Monday, 15 December 2025
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भाजपा की नीयत और नीति पर भी उठने लगे सवाल

  • कुछ मुद्दों पर भाजपा की खामोशी सवालों में

शिमला/शैल। क्या विमल नेगी की मौत के प्रकरण में भाजपा सिर्फ राजनीति कर रही है? क्या एस.पी. शिमला संजीव गांधी द्वारा नेगी प्रकरण में एल.पी.ए .दायर करने के पीछे कुछ बड़े लोग हैं और एस.पी. तो केवल एक मोहरा है? यह सवाल स्व. विमल नेगी प्रकरण में एस.पी. शिमला संजीव गांधी द्वारा एल.पी.ए. दायर करने पर छिड़े कांग्रेस-भाजपा वाक्युद्ध के बाद खड़े हो गये हैं। यह एल.पी.ए. संजीव गांधी ने अपनी व्यक्तिगत हैसियत में दायर की है। महाधिवक्ता का यह स्पष्ट मत रहा है कि एस.पी. शिमला अपनी प्राइवेट हैसियत में ऐसा कर सकते हैं। भाजपा प्रदेश के महाधिवक्ता कि इस राय को अपरोक्ष में सरकार की अनुमति मान रही है। उच्च न्यायालय इस एल.पी.ए. को स्वीकार करता है या नहीं यह स्पष्ट होने पर ही इस विषय में आगे कुछ कहना ठीक होगा। यह सही है कि भाजपा शुरू से ही इस विषय में सी.बी.आई. जांच की मांग करती रही है। सरकार के शीर्ष अधिकारियों में इस मौत प्रकरण पर उच्च न्यायालय में जिस तरह मतभेद सामने आये हैं उससे सरकार की नीयत पर सवाल उठना स्वभाविक है। इसलिए कांग्रेस भाजपा पर इस मामले में सिर्फ राजनीति करने का आरोप लगा रही है और भाजपा सी.बी.आई. जांच से बचने के प्रयास के रूप में इसे देख रही है ।
कांग्रेस की सुक्खू सरकार पहले दिन ही भाजपा की पूर्व सरकार पर प्रदेश में वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती आयी है। केंद्र द्वारा राज्य को पर्याप्त वित्तीय सहायता न दिये जाने का भी आरोप लगाया जाता रहा है। सुक्खू सरकार पर प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में फसाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। समय-समय पर भाजपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर प्रदेश सरकार पर असफलता का आरोप लगाती रही है। अभी विमल नेगी मौत प्रकरण में भी भाजपा राज्यपाल से मिली है। इस मिलने पर भाजपा सांसद हर्ष महाजन ने मुख्यमंत्री पर गंभीर तंज भी कसे हैं। मुख्यमंत्री ने भी हर्ष महाजन पर उनके सहकारी बैंक के अध्यक्ष कार्यकाल में भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाये हैं और इस भ्रष्टाचार के साक्ष्य उनके पास होने का दावा किया है। मुख्यमंत्री इन साक्ष्यों को अपने पास सहेज कर दिखाने के लिये रखे हुये हैं परन्तु इस पर कोई कारवाई नहीं करना चाहते।
इसी तरह भाजपा ने सुक्खू सरकार को वित्तीय मुहाने पर बुरी तरह असफल रहने का आरोप लगाने के बावजूद प्रदेश में कभी भी राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग नहीं की है। देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान केन्द्रीय सहकारी बैंक कांगड़ा और जिला कल्याण अधिकारी द्वारा 78.50 लाख रुपए चुनाव आचार संहिता के बीच विधानसभा क्षेत्र की महिलाओं को बांटे जाने की शिकायत राज्यपाल से देहरा से इस उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक होशियार सिंह ने कर रखी है। इस शिकायत पर राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट के साथ चुनाव आयोग को भेजना है और चुनाव आयोग को इस पर कारवाई करना है इसमें अदालत जाने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस शिकायत को आज तक आधारहीन भी करार नहीं दिया है और न ही इस पर राजभवन से किसी कारवाई की कोई सूचना ही आयी है। लेकिन इस मामले पर प्रदेश भाजपा के किसी नेता ने आज तक मुंह नहीं खोला है। क्या इस तरह के आचरण को भ्रष्टाचार के आरोपों को रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ कहा जा सकता है?
क्या भाजपा की ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर खामोशी को प्रदेश की गुटबंदी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये? प्रदेश में ई.डी. ने जब नादौन में छापामारी करके अवैध खनन के आरोपों में दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें ज्ञान चन्द चौधरी को मुख्यमंत्री का समर्थक भी करार दिया गया था और मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुये उसे लोकसभा के लिये अनुराग का समर्थन करार दिया था। लेकिन इसके बाद यह मामला आज तक आगे नहीं बढ़ा है और इस मामले पर भाजपा ने कभी मुंह नहीं खोला है। भाजपा की ऐसे महत्वपूर्ण मामलों पर अपनायी जा रही खामोशी को क्या पार्टी के अन्दर फैली गुटबाजी और आपसी फूट के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये? क्या यह सब भाजपा की रस्म अदायगी मात्र ही नहीं है? क्या इसी परिप्रेक्ष में विमल नेगी प्रकरण पर भाजपा की प्रतिक्रियाओं को नहीं देखा जाना चाहिये?

क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?

  • सुमन कदम के पत्र से उठी आशंकाएं
शिमला/शैल। क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा शिमला के रिज पर स्थापित हो पायेगी? यह सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ है क्योंकि प्रस्तावित स्थापना को लेकर एक सुमन कदम ने नगर निगम शिमला को भेजे एक पत्र में इस पर आपत्ति उठाई है। कुसम्पटी की कथित निवासी सुमन कदम ने महापौर के नाम भेजे पत्र में कदम ने सर्वाेच्च न्यायालय के 2013 में यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम स्टेट ऑफ गुजरात मामले में आये फैसले के आधार पर एतराज उठाये हैं। सुमन कदम के पत्र में कोई तारीख दर्ज नहीं है। सुमन कदम ने जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा है। कुछ लोगों के मुताबिक सुमन कदम काफी अरसा पहले अपने मकान मालिक के साथ हुये झगड़े के बाद शायद कसुम्पटी छोड़कर जा चुकी है। लेकिन उनके ऐतराज में सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र है इसलिये यह एतराज अपने में गंभीर हो जाता है। नगर निगम ने इस एतराज को सचिवालय में सरकार के पास भेज दिया है। विधि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुमोदन करते हुये इस पर मन्त्री परिषद को निर्णय लेने की राय दी है। प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में इस एतराज को राजनितिक आईने से देखा जा रहा है।
स्व. वीरभद्र छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इस नाते उनके प्रशंसकों और समर्थकों की लम्बी लाईन है। उनके परिजन और समर्थक चाहते है कि उनके प्रदेश की राजनीति में विशेष योगदान के लिये उनकी प्रतिमा रिज पर स्व. डॉ. वाई. एस. परमार की बगल में स्थापित करके उन्हें सम्मान दिया जाये। इसलिये उनके समर्थकों और परिजनों ने इसके लिये राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन का गठन करके यह ऐलान किया है कि इस मूर्ति स्थापना पर होने वाला सारा खर्च फाउंडेशन उठायेगी और सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली जायेगी। लेकिन फाउंडेशन के इस ऐलान के बाद मुख्यमंत्री ने प्रतिभा सिंह को पत्र भेज कर यह कहा है कि इस प्रतिमा स्थापना पर होने वाला सारा खर्च और उसके भविष्य में रख-रखाव पर आने वाला सारा खर्च सरकार उठायेगी। नगर निगम ने इस विषय पर निगम हाउस में आये एक प्रस्ताव के उत्तर में इस प्रतिमा स्थापना के लिये रिज पर जगह देने की भी फैसला कर लिया है। निगम में प्रस्ताव 2024 में आया था निश्चित है कि जब निगम में इस बारे में प्रस्ताव आया था उस समय यह ऐतराज़ का पत्र निगम के पास नहीं आया था। क्योंकि अगर यह पत्र आया होता तो इस पर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में विचार करके फैसला लिया जाता।
स्व. वीरभद्र सिंह की मृत्यु जुलाई 2021 में हुई थी और उसके बाद ही उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने की मांग आ गयी थी। भाजपा शासन में ही निगम में इस आशय की मांग आ गयी थी। भाजपा ने भी उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने का अनुमोदन किया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण यह हो नहीं सका और उसके बाद सरकार बदल गयी। नयी सरकार ने इस बारे कोई हामी नहीं भरी और 2023 में उनकी प्रतिमा शिमला से सौ किलोमीटर दूर सैंज में स्थापित की गयी। स्थापना पर उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री शामिल रहे थे। उस समय स्थापना के लिये रिज पर जगह नहीं दी गयी। रिज पर जगह न मिलने पर विक्रमादित्य सिंह ने भावुक रोष भी व्यक्त किया था। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी वीरभद्र सिंह की मृत्यु पर उपजी सहानुभूति लहर को दिया गया था। लेकिन स्थापना के लिये रिज पर जगह न मिल पाने को वीरभद्र सिंह और सुक्खू के राजनीतिक रिश्तों की पृष्ठभूमि में देखा गया। क्योंकि दोनों के राजनीतिक रिश्ते सुखद नहीं रहे हैं। बल्कि उन रिश्तों की छाया सरकार बनने के बाद भी लगातार देखी जा रही है। आज भी वीरभद्र के समर्थकों की लाइन शायद सुक्खू के प्रशंसकों से लंबी है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते अभी भी उस पुरानी छाया से बाहर नहीं आ पाये हैं। यह इससे स्पष्ट हो जाता है कि छः माह पहले भंग हुई कार्यकारिणी का अब तक गठन नहीं हो पाया है। अब जिस तरह से सुमन कदम की मूर्ति स्थापना को लेकर एतराज आया है उसे भी राजनीतिक चश्मे से ही देखा जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस एतराज को मंत्रिपरिषद के सामने रखा जाता है या नहीं। मंत्रिपरिषद में कौन इस ऐतराज़ का समर्थन करता है या विरोध। लेकिन यह तय है कि स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना या उसका इन्कार कांग्रेस को बहुत दूर तक प्रभावित करेगा।
 
यह है सुमन कदम का पत्र
 

क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?

  • सुमन कदम के पत्र से उठी आशंकाएं
शिमला/शैल। क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा शिमला के रिज पर स्थापित हो पायेगी? यह सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ है क्योंकि प्रस्तावित स्थापना को लेकर एक सुमन कदम ने नगर निगम शिमला को भेजे एक पत्र में इस पर आपत्ति उठाई है। कुसम्पटी की कथित निवासी सुमन कदम ने महापौर के नाम भेजे पत्र में कदम ने सर्वाेच्च न्यायालय के 2013 में यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम स्टेट ऑफ गुजरात मामले में आये फैसले के आधार पर एतराज उठाये हैं। सुमन कदम के पत्र में कोई तारीख दर्ज नहीं है। सुमन कदम ने जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा है। कुछ लोगों के मुताबिक सुमन कदम काफी अरसा पहले अपने मकान मालिक के साथ हुये झगड़े के बाद शायद कसुम्पटी छोड़कर जा चुकी है। लेकिन उनके ऐतराज में सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र है इसलिये यह एतराज अपने में गंभीर हो जाता है। नगर निगम ने इस एतराज को सचिवालय में सरकार के पास भेज दिया है। विधि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुमोदन करते हुये इस पर मन्त्री परिषद को निर्णय लेने की राय दी है। प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में इस एतराज को राजनितिक आईने से देखा जा रहा है।
स्व. वीरभद्र छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इस नाते उनके प्रशंसकों और समर्थकों की लम्बी लाईन है। उनके परिजन और समर्थक चाहते है कि उनके प्रदेश की राजनीति में विशेष योगदान के लिये उनकी प्रतिमा रिज पर स्व. डॉ. वाई. एस. परमार की बगल में स्थापित करके उन्हें सम्मान दिया जाये। इसलिये उनके समर्थकों और परिजनों ने इसके लिये राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन का गठन करके यह ऐलान किया है कि इस मूर्ति स्थापना पर होने वाला सारा खर्च फाउंडेशन उठायेगी और सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली जायेगी। लेकिन फाउंडेशन के इस ऐलान के बाद मुख्यमंत्री ने प्रतिभा सिंह को पत्र भेज कर यह कहा है कि इस प्रतिमा स्थापना पर होने वाला सारा खर्च और उसके भविष्य में रख-रखाव पर आने वाला सारा खर्च सरकार उठायेगी। नगर निगम ने इस विषय पर निगम हाउस में आये एक प्रस्ताव के उत्तर में इस प्रतिमा स्थापना के लिये रिज पर जगह देने की भी फैसला कर लिया है। निगम में प्रस्ताव 2024 में आया था निश्चित है कि जब निगम में इस बारे में प्रस्ताव आया था उस समय यह ऐतराज़ का पत्र निगम के पास नहीं आया था। क्योंकि अगर यह पत्र आया होता तो इस पर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में विचार करके फैसला लिया जाता।
स्व. वीरभद्र सिंह की मृत्यु जुलाई 2021 में हुई थी और उसके बाद ही उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने की मांग आ गयी थी। भाजपा शासन में ही निगम में इस आशय की मांग आ गयी थी। भाजपा ने भी उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने का अनुमोदन किया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण यह हो नहीं सका और उसके बाद सरकार बदल गयी। नयी सरकार ने इस बारे कोई हामी नहीं भरी और 2023 में उनकी प्रतिमा शिमला से सौ किलोमीटर दूर सैंज में स्थापित की गयी। स्थापना पर उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री शामिल रहे थे। उस समय स्थापना के लिये रिज पर जगह नहीं दी गयी। रिज पर जगह न मिलने पर विक्रमादित्य सिंह ने भावुक रोष भी व्यक्त किया था। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी वीरभद्र सिंह की मृत्यु पर उपजी सहानुभूति लहर को दिया गया था। लेकिन स्थापना के लिये रिज पर जगह न मिल पाने को वीरभद्र सिंह और सुक्खू के राजनीतिक रिश्तों की पृष्ठभूमि में देखा गया। क्योंकि दोनों के राजनीतिक रिश्ते सुखद नहीं रहे हैं। बल्कि उन रिश्तों की छाया सरकार बनने के बाद भी लगातार देखी जा रही है। आज भी वीरभद्र के समर्थकों की लाइन शायद सुक्खू के प्रशंसकों से लंबी है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते अभी भी उस पुरानी छाया से बाहर नहीं आ पाये हैं। यह इससे स्पष्ट हो जाता है कि छः माह पहले भंग हुई कार्यकारिणी का अब तक गठन नहीं हो पाया है। अब जिस तरह से सुमन कदम की मूर्ति स्थापना को लेकर एतराज आया है उसे भी राजनीतिक चश्मे से ही देखा जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस एतराज को मंत्रिपरिषद के सामने रखा जाता है या नहीं। मंत्रिपरिषद में कौन इस ऐतराज़ का समर्थन करता है या विरोध। लेकिन यह तय है कि स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना या उसका इन्कार कांग्रेस को बहुत दूर तक प्रभावित करेगा।
 
यह है सुमन कदम का पत्र
 

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