अग्निपथ योजना का विरोध लगातार बढ़ता और उग्र होता जा रहा है। सरकार और उसके समर्थकों का कोई भी तर्क यह युवा सुनने को तैयार नहीं है। सेना की इस चेतावनी कि जिनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज होगी उनके लिये यह दरवाजे बंद हो जायेंगे का भी असर नहीं हुआ है। जनसाख्यिकी के अनुसार देश की 50% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। 55 से ऊपर के 15% और 25 से 55 के बीच 35% हैं। आज जो अग्निपथ का विरोध कर रहे हैं वह सब 25 से कम आयु वर्ग के हैं और सेना में निश्चित रूप से स्थाई रोजगार के पात्र यही लोग थे। यह चाहे मैट्रिक, प्लसटू या ग्रेजुएशन करके सेना का रुख करते वहां पर उन्हें 20-25 वर्ष का रोजगार मिलने की संभावना थी। जो केवल 4 वर्ष की ही रह गई है। 4 वर्ष बाद जब यह 23 लाख लेकर वापस आएंगे तो फिर बेरोजगारों की कतार में खड़े होंगे। इन्हें यह आश्वासन दिया जा रहा है कि उन्हें सरकारी सेवा में प्राथमिकता दी जाएगी। प्राइवेट सैक्टर में उन्हें सिक्योरिटी गार्ड रखने का आश्वासन दे रहा है। लेकिन क्या यही आश्वासन इनसे पहले भूतपूर्व सैनिकों को नहीं दिये गये हैं? क्या कोई भी सरकार यह दावा कर सकती है कि उसने सभी भूतपूर्व सैनिकों को रोजगार दे रखा है शायद नहीं। फिर 25 से 55 वर्ष के बीच भी तो रोजगार है और इसीलिए सभी सरकारों ने सरकारी सेवाओं के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 से ऊपर कर रखी है। इस व्यवहारिक स्थिति के परिदृश्य में क्या इन युवाओं को कोई भी तर्क सरकार पर भरोसा करने के लिए प्रेरित कर सकता है। क्योंकि दूसरा कड़वा सच यह है कि जिन सरकारी अदारो में रोजगार सृजित होता था उन्हें विनिवेश और मौद्रीकरण के नाम पर सरकार प्राइवेट सैक्टर के हवाले कर चुकी है। प्राइवेट सैक्टर हाथ का विकल्प रोबोट लगाकर छटनी कर रहा है। इस छंटनी का विरोध न हो इसीलिए कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान श्रम कानूनों में संशोधन करके हड़ताल का अधिकार समाप्त किया गया। लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम के नाम पर उद्योगों में हाथ की जगह मशीनों ने ले ली है। फिर यह सारे तथ्य एक खुली किताब की तरह हर युवा के सामने है। ऐसे में कोई बताये की युवा इस के सामने रोजगार की उम्मीद कहां बची है? आज क्या बीस लाख रूपये से कोई व्यवसाय शुरू किया जा सकता है? क्या आज बीस लाख बैंक में जमा करवा कर इतना ब्याज मिल सकता है जिसके सहारे वह अपने और परिवार के लिए कोई निश्चित योजना बना सकता है। फिर उसे तो भूतपूर्व सैनिक का दर्जा भी हासिल नहीं होगा। ऐसे में जो प्राथमिकताएं उन्हें आश्वासित की जा रही है वही भूतपूर्व सैनिकों को हासिल है। क्या इससे इनमें अपने में ही हितों के टकराव की स्थिति पैदा नहीं हो जायेगी? इन सारे पक्षों पर एक साथ विचार करते हुए रोजगार के दृष्टिकोण से इस योजना को लाभदायक नहीं माना जा सकता है। रोजगार से हटकर इस योजना का दूसरा पक्ष और भी गंभीर है। इसके माध्यम से सेना में भी प्राइवेट सैक्टर के दखल का रास्ता खोला जा रहा है। इस समय देश में 35 सैनिक स्कूल चल रहे हैं जिनमें से 33 रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी द्वारा संचालित हो रहे हैं और दो राज्य सरकारों के संचालन में हैं। लेकिन इस अग्निपथ योजना के साथ जो 100 सैनिक स्कूल खोले जाएंगे वह निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में खोले जा रहे हैं। इस भागीदारी में कोई भी एनजीओ, सोसाइटी, स्कूल आदि हो सकता है। यह स्कूल पहल से चल रहे स्कूलों से भिन्न होंगे। यह योजना में ही कहा गया है इस कड़ी में वर्ष 2022-23 से 21 स्कूल चालू हो जायेंगे। इनकी सूची जारी कर दी गयी है। इनमें अधिकांश स्कूल आर.एस.एस विद्या भारती के माध्यम से चल रहे हैं। स्वभाविक है कि जब एक विचार धारा की संख्या के साथ पार्टनरशिप रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी की हो जाएगी तो दूसरी विचारधारा की संख्या के साथ यह भागीदारी कैसे मना की जायेगी। स्वभाविक है कि जो भागीदार स्कूल चलाने में निवेश करेगा उसके भी अपने कुछ नियम और शर्तें रहेगी। ऐसे में विभिन्न विचारधाराओं द्वारा संचालित स्कूलों से यह बच्चे सेना में एक साथ पहुंचेंगे तो एक अलग ही तरह का परिदृश्य खड़ा हो जायेगा। इसलिए सैनिक स्कूलों के संचालन में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी के प्रयोग से पहले इस पर एक खुली बहस से सर्वसहमति बनायी जानी आवश्यक थी और इसके अभाव में इस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। ऐसे में जो विरोध उठ खड़ा हुआ है उसके परिदृश्य में इस योजना को वापिस लेना ही हितकर होगा।






जो सरकार सेना में भी नियमित नौकरी देने की स्थिति में न हो क्या उसकी नीयत और नीति दोनों पर ही प्रश्न नहीं उठाये जाने चाहिये? आज सेना में स्थायी रोजगार पाने की उम्मीद में बैठे लोगों को अग्निपथ योजना का विरोध करने के लिये किसी योजनाबद्ध तरीके से किसी नेतृत्व के तहत संगठित नहीं होना पड़ा है। 14 तारीख को योजना अधिसूचित होती है और 15 को प्रधानमंत्री के धर्मशाला आने पर उनके स्वागत में लगाये गये बैनर,पोस्टर, होल्डिंग विरोध से फाड़ दिये जाते हैं। पुलिस को आक्रोशित युवाओं को रोकने के लिए बल प्रयोग करना पड़ता है। यह गुस्सा स्वभाविक और घोर निराशा का स्वतः प्रमाण था। इस आक्रोश के समझने की यह किसी राजनीतिक दल के नाम लगाने से हल होने या रुकने वाला मामला है। यह सवाल आज हर जुबान पर हैं कि आखिर रोजगार खत्म कैसे हो गया? इसका जवाब प्रधानमंत्री से लेकर बूथ पालक तक को देना होगा की रोजगार पैदा करने वाले हर अदारे को प्राइवेट सैक्टर के हवाले क्यों कर दिया गया? यह भी जवाब देना पड़ेगा कि लॉकडाउन में पहला फैसला मजदूर का हड़ताल का अधिकार छीनने का क्यों लिया गया? यह भी बताना होगा कि लॉकडाउन और हड़ताल का अधिकार समाप्त करके उद्योगों में रोबोट संस्कृति लाकर हाथों को बेकार क्यों किया गया? किसान को कमजोर करने के फैसले के बाद जवान को कमजोर करने का यह फैसला क्यों लिया गया?
अग्निपथ योजना की जिस तरह और तर्क से एक वर्ग वकालत करने पर उतर आया है उससे 2019 में सैनिक स्कूलों को प्राइवेट सैक्टर को देने के फैसले पर ध्यान जाना स्वभाविक है। क्योंकि आज सैनिक स्कूलों के संचालन में आरएसएस का नाम सबसे प्रमुख है। विद्या भारती के माध्यम से इनका संचालन किया जा रहा है। इससे यह सवाल उठने लग पड़ा है कि क्या देश की सेना भी संघ की विचारधारा के अनुरूप बनाने की योजना का यह अग्निपथ पहला चरण तो नहीं है। अग्निपथ के साथ ही देश में पेट्रोल डीजल का संकट खड़ा होने लग गया है। इसी संकट के साथ खाद्यानों की कीमतें बढ़ना शुरू हो गया है। लेकिन प्रधानमंत्री इस सब पर खामोश हैं। वह 2047 तक की योजनायें देश के मुख्य सचिवों के साथ बनाने में व्यस्त हैं। ऐसे में क्या देश दूसरे जे.पी. आंदोलन की ओर बढ़ रहा है जिसका नेतृत्व यह आक्रोशित युवा करेगा। क्योंकि दूसरे नेतृत्व के लिये आयकर, ईडी, सीबीआई और एन आई ए जैसी कई एजेंसियां खड़ी है। लेकिन नौकरी की उम्मीद में बेरोजगार बैठे इस आक्रोशित युवा को यह एजेंसीयां नहीं रोक पायेंगी।






प्रदेश का कर्ज भार 70000 करोड से पार जा चुका है। पिछली सरकार 46000 करोड का कर्ज छोड़ कर गयी थी। इस सरकार को हर वर्ष करीब 5000 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा है। ऐसे में जब अब की जा रही घोषणाओं पर होने वाले खर्च को इसमें जोड़ा जायेगा तो यह आंकड़ा निश्चित रूप से एक लाख करोड़ तक पहुंच जायेगा। इसका अर्थ होगा कि अगले 5 वर्षों में यह कर्ज कई गुना बढ़ जायेगा। क्योंकि लिये हुए कर्ज की किस्तें और ब्याज चुकाने में ही सारे साधन लग जायेंगे। इसका दूसरा परिणाम होगा कि बेरोजगारी और महंगाई बढ़ेगी। बेरोजगारी में प्रदेश आज ही देश में छठे स्थान पर पहुंच चुका है। और आने वाले समय में स्थिति क्या हो जायेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज ही सरकार राशन कार्डो के पुणे परीक्षण से सस्ते राशन के लाभार्थियों की संख्या कम करने का प्रयास कर रही है। जिस पर फिलहाल उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। मनरेगा में अभी तक नये वर्ष में बजट जारी नहीं हो सका है। हर विभाग में रिक्तियां चल रही है जिन्हें सरकार भरने में असमर्थ है। 2019 में स्कूलों में बच्चों को सरकार वर्दी नहीं दे पायी है। बल्कि अन्य वर्षाे में भी वर्दी वितरण समय पर नहीं हो पाया है। सैकड़ों बच्चों को सिलाई के पैसे का भुगतान नहीं हो सका है। कैग रिपोर्ट में वर्दियों को लेकर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। ऐसे दर्जनों मामले कैग रिपोर्ट में ही दर्ज हैं जो सरकार की आर्थिक स्थिति का खुलासा सामने रखते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर डॉलर के मुकाबले में रुपए की कीमत लगातार गिरती जा रही है। सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र को सौंपने के लिये हर समय प्रयासरत है। 2014 के मुकाबले सरकार का कर्ज भार दोगुना से भी अधिक हो चुका है। अधिकारी प्रधानमंत्री को आगाह कर चुके हैं कि यदि मुफ्ती की घोषणाओं पर रोक न लगायी गयी तो हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। ऐसी वस्तु स्थिति में केंद्र किसी भी प्रदेश की कोई बड़ी आर्थिक सहायता नहीं कर पायेगा यह तय है। सारी सहायता घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ पायेंगी। इसलिए आज सत्ता के लिये प्रदेश को और कर्ज के गर्त में ले जाने के हर प्रयास से बचना होगा। मुख्यमंत्री को यह बताना होगा कि यह घोषणायें चुनावी वर्ष में ही क्यों हो रही है? इनके लिए धन का प्रावधान क्या है। यह स्पष्ट करना होगा कि इसके लिये और कर्ज नहीं लिया जायेगा। कर्ज लेकर खैरात बांटने की नीति से परहेज करना होगा।











