Friday, 19 September 2025
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पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी और संदिग्धों के नार्को टैस्ट से मामला सुलझने के आसार बढे़

शिमला/शैल। कोटखाई के गुड़िया गैंगरेप एवम् हत्या तथा इसी मामले के एक आरोपी सूरज की पुलिस कस्टडी में हुई मौत के प्रकरण में सीबीआई हिमाचल पुलिस के आईजी समेत आठ अधिकारियों/कर्मचारियों को हिरासत में लेकर उन्हें पूछताछ के लिये दिल्ली ले गयी है। इन लोगों से पूछताछ के दौरान जो कुछ सामने आया है उसके बाद सीबीआई ने शिमला के तत्कालीन एसपी डी डब्ल्यू नेगी सहित तीन और अधिकारियों को इसी मामले में दिल्ली तलब कर लिया है। माना जा रहा है कि सीबीआई इन तीनों की भी कभी भी अधिकारिक गिरफ्तारी की घेषणा कर सकती है। पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी के साथ ही सीबीआई ने उन पांचो आरोपीयों का नार्को टैस्ट करवाने की भी अदालत से अनुमति हासिल कर ली है जिन्हे गुड़िया मामले में प्रदेश पुलिस की एसआईटी ने गिरफ्तार किया था।
स्मरणीय है कि इस मामले में जब मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेस बुक पेज पर चार लोगों के फोटो वायरल हुए थे और इसके साथ यह दावा किया गया था कि इस रेप और हत्या मामले में पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी है लेकिन यह फोटो वायरल होने के साथ ही इन्हें कुछ ही समय बाद जब एसआईटी ने अधिकारिक तौर पर एक पत्रकार वार्ता करके इसमें छः लोगों को गिरफ्तार करने पर अपनी पीठ थपथपाई तब यह सामने आया कि एसआईटी द्वारा गिरफ्तार किये गये छः लोगों में वह चार लोग नहीं है जिनके फोटो मुख्यमन्त्री के फेसबुक पेज पर लोड हुए थे। पुलिस जब इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर नही दे पायी तब लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। हर जगह धरने प्रदर्शन होने शुरू हो गये और सरकार तथा पुलिस पर यह आरोप लगना शुरू हो गया कि असली गुनाहगारांे को बचाने का ्रप्रयास किया जा रहा है तथा निर्दोष लोगों को फसाया जा रहा है, जैसे जैसे यह जनाक्रोश बढ़ता गया उसी अनुपात में सरकार दवाब में आती चली गयी। प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी मामले का स्वतः संज्ञान लेकर सरकार और पुलिस से जवाब तलब कर लिया। इस तरह जब सरकार पर जनाक्रोश का दवाब बढ़ा तो सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला ले लिया। मुख्यमन्त्री ने स्वयं प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा और गृहमन्त्री राजनाथ सिंह से बातचीत की। सरकार के फैंसले पर उच्च न्यायालय ने भी सीबीआई को निर्देश दे दिये कि वह इस मामले की जांच अपने हाथ में ले। उच्च न्यायालय इस मामले में चल रही जांच पर सीबीआई से लगातार स्टे्टस रिपोर्ट भी तलब कर रहा है। उच्च न्यायालय की इसी निगरानी के परिणामस्वरूप अदालत ने डीजीपी समेत सारी एसआईटी को इसमें प्रतिवादी बनाते हुए सभी सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग शपथ पत्र लेे लिये है और सीबीआई ने अदालत में एसआईटी के सदस्यों पर इस जांच में सहयोग न करने का आरोप भी लगाया है।
एसआईटी सदस्यों द्वारा शपथ पत्र सौंपने तथा सीबीआई द्वारा असहयोग का आरोप लगने के बाद ही यह गिरफ्तारीयों की कारवाई हुई है। यह गिरफ्तारीयां आरोपी सूरज की पुलिस कस्टडी में हुई मौत के प्रकरण में हुई है। स्मरणीय है कि एसआईटी ने सूरज की मौत को दूसरे आरोपी राजू के साथ हुई कथित मारपीट में राजू के नाम लगा दिया था लेकिन राजू की मां और मृतक सूरज की पत्नी ममता ने एसआईटी के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया था। अब सीबीआई की जांच में भी पुलिस की कहानी सत्यापित नही हुई है। शैल के पाठक जानते हैं कि इस प्रकरण पर जो जो सवाल हमने उठाये थे आज वही सवाल सीबीआई जांच के बिन्दु बने हैं। राजू द्वारा सूरज की हत्या करना किसी भी तर्क से गले नहीं उतरता है। सूरज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अन्य सूत्रों के मुताबिक सूरज को पुलिस ने इलैक्ट्रिक शाॅक तक दिये हैं। पुलिस सूरज को टार्चर करके उससे क्या कबूल करवाना चाहती थी? किसके कहनेे पर उसे इतना टार्चर किया गया कि इसमें उसकी मौत ही हो गयी। इन सवालों के जवाब अब सीबीआई जांच में सामने आयेंगे लेकिन यह स्पष्ट है कि सूरज को टार्चर करके पुलिस सारा गुनाह उसी से कबूल करवाना चाहती थी अन्यथा इतने टार्चर की आवश्यकता ही नही थी। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सूरज को जब गिरफ्तार किया गया तो उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नही थे। इससे यह भी सन्देह होता है कि सूरज से गुनाह कबूल करवाकर पुलिस किसी और को बचाना चाहती थी। पुलिस ऐसा क्यों कर रही थी इसके दो ही कारण हो सकते हैं कि यह सब या तो पैसे के लिये किया जा रहा था या फिर किसी के दवाब में। इसका ख्ुालासा सीबीआई की रिपोर्ट से होगा और यही खुलासा गुड़िया के गुनाहगारों तक पहुंचने में अहम कड़ी होगा।
गुड़िया के मामले में जब पुलिस ने छः लोगों को गिरफ्तार किया था तब यह सामने आ चुका था कि गुड़िया चार तारीख को करीब 4ः15 बजे स्कूल से निकली थी। गुड़िया का शव 6 तारीख को सुबह 7ः30 बजे उसके मामा को मिला था। मामा ने ही पुलिस को सूचना दी और गुड़िया के माता-पिता को। 6 तारीख को ही एफआरआई दर्ज हुई और सात तारीख को शव का पोस्टमार्टम हुआ। पोस्टमार्टम में मौत का समय चार तारीख को ही 4 से 5 बजे कहा गया है। यहां पर यह स्वभाविक सवाल उठता है कि स्कूल से निकलने और रेप तथा हत्या हो जाने के बीच केवल एक घन्टे का समय है। क्या एक घन्टे में 6 लोग रेप करके हत्या को भी अंजाम दे पायेंगे? क्योंकि स्कूल के अध्यापकों और बच्चों के मुताबिक स्कूल से निकलने का समय तो यही 4 से 4ः15 है ऐसे में पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर सवाल उठना चाहिये था। गुड़िया के माता-पिता ने न तो चार तारीख को और न ही पांच तारीख को पुलिस को गुड़िया के घर न आने की रिपोर्ट लिखवाई, आखिर क्यों? क्या उनके ऊपर कोई दवाब था? यह सवाल जांच के शुरू में उठने थे जिन्हें पुलिस ने नही उठाया क्यों? अब इन सारे सवालों का खुलासा सीबीआई रिपोर्ट में ही सामने आयेगा। जिन लोगों को पुिलस ने पकड़ा था अब उनका नार्काे टैस्ट होने के बाद यह सामने आ जायेगा कि उन लोगों की इस अपराध में संलिप्तता है या नही। यदि नार्को में उनकी संलिप्तता न पायी गयी तो पुलिस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं और इसकी गाज कुछ और लोगों पर भी गिरना तय है। क्यांेंकि फिर दो ही बिन्दु बचेंगे कि या तो इसमें पैसे का बड़ा खेल था या फिर कोई बड़ा दवाब था।

डिक्री और ओटीएस के बावजूद सीपीएस मनसाराम से नहीं हुई वसूली

शिमला/शैल। प्रदेश वित्त ने पिछले काफी समय से नये कर्ज देने बन्द कर रखे हैं क्योंकि इसकी अपनी माली हालत बहुत बिगड चुकी है। निगम का इस समय कर्जदारों के पास 72 करोड़ का ऐसा मूल धन उगाही के लिये फंसा है जिसमें निगम के पास सिक्योरिटी ही केवल 25 करोड़ की है। जिसका अर्थ है कि आज कर्ज के लिये धरोहर रखी संपत्ति को निगम जब्त भी कर ले तो केवल 25 करोड़ ही वसूल हो पायेंगे और 47 करोड़ तो डूबे ही हुए हैं लेकिन इस स्थिति के बाद भी प्रभावशाली कर्जदारों के मामले में तो सरकार नही चाहती कि उनसे वसूली की जाये। पूर्व मन्त्री मुख्य संसदीय सचिव मनसाराम के केस में कुछ ऐसा ही चल रहा है। इसमें मनसा राम के खिलाफ डिक्री होने के बाद निलामी की नौबत आयी तो राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष हर्ष महाजन को लेकर वीरभद्र सिंह के दरवार में पहुंच गये। निलामी रोकने के लिये सरकार को एमडी तक को बदलना पड़ गया। क्योंकि मनसाराम ने ओटीएस को भी आॅनर नही किया था और ऐसे में राहत के सारे रास्ते बन्द हो चुके थे। निगम में दर्जनो मामले तो ऐसे हैं जहां दिये गये कर्ज के बदले में धरोहर रखी गयी संपत्ति को राजस्व के रिकार्ड पर लाया ही नही गया है। पालमपुर के सिलवर ओक का ऐसा ही मामला है। बल्कि इस मामले मेें तो निगम के वकील एक ऐसे व्यक्ति रहे है जो बाद में उच्च न्यायालय के जज तक रहे हैं लेकिन निगम प्रशासन से लेकर सरकार तक ने निगम की स्थिति को गंभीरता से लिया ही नही। निगम का एसडीएम पद संभाल चुके अधिकारी बाद में मुख्य सविच तक रहे हैं और बतौर मुख्य सचिव निगम के बीडीओ के अध्यक्ष रहे है।
वित्त निगम की स्थापना अप्रैल 1967 में हुई थी। इसके एक्ट की धाराओं 29,30,31,32 और 32 जी के तहत रिकवरी की पूरी प्रक्रिया और प्रावधान स्थापित है। बल्कि वित्त निगम अधिनियम के उद्देश्यों की घोषणा में ही इसका उल्लेख है। एक्ट की धारा 29 और 31 के तहत वित्त निगम को वैधानिक तौर पर डिक्री होल्डर का दर्जा हासिल है। इस स्थायी स्थिति के बाद निगम को एक्ट की धारा 32(8) और 32(8ए) के तहत जिला जज से केवल डिक्री की तामील का आदेश ही हासिल करना होता है। इसके लिये केवल सवा रूपये की कोर्ट फीस लगाकर तामील के आग्रह का आवेदन किया जा सकता है। लेकिन निगम प्रशासन ने एक्ट के तहत दिये इस अधिकार और प्रावधान का इस्तेमाल न करके विभिन्न अदालतों में रिकवरी की याचिकाएं डालने में ही दो करोड़ की कोर्ट फीस खर्च कर दी है जो काम 1.25 रूपये खर्च करके हो सकता था उसके लिये हजारों/लाखों खर्च क्यों किये गये इसका कोई जबाव नही है। निगम की लेनदारीयों को तो Sovereign- dues का दर्जा हासिल है और इसी के कारण से भू-राजस्व के तहत वसूली का प्रावधान 1973 में पब्लिक मनी(रिकवरी आॅफ डयूज़) मे किया गया और बाद में 1982 में वित्त निगम एक्ट में ही धारा 32 जी जोड़ कर यह प्रावधान कर दिया गया। लेकिन इन प्रावधानों की ईमानदारी से अनुपालना नही की गयी बल्कि इन्हे अवरूद्ध करने के लिये निगम प्रशासन ने स्वतः इसमें दस लाख की सीमा तय कर ली।
आज वित्त निगम लगभग डूब चुका है। करीब 1700 करोड़ रूपया फंसा हुआ है। जिसकी पूरी वापसी की संभावनाए बहुत कम है। यदि निगम की इस स्थिति का निष्पक्षता से आंकलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एक्ट में प्रदत्त प्रावधानों को निगम प्रशासन से लेकर बीडीओ तक या तो जानबूझ कर नजरअन्दाज किया गया या फिर किसी ने भी इन्हें गंभीरता से समझने का प्रयास ही नही किया। यहां तक कि निगम में आन्तरिक आडिट से लेकर एजी तक आडिट का प्रावधान है बल्कि आईडीबीआई और अब सिडवी इसके रेगुलेटर है। लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नही दिया। अदालतों में मामले गये लेकिन वहां भी एक्ट में ही दिये इन प्रावधानों की ओर ध्यान नहीं आ पाया और इस सबका परिणाम है कि सरकार का इतना बड़ा अदारा फेल हो गया।

नोटबंदी के दौरान 80 लाख की गाड़ी खरीदने वाला नेता चर्चा में

भाजपा अध्यक्ष द्वारा गांधी के अपमान पर प्रदेश कांग्रेस की चुप्पी सवालों में
नोटबंदी के दौरान भाजपा पर जमीन खरीद के आरोप लगाकर खुलासे से क्यों पिछे हटे सुक्खु
शिमला/शैल। वीरभद्र की सरकार और पार्टी के संगठन के बीच जो सवाल सरकार बनने के साथ शुरू हुआ था वह अब तक लगातार जारी है। हांलाकि पार्टी के लिये प्रभारी सुशील कुमार शिंदेे ने इस टकराव को विराम देने के लिये दोनो पक्षों को कड़ी हिदायत देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव तक न तो सुक्खु हटेंगे और न ही वीरभद्र। लेकिन शिंदे के जाने के बाद वीरभद्र ने फिर कहा कि संगठन के चुनाव जल्द हो जाने चाहिये। उनका निशाना फिर सुक्खु था लेकिन सुक्खु ने वीरभद्र के इस प्रहार पर कोई प्रतिक्रिया न देकर अनुशासन की हिदायत का पालन किया। परन्तु इसके बाद जब वीरभद्र ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर एक विवादित ब्यान दे दिया और फिर अपने ही ब्यान पर सफाई भी देनी पड़ी। लेकिन वीरभद्र के इस विविादित ब्यान के बाद उभरा राजनीतिक बवाल अब लगतार बढ़ता ही जा रहा है। इस बवाल को रोकने के लिये संगठन की ओर से कोई सामने नही आया है। यही नही वीरभद्र पर पलटवार करते हुए भाजपा अध्यक्ष सत्ती ने राष्ट्रपिता महात्मा  गांधी को लेकर सार्वजनिक मंच से हर कुछ बोल दिया। जब लोकसभा में भारत छोड़ो आन्दोलन की 75वीं वर्ष गांठ के अवसर पर बोलते हुए प्रधान मन्त्राी नरेन्द्र मोदी गांधी के प्रति अपना और देश का आभार व्यक्त कर रहे थे उसी समय हिमाचल भाजपा के अध्यक्ष सत्ती गांधी को गाली दे रहे थे। सत्ती ने गांधी को लेकर जिस भाषा का इस्तेमाल किया है शायद मोदी और शाह भी ऐसी भाषा की अनुमति नहीं देंगे। लेकिन हिमाचल की कांग्रेस और सरकार पर  गांधी के इस अपमान का कोई असर ही नही हुआ है। जबकि इस पर भाजपा को घेरा जा सकता था और यह भाषा सत्ती पर भारी पड़ सकती थी। लेकिन सरकार और संगठन के टकराव के कारण इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी कोई प्रतिक्रिया देखने को नही मिली।
इस समय कांग्रेस पार्टी और सरकार की ओर से भाजपा के खिलाफ कोई आक्रमकता देखने को नही मिल रही है। जबकि भाजपा पूरी आक्रमकता के साथ सरकार को विभिन्न माफियाओं का पर्याय प्रचारित करने में लगी हुई है। चुनाव सरकार की छवि पर लड़े जाते हैं इसमें संगठन की भूमिका यही होती है कि संगठन सरकार के कामकाज की छवि को आम आदमी तक पहुंचाने का काम करता है। लेकिन इस समय सरकार की छवि पूरी तरह नाकारत्मक प्रचारित हो रही है और उसका कारगर जवाब देने वाला कोई सामने नही है। यहां तक कि संगठन में हर्ष महाजन जैसे वीरभद्र के अतिविश्वस्त अहम पदों पर बैठे हैं और विभिन्न निगमों/बार्डो में सरकार ने करीब पांच दर्जन लोगों को ताजपोशीयां दे रखी हैं। परन्तु आज इनमें से एक भी नेता भाजपा के हमलों का जवाब देने का साहस नही जुटा पा रहा है। बल्कि स्थिति तो यह बनती जा रही है कि इन ताजपोशीयां पाये कई नेताआंे की कारगुजारीयों पर संगठन और सरकार को स्पष्टीकरण देने पड़ेंगे। इन दिनों नोटबंदी के दौरान एक ताजपोशी पाये नेता का करीब 80 लाख की गाड़ी खरीदा जाना आम चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा है कि 79,80,000 का नकद भुगतान किया गया है। गाड़ी की रजिस्ट्रेशन को लेकर भी कई चर्चाएं है। कल को जब ऐसे किस्से सामने आयेंगे तो उल्टा वीरभद्र को ही अपने इन विश्वस्तों को डिफैण्ड करना पडे़गा।
संगठन में किसकी निष्ठाएं किसके साथ  हैं इसको लेकर भी नये सिरे से सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि नोटबंदी के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु ने प्रदेश भाजपा पर यह संगीन आरोप लगाया था कि उसने नोटबंदी की आहट पाते ही शिमला और बिलासपुर में पार्टी कार्यालयों के नाम पर जमीन खरीदने में भारी निवेश किया है। लेकिन सुक्खु ने इस बारे में और कोई विस्तृत जानकारी सामने नही रखी थी सुक्खु के इस आरोप पर भाजपा की ओर से भी कुछ नही कहा गया था। लेकिन इस आरोप की सच्चाई आज तक प्रदेश की जनता के सामने नही आ पायी है। आज यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सुक्खु ने इस आरोप का पूरा विकल्प जनता के सामने क्यों नही रखा? क्योंकि उसी दौरान हमीरपुर से कुछ लोगों ने सुक्खु के खिलाफ भी जमीन खरीद के आरोप लगाये थे और राज्यपाल से इस पर जांच करवाने का आग्रह किया था। बल्कि  मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने भी इसमें जांच करवाने का दावा किया था। सुक्खु ने आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि का दावा दायर करने की बात की थी। बल्कि एक अन्य मामले में धूमल ने भी सुक्खु को मानहानि का नोटिस जारी किया था लेकिन यह सब कुछ थोडे़ समय के लिये तो चर्चा में रहा है और उसके बाद सब अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार खामोश हो गये। परन्तु आज चुनावों के मौके पर निश्चित रूप से जनता इस पर जवाब चाहेगी।

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