Monday, 15 December 2025
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जल विद्युत परियोजनाओं पर राज्य और केन्द्र में टकराव से किसे लाभ होगा?

  • जो विद्युत उत्पादन दो दशकों से भी ज्यादा लटक जायेगा वह किसके लिये हितकर होगा?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जयराम सरकार के समय जिन-चार जल विद्युत परियोजनाओं को केंद्रीय उपक्रमों एनएचपीसी और एसजेवीएनएल को आबंटित कर दिया था उनको वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह वापसी इस कारण से की जा रही है क्योंकि जयराम सरकार के समय इस आबंटन के लिये पूर्व की मुफ्त बिजली नीति में बदलाव कर दिया गया था। पहले यह नीति थी कि विद्युत उत्पादक से पहले 12 सालों तक 12% 13 से 30 वर्षों तक 18%और 31 से 40 वर्षों तक 30% और उसके बाद 40% मुफ्त बिजली प्रदेश को मिलती थी। पूर्व सरकार के समय इस नीति को बदलकर 4%, 8%, 12% और 25% कर दिया गया था। केंद्रीय उपक्रमों को दी गयी परियोजनाएं थी चंबा का डुग्गर 500 मेगावाट, लूहरी चरण एक 210 मेगावाट, धोला सिद्ध 166 मेगावाट और 382 मेगावाट की सुन्नी डैम परियोजना। जयराम सरकार के समय जब यह आबंटन हो गया तब इस पर इन उपक्रमों ने काम शुरू कर दिया क्योंकि दोनों ओर भाजपा की सरकारें ही थी। लेकिन शायद उस समय राज्य सरकार और इन केन्द्रीय उपक्रमों में एमओ.यू हस्ताक्षरित नहीं हो पाये थे। सुक्खू सरकार ने पूर्व सरकार के समय हुए इन समझौता को राज्य के हितों के खिलाफ करार देते हुये इन केन्द्रीय उपक्रमों को यह पत्र लिख दिया कि यदि उन्हें पूर्व की बिजली नीति 12%, 18%, 30% और 40% स्वीकार है तब इस आबंटन पर अमल किया जाये अन्यथा राज्य सरकार इन परियोजनाओं को वापस ले लेगी। इस पर केन्द्र सरकार के बिजली सचिव पंकज अग्रवाल ने 12 मार्च को प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर सूचित किया कि या तो इन परियोजनाओं के काम को देशहित में चलने दिया जाये या फिर अब तक जो भी खर्च हुआ है उसका ब्याज सहित भुगतान करने के बाद परियोजनाओं को वापस ले लिया जाये। केन्द्रीय बिजली सचिव के मुताबिक अब तक 3400 करोड़ रुपए खर्च हो गये हैं। प्रदेश सरकार ने इस संबंध में खर्च का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रदेश उच्च न्यायालय में दस अप्रैल को दस्तक दे दी है। पूर्व सरकार के समय जब यह आबंटन हुआ था तब वर्तमान मुख्य सचिव बिजली सचिव थे और आज मुख्य सचिव हैं। इसलिए यह मामला रोचक होगा क्योंकि अब उन्हें केन्द्रीय सचिव को जवाब देना होगा।
जब सुक्खू सरकार ने जल विद्युत परियोजनाओं पर उपकर लगाने का फैसला लिया था तब इन्हीं उपक्रमों ने उसका विरोध किया था और मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक गया था। उसी पृष्ठभूमि में यह माना जा रहा है कि पुनर्मूल्यांकन का मामला भी लम्बी अदालती लड़ाई में फंस जायेगा। धौलासिद्ध और लूहरी परियोजनाएं अक्तूबर 2008 में आबंटित हुई थी और अगस्त 2017 में इन्हें एसजेवीएनएल को दिया गया था। अब इन्हें फिर वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। इस तरह और एक दशक तक इनमें उत्पादन शुरू हो पाने की संभावना नहीं है। इसी तरह डूग्गर परियोजना 2009 में धूमल सरकार के समय टाटा पावर और सिंगापुर की स्टेट क्राफ्ट कंपनी को आबंटित हुए थे। परन्तु यह कंपनियां इस पर काम नहीं कर पायी और 2019 में यह आबंटन रद्द कर दिया गया। टाटा पावर ने इस परियोजना से अपना अपफ्रंट प्रीमियम वापस लेने के लिये आवेदन किया और उसे मिल भी गया। पिछले दो वर्षों में ही आरबीट्रेशन में सरकार को पावर प्रोजेक्टस में हजारों करोड़ देने पड़े हैं। लेकिन किसी भी मामले में यह सामने नहीं आ पाया है कि दोष किन अधिकारियों का था। बल्कि यह धारणा बनती जा रही है कि यह आरबीट्रेशन भी एक बड़ा कारोबार बन गया है।
इस समय सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही है क्योंकि सरकार को वर्ष की शुरुआत ही कर्ज से करनी पड़ी है। मुख्यमंत्री सुक्खू प्रदेश को आत्मनिर्भर और देश का अग्रणी राज्य बनाने का दावा कर रहे हैं। एक समय प्रदेश की जल विद्युत परियोजनाओं को संकट मोचक के रूप में देखा गया था। परन्तु इस समय जितना कर्ज प्रदेश की पावर कंपनियों और बोर्ड पर है उसके चलते यह संभव नहीं है कि निकट भविष्य में पावर परियोजनाओं पर कोई निर्भरता बन पायेगी। चंडीगढ़ और भाखड़ा में हिमाचल के हिस्से को लेकर एक लम्बे समय से विवाद चल आ रहा है। हर सरकार इस हिस्से को लेने के बड़े-बड़े वायदे करती आयी है। अदालत से अवार्ड होने के बावजूद यह मसला अब तक हल नहीं हो पाया है। जबकि केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकारें रह चुकी हैं। ऐसी स्थिति में जब इन परियोजनाओं को वापस लेने की प्रक्रिया अदालत में पहुंच चुकी है उसके मद्देनजर इसमें लम्बी कानूनी लड़ाई से गुजरना पड़ेगा। पहले ही यह परियोजनाएं पिछले पन्द्रह वर्षों से अधिक समय से लटकी पड़ी है। अभी और एक दशक लगने की परिस्थितियों निर्मित हो गयी हैं। इस बार भाखड़ा और पोंगडैम जलाश्यों में पानी का भराव बहुत कम रहा है। लूहरी को लेकर प्रभावित जनता विरोध में आ गयी है। ग्लेशियर लगातार कम होते जा रहे हैं यह अध्ययनों ने सिद्ध कर दिया है। ऐसे में वित्तीय संकट में चल रहे प्रदेश के लिये ऐसे फैसले बहुत सावधानी से लेने पड़ेंगे।

पावर कारपोरेशन में सैंकड़ों करोड़ का भ्रष्टाचार इंजीनियर सुनील ग्रोवर के बयान से उठी चर्चा

  • यह भ्रष्टाचार कॉरपोरेशन के प्रबंधन के अतिरिक्त अध्यक्ष और प्रभारी मंत्री के नियंत्रण पर भी सवाल खड़े करता है।
  • कॉरपोरेशन के अध्यक्ष से क्या अतिरिक्त मुख्य सचिव सवाल जवाब कर पायेंगे
  • भ्रष्टाचार के सहभागी न बनना विमल नेगी को पड़ा भारी

शिमला/शैल। क्या अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा और पुलिस की जांच स्व. विमल नेगी की मौत के लिये जिम्मेदार लोगों को सजा दिला पायेगी। यह सवाल इंजीनियर सुनील ग्रोवर के उसे ब्यान के बाद चर्चा में आया है जो उन्होंने अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को सौंपा है। इंजीनियर सुनील ग्रोवर एचपीएस एलडीसी के एम डी रह चुके हैं और अखिल भारतीय पावर इंजीनियरिंग फैडरेशन के संरक्षक भी हैं। इस नाते उनके तकनीकी ज्ञान और अनुभव पर संदेह नहीं किया जा सकता। सुनील ग्रोवर ने अपने ब्यान में पावर कॉरपोरेशन में व्यापक भ्रष्टाचार की तथ्यों के साथ जो कहानी सामने रखी है उसके मुताबिक सौर ऊर्जा परियोजनाओं पेखूबेला में ही सौ करोड़ से अधिक का घपला हुआ है और शोंग-टोंग जल विद्युत परियोजना में तो कई सौ करोड़ का घपला है। इन घपलों का आकार देखकर कोई भी व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं होगा कि एक दो अधिकारी ही अपने स्तर पर इतना बड़ा कारनामा कर गये होंगे। क्योंकि हर बोर्ड कॉरपोरेशन के प्रबंधन में वित्त विभाग का प्रतिनिधि होता है। फिर विभाग का प्रभारी सचिव भी होता है जो पूरे विभाग पर नजर रखता है। पावर कॉरपोरेशन में तो अध्यक्ष भी नियुक्त है। विद्युत विभाग का प्रभार तो स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। फिर जिस तरह के नीतिगत फैसले शांग-टांग परियोजना में लिये गये हैं संभव है कि वह विषय मंत्री परिषद तक भी पहुंचे हों। इंजीनियर सुनील ग्रोवर के ब्यान से स्पष्ट है कि पावर कॉरपोरेशन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। इतना बड़ा भ्रष्टाचार अपने में ही एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। इस भ्रष्टाचार के कारण विमल नेगी के लिये जीवन समाप्त कर देने की परिस्थितियों निर्मित हुई या नहीं यह पुलिस की जांच का विषय है। लेकिन कार्पाेरेशन में भ्रष्टाचार हुआ है यह खुलासा इंजीनियर सुनील ग्रोवर का सत्यापित बयान कर रहा है। इतने बड़े पैमाने पर हुआ भ्रष्टाचार कॉरपोरेशन के प्रबंधन के अतिरिक्त अध्यक्ष ऊर्जा सचिव और प्रभारी मंत्री तक को कटघरे में खड़ा कर देता है। इस मामले की प्रशासनिक जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव कर रहे हैं। लेकिन कॉरपोरेशन के अध्यक्ष तो शायद मुख्य सचिव स्वयं हैं। इसलिये अतिरिक्त मुख्य सचिव मुख्य सचिव से बतौर कॉरपोरेशन अध्यक्ष कितने और क्या सवाल जवाब कर पायेंगे यह आम समझ का विषय है।
वित्तीय संकट से जूझ रहे प्रदेश में इस आकार का भ्रष्टाचार घट जाये तो यह पूरी व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल हो जाता है। इंजीनियर ग्रोवर ने अपने बयान के हर पन्ने पर हस्ताक्षर किये हैं और इसका अर्थ यह हो जाता है कि वह इस बयान में दर्ज तथ्यों को प्रमाणित करने के लिए तैयार हैं।

इंजीनियर ग्रोवर के बयान के अंश यह हैं

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


बयान में दर्ज तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कॉर्पाेरेशन में सैकड़ो करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार पर बहुत पहले वायरल हुये पत्र में भी कई संकेत दर्ज थे। लेकिन तब इस भ्रष्टाचार की जांच को रोकने के लिये पत्रकारों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज करवा दी गयी थी। यदि उस समय पत्र में दर्ज तथ्यों को गंभीरता से लिया होता तो शायद विमल नेगी को अपना जीवन समाप्त करने की स्थितियां ना बनती ।

 

क्या सक्सेना सरकारी गवाह बनेंगे सेवा विस्तार से उठी आशंकाएं

  • सक्सेना आईएनएक्स मामले में पी.चितंबरम के साथ सहअभियुक्त हैं
  • केन्द्र ने अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करके दिया है यह सेवा विस्तार
शिमला/शैल। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को सरकार के आग्रह पर छः माह का सेवा विस्तार मिल गया है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और केन्द्र में भाजपा की सरकार है। प्रदेश सरकार का केन्द्र सरकार पर यह लगातार आरोप रहा है कि केन्द्र प्रदेश को वांछित वित्तीय सहायता नहीं दे रहा है और इसलिये प्रदेश सरकार को कर्ज पर आश्रित होना पड़ रहा है। प्रदेश में आयी प्राकृतिक आपदा में भी पूरी मदद न करने का आरोप रहा है। राज्यसभा के चुनाव के दौरान प्रदेश सरकार को धन बल के सहारे गिराने का सबसे गंभीर आरोप लगा। क्योंकि इस चुनाव में छः कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। परिणाम स्वरुप कांग्रेस की सरकार होते हुये राज्यसभा भाजपा जीत गयी। धन बल के आरोप को प्रमाणित करने के लिये बालूगंज थाना में एक एफ.आई.आर. तक दर्ज हुई जो अभी तक लंबित चल रही है। ऐसे संबंधों के चलते यदि केन्द्र सरकार प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को सेवा विस्तार देने के आग्रह को मान ले तो यह अपने में एक अलग इतिहास बन जाता है। क्योंकि इस सेवा विस्तार के लिए भारत सरकार की अपनी ही अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करना पड़ा है। जिसका भारत सरकार की छवि पर निश्चित रूप से कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। बल्कि इस सेवा विस्तार को एक बड़े राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
क्योंकि प्रबोध सक्सेना पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के खिलाफ चल रहे आई.एन.एक्स. मीडिया मामले में सह अभियुक्त हैं। धन शोधन के इस मामले में चिदंबरम 105 दिन जेल में काट चुके हैं। उनका बेटा भी जेल जा चुका है। यह मामला सीबीआई अदालत में लंबित है। सक्सेना ने इस मामले में अपनी प्रशासनिक व्यस्तताओं के कवर में अदालत से हर पेशी पर हाजिर होने से छूट ले रखी है। यह सब कुछ राज्य सरकार के संज्ञान में है। केन्द्र में कांग्रेस और मोदी सरकार के रिश्ते जिस तरह के हैं उनके परिदृश्य में पी. चिदंबरम के खिलाफ चल रहा मनी लॉन्ड्रिंग का मामला सरकार और कांग्रेस दोनों के लिये बहुत ही संवेदनशील हो जाता है। सरकार यदि इस मामले में चिदंबरम को सजा दिलाने में सफल हो जाती है तो इसे पूरी कांग्रेस पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। चिदंबरम का आरोप है कि उनके खिलाफ राजनीतिक द्वेष के कारण झूठा मामला बनाया गया है। ऐसे में यदि इस मामले का कोई सहअभियुक्त सरकारी गवाह बनकर चिदंबरम के खिलाफ ब्यान दे देता है तो मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी सफलता मानी जायेगी। इस सेवा विस्तार से ऐसी सारी संभावनाएं चर्चा में आ गयी हैं। क्योंकि अक्तूबर 2024 की भारत सरकार की अपनी अधिसूचना को नजरअन्दाज करके दिया गया यह सेवा विस्तार कुछ अलग ही इंगित करता है।
चर्चा है कि इस सेवा विस्तार के लिए प्रदेश के सांसद ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई है। इस समय कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने के लिये यह सांसद बहुत ही बड़ी भूमिका निभा रहा है। फिर जिस तरह से प्रदेश में ई.डी. का दखल हो चुका है उससे सरकार अपनी ही मजबूरी में घिर गयी है। यदि इन परिस्थितियों का राजनीतिक लाभ लेकर भाजपा कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा नुकसान पहुंचा पाये तो उसके लिये ऐसा सेवा विस्तार एक अच्छा प्रयास हो सकता है। क्योंकि चिदंबरम इस मामले में सहअभयुक्तों के खिलाफ केन्द्र द्वारा कोई कारवाई न करते हुये सीधे उन्हें फसाने का प्रयास कर रही है। चिदंबरम का आरोप है कि मंत्री तक तो फाइल अधिकारियों से होकर आती है। किसी भी मामले में गुण दोष मंत्री के संज्ञान में लाना अधिकारियों का काम है। मंत्री पर तो तब आरोप आयेगा यदि मंत्री ने अधिकारियों की अनुशंसा को नजरअन्दाज करके अलग फैसला दिया हो। अक्तूबर 2024 की अधिसूचना में यह कहा गया है कि अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामला दायर होने से चाहे उसकी स्टेज कोई भी हो उसे संवेदनशील पोस्टिंग और सेवा निवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। जब केन्द्र ने अपनी ही इस अधिसूचना को नजरअन्दाज करके यह सेवा विस्तार दिया है तो उसके मायने निश्चित रूप से गंभीर होंगे।
 
 

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