज्ञाता हो जाएंगे तो फिर जनता को और महंगाई के लिए तैयार रहना ही होगा।
इस संद्धर्भ में यदि जयराम सरकार की कुछ कारगुजारी पर नजर डालें तो यह मानना पड़ेगा कि या तो यह सरकार कर्ज लेकर घी पीने के मार्ग पर चल निकली है जिससे पीछे मुड़ना कठिन हो गया है या फिर इस सरकार के मित्र और अफसरशाही इसे बुरी तरह गुमराह कर रहे हैं। क्योंकि अभी उपचुनाव के दौरान ही पहले खाद्य तेलों और अब दालों के दाम बढ़ाये गये है। इस उपचुनाव के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने मुख्यमंत्री पर यह आरोप लगाया कि उन्हें हवा में उड़ने की आदत हो गई है वह सड़क मार्ग से यात्रा ही नहीं करते। इसीलिए अपने चुनाव क्षेत्र में छः हेलीपैड बना लिए हैं। एक पंचायत से दूसरी पंचायत में हेलीकॉप्टर से ही जाते हैं। विधायक विक्रमादित्य ने इन हेलीपैडों की संख्या चौदह बताई है। सरकार इस संख्या का खंडन नहीं कर पायी है। जिन लोगों को यह जानकारी है कि मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी दो मंजिला आवास ओक ओवर में भी आने जाने के लिए लिफ्ट का निर्माण करवा लिया है वह हेलीपैडों की संख्या पर अविश्वास नहीं कर पायेंगे। इस सरकारी आवास में पहले के सारे मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वह सभी आयु में इनसे बड़े थे। यह लिफ्ट और इतने हेलीपैड बनवाने पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि कर्ज लेकर किए गए यह निर्माण किसी भी तर्क से विकास नहीं ठहराया जा सकता। फिर कल को इन हेलीपैडां की संभाल करने के लिए पैसा कहां से आ आयेगा। क्या आगे वाले मुख्यमंत्री सिराज को इतना समय दे पायेंगे कि हर हेलीपैड पर वह हेलीकॉप्टर लेकर पहुंच जायेंगे। मुख्यमंत्री के हर बजट में ऐसी कई-कई घोषणाएं हैं जो कर्ज लेकर ही पूरी की जा सकेंगी और उनसे राजस्व में कोई आय नहीं होगी।
इस समय देश ऐसे आर्थिक संकट से गुजर रहा है की जब बैंकों का एनपीए दस ट्रिलियन करोड़ हो गया तो सरकार को इसकी रिकवरी के लिए बैड बैंक बनाना पड़ा। लेकिन इस बैड बैंक को भी अभी तक 10 प्रतिश्त सफलता नहीं मिल पाई है। इसी कारण से सरकार को बैंकों में बीस हजार करोड़ डालना पड़ा है ताकि उनकी बैलेंस शीट में सुधार आ सके। आने वाले दिनों में बैंक की रिस्क मनी में और बढ़ौतरी होने की संभावना है। यह सब कूछ नोटबंदी के फैसले के बाद के परिणाम हैं। नोटबंदी के बाद ऑटोमोबाइल और रियल स्टेट सेक्टरों को जो आर्थिक पैकेज दिये गये थे उनसे कोई सुधार नहीं हुआ। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में बिना गारंटी के कर्ज दिये गये। फिर कोरोना काल के सारे आर्थिक पैकेजों में कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन सारे फैसलों का परिणाम है बैड बैंक की स्थापना और अब इससे वेतन और पेंशन के प्रभावित होने की संभावना है। इस आर्थिक संकट के लिए पूर्व सरकारों को जिम्मेदार ठहराना कठिन हो जायेगा। क्योंकि इससे समर्थक और विरोधी सभी एक साथ और एक सम्मान प्रभावित होंगे।

कर्ज, मंहगाई और बेरोजगारी बनाम विकास


प्रदेश की तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव हो रहे है। इन उपचुनावों के लिये प्रदेश के बारह में से आठ जिलों में चुनाव आचार संहिता लागू है । प्रदेश के 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 20 में मतदान होगा। विधान सभा के लिये आम चुनाव दिसम्बर 2022 में होना है वैसे यह संभावना भी बनी हुई है कि कहीं यह आम चुनाव तय समय से पहले ही उतर प्रदेश के चुनावों के साथ ही फरवरी-मार्च में ही न करवा लिये जायें। इस व्यवहारिक स्थिति को सामने रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन उपचुनावों के परिणाम आने वाले आम चुनावों के परिणामों का भी साफ और स्पष्ट संकेत एवम संदेश होंगे। 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा के लिये हुए प्रदेश के सारे चुनाव भाजपा ने ही जीते हैं यह एक व्यवहारिक सच है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि 2014 से लेकर 2021 में हुए बंगाल चुनावों से पहले तक प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा हर चुनाव जीतती आयी है। जहां जीत नही पायी वहां पर तोड़ फोड़ से सरकार बना ली। बंगाल चुनावों में पहली बार नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जगत प्रकाश नड्डा और आर एस एस के नाम पर ऐसी हार मिली है जिसने मोदी है तो मुनकिन है की धारणा को बुरी तरह तोड़कर रख दिया है। बंगाल चुनावों के बाद जो भी चुनाव देश में हांगे उन पर बंगाल की हार का साया साफ देखने को मिलेगा यह भी स्पष्ट है। क्यांकि बंगाल चुनावों के बाद मोदी सरकार के सारे आर्थिक और राजनीतिक फैसले चर्चा में आ गये हैं। बढ़ती मंहगाई बेराजगारी, भ्रष्टाचार और कर्ज ने आम आदमी को इसके कारणों पर विचार करने के लिये बाध्य कर दिया है।हिमाचल में हो रहे इन उपचुनावों को भी इसी आईने में देखना होगा। विपक्ष मंहगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा है। भाजपा और उसकी सरकार इस दौरान हुए विकास के नाम पर जनता से समर्थन मांग रही है। इसलिये सरकार के विकास के दावे को बिना किसी पूर्वाग्रह को परखना आवश्यक हो जाता है। जयराम सरकार ने दिसम्बर 2017 में चुनाव जीतकर जनवरी 2018 में प्रदेश की सता संभाली और 9 मार्च को विधानसभा में अपना पहला बजट भाषण पढ़ा़। मुख्यम़न्त्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले बजट भाषण में यह आंकड़े रखे थें कि दिसम्बर 2017 में प्रदेश का कर्जभार 46385 करोड़ हो गया था जो कि पिछले पांच वर्षां की तुलना में 246% अधिक था। जयराम ने यह आरोप लगाया था कि वीरभद्र सरकार ने 18787 करोड़ का अतिरिक्त ऋण लिया था। दिसम्बर 2012 में सरकार छोड़ते समय यह कर्ज 27598 करोड़ था जो आज 46385 करोड़ हो गया है। लेकिन आज जयराम के ही चार वर्षां से भी कम समय में यह कर्ज 65000 करोड़ से पार चला गया है। जितना कर्ज वीरभद्र सरकार ने पांच वर्षां में लिया था उससे ज्यादा यह सरकार साढ़े तीन वर्षां मे ले चूकी हैं। यह कर्ज लेने के बावजूद इस सरकार को उपचुनाव घोषित होने के बाद खाद्य तेलों की कीमत बढ़ानी पड़ी है। आज प्रदेश भर में सड़कां की हालत क्या है यह किसी से छूपी हुई नही है। स्कूलों में अध्यापक नही है और अस्पताल में डाक्टर नही है। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय कई बार चिन्ता व्यक्त कर चुका है। रोजगार के जो आंकड़े आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से विधानसभा पटल पर रखे गये हैं उनके मुताबिक 2019 में सरकार में नियमित कर्मचारियों की संख्या 1,81,231 थी जो 2020 में 1,81,430 हो गयी है। जिसका अर्थ है कि एक वर्ष में केवल 200 लोगो को नियमित रोजगार मिल पाया है। पार्ट टाईम 2019 में 3334 थे जो 2020 में 3619 हो गये। दैनिक वेतन भोगी 2019 में 7253 थे जो 2020 में 6256 रह गये हैं। यह सदन में रखे आंकड़े हैं । इनके अतिरिक्त जो भी और रोजगार दिया गया है वह सारा आउट सोर्स के माध्यम से है जिसमें रोजगार का माध्यम बनने वाली कम्पनी को हर व्यक्ति पर कमीश्न मिलता है। आज प्रदेश में आउटसोर्स के व्यापार में लगी कम्पनियों की संख्या 100 से ज्यादा हो गयी है। और इन्हें कमीश्न के नाम पर करोड़ों रूपये मिल रहे हैं। आउट सोर्स के माध्यम से लगने वाले कर्मचारी नियमित नही हो सकते क्योंकि वह सरकार के कर्मचारी है ही नही। ऐसे में आउटसोर्स के माध्यम से मिले रोजगार को क्या शोषण की संज्ञा नही दी जानी चाहिये।
मंहगाई के कारण आज पैट्रोल और रसोई गैस के दाम कहां पहुंच गये है यह किसी से छिपा नही है। लेकिन सरकार मंहगाई को यह कहकर जायज़ ठहरा रही है कि यह तो कांग्रेस के समय भी बढ़ी थी परन्तु यह नही बता रही कि तब गैस सिलैन्डर 450 रूपये मिलता था जो आज 1000 से उपर हो गया है। 2014 में जो बैंकों में जमा पुजी पर ब्याज मिलता था वह आज आधा रह गया है। क्योंकि आज बढ़ते एन पी ए के कारण सरकार को बैड बैंक बनाना पड़ गया है। बैड बैंक का स्पष्ट अर्थ है कि देश की बैंकिग व्यवस्था कभी भी फेल हो सकती है। लेकिन सरकार इन कारणों को जनता में ला नही पा रही है। क्योंकि इससे सरकार की आर्थिक नीतियां पर एक सार्वजनिक बहस छिड़ जायेगी जो सरकार के लिये घातक होगी। ऐसे में मंहगाई बेरोजगारी और बढ़ता कर्ज सबके सामने है। अब देखना यह है कि जनता इस सबके बाद भी सरकार को समर्थन देती है या नही।

सरकार की हताशा का प्रमाण है लखीमपुर प्रकरण

किसान आन्दोलन को लम्बाने और असफल बनाने के जितने भी प्रयास किये जायेंगे उससे सरकार के प्रति आम आदमी का रोष उतना ही बढ़ता जायेगा यह लखीमपुर प्रकरण सें प्रमाणित हो गया है। क्योंकि इस प्रकरण से पहले जिस भाषा और तर्ज में गृह राज्य मन्त्री ने किसानों को सबक सिखाने की चेतावनी दी थी उसका विडियो सामने आने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार आन्दोलन को हिंसा से कुचलना चाहती थी। प्रकरण घट जाने के बाद जिस तरह मन्त्री अजय मिश्रा अपने बेटे के घटना स्थल पर होने से ही इन्कार कर रहे थे उसका सच भी तब सामने आ गया जब क्राईम ब्रांच ने मन्त्री के पुत्र को लम्बी पूछताछ के बाद इस कारण गिरफ्तार किया कि वह जांच में सहयोग नही दे रहा था। पुलिस के सवालों का जबाव नही दे रहा था। क्राईम ब्रांच की पूछताछ में शामिल होने के लिये आशीष मिश्रा अपने साथ दो वकील लेकर गया था। इसलिये वह पुलिस पर किसी भी तरह का दबाव डालने का आरोप नही लगा सकता। आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद उनके पिता गृह राज्य मन्त्री अजय मिश्रा के त्याग पत्र की मांग बढ़ती जा रही है और बहुत संभव है कि प्रधानमन्त्री उनका त्याग पत्र भी ले लें।
इस लखीमपुर प्रकरण से यह प्रमाणित हो गया है कि किसान आन्दोलन को किसी भी तरह की हिंसा से दबाना संभव नही होगा। 26 जनवरी को भी इसी तरह का प्रयास हुआ था। उससे पहले जिस तरह सड़क पर कीलें गाडकर रोकने का प्रयास किया गया था वह भी सारे देश ने देखा है। जो आन्दोलन जायज मुद्दों पर आधारित होते हैं और हर छोटे-बडे़ को एक समान प्रभावित करते हैं ऐसे आन्दोलन किसी भी डर से उपर हो जाते हैं। ऐसे आन्दोलन को राजनीति से प्रेरित करार देना अपने आपको धोखा देना हो जाता है। राजनीति द्वारा प्रायोजित आन्दोलन और उनके नेतृत्व का अन्तिम परिणाम अन्ना आन्दोलन जैसा होता है। नेता आन्दोलन स्थल तक आने का साहस नही कर पाता है। अन्ना और ममता के साथ यही हुआ था। इसलिये आज सरकार और उसके हर समर्थक को यह अहसास हो गया होगा कि किसानों की मांगे मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नही रह गया है। क्योंकि इस सरकार के सारे आर्थिक फैसले केवल कुछ अमीर लोगों को और अमीर बनाने वाले ही प्रमाणित हुए हैं। मोदी सरकार ने मई 2014 में अच्छे दिन लाने के साथ देश की सत्ता संभाली थी। लेकिन आज यह अच्छे दिन पैट्रोल सौ रूपये और रसोई गैस एक हजार रूपये से उपर हो जाने के रूप में आये हैं। 2014 में बैंक जमा पर जो ब्याज देते थे वह आज 2021 में उससे आधा रह गया है। आज भी 19 करोड़ से ज्यादा लोग रात को भूखे सोते हैं और इस सच को पूर्व केन्द्रीय मन्त्री शान्ता कुमार ने अपनी आत्म कथा में स्वीकारा है। सरकार की आर्थिकी नीतियों ने सरकार को बैड बैंक बनाने पर मजबूर कर दिया है। किसी भी सरकार के आर्थिक प्रबन्धन पर बैड बैंक के बनने से बड़ी लानत कोई नही हो सकती है।
इस परिप्रेक्ष में यदि कृषि कानूनों पर नजर डालें तो जब यह सामने आता है कि सरकार ने कीमतों और होर्डिंग पर से अपना नियन्त्रण हटा लिया है तो और भी स्पष्ट हो जाता है कि गरीब आदमी इस सरकार के ऐजैण्डों मे कहीं नही है। जो पार्टी किसी समय स्वदेशी जागरण मंच के माध्यम से एफ डी आई का विरोध करती थी आज उसी की सरकार रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भी एफ डी आई ला चुकी है। आज सैंकड़ों विदेशी कम्पनियां देश के आर्थिक संसाधनों पर कब्जा कर चुकी हैं। कृषि में कान्ट्रैक्ट फारमिंग लाकर इस क्षेत्र को भी मल्टीनेशनल कम्पनियों को सौंपने की तैयारी की गई है। इसलिये आज इन कृषि कानूनों का विरोध करना और सरकार को इन्हें वापिस लेने पर बाध्य करना हर आदमी का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। आर्थिकी को प्रभावित करने वाले फैसलों को राम मन्दिर, तीन तलाक, धारा 370 हटाने के फैसलों से दबाने का प्रयास आत्मघाती होगा। बढ़ती कीमतों और बढ़ती बेरोजगारी ने आम आदमी को यह समझने के मुकाम पर ला दिया है कि सरकार की इन उपलब्धियां का कीमतों के बढ़ने से कोई संबंध नही है। इसलिये सरकार को यह कानून वापिस लेने का फैसला लेने में देरी करना किसी के भी हित में नही होगा।

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