शिमला/शैल। क्या विमल नेगी की मौत के प्रकरण में भाजपा सिर्फ राजनीति कर रही है? क्या एस.पी. शिमला संजीव गांधी द्वारा नेगी प्रकरण में एल.पी.ए .दायर करने के पीछे कुछ बड़े लोग हैं और एस.पी. तो केवल एक मोहरा है? यह सवाल स्व. विमल नेगी प्रकरण में एस.पी. शिमला संजीव गांधी द्वारा एल.पी.ए. दायर करने पर छिड़े कांग्रेस-भाजपा वाक्युद्ध के बाद खड़े हो गये हैं। यह एल.पी.ए. संजीव गांधी ने अपनी व्यक्तिगत हैसियत में दायर की है। महाधिवक्ता का यह स्पष्ट मत रहा है कि एस.पी. शिमला अपनी प्राइवेट हैसियत में ऐसा कर सकते हैं। भाजपा प्रदेश के महाधिवक्ता कि इस राय को अपरोक्ष में सरकार की अनुमति मान रही है। उच्च न्यायालय इस एल.पी.ए. को स्वीकार करता है या नहीं यह स्पष्ट होने पर ही इस विषय में आगे कुछ कहना ठीक होगा। यह सही है कि भाजपा शुरू से ही इस विषय में सी.बी.आई. जांच की मांग करती रही है। सरकार के शीर्ष अधिकारियों में इस मौत प्रकरण पर उच्च न्यायालय में जिस तरह मतभेद सामने आये हैं उससे सरकार की नीयत पर सवाल उठना स्वभाविक है। इसलिए कांग्रेस भाजपा पर इस मामले में सिर्फ राजनीति करने का आरोप लगा रही है और भाजपा सी.बी.आई. जांच से बचने के प्रयास के रूप में इसे देख रही है ।
कांग्रेस की सुक्खू सरकार पहले दिन ही भाजपा की पूर्व सरकार पर प्रदेश में वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती आयी है। केंद्र द्वारा राज्य को पर्याप्त वित्तीय सहायता न दिये जाने का भी आरोप लगाया जाता रहा है। सुक्खू सरकार पर प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में फसाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। समय-समय पर भाजपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर प्रदेश सरकार पर असफलता का आरोप लगाती रही है। अभी विमल नेगी मौत प्रकरण में भी भाजपा राज्यपाल से मिली है। इस मिलने पर भाजपा सांसद हर्ष महाजन ने मुख्यमंत्री पर गंभीर तंज भी कसे हैं। मुख्यमंत्री ने भी हर्ष महाजन पर उनके सहकारी बैंक के अध्यक्ष कार्यकाल में भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाये हैं और इस भ्रष्टाचार के साक्ष्य उनके पास होने का दावा किया है। मुख्यमंत्री इन साक्ष्यों को अपने पास सहेज कर दिखाने के लिये रखे हुये हैं परन्तु इस पर कोई कारवाई नहीं करना चाहते।
इसी तरह भाजपा ने सुक्खू सरकार को वित्तीय मुहाने पर बुरी तरह असफल रहने का आरोप लगाने के बावजूद प्रदेश में कभी भी राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग नहीं की है। देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान केन्द्रीय सहकारी बैंक कांगड़ा और जिला कल्याण अधिकारी द्वारा 78.50 लाख रुपए चुनाव आचार संहिता के बीच विधानसभा क्षेत्र की महिलाओं को बांटे जाने की शिकायत राज्यपाल से देहरा से इस उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक होशियार सिंह ने कर रखी है। इस शिकायत पर राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट के साथ चुनाव आयोग को भेजना है और चुनाव आयोग को इस पर कारवाई करना है इसमें अदालत जाने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस शिकायत को आज तक आधारहीन भी करार नहीं दिया है और न ही इस पर राजभवन से किसी कारवाई की कोई सूचना ही आयी है। लेकिन इस मामले पर प्रदेश भाजपा के किसी नेता ने आज तक मुंह नहीं खोला है। क्या इस तरह के आचरण को भ्रष्टाचार के आरोपों को रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ कहा जा सकता है?
क्या भाजपा की ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर खामोशी को प्रदेश की गुटबंदी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये? प्रदेश में ई.डी. ने जब नादौन में छापामारी करके अवैध खनन के आरोपों में दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें ज्ञान चन्द चौधरी को मुख्यमंत्री का समर्थक भी करार दिया गया था और मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुये उसे लोकसभा के लिये अनुराग का समर्थन करार दिया था। लेकिन इसके बाद यह मामला आज तक आगे नहीं बढ़ा है और इस मामले पर भाजपा ने कभी मुंह नहीं खोला है। भाजपा की ऐसे महत्वपूर्ण मामलों पर अपनायी जा रही खामोशी को क्या पार्टी के अन्दर फैली गुटबाजी और आपसी फूट के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये? क्या यह सब भाजपा की रस्म अदायगी मात्र ही नहीं है? क्या इसी परिप्रेक्ष में विमल नेगी प्रकरण पर भाजपा की प्रतिक्रियाओं को नहीं देखा जाना चाहिये?




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