भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन की बैठक के बाद यह ब्यान आया है कि आने वाले तीस चालीस वर्ष भाजपा के ही होंगे। आज भाजपा को देश की सत्ता संभाले आठ वर्ष हो गये हैं। यदि इन आठ वर्षों का आकलन किया जाये तो महंगाई और बेरोजगारी इस काल में पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ गयी है। डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले पायदान पर पहुंच चुका है। नॉन ब्रैण्डिंग खाद्यान्न पर भी 5 से 18ः तक जीएसटी ही लग चुका है। रसोई गैस के दामों में भी 50 रूपये की बढ़ौतरी हो गयी है। पेट्रोल डीजल के दामों में कब कितनी बढ़ौतरी हो जाये यह आशंका लगातार बनी हुई है। विदेशी निवेशक लगातार शेयर बाजार से अपना निवेश निकलता जा रहा है। केंद्र से लेकर राज्यों तक सरकारें किस हद तक कर्ज के चक्रव्यूह में फंस चुकी है यह आरबीआई द्वारा चिन्हित दस राज्यों को लेकर आयी चेतावनी से स्पष्ट हो जाता है। भ्रष्टाचार किस कदर फैल चुका है यह डी.एच.एल.एफ. के पैंतीस हजार करोड़ के घपले के सामने आने से स्पष्ट हो जाता है। क्योंकि यह कंपनी सत्रह बैंकों को चूना लगाने के बाद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी भी हड़प चुकी है। जबकि जमीन पर न कोई मकान बना और न ही कोई उसका लाभार्थी सामने आया। सब कुछ कागजों में ही घट गया। यही आशंका 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटे जाने के दावे से उभरी है। क्योंकि 130 करोड़ की कुल आबादी में 80 करोड़ के दावे के साथ हर दूसरा आदमी इसका लाभार्थी हो जाता है। जबकि व्यवहार में ऐसा है नहीं है। ऐसी वस्तु स्थिति के बाद भी जब ऐसा दावा सामने आता है कि अगले चालीस वर्ष भाजपा के ही है तो कई सवाल आ खड़े होते हैं। क्योंकि 2014 में जो लोकपाल लाये जाने के लिये अन्ना के नेतृत्व में कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित करने का आंदोलन हुआ था उसमें अच्छे दिन आने का सपना दिखाया गया था। इसके लिये यह कहा गया था कि जहां कांग्रेस को साठ वर्ष देश ने दिये हैं वहीं पर भाजपा को साठ महीने दे कर देखो। लेकिन अब इन साठ महीनों के बजाये साठ साल मांगे जा रहे हैं। बल्कि पूरे दम के साथ यह दावा किया जा रहा है कि आने वाले साठ वर्ष भाजपा के हैं। यह एक ऐसा दावा है जो हर किसी को चौंका रहा है क्योंकि 2014 के मुकाबले आज सरकार हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर बुरी तरह असफल है। इस दौरान कि अगर कोई उपलब्धियां है तो उन में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत तीन तलाक खत्म करना और धारा 370 समाप्त करना। लेकिन इससे महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा इसको लेकर कुछ भी सामने नहीं आया है। बल्कि समाज में आपसी भाईचारा कैसे समाप्त हो रहा है यह धर्म संसदों के आयोजन से लेकर नूपुर शर्मा तक के बयानों से स्पष्ट हो जाता है। यहां तक कि देश की शीर्ष न्यायपालिका भी इसके प्रभाव से बच नहीं पायी है। जी न्यूज के एंकर रोहित रंजन और आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर के मामलों में एक ही खंडपीठ के आये दो अलग-अलग फैसलों से स्पष्ट हो जाता है। ऐसा लगता है कि आज की सरकार भी अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो के सिद्धांत पर चल रही है। फूट डालने के लिए धर्म से बड़ा और आसान साधन और कुछ नहीं हो सकता। विभिन्न धर्मों के लोग जब अपने-अपने धर्म की सर्वश्रेष्ठता के दावों की होड़ में दूसरे को नीचा दिखाने की सारी सीमायें लांघ जायेगा तो अनचाहे ही सत्ता का शासन करने का मार्ग प्रशस्त होता जाता है। आज शायद यही हो रहा है। इसलिए आदमी को उसकी रसोई का महंगा होना और बच्चे का बेरोजगार हो कर घर बैठना भी इस श्रेष्ठता के अहंकार ने आंख ओझल कर दिया है। जबकि यह एक स्थापित सत्य है कि देर सवेर हर आदमी सर्वश्रेष्ठता कि हिंसा से बहुत वक्त बचकर नहीं रह पायेगा।