बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो वर्ष पहले ही ऐसे आरोपों की एक शिकायत प्रधानमंत्री के पास आ चुकी थी यह स्पष्ट हो चुका है। जब प्रधानमंत्री इन आरोपों पर खामोश रहे तो खेल मंत्री से लेकर अन्य भाजपा नेताओं में यह साहस कैसे हो सकता था कि कोई भी इस पर जुबान खोलता। इन महिला पहलवानों को जन्तर मन्तर के धरना प्रदर्शन से लेकर कैसे सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाकर इस मामले में एफ आई आर दर्ज करवाने तक पहुंचना पड़ा है यह पूरे देश को स्पष्ट हो चुका है। यह एक सामान्य समझ की बात है कि एक महिला को यौन शोषण का आरोप लगाने से पूर्व किस मनोदशा से गुजरना पड़ता है। इन बेटियों को किस मानसिकता के साथ अदालत और धरने प्रदर्शन तक आना पड़ा होगा यह सोचकर ही आम आदमी सिहर उठता है। अब 28 अप्रैल को जो दो एफ.आई.आर. इस प्रकरण में दर्ज हुई है उनका विवरण पढ़कर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद भी जब पूरी भाजपा इस प्रकरण पर खामोश रहे तो समझ आ जाता है कि चुनावी लाभ के लिये यह लोग कुछ भी दाव पर लगा सकते हैं। इस व्यक्ति को अभी तक पार्टी से बाहर न कर पाना शीर्ष से लेकर नीचे तक की बहुत सारी कहानी ब्यान कर देता है।
यह सही है कि अदालत एफ.आई.आर. दर्ज करने के निर्देश दे सकती हैं लेकिन किसी को गिरफ्तार करने के नहीं। परन्तु सरकारें नियमों कानूनों के साथ लोकलाज से भी चलती हैं। आज यदि अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता महिला पहलवानों को भी न्याय मांगने के लिये इस तरह का संघर्ष करना पड़े तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज पूरे समाज का दायित्व बन जाता है कि वह इन महिला पहलवानों के साथ खड़ा होकर इनकी लड़ाई लड़े। क्योंकि यह बेटियां पूरे समाज की है। जब यह बेटियां अपने पदक मां गंगा में प्रवाहित करने जा रही थी तब इनकी हताशा और निराशा का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसी के साथ यह सोचने का भी अवसर है कि जो सरकार चुनावी लाभ के लिये ऐसी बेटियों की इज्जत की भी रक्षा करने और उन्हें न्याय दिलाने का साहस न दिखा पाये उसके उन आश्वासनों पर कैसे भरोसा किया जा सकता है कि वह संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवायेगी।