भाजपा अध्यक्ष द्वारा गांधी के अपमान पर प्रदेश कांग्रेस की चुप्पी सवालों में
नोटबंदी के दौरान भाजपा पर जमीन खरीद के आरोप लगाकर खुलासे से क्यों पिछे हटे सुक्खु
शिमला/शैल। वीरभद्र की सरकार और पार्टी के संगठन के बीच जो सवाल सरकार बनने के साथ शुरू हुआ था वह अब तक लगातार जारी है। हांलाकि पार्टी के लिये प्रभारी सुशील कुमार शिंदेे ने इस टकराव को विराम देने के लिये दोनो पक्षों को कड़ी हिदायत देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव तक न तो सुक्खु हटेंगे और न ही वीरभद्र। लेकिन शिंदे के जाने के बाद वीरभद्र ने फिर कहा कि संगठन के चुनाव जल्द हो जाने चाहिये। उनका निशाना फिर सुक्खु था लेकिन सुक्खु ने वीरभद्र के इस प्रहार पर कोई प्रतिक्रिया न देकर अनुशासन की हिदायत का पालन किया। परन्तु इसके बाद जब वीरभद्र ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर एक विवादित ब्यान दे दिया और फिर अपने ही ब्यान पर सफाई भी देनी पड़ी। लेकिन वीरभद्र के इस विविादित ब्यान के बाद उभरा राजनीतिक बवाल अब लगतार बढ़ता ही जा रहा है। इस बवाल को रोकने के लिये संगठन की ओर से कोई सामने नही आया है। यही नही वीरभद्र पर पलटवार करते हुए भाजपा अध्यक्ष सत्ती ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर सार्वजनिक मंच से हर कुछ बोल दिया। जब लोकसभा में भारत छोड़ो आन्दोलन की 75वीं वर्ष गांठ के अवसर पर बोलते हुए प्रधान मन्त्राी नरेन्द्र मोदी गांधी के प्रति अपना और देश का आभार व्यक्त कर रहे थे उसी समय हिमाचल भाजपा के अध्यक्ष सत्ती गांधी को गाली दे रहे थे। सत्ती ने गांधी को लेकर जिस भाषा का इस्तेमाल किया है शायद मोदी और शाह भी ऐसी भाषा की अनुमति नहीं देंगे। लेकिन हिमाचल की कांग्रेस और सरकार पर गांधी के इस अपमान का कोई असर ही नही हुआ है। जबकि इस पर भाजपा को घेरा जा सकता था और यह भाषा सत्ती पर भारी पड़ सकती थी। लेकिन सरकार और संगठन के टकराव के कारण इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी कोई प्रतिक्रिया देखने को नही मिली।
इस समय कांग्रेस पार्टी और सरकार की ओर से भाजपा के खिलाफ कोई आक्रमकता देखने को नही मिल रही है। जबकि भाजपा पूरी आक्रमकता के साथ सरकार को विभिन्न माफियाओं का पर्याय प्रचारित करने में लगी हुई है। चुनाव सरकार की छवि पर लड़े जाते हैं इसमें संगठन की भूमिका यही होती है कि संगठन सरकार के कामकाज की छवि को आम आदमी तक पहुंचाने का काम करता है। लेकिन इस समय सरकार की छवि पूरी तरह नाकारत्मक प्रचारित हो रही है और उसका कारगर जवाब देने वाला कोई सामने नही है। यहां तक कि संगठन में हर्ष महाजन जैसे वीरभद्र के अतिविश्वस्त अहम पदों पर बैठे हैं और विभिन्न निगमों/बार्डो में सरकार ने करीब पांच दर्जन लोगों को ताजपोशीयां दे रखी हैं। परन्तु आज इनमें से एक भी नेता भाजपा के हमलों का जवाब देने का साहस नही जुटा पा रहा है। बल्कि स्थिति तो यह बनती जा रही है कि इन ताजपोशीयां पाये कई नेताआंे की कारगुजारीयों पर संगठन और सरकार को स्पष्टीकरण देने पड़ेंगे। इन दिनों नोटबंदी के दौरान एक ताजपोशी पाये नेता का करीब 80 लाख की गाड़ी खरीदा जाना आम चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा है कि 79,80,000 का नकद भुगतान किया गया है। गाड़ी की रजिस्ट्रेशन को लेकर भी कई चर्चाएं है। कल को जब ऐसे किस्से सामने आयेंगे तो उल्टा वीरभद्र को ही अपने इन विश्वस्तों को डिफैण्ड करना पडे़गा।
संगठन में किसकी निष्ठाएं किसके साथ हैं इसको लेकर भी नये सिरे से सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि नोटबंदी के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु ने प्रदेश भाजपा पर यह संगीन आरोप लगाया था कि उसने नोटबंदी की आहट पाते ही शिमला और बिलासपुर में पार्टी कार्यालयों के नाम पर जमीन खरीदने में भारी निवेश किया है। लेकिन सुक्खु ने इस बारे में और कोई विस्तृत जानकारी सामने नही रखी थी सुक्खु के इस आरोप पर भाजपा की ओर से भी कुछ नही कहा गया था। लेकिन इस आरोप की सच्चाई आज तक प्रदेश की जनता के सामने नही आ पायी है। आज यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सुक्खु ने इस आरोप का पूरा विकल्प जनता के सामने क्यों नही रखा? क्योंकि उसी दौरान हमीरपुर से कुछ लोगों ने सुक्खु के खिलाफ भी जमीन खरीद के आरोप लगाये थे और राज्यपाल से इस पर जांच करवाने का आग्रह किया था। बल्कि मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने भी इसमें जांच करवाने का दावा किया था। सुक्खु ने आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि का दावा दायर करने की बात की थी। बल्कि एक अन्य मामले में धूमल ने भी सुक्खु को मानहानि का नोटिस जारी किया था लेकिन यह सब कुछ थोडे़ समय के लिये तो चर्चा में रहा है और उसके बाद सब अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार खामोश हो गये। परन्तु आज चुनावों के मौके पर निश्चित रूप से जनता इस पर जवाब चाहेगी।