Monday, 15 December 2025
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क्या सरकार में बदलाव लाये बिना संगठन की कार्यकारिणी का गठन व्यवहारिक होगा?

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी को भंग हुये अब आठ माह का समय होने जा रहा है। लेकिन अभी तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। जबकि इस दौरान हाईकमान की ओर से पर्यवेक्षकों की एक बड़ी टीम भी प्रदेश में भेजी गई थी जिसने हर चुनाव क्षेत्र में जाकर पार्टी के सक्रिय सदस्यों से फीडबैक लेकर उसकी रिपोर्ट भेजनी थी और उस रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्यकारिणी का गठन होना था। पर्यवेक्षकों को भी आये हुए एक अरसा हो गया है। इसी दौरान यह भी चर्चाएं उठी कि प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया जाएगा क्योंकि उसका कार्यकाल भी निकट भविष्य में पूरा होने जा रहा है। फिर यह चर्चाएं भी उठी कि मंत्रिमण्डल में भी फेरबदल होने जा रहा है। कुछ मंत्रियों को हटाकर उनके स्थान पर नये मंत्री बनाए जाएंगे। लेकिन यह सारी चर्चाएं हकीकत में नहीं बदल पायी है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये अढ़ाई वर्ष होने जा रहे हैं। इस दौरान लोकसभा के चुनाव हुए परन्तु सरकार होते हुए भी कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पायी। सरकार बनने के दो माह बाद ही यह चर्चाएं उठ गयी थी कि संगठन और सरकार में उचित तालमेल नहीं है। इस तालमेल के अभाव को लेकर हाईकमान को भी सूचित किया गया था। खुले पत्र लिखे गये थे। लेकिन जब इस सबका कोई असर नहीं हुआ तब राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के छः विधायकों ने बगावत करके इस चुनाव में भाजपा को जिता दिया। इस बगावत पर कारवाई करते हुए इन छः विधायकों को पार्टी से निकालकर उनके स्थान पर उपचुनावों का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उपचुनाव में कांग्रेस फिर से अपना पुराना चालीस वाला आंकड़ा पाने में तो सफल हो गयी लेकिन इस सफलता ने कांग्रेस सरकार के नाम पर भाजपा के साथ अघोषित तालमेल की चर्चा जोड़ दी। आज तक भाजपा के साथ सुक्खू सरकार के तालमेल के रिश्तों की चर्चा राजनीतिक और प्रशासनिक हल्को में चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह एक स्वभाविक राजनीतिक प्रतिफल है कि इस वस्तुस्थिति में प्रदेश में संगठन कैसे ताकतवर बन सकता है जब नेतृत्व के अपने रिश्ते भाजपा के साथ इस कदर प्रगाढ़ होंगे तो तय है कि ऐसे रिश्तों के चलते संगठन व्यवहारिक रूप से गौण हो जायेगा। इस समय प्रदेश में सुक्खू सरकार इसी व्यवहारिक पक्ष के साथ एक साथ अपना समय निकल रही है। क्योंकि सरकार जिस तरह की वित्तीय स्थिति से गुजर रही है उसमें अपनों से ज्यादा बाहर वालों का साथ सहयोग चाहिये। ऐसे में जब भी प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की चर्चा उठेगी तब यह बड़ा सवाल सबके सामने होगा कि कांग्रेस का कार्यकर्ता जनता के बीच सरकार के कौन से फैसलों की वकालत कर पायेगा? जिस सरकार को एक उपचुनाव जीतने के लिये सरकारी आदारों से 78 लाख रुपया बंटवाना पड़े वहां कार्यकर्ता सरकार का क्या पक्ष लेकर आम आदमी के सामने जायेगा? क्योंकि जब सरकार की हकीकत कर्ज पर आश्रित हो तो वहां संगठन कैसे और क्या लेकर जनता के बीच जायेगा।
सरकार ने भाषणों में तो छः गारंटियां पूरी कर दी हैं लेकिन इसका सत्यापन तो जनता में कार्यकर्ता को करना है। क्या वह कर पायेगा कि सरकार ने गारंटियां पूरी कर दी हैं। कांग्रेस की संस्कृति में सरकार बनने के बाद संगठन गौण हो जाता है। ऐसे में जब सरकार ही निष्क्रियता का लांछन झेल रही हो तो कार्यकर्ता उस तस्वीर को कैसे बदल पायेगा। जब तक सरकार में गुणात्मक सुधार नहीं हो जाता है तब तक एक सार्थक और प्रभावी कार्यकारिणी का गठन एक असंभव प्रयास होगा। जब तक सरकार में कुछ बदलाव नहीं आता है तब तक कार्यकारिणी के गठन का हर प्रयास आधारहीन ही रहेगा।

देहरा विधानसभा उपचुनाव में जिला कल्याण अधिकारी द्वारा भी एक हजार महिलाओं को बांटा गया पैसा

  • होशियार सिंह ने राज्यपाल को भेजी शिकायत
  • उप चुनाव में ऐसे पैसा बांटा जाना पहली बार आया सामने
  • कांग्रेस के सामने राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा आरोप
  • एक उपचुनाव को पैसे से किया गया प्रभावित

शिमला/शैल। देहरा विधानसभा उपचुनाव में कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक के अतिरिक्त जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा भी क्षेत्र की एक हजार महिलाओं को 4500-4500 रुपए दिये जाने का आरोप भाजपा के हारे हुए प्रत्याशी पूर्व विधायक होशियार सिंह ने राज्यपाल को भेजी शिकायत में लगाया है। 25 मार्च को भेजी शिकायत में होशियार सिंह ने आरोप लगाया है कि जिन महिलाओं को समाज कल्याण अधिकारी ने यह पैसा भेजा है वह समाज कल्याण की किसी भी योजना में नामित नहीं हैं और न ही इस आश्य की कोई अधिसूचना उस समय की उपलब्ध है। इस नाते यह पैसा बांटा जाना जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 123 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। इसी के साथ आई.पी.सी. की धारा 171 B के तहत भी दंडनीय श्रेणी में आता है। क्योंकि यह पैसा चुनाव को प्रभावित करने के लिए बांटा गया है यह आरोप है।
इसी चुनाव को प्रभावित करने के लिये क्षेत्र के 67 महिला मंडलों को कांगड़ा के केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा पचास-पचास हजार रूपया बांटा गया और होशियार सिंह ने इन महिला मंडलों की सूची अपनी शिकायत के साथ राज्यपाल को भेजी है। आरोप है कि ऐसा पैसा किसी और क्षेत्र के महिला मंडलों को नहीं दिया गया है। होशियार सिंह ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया है कि उसने इस संबंध में जानकारी लेने के लिये संबंधित बैंक में 5 जनवरी 2025 और 7 मार्च 2025 को आर.टी.आई. के तहत भी सूचना मांगी थी जिसका कोई जवाब नहीं दिया गया है। इस बारे में जब बजट सत्र के दौरान हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने सदन में प्रश्न उठाया था तब उसके जवाब में यह कहा गया की सूचना एकत्रित की जा रही है। सरकार द्वारा यह जवाब दिये जाने पर आशीष शर्मा ने इस संबंध में उनके द्वारा जुटाई गयी कुछ जानकारी सदन के पटल पर रख दी। इसके बाद होशियार सिंह ने राज्यपाल को शिकायत भेजी क्योंकि इस सब की जानकारी चुनाव परिणाम आ जाने के बाद सामने आयी जब चुनाव आचार संहिता के अपराधिक उल्लंघन की दस्तावेज आधारित जानकारी चुनाव के बाद सामने आती है तब उसकी शिकायत राज्यपाल को संविधान की धारा 191(1)(e) और 192 के तहत भेजी जाती है। ऐसी दस्तावेज आधारित जानकारी का संज्ञान लेकर उस पर अगली कारवाई करना राज्यपाल की कानून बाध्यता बन जाता है। इसलिये यह पैसा बांटा जाने पर कारवाई होना तय है। ऐसी कारवाई को अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है। इस तरह से सत्तारूढ़ दल द्वारा एक उपचुनाव में पैसा बांटना राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिये एक बहुत बड़ा संकट हो जायेगा। क्योंकि इस समय कांग्रेस और केन्द्र सरकार में जिस तरह का राजनीतिक वातावरण चल रहा है उसके परिदृश्य में कांग्रेस की एक राज्य सरकार का ऐसा आचरण पूरे संगठन पर भारी पड़ेगा। वैसे इस मुद्दे पर प्रदेश भाजपा का भी एक बड़ा वर्ग रहस्यमय चुप्पी अपनाकर चल रहा है। जबकि यह मुद्दा सरकार और मुख्यमंत्री को घेरने के लिये भाजपा के पास एक बड़ा ब्रह्मास्त्र बन जाता है कि उपचुनाव में प्रत्याशी स्वयं मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी थी जो जीतकर आयी है।

यह है होशियार सिहं की शिकायत

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

देहरा उपचुनाव में कांगड़ा सहकारी बैंक का पैसा प्रकरण पहुंचा राजभवन

  • होशियार सिंह ने संविधान की धारा 191 (1)(e) और 192 के तहत की है शिकायत
  • राज्यपाल ने बैंक से तलब की रिपोर्ट
शिमला/शैल।देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान क्षेत्र के महिला मंडलों को केंद्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला कांगड़ा से पचास -पचास रुपए देने का मामला शिकायत के रूप में महामहिम राज्यपाल के पास पहुंच गया है। इसकी शिकायत चुनाव हारने वाले भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक होशियार सिंह ने की है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह राज्य सहकारी बैंक द्वारा सिर्फ देहरा के ही महिला मंडलों को पैसा बांटना आचार संहिता की खुली उल्लंघना माना जा रहा है। इस उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश ठाकुर की जीत हुई है। कमलेश ठाकुर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह की धर्मपत्नी है। मुख्यमंत्री के पास ही प्रदेश के वित्त विभाग का प्रभार भी है और प्रदेश के सहकारी बैंकों का प्रभार भी मुख्यमंत्री के ही पास है ।
देहरा में यह पैसा बैंक द्वारा मतदान के शायद एक पखवाड़ा पहले दिया गया है। सिर्फ देहरा के ही महिला मंडलों को चुनाव से पूर्व इस तरह से पैसा बांटा जाना सीधे चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास माना जा रहा है। यह सब चुनाव के बाद सामने आया है। और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1991 की धारा 123 में वर्णित भ्रष्ट आचरण में आता है। चुनावों के बाद सामने आये ऐसे आचरण की शिकायत संविधान की धारा 191(1)(e) और 192 के तहत राज्यपाल के पास दायर की जाती है। होशियार सिंह ने इन्हीं प्रावधानों के तहत राज्यपाल से शिकायत की है। राज्यपाल ने शिकायत आने के बाद केंद्रीय सहकारी बैंक से इस संबंध में रिपोर्ट तलब कर ली है । यदि रिपोर्ट में तथ्यों की पुष्टि हो जाती है तो राज्यपाल इस मामले को अपनी संस्तुति के साथ चुनाव आयोग को भेज देंगे। ऐसे मामलों में राज्यपाल का आदेश अंतिम होता है और उसे अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। स्मरणीय है कि बजट सत्र के दौरान हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने इस आशय का प्रश्न सदन में पूछा था। लेकिन इसके उत्तर में कहा गया था की सूचना एकत्रित की जा रही है। इस जवाब पर हुये वाद विवाद में आशीष शर्मा ने कुछ महिला मंडलों को बांटे गये पैसे के दस्तावेज जो उन्होंने जूटा रखे थे वह सदन के पटल पर रख दिए थे। यह दस्तावेज सदन के पटल पर आने के बाद पूरे मामले की गंभीरता बढ़ गई थी । शैल ने यह दस्तावेज उस समय पाठकों के सामने रखे हैं। अब यह मामला राज्यपाल और चुनाव आयोग के सामने आ गया है। नियमों के अनुसार इसमें बहुत जल्द कारवाई होने की संभावना है ।और इसमें विधायकी जाने की भी संभावनाएं हैं। प्रदेश की राजनीति में इस मामले के दूरगामी प्रभाव होंगे ।
यह है संविधान की धारा 191 और 192 के प्रावधान
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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