जोशीमठ धंस रहा है। घरों और सड़कों तक हर जगह दरारें आ गयी हैं। यहां रहना जोखिम भरा हो गया है। पीड़ितों और प्रभावितों को दूसरे स्थानों पर बसाना प्राथमिकता बन गया है। देश के हर नागरिक का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ है और इसी से कुछ राष्ट्रीय प्रश्न भी उभर कर सामने आये हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या जोशीमठ की यह त्रासदी अचानक घट गयी जिसका कोई पूर्व आभास ही नहीं हो पाया या फिर विकास के नाम पर पूर्व चेतावनीयों को नजरअन्दाज करने का यह परिणाम है ? क्या देश के सभी पर्यटक स्थल बने हिल स्टेशनों की देर सवेर यही दशा होने वाली है ? जोशीमठ क्षेत्र के विकास को लेकर एक समय संसद के अन्दर स्व. श्रीमती सुषमा स्वराज का वक्तव्य इस दिशा में बहुत कुछ कह जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के क्या मानक होने चाहिये इस पर दर्जनों भूवैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के शोध उपलब्ध हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण के क्या मानक होनी चाहिये? प्रदूषण के विभिन्न पक्षों को कैसे नियंत्रित और सुनिश्चित किया जायेगा इसके लिए केन्द्र से लेकर राज्यों तक सभी जगह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन हो चुका है। बड़ी परियोजनाओं की स्थापना से पहले उन्हें पर्यावरण से जुड़ी हर क्लीयरैन्स हासिल करना अनिवार्य है। जोशीमठ का जब विकास हो रहा था और उस क्षेत्र में बड़ी परियोजनाएं स्थापित की जा रही थी और बड़ी-बड़ी सुरंगों का निर्माण हो रहा था तब यह सारे अदारे वहां कार्यरत थे। आज जोशीमठ क्षेत्र की इस त्रासदी के लिये इन्हीं परियोजना और निर्माणों को मूल कारण माना जा रहा है। इस परिपेक्ष में यह सवाल जवाब मांगता है कि जब यह विकास हो रहा था बड़ी परियोजनाओं और सुरंगे बन रही थी तब क्या इन अदारों ने पर्यावरण और विज्ञान से जुड़ी सारी अनिवार्यताओं की पूर्ति सुनिश्चित की थी या नहीं? क्या बाद में किसी के प्रभाव/दबाव में आकर इन अनिवार्यताओं की सुनिश्चितत्ता से समझौता कर लिया गया? इस समय इस पक्ष पर निष्पक्षता से जांच की आवश्यकता है। ताकि दोषियों को सार्वजनिक रूप से अनुकरणीय सजा दी जा सके। आज जोशीमठ की तर्ज पर ही हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र ऐसी ही आपदा के मुहाने पर खड़े है।ं प्रदेश के आपदा सूचना प्रवाह प्रभाग की सूचनाओं के अनुसार पिछले करीब दो वर्षों से प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रायः औसतन हर रोज एक न एक भूकंप आ रहा है। प्रदेश भूकंप जोन पांच में है। सरकार की अपनी रिपोर्टों के मुताबिक राजधानी नगर शिमला भूकंप के मुहाने पर बैठा है। 1971 में शिमला के लक्कड़ बाजार क्षेत्र में जो नुकसान हुआ था उसके अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। ऐतिहासिक रिज का एक हिस्सा हर वर्ष धंसाव का शिकार हो रहा है। इस स्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुये एन.जी.टी. ने नये निर्माणों पर रोक लगा रखी है। लेकिन एन.जी.टी. की इस रोक की अवहेलना स्वयं सरकार और मुख्यमन्त्री के सरकारी आवास से शुरू हुई है। एन.जी.टी. के फैसले के बाद हजारों भवन ऐसे बने हैं जो इन आदेशों की खुली अवहेलना हैं। पिछली सरकार एन.जी.टी. के आदेशों को निष्प्रभावी बनाने के लिये शिमला का विकास प्लान लेकर आयी थी। लेकिन एन.जी.टी. ने इस प्लान को रिजैक्ट कर दिया है। इस कारण फैसले के बाद बने हजारों मकानों पर नियमों की अवहेलना के तहत कारवायी होनी है। लेकिन वोट की राजनीति के चलते कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आकर ऐसी कारवायी करने से बचना चाहता है। जबकि सरकार की अपनी ही रिपोर्ट के मुताबिक शिमला में भूकंप के हल्के से झटके में ही तीस हजार से ज्यादा लोगों की जान जायेगी और अस्सी प्रतिश्त निर्माणों को नुकसान पहुंचेगा। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि हिमाचल सरकार जोशीमठ से कोई सबक लेती है या नहीं।