शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिये पात्र सदस्यों से 23 जनवरी तक आवेदन आमंत्रित किए गये हैं। पूर्व में सेवानिवृत आई.ए.एस. अधिकारी ही इन पदों के लिये चयनित होते रहे हैं और इस बार भी इसमें कोई अपवाद होने की संभावना कम ही है। लेकिन सेवा अधिकारियों के विजिलैन्स क्लीयरैन्स के लिये जो दिशा-निर्देश जारी किये हैं उनके परिदृश्य में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को विजिलैन्स क्लीयरैन्स हासिल करना कठिन हो सकता है। इन निर्देशों के मुताबिक विजिलैन्स मामले झेल रहे अधिकारियों के लिये इन पदों के चयन के दायरे में आ पाना कठिन होगा। बल्कि इन निर्देशों के अनुसार ऐसे मामले झेल रहे अधिकारी तो संवेदनशील पदों पर भी नियुक्त नहीं किये जा सकते। ऐसे अधिकारियों को पुनः नियुक्ति देना संभव ही नहीं है। फिर रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में प्रदेश उच्च न्यायालय का भी दखल है।
यह है भारत सरकार के दिशा- निर्देश
संख्या. 104/33/2024-एवीडी-।(ए)
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली
दिनांकित: 9 अक्टूबर 2024
कार्यालय ज्ञापन
विषय:- अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों तथा केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों को 'सतर्कता निकासी’ प्रदान करने के संबंध में संशोधित दिशानिर्देश।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अ.भा.से. अधिकारियों तथा केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों को सतर्कता निकासी प्रदान करने के संबंध में समय-समय पर अनुदेश/दिशानिर्देश जारी किए हैं। बेहतर समझ और मार्गदर्शन के लिए उक्त दिशानिर्देशों को यथासंशोधित करने का प्रयास किया गया है।
भाग क- अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों को सतर्कता निकासी प्रदान करना
2. ये आदेश निम्नलिखित के संबंध में सतर्कता निकासी हेतु लागू होंगे:
i. प्रस्ताव सूची में समावेशन
ii. पैनलबद्धकरण
iii.भारत बाह्य अध्ययन छुट्टी
iv.अंतर-संवर्ग स्थानांतरण और उसके विस्तार के मामले
v.अंतर-संवर्ग प्रतिनियुक्ति और उसके विस्तार सहित कोई भी प्रतिनियुक्ति
vi.संवेदनशील पदों पर नियुक्तियां
vii. अनिवार्य प्रशिक्षण को छोड़कर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए असाइनमेंट
viii. सेवा में स्थायीकरण
ix.वीआरएस पर सेवानिवृत्ति, जहां केंद्र सरकार मामले पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है
x.सेवानिवृत्ति के पश्चात वाणिज्यिक रोजगार
xi.समयपूर्व प्रत्यावर्तन (स्वैच्छिक)
इन सभी मामलों में कोई भी निर्णय लिए जाने से पहले सतर्कता की स्थिति को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखा तथा उसके द्वारा उस पर विचार किया जा सकता है।
3. निम्नलिखित आधारों पर सतर्कता निकासी से इनकार किया जाएगा:
(क)(I) अधिकारी के विरूद्ध कोई शिकायत प्राप्त हुई है और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के दिनांक 09.10.2024 के कार्यालय ज्ञापन संख्या 104/76/2024-एवीडी-आईए के पैरा 6 मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य सरकारों में शिकायतों के निपटान के संबंध में समेकित दिशानिर्देश; में यथाअनुबंधित अथवा संबंधित सरकार के पास पहले से ही मौजूद किसी भी ऐसी सूचना के आधार पर संबंधित सरकार द्वारा कम से कम प्रारंभिक जांच के आधार पर यह संस्थित हो गया है कि किसी अधिकारी के कृत्यों के बारे में सत्यापन योग्य आरोपों के लिए ऐसे प्रथम दृष्टया ठोस आधार हैं जिसमें सतर्कता की दृष्टि शामिल है। जैसे:
(i) भ्रष्टाचार, जिसमें किसी आधिकारिक कार्य के संबंध में अथवा किसी अन्य अधिकारी के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करके कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण की मांग करना और/अथवा स्वीकार करना शामिल है; अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को बिना किसी विचार के अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से अनुचित विचार के साथ प्राप्त करना, जिसके साथ उसका आधिकारिक व्यवहार है अथवा होने की संभावना है अथवा उसके अधीनस्थों का आधिकारिक व्यवहार है अथवा जहां वह प्रभाव डाल सकता है; अथवा भ्रष्ट या अवैध तरीकों से अथवा लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरूपयोग करके स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना।
(ii) आय के ज्ञात स्रोतों से असंगत परिसम्पत्ति का होना
(iii) दुर्विनियोजन, जालसाजी अथवा धोखाधड़ी अथवा अन्य समान आपराधिक अपराधों के मामलों में संलिप्तता
(iv) नैतिक अधमता
(v) अ.भा.से. आचरण नियमावली, 1968 का उल्लंघन
(II) सतर्कता निकासी तभी प्रदान की जाएगी जब प्रारंभिक जांच, यदि आवश्यक हो, और जैसा कि ऊपर (I) में परिकल्पित है, शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन माह के भीतर संबंधित सरकार द्वारा शुरू नहीं की जाती है, अथवा यदि प्रारंभिक जांच शुरू होने के बाद तीन माह से अधिक समय तक पूरी हुई बिना लंबित रहती है।
(ख) अधिकारी निलंबित है।
(ग) अधिकारी का नाम सहमत सूची में है बशर्ते कि ऐसे सभी मामलों में एक वर्ष की अवधि के बाद स्थिति का अनिवार्य रूप से पुनरीक्षण किया जाएगा।
(घ) आरोप पत्र जारी होने के साथ अनुशासनिक प्राधिकारी के अनुमोदन के अनुसार अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है और कार्यवाही लंबित है।
(ङ) अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक मामला संस्थापित करने अथवा छानबीन/पूछताछ/जांच की स्वीकृति के आदेश अनुशासनिक प्राधिकारी/सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिए गए हैं और आरोप पत्र तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया है।
(च) जांच अभिकरण द्वारा किसी आपराधिक मामले में न्यायालय में आरोपपत्र दायर कर दिया गया है और मामला लंबित है।
(छ) सक्षम प्राधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (2018 में यथासंशोधित) अथवा किसी अन्य आपराधिक मामले के तहत अभियोजन की संस्वीकृति प्रदान कर दी गई है और मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है।
(ज) अधिकारी, भ्रष्टाचार के आरोपों में एक ट्रेप/छापे के मामले में संलिप्त है और जांच लंबित है।
(झ) किसी निजी शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी पर जांच के पश्चात, जांच अभिकरण द्वारा अधिकारी के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दायर किया गया है।
(ञ) संबंधित सरकार द्वारा अधिकारी के विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है अथवा मामला पंजीकृत किया गया है, बशर्ते कि आरोप पत्र प्राथमिकी/मामला दर्ज करने/पंजीकृत करने की तारीख से तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया हो।
(ट) अधिकारी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16 के तहत यथापेक्षित मौजूदा वर्ष की 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की वार्षिक अचल संपत्ति विवरणी (रिटर्न) जमा करने में विफल रहता है।
(ठ) ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर लघु शास्ति लगाई गई है, शास्ति की अवधि जारी रहने के पश्चात तीन वर्ष तक की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर बड़ी शास्ति लगाई गई है, दंड जारी रहने की अवधि के पश्चात पांच वर्ष की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। शास्ति जारी रहने के पश्चात अधिकारी के प्रदर्शन पर बारीकी से नजर रखी जानी चाहिए और यदि अधिकारी का नाम सहमत सूची अथवा ओडीआई सूची में सम्मिलित किया जाता है तो सतर्कता निकासी से इनकार किया जाता रहेगा।
4. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निम्नलिखित स्थितियों में प्रयोजन की संवेदनशीलता, आरोपों/अभियोगों की गंभीरता और तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामला दर मामला सतर्कता निकासी का निर्णय लिया जाएगा:
(क) जहां किसी आपराधिक मामले में अधिकारी के विरूद्ध किसी भी जांच अभिकरण द्वारा की गई पूर्व-अन्वेषण जांच, तीन महीने से अधिक समय तक लंबित रहती है।
(ख) जहां जांच अभिकरण, जांच शुरू होने की तारीख से दो साल की अवधि के बाद भी अपनी जांच पूरी नहीं कर पाया है और आरोप दायर नहीं कर पाया है। तथापि, ऐसी सतर्कता निकासी, अधिकारी को केवल गैर-संवेदनशील पदों पर नियुक्त किए जाने और संवर्ग में समयपूर्व प्रत्यावर्तन के लिए विचार किए जाने हेतु हकदार बनाएगी न कि उपर्युक्त पैरा -2 में सूचीबद्ध व्यवस्था के अन्य मामलों के लिए। मंत्रालय/विभाग अपने संगठनों के भीतर संवेदनशील पदों की पहचान तत्काल करेंगे। मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पदों (समकक्ष नहीं) को अन्य बातों के साथ-साथ संवेदनशील माना जाएगा।
(ग) ऐसे मामलों में, जहां जांच अभिकरण या सक्षम प्राधिकारी मामले को बंद करने की संस्तुति करता है, परन्तु न्यायालय द्वारा मामले/प्राथमिकी को बंद करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
(घ) ऐसे मामलों में जहां जांच अभिकरण/जांच अधिकारी आरोपों को सिद्ध मान लेता है लेकिन राज्य सरकार की राय इस मामले पर अलग है।
5. अ.भा.से. अधिकारियों के पैनलबद्धकरण के प्रयोजनार्थ सतर्कता निकासी प्रदान करने के मामलों पर विचार करते समय, संबंधित राज्य सरकारों से भी सतर्कता स्थिति को सुनिश्चित किया जाता रहेगा। केन्द्र सरकार के कार्यों से जुड़े सेवारत अधिकारियों के संबंध में भी सतर्कता की स्थिति संबंधित मंत्रालय/विभाग से प्राप्त की जाएगी। अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के पैनलबद्ध किए जाने के सभी मामलों के संबंध में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की टिप्पणियां भी प्राप्त की जाएंगी।
6. मंत्रालय/विभाग में उप सचिव/निदेशक स्तर तक के अधिकारियों के लिए सतर्कता प्रभाग के प्रमुख के अनुमोदन से सतर्कता निकासी जारी की जाएगी। संयुक्त सचिव/अपर सचिव/सचिव के लिए सतर्कता निकासी, सचिव के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संदेह की स्थिति में, संबंधित मंत्रालय/विभाग में सचिव के आदेश उस प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए प्राप्त किए जाएंगे जिसके लिए 'सतर्कता निकासी' दी जानी है।
भाग ख- केन्द्रीय सिविल सेवा/केन्द्रीय सिविल पदों के सदस्यों को सतर्कता निकासी प्रदान करना
7. ये आदेश निम्नलिखित के संबंध में सतर्कता निकासी हेतु लागू होंगे:
i. प्रस्ताव सूची में समावेशन
ii. पैनलबद्धकरण
iii.भारत बाह्य अध्ययन छुट्टी
iv.अंतर-संवर्ग स्थानांतरण और उसके विस्तार के मामले
v.अंतर-संवर्ग प्रतिनियुक्ति और उसके विस्तार सहित कोई भी प्रतिनियुक्ति
vi.संवेदनशील पदों पर नियुक्तियां
vii. अनिवार्य प्रशिक्षण को छोड़कर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए असाइनमेंट
viii. सेवा में स्थायीकरण
ix.वीआरएस पर सेवानिवृत्ति, जहां केंद्र सरकार मामले पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है
x.सेवानिवृत्ति के पश्चात वाणिज्यिक रोजगार
xi.समयपूर्व प्रत्यावर्तन (स्वैच्छिक)
इन सभी मामलों में कोई भी निर्णय लिए जाने से पहले सतर्कता की स्थिति को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखा तथा उसके द्वारा उस पर विचार किया जा सकता है।
8. निम्नलिखित आधारों पर सतर्कता निकासी से इनकार किया जाएगा:
(क)(I) अधिकारी के विरूद्ध कोई शिकायत प्राप्त हुई है और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के दिनांक 09.10.2024 के कार्यालय ज्ञापन संख्या 104/76/2024-एवीडी-आईए के पैरा 6 मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य सरकारों में शिकायतों के निपटान के संबंध में समेकित दिशानिर्देश; में यथाअनुबंधित अथवा संबंधित सरकार के पास पहले से ही मौजूद किसी भी ऐसी सूचना के आधार पर संबंधित सरकार द्वारा कम से कम प्रारंभिक जांच के आधार पर यह संस्थित हो गया है कि किसी अधिकारी के कृत्यों के बारे में सत्यापन योग्य आरोपों के लिए ऐसे प्रथम दृष्टया ठोस आधार हैं जिसमें सतर्कता की दृष्टि शामिल है। जैसे:
(i) भ्रष्टाचार, जिसमें किसी आधिकारिक कार्य के संबंध में अथवा किसी अन्य अधिकारी के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करके कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण की मांग करना और/अथवा स्वीकार करना शामिल है; अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को बिना किसी विचार के अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से अनुचित विचार के साथ प्राप्त करना, जिसके साथ उसका आधिकारिक व्यवहार है अथवा होने की संभावना है अथवा उसके अधीनस्थों का आधिकारिक व्यवहार है अथवा जहां वह प्रभाव डाल सकता है; अथवा भ्रष्ट या अवैध तरीकों से अथवा लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरूपयोग करके स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना।
(ii) आय के ज्ञात स्रोतों से असंगत परिसम्पत्ति का होना
(iii) दुर्विनियोजन, जालसाजी अथवा धोखाधड़ी अथवा अन्य समान आपराधिक अपराधों के मामलों में संलिप्तता
(iv) नैतिक अधमता
(v) अ.भा.से. आचरण नियमावली, 1968 का उल्लंघन
(II) सतर्कता निकासी तभी प्रदान की जाएगी जब प्रारंभिक जांच, यदि आवश्यक हो, और जैसा कि ऊपर (I) में परिकल्पित है, शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने के भीतर संबंधित सरकार द्वारा शुरू नहीं की जाती है, अथवा यदि प्रारंभिक जांच शुरू होने के बाद तीन महीने से अधिक समय तक पूरी हुई बिना लंबित रहती है।
(ख) अधिकारी निलंबित है।
(ग) अधिकारी का नाम सहमत सूची में है बशर्ते कि ऐसे सभी मामलों में एक वर्ष की अवधि के बाद स्थिति का अनिवार्य रूप से पुनरीक्षण किया जाएगा।
(घ) आरोप पत्र जारी होने के साथ अनुशासनिक प्राधिकारी के अनुमोदन के अनुसार अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है और कार्यवाही लंबित है।
(ङ) अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक मामला संस्थापित करने अथवा छानबीन/पूछताछ/जांच की स्वीकृति के आदेश अनुशासनिक प्राधिकारी/सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिए गए हैं और आरोप पत्र तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया है।
(च) जांच अभिकरण द्वारा किसी आपराधिक मामले में न्यायालय में आरोपपत्र दायर कर दिया गया है और मामला लंबित है।
(छ) सक्षम प्राधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (2018 में यथासंशोधित) अथवा किसी अन्य आपराधिक मामले के तहत अभियोजन की संस्वीकृति प्रदान कर दी गई है और मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है।
(ज) अधिकारी, भ्रष्टाचार के आरोपों में एक ट्रेप/छापे के मामले में संलिप्त है और जांच लंबित है।
(झ) किसी निजी शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी पर जांच के पश्चात, जांच अभिकरण द्वारा अधिकारी के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दायर किया गया है।
(ञ) संबंधित सरकार द्वारा अधिकारी के विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है अथवा मामला पंजीकृत किया गया है, बशर्ते कि आरोप पत्र प्राथमिकी/मामला दर्ज करने/पंजीकृत करने की तारीख से तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया हो।
(ट) अधिकारी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16 के तहत यथापेक्षित मौजूदा वर्ष की 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की वार्षिक अचल संपत्ति विवरणी (रिटर्न) जमा करने में विफल रहता है।
(ठ) ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर लघु शास्ति लगाई गई है, शास्ति की अवधि जारी रहने के पश्चात तीन वर्ष तक की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर बड़ी शास्ति लगाई गई है, दंड जारी रहने की अवधि के पश्चात पांच वर्ष की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। शास्ति जारी रहने के पश्चात अधिकारी के प्रदर्शन पर बारीकी से नजर रखी जानी चाहिए और यदि अधिकारी का नाम सहमत सूची अथवा ओडीआई सूची में सम्मिलित किया जाता है तो सतर्कता निकासी से इनकार किया जाता रहेगा।
9. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निम्नलिखित स्थितियों में प्रयोजन की संवेदनशीलता, आरोपों/अभियोगों की गंभीरता और तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामला दर मामला सतर्कता निकासी का निर्णय लिया जाएगा:
(क) जहां किसी आपराधिक मामले में अधिकारी के विरूद्ध किसी भी जांच अभिकरण द्वारा की गई पूर्व-अन्वेषण जांच, तीन महीने से अधिक समय तक लंबित रहती है।
(ख) जहां जांच अभिकरण, जांच शुरू होने की तारीख से दो साल की अवधि के बाद भी अपनी जांच पूरी नहीं कर पाया है और आरोप दायर नहीं कर पाया है। तथापि, ऐसी सतर्कता निकासी, अधिकारी को केवल गैर-संवेदनशील पदों पर नियुक्त किए जाने और संवर्ग में समयपूर्व प्रत्यावर्तन के लिए विचार किए जाने हेतु हकदार बनाएगी न कि उपर्युक्त पैरा -2 में सूचीबद्ध व्यवस्था के अन्य मामलों के लिए। मंत्रालय/विभाग अपने संगठनों के भीतर संवेदनशील पदों की पहचान तत्काल करेंगे। मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पदों (समकक्ष नहीं) को अन्य बातों के साथ-साथ संवेदनशील माना जाएगा।
(ग) ऐसे मामलों में, जहां जांच अभिकरण या सक्षम प्राधिकारी मामले को बंद करने की संस्तुति करता है, परन्तु न्यायालय द्वारा मामले/प्राथमिकी को बंद करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
(घ) ऐसे मामलों में जहां जांच अभिकरण/जांच अधिकारी आरोपों को सिद्ध मान लेता है लेकिन राज्य सरकार की राय इस मामले पर अलग है।
10. केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों के सदस्यों को पैनल में शामिल करने के उद्देश्य से सतर्कता निकासी प्रदान करने के मामलों पर विचार करते समय, संबंधित संवर्ग प्राधिकारी से भी सतर्कता स्थिति सुनिश्चित की जाती रहेगी। केन्द्रीय सिविल सेवाओं/केन्द्रीय सिविल पदों के सदस्यों को पैनल में शामिल करने के सभी मामलों हेतु सीवीसी की टिप्पणियां भी प्राप्त की जाएगी।
11. मंत्रालय/विभाग में उप सचिव/निदेशक स्तर तक के अधिकारियों के लिए सतर्कता स्वीकृति सतर्कता प्रभाग के प्रमुख के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संयुक्त सचिव/अपर सचिव/सचिव के लिए सतर्कता निकासी सचिव के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संदेह की स्थिति में, संबंधित मंत्रालय/विभाग में सचिव के आदेश उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्राप्त किए जाएंगे, जिसके लिए 'सतर्कता निकासी' दी जानी आवश्यक है।
12. जहां तक भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में कार्यरत कार्मिकों का संबंध है, ये अनुदेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के परामर्श के पश्चात जारी किए गए हैं।
(Sign of Authority)
Rupesh Kumar
Under Secretary
23094799
इन निर्देशों के परिदृश्य में यह सवाल उठने लगा है कि क्या सुक्खू सरकार केन्द्र के निर्देशों की अवहेलना कर पायेगी? क्या अधिकारी इन निर्देशों को मुख्यमंत्री के संज्ञान में लायेंगे? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि इन पदों के लिये आवेदन आमंत्रित करने के लिये जो विज्ञापन जारी किया गया है उसमें विजिलैन्स क्लीयरैन्स हासिल करने का कोई संकेत तक नहीं दिया गया है।
यह है आवेदन आमंत्रित करने के लिये जारी हुआ विज्ञापन।
शिमला/शैल। हिमाचल वित्तीय संकट से गुजर रहा है और प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं यह चेतावनी मुख्यमंत्री सुक्खू ने प्रदेश की सत्ता संभालते ही जारी कर दी। प्रदेश के वित्तीय संकट के लिये जयराम सरकार के समय रहे कुप्रबंधन को दोषी ठहराया गया था। इसी कुप्रबंधन के नाम पर पिछली सरकार द्वारा अंतिम छः माह में लिये गये फैसलों के अमल पर रोक लगा दी गई। वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र तक लाया गया और केंद्र पर भी प्रदेश के साथ भेदभाव बरतने के आरोप लगाये गये। प्रदेश की कर्ज लेने की सीमा में भारी कटौती कर दिये जाने के भी आरोप लगाये गये। स्वभाविक है कि जिस विपक्ष पर सत्ता संभालते ही सरकार द्वारा इस तरह के आरोप लगा दिये जायें उसके लिये भी स्थितियां बहुत संवेदनशील हो जाती हैं। क्योंकि उसे सरकार के आरोपों का जवाब देने के साथ ही सरकार के हर कामकाज पर पैनी नजर बनाये रखना आवश्यक हो जाता है। राजनीतिक के इस मानक पर विपक्ष का आकलन करना आवश्यक हो जाता है। लेकिन इस आकलन के लिये प्रदेश में रही भाजपा सरकारों की पृष्ठभूमि पर भी नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
हिमाचल में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री रहे हैं। पहले शान्ता कुमार दूसरे प्रेम कुमार धूमल और तीसरे जयराम ठाकुर। शान्ता पहली बार 1977 में जनता पार्टी के मुख्यमंत्री बने और 1980 में यह सरकार टूट गई तथा शान्ता कुमार कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। दूसरी बार 1990 में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बने लेकिन बाबरी मस्जिद प्रकरण में यह सरकार भी 1992 में गिर गई और शान्ता कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। शान्त उसके बाद केंद्र में भी मंत्री बने। शान्ता के बाद प्रो.प्रेम कुमार धूमल 1998 में गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने और पूरा कार्यकाल रहे। उसके बाद 2007 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तथा कार्यकाल पूरा किया। 2017 का चुनाव धूमल को नेता घोषित करके लड़ा गया। इस चुनाव में भाजपा तो जीत गई परन्तु धूमल चुनाव हार गये। तब जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बनाये गये। उस समय धूमल को मुख्यमंत्री बनाने के लिये कुछ विधायकों ने अपनी सीटें छोड़ने तक की पेशकश कर दी थी। जगत प्रकाश नड्डा भी उस समय मुख्यमंत्री के लिये प्रबल दावेदारों में थे। शान्ता धूमल और नड्डा के राजनीतिक कद जयराम ठाकुर से कहीं बड़े थे। लेकिन मुख्यमंत्री जयराम बन गये। जयराम और धूमल में सरकार बनने के बाद टकराव की भी स्थिति रही है। यही पृष्ठभूमि जयराम के मुख्यमंत्री काल में भी सक्रिय भूमिका में रही और आज नेता प्रतिपक्ष के दौर में भी है। इसलिए आज भाजपा का बतौर विपक्ष आकलन करने के लिये इस पृष्ठभूमि को भी गणना में रखना होगा।
हिमाचल में 2022 में भाजपा विधानसभा चुनाव हार गई। जबकि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भी सक्रिय प्रचार में रहे। नड्डा केंद्रीय राजनीति में बड़े मुकाम पर थे। अनुराग केंद्र में मंत्री थे। लेकिन यह सब होने के बावजूद हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। शान्ता के कांगड़ा में भी कोई ज्यादा सुखदः स्थिति नहीं रही। केवल मंडी की जीत ने भाजपा को संबल दिया और इससे जयराम का नेता प्रतिपक्ष बनना आसान हो गया। वह विधायकी की शपथ से पहले ही नेता प्रतिपक्ष बन गये। उधर नई सरकार ने जिस तरह से वित्तीय संकट के लिये पूर्व सरकार को जिम्मेदार ठहराया और साथ ही व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर प्रशासन में कोई फेरबदल नहीं किया और पिछले फैसला पलट दिये उससे प्रशासन के लिये फिर पूर्व नेतृत्व ही संबल रह गया। इसका व्यवहारिक परिणाम यह हुआ कि सरकार की हर अन्दर की सूचना पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष तक आसानी से पहुंचना शुरू हो गई। सरकार द्वारा कर्ज लेने का हर आंकड़ा बाहर आना शुरू हो गया। सरकार में सीपीएस की नियुक्तियों और राजेन्द्र राणा तथा सुधीर शर्मा का मंत्री परिषद से बाहर रहना कांग्रेस में असंतोष का बड़ा कारण बनता चला गया। कार्यकर्ताओं की अनदेखी की शिकायतें हाईकमान तक पहुंचना शुरू हो गई। लेकिन कांग्रेस हाईकमान स्थितियों का सही आकलन नहीं कर पायी और राज्यसभा चुनाव में यह असंतोष खुलकर सामने आ गया। कांग्रेस के छः विधायक भाजपा में चले गये। इन्हीं के साथ तीनों निर्दलीय विधायक भी भाजपा में शामिल हो गये।
इस दलबदल पर जिस तरह की पुलिस और अदालती कारवाईयां शुरू हुई उससे आरोपों-प्रत्यारोपों का जो दौर शुरू हुआ वह ईडी और आयकर की छापेमारी से कुछ लोगों की गिरफ्तारी तक पहुंच गया। इस गिरफ्तारी का प्रसंग जिस तरह से विधानसभा पटल तक जब पहुंचा और मुख्यमंत्री को अपने जवाब में यह कहना पड़ गया कि ज्ञानचन्द विधानसभा में उनके समर्थक है तो लोकसभा में अनुराग ठाकुर का है। मुख्यमंत्री नेे इसी प्रसंग में पूर्व विधायक रमेश ध्वाला और विजय अग्निहोत्री का जिक्र भी सदन में कर दिया। अब भाजपा में शामिल हुये कांग्रेस के छः विधायकों के पास हर समय ईडी और सीबीआई तथा आयकर तक पहुंचे मामलों को जल्द से जल्द अंतिम अंजाम तक पहुंचाने के लिये भाजपा नेतृत्व पर दबाव बनाना आवश्यक हो गया है। जब यह लोग भाजपा में शामिल हुये थे नड्डा तब भी राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और आज भी हैं। इसलिए जिस तरह की परिस्थितियों स्वतः ही बनती जा रही है उनमें नड्डा और अनुराग को भी सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपे काले चिट्ठे पर आक्रामक होना ही पड़ेगा। क्योंकि भाजपा पर प्रदेश की सरकार को तोड़ने के आरोप लग ही चुके हैं और इन आरोपों की ज्यादा आंच नड्डा और अनुराग पर है। क्योंकि वह केंद्र में हैं। इस परिदृश्य में नड्डा और अनुराग यदि पूरा मुखर होकर सरकार के खिलाफ आक्रामक नहीं होते हैं तो इसके लिये उन्हीं पर आगे चलकर सवाल उठेंगे। क्योंकि इस समय सरकार के खिलाफ जितनी आक्रामकता जयराम अपनाये हुये हैं उतनी दूसरे नेता नहीं। यही आक्रामकता आने वाले दिनों में यह तय करेगी कि भाजपा का प्रदेश नेतृत्व किन हाथों में कितना सुरक्षित रहेगा। इसमें यह भी महत्वपूर्ण रहेगा कि संगठन के चुनाव में दल बदल कर आये नेताओं को क्या मिलता है क्योंकि भाजपा की विश्वसनीयता के लिये यह आवश्यक होगा। क्योंकि भाजपा जिस तरह से राज्यपाल को सौंप काले चिट्ठे को विधानसभा में दस्तावेजों के साथ प्रमाणित नहीं कर पायी है उससे विपक्ष की नीयत और नीति दोनों सवालों के घेरे में आ गये हैं। दो वर्ष में सदन में सदस्यों का आंकड़ा 25 से 28 पहुंचने से असफल लोटस ऑपरेशन का आरोप कहीं बड़ा है।
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