शिमला/शैल। प्रदेश सरकार में मंत्री का एक पद खाली चला आ रहा है और संगठन की राज्य से लेकर ब्लॉक तक सारी कार्यकारिणीयां पिछले वर्ष नवम्बर से भंग चली आ रही है। यह स्थिति है प्रदेश में सरकार और संगठन की। इस स्थिति के लिये कौन जिम्मेदार है अब यह विषय आम आदमी में चर्चा का विषय बनता जा रहा है। कांग्रेस संस्कृति से जो लोग परिचित हैं वह जानते हैं कि सरकार बनने के बाद सब कुछ मुख्यमंत्री और सरकार के गिर्द घूमना शुरू कर देता है और संगठन दूसरे दर्जे की स्थिति में तब पहुंच जाता है। जब संगठन का मुखिया इस पर परोक्ष/अपरोक्ष में सवाल उठाना शुरू करता है तब कार्यकारिणीयों को ही भंग कर दिये जाने तक हालात पहुंच जाते हैं। हिमाचल में भी सरकार और संगठन में वांच्छित तालमेल के अभाव के समाचार कांग्रेस हाईकमान तक लगातार पहुंचते रहे हैं। बल्कि समाचारों से निकलकर शिकायतें तक भी हाईकमान के पास पहुंची। लेकिन जब किसी चीज का भी असर नहीं हुआ तब सरकार के होते हुये पार्टी में दल बदल हो गया। छः विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा के साथ उपचुनाव हो गये। इन उपचुनावों में पार्टी अपने मूल आंकड़े चालीस तक फिर पहुंच गयी लेकिन लोकसभा की चारों ओर राज्यसभा की सीट भाजपा से हार गयी। इस हार जीत से न तो कांग्रेस हाईकमान ने कुछ सीखा और न ही प्रदेश में संगठन और सरकार में तालमेल बेहतर हो पाया है। यहां तक की तालमेल के लिये कमेटी तक का भी गठन हुआ परन्तु स्थितियां कार्यकारिणियों के भंग किये जाने तक पहुंच गयी। अब सरकार की परीक्षा पंचायत और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में फिर दाव पर होगी। इन चुनावों में हर वोटर और हर घर उसको विधानसभा चुनावों में दी गई गारंटीयों का हिसाब मांगेगा ।
सरकार के अपने मंत्रियों और मुख्यमंत्राी में भी कितना तालमेल चल रहा है इसका इसी से पता चल जाता है कि अब मंत्रिमण्डल की बैठकों से भी मंत्रियों का गैर हाजिर होना एक आम बात होती जा रही है। इस बार लगातार चार दिन मंत्रिमण्डल की बैठकें चली और एक मंत्री चारों ही दिन इसमें गैर हाजिर रहा। हाईकमान ने संगठन के पुनर्गठन के लिये दिल्ली में बैठक रखी। सारे मंत्रियों को बुलाया गया। इस बैठक में हाईकमान के सामने सारा कुछ सामने आ गया है। यहां तक संज्ञान में ला दिया गया है कि सरकार में अफसरशाही किस कदर हावी है। कुल मिलाकर हिमाचल के बारे में खड़गे और राहुल को काफी जानकारियां इस बैठक में मिल गयी है। अफसरशाही किस कदर हावि है इसका बड़ा उदाहरण पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में ओबीसी को आरक्षण का फैसला है। हिमाचल में आज तक ओबीसी की अलग से जनगणना नहीं हुई है और जब कोई गणना ही नहीं हुई है तो आरक्षण किस आधार पर तय होगा। स्वभाविक है कि कोई गणना न होने से इस आरक्षण के प्रयास को कोई अदालत में चुनौती दे देगा और सारी प्रक्रिया स्टे करवा दी जायेगी। इसी तरह का चलन 2003 के बाद लगे कर्मचारियों की सेवा शर्तों में वाकायदा एक विधेयक पारित करवाकर बदलाव किया गया। इस बदलाव के कारण उनके वेतन में कटौती तक के आदेश जारी हुये। जिन्हें प्रदेश उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। स्वभाविक है कि जब इस तरह के परिदृश्य में एक सरकार चुनावों में जायेगी तो उसे क्यों और कितनी सफलता मिलेगी?
इसी परिदृश्य में यदि विरासत की राजनीति की भी प्रदेश में पड़ताल की जाये तो वर्तमान कांग्रेस में प्रदेश में स्व. ठाकुर रामलाल और स्व. वीरभद्र सिंह दो पूर्व मुख्यमंत्रीयों की अपनी-अपनी विरासत अभी भी चल रही है। इनके वारिस इस विरासत का दोहन कर रहे हैं। लेकिन संयोगवश दोनों ही वारिस इस समय मुख्यमंत्री के साथ नहीं है। स्व.वीरभद्र की प्रतिमा के प्रतिक्षित अनावरण की राजनीति ने इस विरासत में भी एक नया अध्याय जोड़ दिया है और इससे अनायास स्व. वीरभद्र और वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते फिर से चर्चा का विषय बनने लग गये हैं। इस तरह के राजनीतिक परिदृश्य में भावी संगठन और सरकार में किस तरह तालमेल बैठ पायेगा इस पर सबकी नज़रें लग गयी है। आज कांग्रेस के कार्यकर्ता भी यह मानने लग पड़े हैं की वर्तमान सत्ता को इस बात से कोई लेना देना नहीं रह गया है कि उसे एक प्रभावी संगठन की आवश्यकता है। क्योंकि जब संगठन प्रभावित होने का प्रयास करेगा तो वह सत्ता को अच्छा नहीं लगेगा। इस तरह प्रदेश में जो राजनीतिक परिस्थितियों निर्मित हो चुकी है उनसे अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह सरकार अपने एक विशेष दायरे के बाहर आने को तैयार ही नहीं है और इस तरह प्रदेश में नया संगठन अब हाईकमान के लिए भी चुनौती बन जायेगा।
शिमला/शैल। शिमला के भट्टाकुफर में एक पांच मंजिला मकान बारिश में गिर जाने के बाद जो राजनीतिक और प्रशासनिक परिस्थितियां निर्मित हुई है उन्होंने न केवल हिमाचल बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। क्योंकि इस मकान के गिरने का कारण राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण की कार्यशैली और कार्य संस्कृति को माना गया है। यहां पर फोरलेन सड़क के निर्माण के लिये यह प्राधिकरण काम करवा रहा था जिसमें शायद पहाड़ की कटिंग गलत तरीके से की गयी थी जिसके कारण और भी कई भवन खतरे की जद में आ गये हैं। यह क्षेत्र कसुम्पटी विधानसभा में आता है और यहां के विधायक प्रदेश के पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री भी हैं। स्वभाविक है कि हर जन प्रतिनिधि ऐसी आपदा में अपने मतदाताओं के संकट में उनके साथ खड़ा होता है और प्रभावित लोग भी सबसे पहले उसी से संपर्क करते हैं। इस स्वभाविक स्थिति में मंत्री मौके का निरीक्षण करने के लिये घटना स्थल पर चले गये। मंत्री ने स्थानीय प्रशासन और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों को भी मौके पर तलब कर लिया। जब यह सारे लोग घटनास्थल पर पहुंच गये तो स्वभाविक रूप से इस त्रासदी से प्रभावितों का रोष और दर्द दोनों ही छलकने ही थे। इसी परिदृश्य में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों को जब जनरोष का कोपभाजन का केंद्र बनना पड़ा तो शायद स्थितियां संवाद से निकलकर मारपीट तक भी जा पहुंची। इस मारपीट का गंभीर संज्ञान लेते हुये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से बात कर मंत्री के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने को कहा। प्रदेश सरकार ने केंद्रीय मंत्री के निर्देशानुसार अपने मंत्री के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कर ली। क्योंकि मंत्री पर भी इस मारपीट में शामिल होने का आरोप लगा है।
हिमाचल में किसी कार्यरत मंत्री के खिलाफ ऐसी एफ.आई.आर. दर्ज होने का यह पहला मामला है। इस प्रकरण में कौन कितना दोषी है अब यह पुलिस जांच का मामला बन गया है इसलिये इस पर इस बिन्दु से कोई टिप्पणी करना सही नहीं होगा। लेकिन यह मामला दर्ज होने के बाद मंत्री से लेकर अन्य तक की जो प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं उन पर टिप्पणियां करना आवश्यक हो जाता है। मंत्री ने इस एफ.आई.आर. को राजनीति से प्रेरित बताते हुये मारपीट में शामिल होने से साफ इन्कार किया है। मंत्री ने स्पष्ट कहा है कि यदि मारपीट का कोई साक्ष्य है तो उसे सामने लाया जाये। मंत्री ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की प्रदेश में चल रही कार्यशैली पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाये हैं। यह आरोप है कि प्राधिकरण के ठेकेदार पहाड़ों की अवैज्ञानिक कटिंग कर रहे हैं और वेस्ट को हर कहीं डंप कर रहे हैं। यह भी आरोप है कि प्राधिकरण के अधिकारी और कार्य कर रही कंपनियां किसी की बात नहीं सुनती है और इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। ऐसे आरोप अब प्रदेश के हर कोने से आने शुरू हो गये हैं। जहां भी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण काम कर रहा है। इन आरोपों से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से ज्यादा तो प्रदेश सरकार और उसकी प्रशासनिक टीम कठघरे में आ रहे हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का कार्य प्रदेशों में राजमार्गों और फोरलेन सड़कों के निर्माण का है। लेकिन इन कार्यों में राज्य सरकारों की सहमति और अनुमति के बिना यह प्राधिकरण कुछ नहीं कर सकता यह इसके अधिनियम की बुनियादी शर्त है। इस शर्त के मुताबिक हर निर्माण के लिये प्राधिकरण और राज्य सरकार में एक लिखित अनुबंध होता है। इस अनुबंध के तहत ही इन मार्गों के लिये राज्य सरकारें भूमि का अधिग्रहण करती हैं और सुरक्षा प्रदान करती हैं। राज्य के सहयोग से ही डी.पी.आर. बनाई जाती है। यदि राजमार्ग के निर्माण में कहीं भी कोई कार्य मानकों के विरुद्ध होता पाया जाता है तो उसका तत्काल संज्ञान स्थानीय संबंधित प्रशासन लेकर राज्य सरकार को अवगत कराता है। राज्य सरकार उसे प्राधिकरण के संज्ञान में लाती है। लेकिन इस समय भट्टाकुफर प्रकरण के बाद जितने आरोप प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पर लग रहे हैं उसके अनुपात में शायद इससे पहले कोई शिकायतें नहीं रही है। माना यह जाता है कि प्राधिकरण के अधिकारी और कार्य निष्पादन कर रही कंपनियों के ठेकेदारों और राज्य प्रशासन के संबंद्ध अधिकारियों और स्थानीय नेतृत्व सभी में एक गहरा गठजोड़ रहता है। प्राधिकरण अपनी इच्छा से राज्य सरकार की अनुमति के कुछ भी नहीं कर सकता है। इस तरह का लम्बा पत्राचार प्राधिकरण और राज्य सरकार के बीच उपलब्ध है। इस समय प्राधिकरण ने प्रदेश में उन मार्गों के निर्माण से इन्कार कर दिया है जिनकी डी.पी.आर. पिछले तीन वर्षों में नहीं बन पायी है। प्राधिकरण के इस फैसले पर राज्य सरकार द्वारा कोई प्रतिक्रिया न देना यही प्रमाणित करता है कि राज्य सरकार के सहयोग और अनुमति के बिना यह प्राधिकरण राज्य में कुछ नहीं करता है। ऐसे में जब मंत्री ने प्राधिकरण की वर्किंग पर गंभीर आरोप लगाये हैं तो वह आरेाप स्वतः राज्य सरकार पर आ जाते हैं। सरकार ने मंत्री पर एफ.आई.आर. करके इस मामले को जितना शान्त करने का प्रयास किया है उन प्रयासों को इस पर उभरी प्रतिक्रियाओं से एक अलग ही कोण उठ खड़ा हुआ है। वैसे मंत्री की प्रतिक्रियाएं भी बहुत हद तक अवांछित हो जाती हैं।
The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.