Friday, 19 September 2025
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निदेशक लोकसंपर्क को हटाने के चुनाव आयोग ने दिये निर्देश

      सेवा विस्तार एवम् पुनः नियुक्ति पाये अन्य अधिकारियों पर भीं गिर सकती है गाज


शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के चुनावों के परिदृश्य में प्रदेश की परिस्थितियों का आंकलन करने शिमला  पहुंची केन्द्रिय चुनाव आयोग की पूरी टीम के समक्ष राजनीतिक दलों द्वारा रखी गयी प्रशासनिक वस्तुस्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सरकार को लोक संपर्क विभाग के निदेशक आर.एस.नेगी को तुरन्त प्रभाव से हटाने के निर्देश दिये हैं। स्मरणीय है कि नेगी को सरकार ने सेवानिवृति के बाद एक साल का सेवा विस्तार दिया था। नेगी की ही तरह कई अन्य अधिकारियों को भी सेवानिवृति के बाद या तो सेवा विस्तार या फिर पुनः नियुक्तियां दी गयी है। ऐसे अधिकारियों को लेकर चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे अधिकारी किसी भी तरह से चुनाव काम से नही जुड़े होने चाहिए। आयोग ने यह भी स्पष्ट कहा है कि यदि ऐसे अधिकारियों की कोई शिकायत आती है तो उस पर तुरन्त कारवाई की जायेगी। स्मरणीय है कि भाजपा ने जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संबित पात्रा की पत्रकार वार्ता में ‘‘हिसाब मांगे- हिमाचल’’ क्रम में वीरभद्र सरकार के खिलाफ पहला विधिवत हमला बोला था उस समय जारी किये गये प्रपत्र में कुछ अधिकारियों को अपने सीधे निशाने पर लिया था। इन अधिकारियों की सूची में डा. एच.एस. बवेजा मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया, लोक आयोग के नव-नियुक्त चेयरमैन सेवानिवृत मेजर जनरल धरम वीर सिंह राणा, आयोग की सदस्य श्रीमति मीरा वालिया, प्रदेश के मुख्य सचिव वी.सी. फारखा और मुख्यमन्त्री के सुरक्षा अधिकारी पदम ठाकुर के नाम शामिल रहे हैं। इस सूची में निदेशक लोक संपर्क का नाम नही था लेकिन अब चुनाव आयोग के सामने सेवानिवृत अधिकारियों की जिस तर्ज में स्थिति रखी गयी है उसमें अब निदेशक पर गाज गिरने से अन्य लोगों पर भी संशय की तलवार लटक गयी है।
भाजपा की शिकायत पर निदेशक लोक संपर्क का हटाया जाना यह इंगित करता है कि आने वाले दिनों में भाजपा की आक्रमकता की धार कितनी तेज रहने वाली है। भाजपा पूरी आक्रमकता के साथ भ्रष्टाचार को केन्द्रित करके वीरभद्र और सरकार पर अपने हमले तेज करती जा रही है। शिमला में संबित पात्रा फिर केन्द्रिय मन्त्री रविशंकर प्रसाद और उसके बाद धर्मशाला में सुधांशु  त्रिवेदी की अमित शाह की कांगड़ा रैली से पहले की गयी पत्रकार वार्ताओं में जिस तरह से भ्रष्टचार को मुद्दा बनाया गया था ठीेक उसी तर्ज पर अमित शाह ने कागंड़ा में हुंकार रैली में भ्रष्टचार के आरोपों से वीरभद्र पर सीधा हमला बोला। शाह की रैली कांगड़ा में कितना सफल रही या असफल इस पर केन्द्रित होने से पहले ही 3 अक्बूतर को प्रधान मन्त्री नेरन्द्र मोदी द्वारा बिलासपुर के कोठीपुरा में एम्ज़ का शिलान्यास किये जाने की चर्चा सामने आ गयी। प्रधानमन्त्री भी बिलासपुर में भ्रष्टाचार पर प्रत्यक्षतः/अप्रत्यक्षतः हमला बोलेंगे ही यह तो तय है। लेकिन भाजपा के इन हमलों का ठोस जवाब देने के लिये अभी तक कांग्रेस की ओर से कुछ भी सामने नही आ रहा है। बल्कि कांग्रेस के अन्दर तो अभी तक वीरभद्र बनाम सुक्खु द्वन्द ही खत्म नही हो पा रहा है। कांग्रेस के कौल सिंह और जी.एस.बाली जैसे वरिष्ठ मन्त्री ही अभी तक अपने- अपने स्टैण्ड के बारे में स्पष्ट नही हैं। विक्रमादित्य युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के एक परिवार से एक ही टिकट दिये जाने के स्टैण्ड पर चल रहे हैं जबकि उनके ही पिता मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह यह कह चुके हैं कि टिकटों के लिये पार्टी के अन्दर ऐसा कोई नियम नही है। विक्रमादित्य का जब पहली बार यह ब्यान आया था तब तो कौल सिंह ठाकुर ने भी यहां तक कह दिया था कि क्या ब्यान वीरभद्र सिंह को पूछकर दिया गया है। लेकिन अब दूसरी बार वही ब्यान आने से यह तो समझ आता है कि विक्रमादित्य का यह ब्यान अपने युवा संगठन की वकालत है क्योंकि यदि एक ही परिवार से दो-दो टिकट दिये जाने का चलन शुरू हो जाता है तो फिर युवाओं की बारी आ पाना संभव ही नही होगा। इसलिये युवा संगठन की वकालत के आईने से तो ऐसा ब्यान जायज है। लेकिन आज लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस की जो हालत हो चुकी है उसे सामने रखते हुए इस समय ऐसे ब्यान केवल नुकसानदेह ही साबित होंगे।
क्योकि राजनीतिक दलों ने सेवा विस्तार या पुनः नियुक्ति पाये अधिकारियों पर आयोग में आपति जताई है और कल को इसका सीधा निशाना मुख्यमन्त्री कार्यालय हो सकता है। राजनीतिक दलों ने मुख्यमन्त्री द्वारा इन दिनों की जा रही घोषणाओं पर एतराज उठाते हुए आरोप लगाया है कि यह सब बजट प्रावधानों के बिना हो रहा है। राजनीतिक दलों ने सरकार द्वारा विभिन्न स्थानों पर लगाये गये अपनी उपलब्धियों के होर्डिंग्स पर भी एतराज उठाया है और आयोग के निर्देशों पर उन्हें हटाने की नौबत आ जायेगी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के मुद्दों को गंभीरता से लिया है और इसका प्रभाव सरकार पर पड़ना तय है।
इस समय पंजाब को छोड़कर देश के इस हिस्से में कांग्रेस कहीं नही है आज यदि हिमाचल भी कांग्रेस के हाथ से निकल जाता है तो फिर कांग्रेस को पांव रखने के लिये भी कोई स्थान नही बचेगा। यह सही है कि हिमाचल में एक लम्बे अरसे से कभी कोई सरकार रिपीट नही हो पायी है। लेकिन इससे पहले नोटबंदी और फिर आयी जीएसटी तथा इन दोनो के कारण पैट्रोल डीजल की कीमत बढ़ने से जो मंहगाई और बढ़ गयी है उससे अचानक मोदी और उनकी सरकार बैकफुट पर आ गये हैं। इसी सबका परिणाम है कि आज राजस्थान को छोड़कर अन्य विश्वविद्यलायों में भाजपा के विद्यार्थी संगठन एबीवीपी को भारी हार का मुख देखना पड़ा है जो युवा विद्यार्थी एक समय मोदी के प्रति आकृष्ट हो गये थे आज उनका मोह भंग होना शुरू हो गया है। ऐसे में क्या प्रदेश कांग्रेस इन स्थितियों को सामने रखकर अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाती है या नही इस पर सबकी नजरें केन्द्रित हैं।

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