शिमला/शैल। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले कांग्रेस को घरने के लिये चर्चा का विषय बनेंगे। ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के ब्यानों से सामने आया है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले चर्चा में रहे हैं। बल्कि कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण माने गये थे। अब सुक्खू सरकार ने शौचालय शुल्क लगाकर और बिजली की सब्सिडी छोड़ने के फैसलों से अपने को फिर चर्चा का विषय बना दिया है। क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारंटी दी थी। यह गारंटी अभी लागू नहीं हुई है। लेकिन इसके पहले ही सब्सिडी छोड़ने का ऐलान करके दूसरे समर्थ लोगों से ऐसा करने का आग्रह किया है। जब 300 यूनिट बिजली मुफ्त देना शुरू ही नहीं हुई है तो इस पर सब्सिडी छोड़ने का प्रश्न ही नहीं आता। जब तक 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने पर अमल नहीं हो जाता तब तक सब्सिडी छोड़ने के फैसले का कोई औचित्य ही नहीं बनता। इस समय 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने का जयराम कार्यकाल का फैसला ही लागू है। 125 यूनिट तक ही उपभोक्ता सब्सिडी के पात्र हैं। 125 यूनिट से ज्यादा खपत करने वाले स्वतः ही सब्सिडी से बाहर हो जाते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों द्वारा सब्सिडी छोड़ने का फैसला अपने में ही चर्चा का विषय बन गया है। बल्कि इससे नेता प्रतिपक्ष का यह आरोप की यह सरकार 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने के पूर्व सरकार के फैसले को भी बन्द करने जा रही है। इसलिए यह फैसला निश्चित रूप से चुनाव के दौरान विपक्ष के पास सरकार को घेरने का एक बड़ा हथियार बन जाता है।
इस समय प्रदेश के अस्पतालों में सरकार की मुफ्त इलाज योजनाओं के लिये दवा सप्लायरों ने सप्लाई बन्द कर रखी है। विपक्ष यह आरोप काफी समय से लगाता चला आ रहा है। आरोप है कि सप्लायरों के करोड़ों के बिल भुगतान के लिये रुके पड़े हैं। कर्मचारियों के प्रतिपूर्ति के बिल रुके पड़े हैं। लोक निर्माण और अन्य विभागों में ठेकेदारों को भुगतान नहीं हो पा रहा है। आउटसोर्स पर भर्ती किये गये हजारों कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया है। स्वास्थ्य और बिजली बोर्ड में प्रभावित कर्मचारी आन्दोलन की राह पर आ गये हैं। उच्च न्यायालय ने आउटसोर्स भर्ती के लिये चयनित कंपनियों की पात्रता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली गयी परीक्षाओं के परिणाम सरकार के दावों के बावजूद अभी तक घोषित नहीं हो पाये हैं। मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के दावों पर अब आम आदमी प्रश्न खड़े करने लग गया है। इसी सबके साथ जिस तरह से पानी की सप्लाई करने के लिये ठियोग में टैंकर घोटाला घटा है उससे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि इस पानी की सप्लाई का सारा जिम्मा एस.डी.एम. ठियोग के पास था। उन्होंने ही इसके लिये सारी प्रक्रिया को अंजाम दिया। एस.डी.आर.एफ. का पैसा भी एस.डी.एम. के पास आया और भुगतान भी वहीं से हुआ। इस संबंध में शिकायत भी एस.डी.एम. के पास ही आयी। आई.पी.एच. के लोगों ने तो सिर्फ सप्लाई के आंकड़े दर्ज करने का ही काम किया। लेकिन इसमें कारवाई आई.पी.एच. के दस इंजीनियरों के खिलाफ हो गयी। एस.डी.एम. कार्यालय का कारवाई में जिक्र तक नहीं आया। ऐसे में आई.पी.एच. के लोग देर सवेर बहाल हो जायेंगे और सारा काण्ड इसी में दब कर रह जायेगा। यह चर्चा चल पड़ी है कि मुख्य किरदारों को बचाने के लिये कारवाई को यह मोड़ दिया गया है। इस तरह सरकार के फैसले और भ्रष्टाचार का यह मामला सब कुछ दिल्ली के चुनाव में एक बड़ा सवाल बनकर सामने आने वाला है।
शिमला/शैल। स्टेट विजिलैन्स ने ऊना में युद्ध चन्द बैंस के खिलाफ अपराध संहिता की धाराओं 420, 468, 471, 120 बी और पी सी एक्ट 2018 की धारा 13 (1) ए/13(2)के तहत मै. हिमाचल स्नो विलेज और होटल लेक पैलेस के मालिक युद्ध चन्द बैंस और कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया है। यह मामला दर्ज करने के लिये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A के तहत सचिव सहकारिता से अनुमति ली गयी है और उनकी शिकायत पर जांच के बाद मामला दर्ज किया गया है। आरोप है की बैंस ने बैंक से कई ऋण लिये और बैंक अधिकारियों ने स्वयं की ऋण नीतियों के साथ-साथ आर.बी.आई. और नाबार्ड के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुये 20 करोड़ का ऋण सीधे उधारकर्ता को वितरित कर दिया। यह मामला दर्ज होने के बाद बैंस को इसमें अग्रिम जमानत मिल गयी है और वह ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश भी हो आये हैं। ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश होने के बाद बैंस ने वहां पर एक पत्रकार वार्ता को भी संबोधित किया है। इस पत्रकार वार्ता में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह ऋण लेने देने में नियमों की कोई अनदेखी नहीं हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह मण्डी और मनाली में होटल निर्माण में लगे हुये हैं। मनाली में उनके पास 25 बीघा जमीन है। जिसकी कीमत वैल्यूएटर के मुताबिक 167 करोड़ है और यह कीमत प्रदेश उच्च न्यायालय में भी सौंपी हुई है। बैंस ने आरोप लगाया कि इस जमीन पर बैंक के ही कुछ लोगों की नजर लग गई और वह इसको कम कीमत पर नीलाम करने का षडयन्त्र रचने लग गये। बैंस ने यह पत्रकार वार्ता में खुलासा किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार, प्रधान निजी सचिव, बैंक के चेयरमैन और खनन व्यवसायी ज्ञानचन्द और अन्य के खिलाफ ई.डी. को शिकायत सौंपी है और उनकी शिकायत पर कारवाई करते हुये ज्ञानचन्द और संजय के गिरफ्तारी हुई है। इन लोगों को जेल से निकालने के लिये उन पर यह शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। बैंस को केन्द्र की सी.आर.पी.एफ से सुरक्षा भी हासिल है इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह ई.डी. में शिकायतकर्ता है और उन पर दबाव भी डाला जा रहा होगा। बरहाल यह मामला अभी जांच में है इसलिये इस पर कुछ ज्यादा कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस सारे प्रकरण से जुड़े घटनाक्रम पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। इसमें बैंस के ऋण मामले की ही बात करें तो यह ऋण स्व. वीरभद्र और फिर जय राम सरकार के कार्यकाल में हुए हैं। बैंस पत्रकार वार्ता में स्वयं कह रहे हैं कि उन्हें कांगड़ा सहकारी बैंक में जाने की सलाह स्व.वीरभद्र सिंह ने दी थी। जयराम सरकार भी 2017 में आ गई थी। सुक्खू सरकार को आये भी दो वर्ष हो गये हैं। सुक्खू सरकार में सहकारी बैंक सहकारिता विभाग से निकाल कर के वित्त विभाग के सुपुर्द कर दिये गये हैं। अब 2025 में यह आरोप लग रहा है कि ऋण देने में नियमों की अनदेखी हुई है। यदि सही में कोई अनदेखी हुई तो उस पर संबंद्ध प्रबंधन के खिलाफ कोई कारवाई क्यों नहीं हुई? सुक्खू सरकार को भी कारवाई करने का फैसला लेने में दो वर्ष का समय क्यों लग गया? फिर जब सहकारी बैंक अब वित्त विभाग के अधीन है तो इसमें 17 ए की अनुमति सचिव वित्त की बजाये सचिव सहकारिता से क्यों ली गयी? जब कानून की नजर से कारवाई की अनुमति ही प्रश्नित हो जाती है तो शिकायत के बाकी आधार कैसे पुख्ता मान लिये जायें यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है।
ई.डी. और आयकर ने हमीरपुर और नादौन में छापेमारी की ही है बल्कि दो बार यह टीम में आयी हैं। इस छापेमारी के बाद दो लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई हैं। दो लोग फरार चल रहे कहे जा रहे हैं और उनकी गिरफ्तारी कभी भी हो जाने की तलवार लटकी हुई है। स्वभाविक है कि इस छापेमारी का कोई तो शिकायतकर्ता रहा होगा। ऐसे में जब युद्ध चन्द बैंस स्वंय को शिकायतकर्ता बता रहा है तो यह मानना ही होगा। क्योंकि बैंस का ऋण मामला पुराना है इस मामले में नियमों की अनदेखी को लेकर तो अब तक बैंक के कई लोगों को सजा मिल जानी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। फिर बैंस अपने ऋण के बदले 167 करोड़ की जमीन की चर्चा कर रहा है। यदि बैंस का यह कहना सही है तो यह फिर बैड लोन की श्रेणी में कैसे। जब तक पूरी जांच में बैंस के दावे गलत नहीं पाये जाते हैं तब तक बैंस के खिलाफ दर्ज हुये मामले को दबाव की ही राणनीति का हिस्सा मानकर देखा जायेगा। इस एफ.आई.आर के बाद ई.डी. पर भी स्वभाविक दबाव आयेगा कि वह भी अपने यहां दर्ज मामले को जल्द से जल्द अन्तिम निर्णय तक ले जाये। बैंस के खुलासे के बाद यह देखना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या सही में उसे शिकायत वापस लेने के लिये इस तरह की ऑफर की गयी थी।
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