Friday, 19 September 2025
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क्या अगला पड़ाव हिन्दू राष्ट्र होगा

इस समय देश का राजनीतिक परिदृश्य जो आकार लेता जा रहा है उसके परिपेक्ष में हर व्यक्ति सोचने पर मजबूर होता जा रहा है कि इस सबका अंतिम परिणाम क्या होगा। यह सब क्यों रहा है? क्या 2024 की सत्ता ही इसका एकमात्र लक्ष्य है या इसके पीछे का मकसद कुछ और है? इन सवालों की पड़ताल करने के लिए 2014 के चुनाव से पहले उभरे वातावरण पर नजर डालना आवश्यक है। स्मरणीय है कि उस समय विदेशों में काले धन के जो आंकड़े तब परोसे जा रहे थे उसने हर आदमी को अपनी ओर आकर्षित किया था। इन्हीं आंकड़ों के बीच 2जी स्कैम का 1,76,000 करोड़ का आंकड़ा आ गया। इस आंकड़े पर देश के प्रधान लेखाकार विनोद राय की मोहर लगी थी। इसलिए इसे पूरा प्रमाणिक माना गया। कॉमनवेल्थ गेम्स का मुद्दा भी आ गया। और इन सब मुद्दों के परिणाम स्वरुप भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जन आन्दोलन छिड़ गया। अन्ना हजारे इस आन्दोलन के नायक बन गये और लोकपाल की नियुक्ति इसकी प्रमुख मांग बन गयी। अंतिम दिनों में यह आन्दोलन किस मोड़ पर आकर खड़ा हुआ यह सब जानते हैं। यह आन्दोलन आरएसएस का प्रायोजित था यह स्पष्ट हो चुका है। नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल इसी आन्दोलन के प्रतिफल है।
इसी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में 2014 के चुनाव घोषित हुए भ्रष्टाचार और काले धन के आंकड़े के प्रभाव में ही हर आदमी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आने का सपना दिखाया गया। कांग्रेस में काफी तोड़फोड़ हुई और परिणाम स्वरूप सत्ता बदल गयी। सत्ता बदलने के बाद पंद्रह लाख चुनावी जुमला बता दिया गया। जिस 2जी स्कैम में 1,76,000 करोड़ के घपले का आंकड़ा प्रधान लेखाकार विनोद राय ने परोसा था उन्होंने बाद में अदालत में शपथ पत्र देकर यह कहा कि कोई स्कैम नहीं हुआ था गणना करने में गलती लग गई थी। अन्ना आन्दोलन में जिस लोकपाल की नियुक्ति प्रमुख मांग थी क्या उसके पास आज तक कोई बड़ा मुद्दा गया है? शायद नहीं। 2014 के चुनाव में जो वायदे किये गये थे उनमें से कितने पूरे हुए हैं। लेकिन चुनावी वायदों की ओर ध्यान जाने से पहले ही गौ रक्षा और लव जिहाद जैसे मुद्दे प्रमुख हो गये। चुनावी वायदों की जगह नोटबंदी आ गयी जीएसटी आ गया। प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना आ गयी। इसमें दिये गये ऋण का कितना हिस्सा वापिस आ पाया है यह आंकड़ा आज तक जारी नहीं हो सका है। 2019 के चुनावों के बाद श्रम कानूनों में किया गया बदलाव किसी चुनाव का वायदा नहीं था और न ही कृषि कानून लाने का कोई वायदा था। यदि कोविड के कारण देश में लॉकडाउन न लगता तो शायद श्रम और कृषि कानूनों पर उभरे आन्दोलन का स्वरूप कुछ और ही होता।
जब यह सब हो रहा था तो इसके समानांतर ही हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए अलग से काम हो रहा था। मेघालय उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश एस.आर.सेन ने यह फैसला दिया कि देश को अब हिन्दू राष्ट्र हो जाना चाहिए। इस फैसले को 2019 में इसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की पीठ ने बदल डाला। लेकिन यह फैसला तो आया और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के नाम से नया भारतीय संविधान वायरल हुआ। मनुस्मृति आधारित इस कथित संविधान के वायरल होने पर संघ और केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रियाएं आज तक नहीं आयी है। संघ हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध है यह सब जानते हैं। संघ का मोदी सरकार पर कितना प्रभाव है यह भी किसी से छुपा नहीं है। भाजपा संघ की राजनीतिक इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है। भाजपा सरकारों का केंद्र से लेकर राज्यों तक अधिकांश आचरण हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना के गिर्द ही घूमता आ रहा है। इस परिपेक्ष में जब यह परिदृश्य निर्मित होता जा रहा है की पूरी राजनीति भाजपा बनाम विपक्ष की बजाये राहुल बनाम मोदी होने तक पहुंचा दी गयी है। पूरे सरकारी प्रयासों से एक भामाशाह तैयार किया जा रहा है। पूरी सरकार खुलकर उसके बचाव में खड़ी हो गयी है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी कहीं भी चिन्ता और चिन्तन का विषय नहीं रह गये हैं। सत्ता से मतभेद रखने वाला हर व्यक्ति भ्रष्टाचारी करार दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति को ही अराजकता की संज्ञा दी जाती है। और अराजक वातावरण में ही नये फैसले थोपे जाते हैं। क्या यह सब 2024 की सत्ता से ज्यादा हिन्दू राष्ट्र के ऐजैण्डे को व्यवहारिक रूप देने के लिये एक जमीन तो तैयार नहीं की जा रही है।

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