Friday, 19 September 2025
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अभी भी जारी है सुक्खु-वीरभद्र का टकराव

शिमला/शैल। पूर्व मन्त्री और पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे मेजर विजय सिंह मनकोटिया की पद से बर्खास्तगी के बाद वीरभद्र के खिलाफ उठे विरोध और विद्रोह के स्वरों की गूंज बढ़ती जा रही है। मनकोटिया की बर्खास्तगी के बाद सबसे पहले परिवहन मन्त्री जी.एस. बाली खुलकर उनके समर्थन में आ खड़े हुए। बाली के बाद छः विधायकों और कुछ जिलाध्यक्षों ने वीरभद्र और सरकार की कार्यप्रणाली पर असन्तोष व्यक्त करते हुए कांग्रेस हाईकमान को पत्र भेज दिया और इसकी एक प्रति वाकायदा पार्टी अध्यक्ष को भी थमा दी । पार्टी अध्यक्ष सुक्खु ने इस पत्र को रिकार्ड पर स्वीकारा है। इस पत्र पर आयी वीरभद्र की प्रतिक्रियाएं भी इसे सत्यापित करती है। बल्कि अब बाली के जन्म दिन पर इक्कठे हुए विधायकों और मन्त्रीयो तथा अन्य नेताओं की इस उपस्थिति को मीडिया ने वीरभद्र विरोधीयों का शक्ति प्रर्दशन करार दिया है। स्वभाविक है कि मीडिया के इस आकलन को इन नेताओं की हरी झण्डी अवश्य रही होगी। फिर वीरभद्र इस सबसे कहीं न कहीं आहत अवश्य है।
इस परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि वीरभद्र के खिलाफ मुखर हुए विद्रोह के यह स्वर कहां तक जायेंगें सूत्रों की माने तो हाईकमान ने भी इस सबको गंभीरता से लिया है और इसी कारण से प्रदेश के प्रभारीयों को बदला गया है। अब केन्द्र के यह प्रभारी विरोधीयो को लेकर क्या रिपोर्ट देते हैं और संगठन तथा सरकार में उभरे टकराव को कैसे शान्त करवाते हैं इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा लेकिन इस समय भाजपा ने भी चुनावो के मद्देनजर सरकार को कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर तो वीरभद्र को भ्रष्टाचार पर घेरने की रणनीति बनाई है। कानून और व्यवस्था के नाम पर अभी कुछ ही समय में प्रदेश के अगल-अलग हिस्सों से रेप और फिर हत्या के ही कई मामले सामने आ गये हैं। इन मुद्दों पर सरकार  को घेरने के लिये भाजपा की संगठन के तौर पर पूरी तैयारी और क्षमता है। जबकि कांग्रेस में सरकार और संगठन दोनों के स्तर पर कहीं कुछ नजर ही नही आता है। अभी कोटखाई प्रकरण में ही सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ जिस तरह के आरोप प्रचारित हुए हैं उन पर किसी कोने से कोई काऊंटर नही आया है। जिसका अपरोक्ष में अर्थ आरोपों को स्वीकारना हो जाता है।
 भ्रष्टाचार के मामले में अब तिलक राज शर्मा का एक और प्रकरण सरकार के नाम पर जुड़ गया है। पांच लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गये उद्योग विभाग के सयुंक्त निदेशक के खिलाफ सीबीआई मुख्यमन्त्री के ओएसडी रघुवंशी को भी सरकारी गवाह बनाकर पेश करेगी। क्योंकि इस मामलें की एफआईआर के मुताबिक तिलक राज शर्मा से यह पांच लाख रघुवंशी को जाना था। यह स्वयं तिलक राज की रिकार्डिंग में आ चुका है। इससे यह तो स्वतः ही प्रमाणित हो जाता है कि यह रिश्वत ली जा रही थी। अब रघुवंशी यही कहेगा कि उसने पांच लाख की कोई मांग नही की थी और न ही पहले कभी तिलक राज से ऐसे कोई पैसा लिया गया है। लेकिन इस सबसे यही प्रमाणित होगा कि उद्योग  विभाग में रिश्वत ली जा रही थी। यही आरोप विपक्ष लगाता आया है। यह इस परिदृश्य में भ्रष्टाचार और कानून एवम् व्यवस्था के सवालों पर वीरभद्र के विरोधीयों को शान्त करना आसान नही होगा। सरकार और संगठन में उठा यह सवाल घातक होगा यह तय है । इस पर यदि यह विद्रोही अब शान्त होकर बैठ जाते  है तो इनका भी नुकसान होना तय है क्योंकि तब जनता का इन पर विश्वास खत्म हो जायेगा।

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