Friday, 19 September 2025
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राधास्वामी सत्संग ने मांगी ज़मीन बेचने की अनुमति

 हिमाचल में है 895 सत्संग घर और 6000 बीघे से अधिक जमीन

शिमला/शैल। विधानसभा सदन में एक प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार राधास्वामी सत्संग व्यास के पास प्रदेश के विभिन्न भागों में 6 हजार बीघे से अधिक भूमि है। राधास्वामी सत्संग व्यास की स्थापना डेरा बाबा जैलम सिंह व्यास जिला जालंधर में 1891 को हुई थी। अकेले हिमाचल में ही इसके 895 सत्संग घर हैं और इसके अनुयायीयों की संख्या प्रदेश में लाखों मे है। सामाजिक कार्यों के नाम पर प्रदेश के हमीरपुर जिले के भोटा में संस्था का एक चैरिटैबल अस्पताल भी चल रहा है। संस्था के मुताबिक 2010- 11 से 2015-16 के बीच ही इन्हें 208 स्थानों पर लोगों से दान के रूप में 65 एकड़ जमीन मिली है। इनके पास प्रदेश जनजातीय क्षेत्र किन्नौर तक में जमीन है जबकि वहां पर केवल जनजातीय लोगों को ही जमीन लेने का हक है।
राधास्वामी सत्संग व्यास के अनुयायीयों की संख्या लाखों में होने के कारण चुनावी राजनीति को सामने रखते हुए हर सरकार इनकी सुविधा के अनुसार लैण्ड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों में संशोधन करती आयी है। प्रदेश में लैण्ड सीलिंग एक्ट 1972 लागू है। 1971 में लागू हुए इस एक्ट के मुताबिक अधिकतम जमीन रखने की सीमा 161 बीघे है। इस सीमा से बाहर केवल राज्य सरकार, केन्द्र सरकार या सहकारी संस्था ही जमीन रख सकती है। प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचली सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकता। गैर कृषक हिमाचली भी जमीन नही खरीद सकता। इसके लिये भू-राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है। किसी भी तरह की संस्था कृषक नही हो सकती है सिवाये कृषि सहकारी संस्थाओं के। लेकिन राधास्वामी सत्संग व्यास ने जब 1990-91 में भौटा में अस्पताल बनाने का फैसला लिया तब सरकार से इसके लिये अनुमति चाहिये थी परन्तु उस समय भी इनके पास लैण्डसीलिंग से अधिक जमीन थी। तब शान्ता सरकार ने इनको 7 अगस्त 1991 कोे कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया। इसके लिये जनरल क्लाज़ज एक्ट हिमाचल प्रदेश की धारा 2;35द्ध और भू- राजस्व अधिनियम की धारा 2;2द्ध के तहत कृषक और व्यक्ति का दर्जा प्रदान कर दिया।
यह दर्जा प्राप्त होने के बाद संस्था कृषक बनकर प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना ही कहीं भी ज़मीन खरीदने-लेने की पात्रा बन गयी।  इसके बाद धूमल सरकार ने लैण्डसीलिंग एक्ट में संशोधन करके धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को सीलिंग एक्ट की सीमा से बाहर कर दिया। लेकिन इस संशोधन में यह भी साथ ही जोड़ दिया कि यह सुविधा तभी तक रहेगी जब तक वह संस्था के घोषित उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित रखेंगे। अब राधास्वामी सत्संग व्यास ने प्रदेश के विभिन्न भागों में फैली जमीनों को बेचनेे की अनुमति मांगी है। वीरभद्र सरकार यह अनुमति देना भी चाहती है। सूत्रों के मुताबिक संस्था ने इस अनुमति के लिये सरकार और प्रशासन पर पूरा दबाव बनाया हुआ है। सरकार भी चुनावी गणित को सामने रखकर यह अनुमति देने के हक में है। यहां तक कि भाजपा भी इसका विरोध नहीं कर रही है जबकि संशोधन में लैण्डयूज़ का राईडर उन्होने ही लगाया था। लेकिन इस प्रकरण की चर्चा बाहर आने के बाद जो सवाल उभरे है उनसे प्रशासन भी कठघरे में आ गया है, क्योंकि 1991 में जब इन्हे कृषक का दर्जा दिया गया था उस समय सरकार ने यह सूचना नही ली कि क्या वास्तव में ही यह संस्था दान में मिली हुई जमीन पर कृषि कार्य कर रही है बल्कि यह जानकारी आज भी सरकार के पास नही है। जबकि कृषक का दर्जा उसी संस्था को मिल सकता था जो वास्तव में ही कृषि कार्य कर रही हो। क्योंकि प्रदेश में कई मन्दिरों के पास उनके गुजारे के लिये जमीने थी और वह उन पर खेती करते थे और इस नाते वह कृषक थे। लेकिन इस संस्था का आज भी ऐसा कोई रिकार्ड नही है। इसलिये 7 अगस्त 1991 को इन्हे मिली यह सुविधा सवालों में आ जाती है। इसी के साथ संस्था ने जमीन बेचने की अनुमति के लिये जो आवदेन किया है उसमें स्पष्ट कहा है कि यह ज़मीन उन्हे दान में मिली है। दान में मिली हुई संपत्ति को बेचने के लिये दानकर्ता की अनुमति चाहिये। ऐसे में इन्हे यह अनुमति देने से पहले दान कर्ताओं से अनुमति लेना आवश्यक हो जायेगा और अब जब से सिरसा का बाबा राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा विवादों में आया है उससे अब दानकर्ताओं द्वारा ऐसी सहमति मिलने को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं।

भाजपा पर चुनाव उम्मीदवारों की सूची शीध्र जारी करने की उठी मांग

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी की पंचकूला में हुई बैठक के बाद पूर्व मुख्यमन्त्री और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने हमीरपुर में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए हाईकमान से आग्रह किया है कि चुनाव प्रत्याशियों की घोषणा शीघ्र की जाये। शीघ्र घोषणा के लिये तर्क दिया गया है कि इससे एक तो प्रत्याशी अपने चुनाव प्रचार में जल्द व्यस्त हो जायेंगे और ऐसी घोषणा के बाद यदि कोई नाराज़गीयां भी उभरती हैं तोे उन्हे भी समय रहते शांत किया जा सकता है। धूमल के इस आग्रह और तर्क में एकदम व्यवहारिकता झलकती है क्योंकि भाजपा की जीत का जो उत्साहपूर्ण वातावरण लोक सभा चुनावों से लेकर उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश तक सामने आया है उससे पार्टी का हर कार्यकर्ता जहां जीत को लेकर आश्वस्त है वहीं पर उसके भीतर यह ईच्छा भी उभरती है कि वह स्वयं भी तोे उम्मीदवार होने का पात्र है। भाजपा को समझने वाले जानते है कि संघ परिवार एक बहुत बड़ा अदारा है और उसमें भाजपा तो एक राजनीतिक ईकाई है इसकी अन्य ईकाईयों की तरह। भाजपा को सत्ता में लाने में इन सब ईकाईयों का अपना-अपना योगदान रहता है। भाजपा का दूसरी और तीसरी पंक्ति का नेतृत्व इन्ही ईकाईयों में से आता है। आज जब भाजपा के पक्ष में एक हवा मानी जा रही है तथा हिमाचल में कांग्रेस भाजपा का कोई विकल्प भी नही है तो ऐसे में यहां पर अपने दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेतृत्व को चुनाव मैदान में उतारने का यह सबसे उपयुक्त समय और स्थान है।
संघ नेतृत्व इस दिशा में एक लम्बे अरसे से काम भी करता आ रहा है। इस संद्धर्भ में पाठकों को याद होगा कि काफी समय पहले सोशल मीडिया में एक सूची वायरल हुई थी और उसे हमने अपने पाठकों के सामने भी रखा था। उस सूची में 28 नाम शामिल थे और यह दावा किया गया था कि इन लोगों के टिकट कट सकते हैं। इस सूची के बाद संभावित मुख्यमन्त्रीयों के नाम से एक आठ नामों की सर्वे रिपोर्ट वायरल हुई थी। सर्वे भी पाठकों के सामने आ चुका है। अब 31 नामों की एक सूची वायरल हुई और दावा किया गया कि इन लोगों के चुनाव टिकट फाईनल हो चुके है। यह भी दावा किया गया कि अमितशाह अपनी 22 की प्रस्तावित रैली में इन नामों की घोषणा कर देंगे। यह 31 नामों की सूची भी हम अपने पाठकों के सामने रख चुके है। इस सूची के इस तरह सार्वजनिक हो जाने के बाद पार्टी ने वाकायदा अपने आईटी सैल को इसके लीक होने की जांच करने के आदेश जारी किये हैं। यह सूची पंचकुला में हुई कोर कमेटी की बैठक में भी एक बड़ा मुद्दा बनकर चर्चित हुई है यह सामने आ चुका है। संघ की कार्यप्रणाली की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि इस तरह की सूचियां एक निश्चित रणनीति के तहत आम लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिये जारी की जाती है। कोर कमेटी की बैठक के बाद भी यह दावा किया गया है कि पार्टी ने उम्मीदवारों को लेकर एक सर्वे किया है और उस सर्वे के आधार पर ही टिकटों का आवंटन किया जायेगा। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह सारी सूचियां उसी सर्वे के एक हिस्से के रूप में वायरल हुई है।
इस परिदृश्य में यदि भाजपा का आकंलन किया जाये तो जो सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु उभरता है उसमे दूसरी और तीसरी पंक्ति के लोगों को चुनावी मैदान में उतारने की बात होती है। कोर कमेटी में हुई चर्चा और संघ के सूत्रों के मुताबिक 37 से 40 तक पार्टी ने चुनाव में नये चेहरों को उतारने का फैसला लिया है। इसके बाद जो लोग पार्टी छोड़कर कभी बाहर चले गये थे और अब फिर घर वापसी कर चुके है इनमें से कितने लोगों को टिकट दिया जाये सूत्रों के मुताबिक इस पर अभी कोई फैसला नही लिया गया है। इसी के साथ वर्तमान विधायक दल में कितनों को फिर से चुनाव में उतारा जाये इस पर केवल 18 नामों पर ही सहमति बन पायी है जबकि पार्टी के अपने चुनाव चिन्ह पर ही 27 लोग जीत कर आये हैं। इनके बाद महेश्वर सिंह और निर्दलीय आते हैं जिन्होने अब पार्टी ज्वाईन की है। इस तरह विधायक दल में से ही करीब एक दर्जन लोगों के टिकटों पर संशय की तलवार लटकी हुई है। इस सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि कांग्रेस से कितने लोग पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामते है और भाजपा उन्हे टिकट भी देती है। जो 31 नामों की सूची वायरल हुई थी उसमें कांग्रेस नेता जीएसबाली, करनेश जंग के नाम शामिल थे। भाजपा नेतृत्व एक लम्बे असरे से यह दावा भी करता आ रहा है कि कई कांग्रेस नेता उनके संपर्क में है। कोर कमेटी में भी इन कांग्रेस के संभावितों पर चर्चा हुई है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस के कुछ लोग वास्तव में ही भाजपा में शामिल हो रहे हैं तो यह घोषणा अमितशाह की प्रस्तावित रैली में 22 को हो जायेगी। क्यांेकि इसी बीच अब शेष बचे 37 उम्मीदवारों की सूची भी वायरल हो गयी है। अभी पहली वायरल हुई सूची की जांच शुरू भी नही हुई है और अब दूसरी सूची का आ जाना भाजपा के लिये और चुनौती बन गया है। भाजपा की इन सूचीयों के वायरल होने के पीछे पार्टी के भीतर उभरी गुटबन्दी को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। जो सूचियां अब तक बाहर आ चुकी है उनमें केवल दस प्रतिशत के ही फेरबदल की संभावना है। 90ः नामों को फाईनल माना जा रहा है बल्कि इन सूचियों के इस तरह वायरल होने से बचने के लिये उम्मीदवारों की अधिकारिक सूची को शीघ्र जारी करना ही इसका हल माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में भाजपा इस चुनाव में न केवल अपनी जीत ही सुनिश्चित करना चाहती है बल्कि कांग्रेस को भीतर तक तोड़ना और चुनावों में उसे लीडरहीन करना उसकी राजनीतिक आवश्यकता बन गयी है। यदि उच्चस्थ सूत्रों की माने तो इसके लिये भाजपा का केन्द्रिय नेतृत्व किसी भी हद तक जा सकता है। इसमें माना जा रहा है कि कांग्रेस के आठ से दस तक नेता भाजपा का दामन थाम सकते है। ऐसा होने पर आचार संहिता लगने तक सरकार के ही टुटने की स्थिति खड़ी हो जाती है। क्योंकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है और प्रदेश के सियासी हालात भी इसी ओर संकेत कर रहे हैं।

केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल के विस्तार के बाद और अस्पष्ट हुआ भाजपा में प्रदेश नेतृत्व का प्रश्न

शिमला/शैल। हिमाचल में भाजपा किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी? यदि प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिल जाता है तो अगला मुख्यमन्त्री कौन होगा? प्रदेश में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिये क्या यहां पर उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर कुछ कांग्रेस नेताओं को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में शामिल करके उन्हें टिकट दिया जायेगा? यह कुछ सवाल लम्बे अरसे से प्रदेश के राजनीतिक प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बने हुए है। भाजपा के अगामी प्रदेश नेतृत्व के नाम पर करीब आधा दर्जन नेताओं के नाम चर्चा में चल रहे हैं और इसी के साथ जैसे -जैसे यह नामों की चर्चा बढ़ती रही है। उसी अनुपात में हाईकमान की ओर से यह आता रहा कि चुनावों से पहले किसी को भी नेता घोषित नही किया जायेगा। प्रदेश के चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़े जायेंगे लेकिन यहां प्रदेश मे भाजपा व्यवहारिक दृष्टि से धूमल और नड्डा दो खेमों में बंटी हुई है। यह खेमेबाजी इतनी दूर तक निकल चुकी है कि इसको बांटना शायद हाईकमान के लिये भी आसान नही रह गया है। क्योंकि संयोगवंश धूमल के दोनों कार्यकाल में जिन लोगों ने धूमल की कार्यशैली का विरोध किया था और अन्ततः हिमाचल लोकहित पार्टी बनाकर भाजपा से बाहर चले गये थे लगभग वह सब लोग नड्डा के माध्यम से पार्टी में वापिस आ गये है। नड्डा केन्द्रिय चुनाव कमेटी के भी सदस्य है। इससे यहां तक प्रचारित हो गया कि हाईकमान नड्डा को केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल से हटाकर हिमाचल भेज रही है। नड्डा के स्थान पर हिमाचल से अनुराग ठाकुर को राज्य मन्त्री बनाये जाने का भी प्रचार हो गया लेकिन अब केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल का जो विस्तार सामने आया है उसमें न तो अनुराग को बनाया गया और न ही नड्डा को हटाया गया है। इससे इसी धारणा को बल मिलता है कि शायद अभी नड्डा को हिमाचल नही भेजा जा रहा है। इस प्रसंग में यह भी स्मरणीय है कि पिछले दिनों बिलासपुर में एम्ज खोले जाने को लेकर नड्डा और अनुराग में जो बहस छिड़ गयी थी और उसमें अनुराग ने यहां तक कह दिया था कि बिलासपुर में एम्ज खोलने के लिये नड्डा का कोई योगदान नही है। अब इस एम्ज के मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब हर्ष वर्धन स्वास्थ्य मंत्री थे उस समय अरूण जेटली ने यह घोषणा की थी लेकिन नड्डा के स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद इस दिशा में केन्द्र की ओर से कोई सूचना ही नही मिली है जबकि प्रदेश सरकार ने इस संबध में सारी जिम्मेदारीयां पूरी कर दी है। कौल सिंह के इस कथन से नड्डा की स्थिति और कमजोर हुई है।
इस परिदृश्य में पूरी वस्तुस्थिति का आंकलन करने पर यह उभरता है कि अभी प्रदेश नेतृत्व के प्रश्न पर हाईकमान में भी कोई स्पष्टता नही है। अभी नोटबंदी के परिणामो को लेकर विपक्ष ने जिस ढंग से सरकार को घेरा है उससे सरकार की छवि पर कुछ प्रश्न चिन्ह अवश्य लगे हंै। इसी के साथ सिरसा के डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम के प्रकरण में जिस तरह से हिंसा के लिये अमितशाह और सुब्रहमण्यम स्वामी ने अदालत को ही जिम्मेदार ठहरा दिया और भाजपा के ही सांसद साक्षी महाराज ने तो इनसे भी एक कदम आगे जाकर यह कह दिया कि अदालत को एक महिला के ब्यान की बजाये करोड़ो लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर फैसला देना चाहिये था। इन ब्यानों से भी आम आदमी आहत हुआ है। फिर पार्टी ने साक्षी महाराज के ब्यान से किनारा करने के अतिरिक्त उनके खिलाफ कोई कारवाई नही की। जबकि यहां कोटखाई के गुड़िया प्रकरण पर सरकार और मुख्यमन्त्री के खिलाफ भाजपा की आक्रामकता लगातार जारी है। पार्टी ने इसी प्रंसग में राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग तक कर डाली है। हिमाचल के संद्धर्भ में पार्टी का स्टैण्ड पूरी तरह जायज है लेकिन इसी स्टैण्ड को सिरसा काण्ड से मिलाकर देखा जायेगा तो फिर इसमें जरूरत से ज्यादा राजनीति किये जाने का आरोप लगना स्वभाविक है और भाजपा ने इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बना डाला है बल्कि इस मुद्दे के साये में भ्रष्टाचार जैसे अन्य गंभीर मुद्दे पूरी तरह पीछे छोड़ दिये गये हैं। जबकि विश्लेषकों की नजर में सिरसा कांड के साये में इससे नुकसान होने की संभावना हो सकती है क्योंकि यह मामला आज की तारीख में सीबीआई के पास है और सीबीआई को सरकार ने ही भेजा है। यदि इसमें सरकार सीबीआई को भेजने के लिये तैयार नही होती और उच्च न्यायालय के आदेशों पर ही सीबीआई को भेजा जाता तब सरकार की नीयत पर शक किया जा सकता था, लेकिन इस समय शक करने को महज राजनीति के तौर पर ही देखा जायेगा और उससे भाजपा को ज्यादा लाभ नही मिलेगा।

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