राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये हुये संशोधन से एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल
- Details
-
Created on Sunday, 22 December 2024 19:23
-
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। विधानसभा में सरकार ने अंततः राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके जमीन ट्रांसफर करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने अपने भोटा स्थित चैरिटेबल अस्पताल की 30 एकड़ जमीन को अपनी सहयोगी संस्था महाराज जगत मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर किये जाने का आवेदन किया था। ट्रांसफर का कारण अस्पताल द्वारा हर वर्ष 2.50 करोड़ का जीएसटी दिया जाना बताया था। जबकि अस्पताल निःशुल्क सेवा प्रदान कर रहा है। यह जमीन ट्रांसफर न हो पाने की स्थिति में इस अस्पताल को ही बन्द कर दिये जाने की विवशता जाहिर की थी। इस पर हमीरपुर और कुछ अन्य स्थानों पर लोगों ने सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन करते हुये इस ट्रांसफर के लिये दबाव भी बनाया था। इस दबाव के बाद मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि सरकार इसके लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करेगी। मुख्यमंत्री के इस आश्वासन के बाद इस आश्य का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया था। लेकिन मंत्रिमंडल में उस समय इस प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति नहीं दी थी। उस समय यह सामने आया था कि 2.50 करोड़ का जीएसटी बचाने के लिये इस तरह लैण्ड ट्रांसफर की अनुमति देना अवैध होगा। लेकिन अब इस एतराज को नजर अन्दाज करते हुये इस संशोधन को पारित कर दिया गया है। इस संशोधन के बाद यह आशंकाएं उभरी है कि इससे लैण्ड सीलिंग एक्ट की मूल भावना को ही ठेस पहुंचेगी।
हिमाचल में किसी भी गैर कृषक को जमीन खरीदने के लिये एक्ट की धारा 118 के तहत सरकार से पूर्व अनुमति लेने की शर्त है। इसमें व्यक्ति अपने आवास और व्यवसाय के लिये जमीन खरीद सकता है। इस खरीद की सीमाएं तय हैं। लेकिन किसी भी पहले से निर्मित भवन को खरीदने के लिए धारा 118 के तहत अनुमति लेने की शर्त नहीं है। यदि कोई व्यक्ति यह अनुमति लेकर दो वर्ष के भीतर यह निर्माण पूरा नहीं कर पाता है तो उसे एक और वर्ष तक सरकार निर्माण पूरा करने की अनुमति देती है। यदि इस अवधि में भी यह निर्माण पूरा न हो तो ऐसी जमीन पर सरकार कब्जा कर लेती है। सोलन के एक आई ए एस अधिकारी के साथ ऐसा हो भी चुका है। लेकिन प्रदेश में ऐसे बहुत सारे अधिकारी हैं जिन्होंने प्रदेश में एक से अधिक स्थानों पर अपने या परिजनों के नाम पर बीघांे में जमीन खरीद रखी है। जबकि आवास के लिये तो 180 वर्ग गज जमीन की ही आवश्यकता का मानक रखा गया है। धारा 118 में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एक व्यक्ति कितनी ऐसी अनुमति आवास के नाम पर ले सकता है। इस समय भी कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने शिमला और उसके आसपास ही 180 वर्ग गज से अधिक जमीने खरीद रखी हैं।
राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास प्रदेश में 6000 बीघा से अधिक जमीन है। इस संस्था को कृषक का दर्जा भी हासिल है। अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर की सुविधा भी मिल गयी। धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को लैण्ड सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इस समय प्रदेश में स्थित निजी विश्वविद्यालय के पास लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन है। सारी जमीनों का उपयोग यह विश्वविद्यालय अभी तक नहीं कर पाये हैं। लेकिन सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती। जल विद्युत परियोजनाओं और सीमेंट उद्योगों को भी एक्ट में छूट हासिल है। जबकि 1998-99 में सीमेंट उद्योग को लैण्ड सीलिंग के दायरे में लाने के लिये विधि विभाग की स्पष्ट राय है जिस पर अमल नहीं हो सका है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एक्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि मकान बनाने के लिये कितनी बार धारा 118 में अनुमति ली जा सकती है। जब शैक्षणिक और धार्मिक संस्थाओं को सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है और अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर का भी अधिकार मिल गया है तब धारा 118 का औचित्य ही क्या रह जाता है। जो लोग कई पीढियों से प्रदेश में रह रहे हैं लेकिन संयोगवश प्रदेश के कृषक नहीं हैं उन्हें क्या धारा 118 के दायरे से बाहर नहीं कर दिया जाना चाहिये। जब सरकार लैण्ड सीलिंग में इतने संशोधन कर चुकी है तब इस एक्ट का औचित्य ही क्या बच जाता है। जब राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास किन्नौर में जमीन हो सकती है तो दूसरे धार्मिक संस्थाओं को कैसे और कितनी देर इससे बाहर रख सकते हैं। ऐसे में धारा 118 के औचित्य पर अब नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।
Add comment