Wednesday, 17 December 2025
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घातक होगा अग्निपथ पर बढ़ता विरोध

अग्निपथ योजना का विरोध लगातार बढ़ता और उग्र होता जा रहा है। सरकार और उसके समर्थकों का कोई भी तर्क यह युवा सुनने को तैयार नहीं है। सेना की इस चेतावनी कि जिनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज होगी उनके लिये यह दरवाजे बंद हो जायेंगे का भी असर नहीं हुआ है। जनसाख्यिकी के अनुसार देश की 50% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। 55 से ऊपर के 15% और 25 से 55 के बीच 35% हैं। आज जो अग्निपथ का विरोध कर रहे हैं वह सब 25 से कम आयु वर्ग के हैं और सेना में निश्चित रूप से स्थाई रोजगार के पात्र यही लोग थे। यह चाहे मैट्रिक, प्लसटू या ग्रेजुएशन करके सेना का रुख करते वहां पर उन्हें 20-25 वर्ष का रोजगार मिलने की संभावना थी। जो केवल 4 वर्ष की ही रह गई है। 4 वर्ष बाद जब यह 23 लाख लेकर वापस आएंगे तो फिर बेरोजगारों की कतार में खड़े होंगे। इन्हें यह आश्वासन दिया जा रहा है कि उन्हें सरकारी सेवा में प्राथमिकता दी जाएगी। प्राइवेट सैक्टर में उन्हें सिक्योरिटी गार्ड रखने का आश्वासन दे रहा है। लेकिन क्या यही आश्वासन इनसे पहले भूतपूर्व सैनिकों को नहीं दिये गये हैं? क्या कोई भी सरकार यह दावा कर सकती है कि उसने सभी भूतपूर्व सैनिकों को रोजगार दे रखा है शायद नहीं। फिर 25 से 55 वर्ष के बीच भी तो रोजगार है और इसीलिए सभी सरकारों ने सरकारी सेवाओं के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 से ऊपर कर रखी है। इस व्यवहारिक स्थिति के परिदृश्य में क्या इन युवाओं को कोई भी तर्क सरकार पर भरोसा करने के लिए प्रेरित कर सकता है। क्योंकि दूसरा कड़वा सच यह है कि जिन सरकारी अदारो में रोजगार सृजित होता था उन्हें विनिवेश और मौद्रीकरण के नाम पर सरकार प्राइवेट सैक्टर के हवाले कर चुकी है। प्राइवेट सैक्टर हाथ का विकल्प रोबोट लगाकर छटनी कर रहा है। इस छंटनी का विरोध न हो इसीलिए कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान श्रम कानूनों में संशोधन करके हड़ताल का अधिकार समाप्त किया गया। लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम के नाम पर उद्योगों में हाथ की जगह मशीनों ने ले ली है। फिर यह सारे तथ्य एक खुली किताब की तरह हर युवा के सामने है। ऐसे में कोई बताये की युवा इस के सामने रोजगार की उम्मीद कहां बची है? आज क्या बीस लाख रूपये से कोई व्यवसाय शुरू किया जा सकता है? क्या आज बीस लाख बैंक में जमा करवा कर इतना ब्याज मिल सकता है जिसके सहारे वह अपने और परिवार के लिए कोई निश्चित योजना बना सकता है। फिर उसे तो भूतपूर्व सैनिक का दर्जा भी हासिल नहीं होगा। ऐसे में जो प्राथमिकताएं उन्हें आश्वासित की जा रही है वही भूतपूर्व सैनिकों को हासिल है। क्या इससे इनमें अपने में ही हितों के टकराव की स्थिति पैदा नहीं हो जायेगी? इन सारे पक्षों पर एक साथ विचार करते हुए रोजगार के दृष्टिकोण से इस योजना को लाभदायक नहीं माना जा सकता है। रोजगार से हटकर इस योजना का दूसरा पक्ष और भी गंभीर है। इसके माध्यम से सेना में भी प्राइवेट सैक्टर के दखल का रास्ता खोला जा रहा है। इस समय देश में 35 सैनिक स्कूल चल रहे हैं जिनमें से 33 रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी द्वारा संचालित हो रहे हैं और दो राज्य सरकारों के संचालन में हैं। लेकिन इस अग्निपथ योजना के साथ जो 100 सैनिक स्कूल खोले जाएंगे वह निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में खोले जा रहे हैं। इस भागीदारी में कोई भी एनजीओ, सोसाइटी, स्कूल आदि हो सकता है। यह स्कूल पहल से चल रहे स्कूलों से भिन्न होंगे। यह योजना में ही कहा गया है इस कड़ी में वर्ष 2022-23 से 21 स्कूल चालू हो जायेंगे। इनकी सूची जारी कर दी गयी है। इनमें अधिकांश स्कूल आर.एस.एस विद्या भारती के माध्यम से चल रहे हैं। स्वभाविक है कि जब एक विचार धारा की संख्या के साथ पार्टनरशिप रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी की हो जाएगी तो दूसरी विचारधारा की संख्या के साथ यह भागीदारी कैसे मना की जायेगी। स्वभाविक है कि जो भागीदार स्कूल चलाने में निवेश करेगा उसके भी अपने कुछ नियम और शर्तें रहेगी। ऐसे में विभिन्न विचारधाराओं द्वारा संचालित स्कूलों से यह बच्चे सेना में एक साथ पहुंचेंगे तो एक अलग ही तरह का परिदृश्य खड़ा हो जायेगा। इसलिए सैनिक स्कूलों के संचालन में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी के प्रयोग से पहले इस पर एक खुली बहस से सर्वसहमति बनायी जानी आवश्यक थी और इसके अभाव में इस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। ऐसे में जो विरोध उठ खड़ा हुआ है उसके परिदृश्य में इस योजना को वापिस लेना ही हितकर होगा।

यह विरोध कहीं विद्रोह न बन जाये

सेना में पिछले दो वर्षों से कोई भर्ती नहीं हो पायी है यह इसलिये नहीं हो पाया है क्योंकि वर्ष 2020 को 2021 में देश कोरोना के कारण लॉकडाउन में था। लेकिन इसी दौरान कुछ राज्यों में विधानसभा के लिये चुनाव हुये हैं। लोकसभा के लिये उपचुनाव भी हुये। सरकार चुनावों का प्रबंध तो कर पायी लेकिन सरकार के विभिन्न विभागों में खाली पड़े करीब 62 लाख पदों को भरने का उपक्रम नहीं कर पायी। अकेले सेना में ही दो लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। जबकि 2014 और 2019 के चुनाव के दौरान यह वादा किया गया था कि 2 करोड पद सृजीत करके भरे जायेंगे। लेकिन यह वादा केवल जुमला होकर ही रह गया। सेना में भर्तियां न हो पाने के कारण लाखों युवा इसके लिये ओवरेज भी हो गये हैं। सेना में प्रतिवर्ष 50,000 से ज्यादा सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेना की व्यवहारिक स्थिति क्या होगी। कई युवा तो ग्राउंड और लिखित टेस्ट क्लियर करने के बाद मेडिकल के लिये काल आने की प्रतीक्षा में थे। लेकिन जब 14 जून को अग्निपथ योजना अधिसूचित हुई और यह कहा गया कि अब इस योजना के तहत छयालीस हजार अग्निवीर भर्ती होंगे और उनका कार्यकाल केवल चार वर्ष का होगा तथा उनमें से 75% को सेवानिवृत्ति करके घर भेज दिया जायेगा। इसका असर उन युवाओं पर क्या हुआ होगा जो सेना में अपना भविष्य देख रहे थे। यह योजना आते ही उनके आगे अंधेरा छा जाना स्वभाविक था। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि आज सरकार सेना में भी स्थाई रोजगार दे पाने की स्थिति में नहीं रह गई है। हिमाचल में ही सेना नौकरी का कितना बड़ा साधन है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि सेना भर्ती तुरंत चालू की जाये।
जो सरकार सेना में भी नियमित नौकरी देने की स्थिति में न हो क्या उसकी नीयत और नीति दोनों पर ही प्रश्न नहीं उठाये जाने चाहिये? आज सेना में स्थायी रोजगार पाने की उम्मीद में बैठे लोगों को अग्निपथ योजना का विरोध करने के लिये किसी योजनाबद्ध तरीके से किसी नेतृत्व के तहत संगठित नहीं होना पड़ा है। 14 तारीख को योजना अधिसूचित होती है और 15 को प्रधानमंत्री के धर्मशाला आने पर उनके स्वागत में लगाये गये बैनर,पोस्टर, होल्डिंग विरोध से फाड़ दिये जाते हैं। पुलिस को आक्रोशित युवाओं को रोकने के लिए बल प्रयोग करना पड़ता है। यह गुस्सा स्वभाविक और घोर निराशा का स्वतः प्रमाण था। इस आक्रोश के समझने की यह किसी राजनीतिक दल के नाम लगाने से हल होने या रुकने वाला मामला है। यह सवाल आज हर जुबान पर हैं कि आखिर रोजगार खत्म कैसे हो गया? इसका जवाब प्रधानमंत्री से लेकर बूथ पालक तक को देना होगा की रोजगार पैदा करने वाले हर अदारे को प्राइवेट सैक्टर के हवाले क्यों कर दिया गया? यह भी जवाब देना पड़ेगा कि लॉकडाउन में पहला फैसला मजदूर का हड़ताल का अधिकार छीनने का क्यों लिया गया? यह भी बताना होगा कि लॉकडाउन और हड़ताल का अधिकार समाप्त करके उद्योगों में रोबोट संस्कृति लाकर हाथों को बेकार क्यों किया गया? किसान को कमजोर करने के फैसले के बाद जवान को कमजोर करने का यह फैसला क्यों लिया गया?
अग्निपथ योजना की जिस तरह और तर्क से एक वर्ग वकालत करने पर उतर आया है उससे 2019 में सैनिक स्कूलों को प्राइवेट सैक्टर को देने के फैसले पर ध्यान जाना स्वभाविक है। क्योंकि आज सैनिक स्कूलों के संचालन में आरएसएस का नाम सबसे प्रमुख है। विद्या भारती के माध्यम से इनका संचालन किया जा रहा है। इससे यह सवाल उठने लग पड़ा है कि क्या देश की सेना भी संघ की विचारधारा के अनुरूप बनाने की योजना का यह अग्निपथ पहला चरण तो नहीं है। अग्निपथ के साथ ही देश में पेट्रोल डीजल का संकट खड़ा होने लग गया है। इसी संकट के साथ खाद्यानों की कीमतें बढ़ना शुरू हो गया है। लेकिन प्रधानमंत्री इस सब पर खामोश हैं। वह 2047 तक की योजनायें देश के मुख्य सचिवों के साथ बनाने में व्यस्त हैं। ऐसे में क्या देश दूसरे जे.पी. आंदोलन की ओर बढ़ रहा है जिसका नेतृत्व यह आक्रोशित युवा करेगा। क्योंकि दूसरे नेतृत्व के लिये आयकर, ईडी, सीबीआई और एन आई ए जैसी कई एजेंसियां खड़ी है। लेकिन नौकरी की उम्मीद में बेरोजगार बैठे इस आक्रोशित युवा को यह एजेंसीयां नहीं रोक पायेंगी

 

बढ़ता कर्ज विकास नहीं भविष्य को गिरवी रखना होता है

इस वर्ष के अन्त में प्रदेश में चुनाव होने हैं मुख्यमंत्री हर क्षेत्र में जाकर नयी-नयी योजनाओं की घोषणाएं कर रहे हैं। इन घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिये कितने करोड़ धन की आवश्यकता होगी। यदि इन आंकड़ों का आकलन किया जाये तो यह योग शायद कुल बजट से भी बढ़ जायेगा। यह धन जुटाने के लिये कर्ज के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं होगा। केंद्र हिमाचल को जयराम के कार्यकाल में कितना सहयोग दे चुका है और उसका व्यवहारिक सच क्या है इस पर पिछले अंक में चर्चा कर चुका हूं। क्योंकि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष और स्वयं मुख्यमंत्री जो आंकड़े परोस चुके हैं उन्हीं से इस सहायता पर संदेह होता है। यह संदेह कैग कि 31 मार्च 2020 को समाप्त हुये वर्ष को लेकर आई रिपोर्ट से और पुख्ता हो जाता है। इस रिपोर्ट के दूसरे ही पन्ने पर वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक भारत सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान के आंकड़े दर्ज हैं। तालिका 1-2 में गैर योजना गत अनुदान, राज्य योजना स्कीमों हेतु अनुदान, केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु अनुदान में वर्ष 2017-18, 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिये इन स्कीमों में शुन्य अनुदान दिखाया गया है। संभव है कि मुख्यमंत्री और विपक्ष तथा मीडिया के विद्वानों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन कैग रिपोर्ट में यह दर्ज है और यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जा चुकी है तथा सरकार ने इसे स्वीकार भी कर लिया है।
प्रदेश का कर्ज भार 70000 करोड से पार जा चुका है। पिछली सरकार 46000 करोड का कर्ज छोड़ कर गयी थी। इस सरकार को हर वर्ष करीब 5000 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा है। ऐसे में जब अब की जा रही घोषणाओं पर होने वाले खर्च को इसमें जोड़ा जायेगा तो यह आंकड़ा निश्चित रूप से एक लाख करोड़ तक पहुंच जायेगा। इसका अर्थ होगा कि अगले 5 वर्षों में यह कर्ज कई गुना बढ़ जायेगा। क्योंकि लिये हुए कर्ज की किस्तें और ब्याज चुकाने में ही सारे साधन लग जायेंगे। इसका दूसरा परिणाम होगा कि बेरोजगारी और महंगाई बढ़ेगी। बेरोजगारी में प्रदेश आज ही देश में छठे स्थान पर पहुंच चुका है। और आने वाले समय में स्थिति क्या हो जायेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज ही सरकार राशन कार्डो के पुणे परीक्षण से सस्ते राशन के लाभार्थियों की संख्या कम करने का प्रयास कर रही है। जिस पर फिलहाल उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। मनरेगा में अभी तक नये वर्ष में बजट जारी नहीं हो सका है। हर विभाग में रिक्तियां चल रही है जिन्हें सरकार भरने में असमर्थ है। 2019 में स्कूलों में बच्चों को सरकार वर्दी नहीं दे पायी है। बल्कि अन्य वर्षाे में भी वर्दी वितरण समय पर नहीं हो पाया है। सैकड़ों बच्चों को सिलाई के पैसे का भुगतान नहीं हो सका है। कैग रिपोर्ट में वर्दियों को लेकर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। ऐसे दर्जनों मामले कैग रिपोर्ट में ही दर्ज हैं जो सरकार की आर्थिक स्थिति का खुलासा सामने रखते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर डॉलर के मुकाबले में रुपए की कीमत लगातार गिरती जा रही है। सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र को सौंपने के लिये हर समय प्रयासरत है। 2014 के मुकाबले सरकार का कर्ज भार दोगुना से भी अधिक हो चुका है। अधिकारी प्रधानमंत्री को आगाह कर चुके हैं कि यदि मुफ्ती की घोषणाओं पर रोक न लगायी गयी तो हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। ऐसी वस्तु स्थिति में केंद्र किसी भी प्रदेश की कोई बड़ी आर्थिक सहायता नहीं कर पायेगा यह तय है। सारी सहायता घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ पायेंगी। इसलिए आज सत्ता के लिये प्रदेश को और कर्ज के गर्त में ले जाने के हर प्रयास से बचना होगा। मुख्यमंत्री को यह बताना होगा कि यह घोषणायें चुनावी वर्ष में ही क्यों हो रही है? इनके लिए धन का प्रावधान क्या है। यह स्पष्ट करना होगा कि इसके लिये और कर्ज नहीं लिया जायेगा। कर्ज लेकर खैरात बांटने की नीति से परहेज करना होगा।

सत्ता के आठ वर्षों में उभरे कुछ सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता संभाले आठ वर्ष पूरे हो गये हैं। इन आठ वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री ने इसे गरीब कल्याण सम्मेलन का नाम देते हुये देश को संबोधित किया। इस संबोधन के लिये शिमला का चयन किया गया था। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एक बड़ी बात यह कही है कि आठ वर्षों में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिस पर देश को शर्मिंदा होना पड़ा। प्रधानमंत्री केे इस दावे का आकलन करने के लिए 2014 के अन्ना आंदोलन के दौरान देश के सामने क्या परोसा गया था उस पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। उस समय की सरकार को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित किया गया था। क्योंकि उस समय 2G स्पेक्ट्रम पर सीएजी की रिपोर्ट आ गई थी। इस रिपोर्ट में 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन में 176000 करोड़ का घपला होने का खुलासा किया गया था। लेकिन इस पर चली जांच में उसी सी ए जी विनोद राय ने यह कहा कि उन्हें इस गणना में गलती लगी है और कोई घपला नहीं हुआ है। इसके लिए विनोद राय ने अदालत से क्षमा याचना भी की है। उसके खिलाफ मानहानि का मामला इसलिए नहीं बना क्योंकि विनोद राय संवैधानिक पद पर थे। अन्ना का आंदोलन संघ का प्रायोजित था यह सब जानते हैं। इस एक कदम झूठे मामले से देश की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा है। क्या इस झूठ के बेनकाब होने पर आंदोलन के प्रायोजकांे को देश से क्षमा नहीं मांगनी चाहिए थी। आज गरीब के लिए जिन योजनाओं पर सम्मेलन को संबोधित किया जा रहा है क्या उसका एक सच यह नहीं है कि इस गरीब को जो उसके जमा पर 2014 में जो ब्याज मिलता था वहां अब आधा क्यों रह गया है? शुन्य बैलेंस के नाम से खोले गए जन-धन खातों में 1000 और 500 के न्यूनतम शेष की शर्त क्यों लगा दी गई? उस न्यूनतम पर खाता धारक को कोई लाभ क्यों नही मिलता? उज्जवला योजना के तहत बांटे गये गैस सिलेंडरों को हिमाचल में ही 65% लाभार्थी रिफिल नहीं करवा पाये हैं क्या यह गर्व करने का विषय है या शर्म महसूस करने का? गरीब के कल्याण के नाम पर क्या गरीब को ही महंगाई और बेरोजगारी की मार से सबसे ज्यादा नहीं ठगा गया? नोटबंदी जब घोषित की गयी थी तब प्रधानमंत्री ने इसके लाभ गिनवाते हुए यह दावा किया था कि भविष्य में जाली नोट छपने बंद हो जाएंगे। नए नोटों में कई सुरक्षात्मक प्रावधान होने के दावे किए गए थे। लेकिन इसका सच यह रहा है कि 99.6% पुराने नोट नये नोटों से बदल लिए गये। शेष बचे 0.4 नेपाल में नोटबन्दी प्रभावी न होने से नहीं बदले जा सके। इस तरह क्या शत प्रतिश्त पुराने नोट नये नोटों से नही बदले गये? फिर अब रिजर्व बैंक ने 2021-22 के लिये जो रिपोर्ट जारी की है उसमें साफ स्वीकारा गया है कि 10 रूपये के नोट से लेकर 2000 रूपये तक के हर मूल्य के जाली नोट अब भी छप रहे हैं। पूरे आंकड़े जारी किये गये हैं। 500 रूपये के नोटों में यह आंकड़ा 101.7% बताया गया है। क्या नोटबंदी के बाद भी जाली नोटों का छपना जारी रहना किसी भी तर्क से गर्व का विषय हो सकता है? अब जब कोरोना आया तब सबसे पहले आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करना अनिवार्य किया गया। ऐसा न करने पर बहुत सारी बंदिशे घोषित की गयी। लेकिन जब यह मामला अदालत तक पहुंचा तो सरकार ने इस पर पूरी अनभिज्ञता प्रकट करते हुये साफ कहा कि सरकार ने इसे जारी नहीं किया है। इसी तरह टीकाकरण को लेकर हर तरह की बंदिशे जारी हुई। लेकिन यह मामला भी जब सर्वाेच्च न्यायालय में पहुंचा तो सरकार ने अपने जवाब में कहा कि टीका लगवाना अनिवार्य नहीं किया गया है यह एकदम ऐच्छिक है। कोरोना को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित नहीं किया है यह सामने आ चुका है। लेकिन इसी कोरोना को भगाने के लिये प्रधानमंत्री के आग्रह पर देश ने ताली थाली बजायी दीपक जलाये। क्या किसी और देश ने बीमारी को भगाने के लिये ऐसा कदम उठाया है? क्या इस पर आप शर्म कर पायेंगे? प्रधानमत्री की व्यक्तिगत बौद्धिकता को लेकर तो कई सवाल चर्चा में है। जिस विषय ‘टोटल पॉल्टिकल साइंस’ में स्नातकोतर होने का दावा करते हैं वह देश के किस विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है यह आज तक सामने नहीं आया है। आज जब शासन के आठ वर्ष पूरे होने पर देश के सामने इस तरह के दावे किये जाएंगे तो स्वभाविक रूप से आर्थिक स्थिति को लेकर दर्जनों सवाल पूछे जाएंगे। वह सारे सवाल और दावे उछलेंगे ही जो 2014 के आंदोलन के दौरान पूछे जा रहे थे। जिस संसद को अपराधियों से मुक्त करवाने का दावा किया गया था वहां लोकसभा के 539 चयनित माननीय में से 43% अपराधिक छवि के हैं। इसमें कोई भी दल अछूता नहीं है। भाजपा 133 के आंकड़े के साथ शीर्ष पर है क्या यह सब गर्व का विषय है यह निर्णय आप स्वयं करें क्योंकि संभव है कि आपके हिंदुत्व के आगे यह कुछ भी न हो।

क्या जयराम भी मान की तर्ज पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करेंगे


पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद भगवंत मान ने सबसे पहले उस सुरक्षा स्थिति का नये सिरे से आकलन किया जिसके तहत कुछ राजनेताओं और अन्य लोगों को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करवाई गयी थी। इस आकलन में प्रशासन द्वारा दिये गये फीडबैक के बाद यह सुरक्षा हटा ली गयी और उन लोगों के नाम भी सार्वजनिक कर दिये गये जिनकी सुरक्षा हटायी गयी थी। अब यह सुरक्षा हटाये जाने के बाद पंजाब कांग्रेस के नेता सिद्धू मूसेवाला की कुछ लोगों ने सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी है। यह हत्या निंदनीय है विपक्ष इस हत्या के लिये मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार मानते हुये उन पर भी गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने की मांग कर रहा है। इससे पता चलता है कि राजनीति अब नया मोड़ लेने वाली है। मेरे विचार में पंजाब सरकार से मांगी यह की जानी चाहिये कि वह दोषियों को जल्द से जल्द पकड़े यहां इस पर भी विचार किया जाना चाहिये कि संसद से लेकर विधानसभाओं तक कितने अपराधिक छवि के लोग माननीय बनकर पहुंच चुके हैं और इससे कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि हर दल ऐसे ही लोगों को अपने यहां स्थान दे रहा है। यही लोग माननीय बनकर सुरक्षा घरों में घूमते हैं जिसकी कीमत आम आदमी की सुरक्षा में कमी करके चुकायी जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा दावा किया था कि वह संसद को अपराधियों से मुक्त करवायेंगे। लेकिन इस दावे के विपरीत भाजपा ने भी हर चुनाव में अपराधिक छवि के लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है क्यों? इसलिए इस हत्या के बाद अपराधिक छवि के लोगों के राजनीति में प्रवेश को लेकर एक खुली बहस आयोजित किया जाना आवश्यक है। इस हत्या से पहले पंजाब सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करते हुये जिस तरह से अपने स्वास्थ्य मंत्री को न केवल पद से ही हटाया बल्कि जेल भी पहुंचा दिया। भ्रष्टाचार की जानकारी केवल मुख्यमंत्री तक ही थी। मीडिया और विपक्ष को इसकी भनक तक नहीं थी। लेकिन भगवंत मान ने इस पर पर्दा डालने की बजाय मंत्री के खिलाफ कारवायी करके देश की सारी सरकारों के लिये एक चुनौती खड़ी कर दी है। आज भ्रष्टाचार जिस तरह कैंसर की शक्ल ले चुका हैं उसके परिदृश्य में मान का कदम अति सराहनीय है। आज तक केंद्र से लेकर राज्यों तक कोई भी सरकार ऐसा नहीं कर पायी है। इसलिये मान के इस कदम से आम आदमी में आप की जो विश्वसनीयता बड़ी है उससे दूसरे राजनीतिक दलों का गणित गड़बड़ाना आवश्यक है। क्योंकि आप ने दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा दोनों को लगातार दो बार हराया है। पंजाब में भी यह दोनों दल हारे हैं। इससे आज आप भाजपा और कांग्रेस के विकल्प की शक्ल लेने लग गयी है। आप की जिन मुफ्ती योजनाओं पर अपरोक्ष में चर्चा उठाते हुये कुछ अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को यहां तक कह दिया था कि यदि राज्यों को ऐसा करने से न रोका गया तो यहां भी श्रीलंका जैसे हालात हो सकते हैं। लेकिन इसी बैठक के बाद हिमाचल के मुख्यमंत्री ने चुनाव के परिदृश्य में कई मुफ्ती की घोषणाएं करके भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर संकट में डाल दिया। मुफ्ती की घोषणाएं केंद्र से लेकर राज्यों तक हर सरकार चुनावी लाभ के लिये कर रही है। इन्हीं मुफ्ती घोषणाओं का परिणाम महंगाई और बेरोजगारी है। इसीलिए मुफ्ती संस्कृति को बढ़ावा देने की बजाय उसकी निंदा की जानी चाहिये। आप के नेतृत्व से जब यह प्रश्न पूछा गया था कि मुफ्ती के लिये संसाधन कहां से आयेंगे तो जवाब आया था कि यदि भ्रष्टाचार पर कुछ नियंत्रण कर लिया जाये तो संसाधन स्वतः बन जायेंगे। मान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम उठाकर ‘आप’ का संदेश स्पष्ट कर दिया है। आज इसकी तुलना जयराम के प्रशासन से की जाने लगी है। जय राम के कई मंत्री और दूसरे लोग पत्र बम्बों के माध्यम से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। स्वास्थ्य निदेशक गिरफ्तार हुये। स्वास्थ्य मंत्री से विभाग ले लिया गया। आज भी एक डॉक्टर एम सी जैन ने प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुये प्रधानमंत्री तक पत्र लिखा है। डॉक्टर जैन जांच की मांग कर रहा है यहां तक कहा है कि यदि जांच में आरोप प्रमाणित नहीं होते हैं तो वह कोई भी सजा भुगतने को तैयार है। यह शिकायत कोई गुमनाम नहीं है। लेकिन जयराम सरकार इस जांच के लिए तैयार नहीं हो पा रही है। बल्कि शिकायतकर्ता और उसकी शिकायत को जनता के सामने रखने वाले समाचार पत्र को भी धमकियां दी जा रही है। भ्रष्टाचार के ऐसे दर्जनों मामले प्रदेश सरकार के संज्ञान में लाये जा चुके हैं। जिन पर कोई कारवाई नहीं हो पायी है। इसलिए आज जनता को यह स्वयं फैसला करना होगा कि वह भ्रष्टाचार को कैसे आंकती है। क्या मान की तर्ज पर जयराम से भी भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई की मांग करेगी जनता क्योंकि जयराम का तो सिर्फ प्रशासन ही गंभीर आरोपों के घेरे में है।

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