शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के बिलासपुर दौरे का सफल बनाने के लिय के केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा ने इस रैली से पूर्व जितना समय इसके लिये लगाया है उससे स्वतः ही यह सन्देश चला जाता है कि अब जनता मोदी के लिये लानी पड़ती है अपने आप नही आती। क्योंकि यदि जनता में मोदी के प्रति अभी तक आर्कषण और आदर शेष होता तो एक केन्द्रिय मन्त्री को अपने ही गृह जिले में रखे गये आयोजन को सफल बनाने के लिये इतना ज्यादा समय देने की आवश्यकता नही पड़ती। इस आयेाजन को सफल बनाने के लिये जितना खुला निवेश किया जा रहा है उससे यह संकेत और सन्देश अवश्य उभरता है कि शायद नड्डा को प्रदेश का नेतृत्व सौंपने की तैयारी की जा रही है। मोदी के इस दौरे से पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह कांगड़ा में युवा हुंकार रैली को संबोधित कर चुके है। अमितशाह की रैली कितनी सफल रही है इसका आंकलन इसी से किया जा सकता है कि यह रैली आयोजन के बाद चर्चा का विषय बन ही नही पायी। शिमला नगर निगम के चुनावों से पूर्व भी शिमला के रिज पर मोदी के लिये एक रैली आयोजित की गयी थी। लेकिन इसके वाबजूद भाजपा को अपने दम अकेले 18 सींटे प्राप्त नही हो सकी और जोड़तोड़ के साथ भाजपा निगम पर कब्जा कर पायी।
आज विधानसभा चुनावों के लिये पार्टी ने किसी को भी नेता घोषित न करने का फैसला लिया है। यह फैसला संभवतः इसलिये नही लिया गया है कि प्रदेश के नेताओं पर हाईकमान को विश्वास नही है बल्कि इसलिये लिया गया है कि आज भाजपा के अन्दर केन्द्र से लेकर राज्यों तक मोदी शाह के के बाद कोई तीसरा नाम गिनने लायक है ही नही। व्यवहारिक तौर पर आज भाजपा केवल मोदी शाह होकर ही रह गयी है। मोदी शाह के इस अधिनायकवादी आचरण के कारण ही सरकार की सारी आर्थिक नीतियां और कार्यक्रम एक एक करके असफल होते जा रहे हैं। लेकिन पार्टी के भीतर इन फैसलों पर कोई आवाज उठाने का साहस नही कर पा रहा है। बल्कि इन फैसलों को सही ठहराने के लिये तर्क गढ़े जा रहे हैं। अभी यशवंत सिन्हा और कुछ अन्य लोगों ने इन पर एक सार्वजनिक चर्चा का माहौल तैयार करने में कुछ सफलता तो हासिल की है लेकिन इन लोगों ने भी इसका दोष वित्त मन्त्री अरूण जेटली पर ज्यादा डाला है जबकि नोटबंदी के फैसले के लिये और उर्जित पटेल को ज्यादा विश्वास में नही लिया गया था। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को हटाने के लिये सबसे अधिक भूमिका तो डा. स्वामी की रही है। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्थिक फैसलों के लिये जेटली से ज्यादा प्रधानमन्त्री मोदी स्वयं ज्यादा जिम्मेदार हैं। अब यह चर्चा आम हो चुकी है कि भारत सरकार के राजस्व सचिव हंसमुख अधिया को प्रधानमन्त्री कार्यालय से संपर्क करने के लिये सीधी लाईन मिली हुई है और वह जेटली की ज्यादा सुनते ही नही है।
आज चुनाव के वक्त में केन्द्र सरकार के इन फैसलों पर स्वभाविक रूप से प्रदेश की जनता में सवाल पूछे जायेंगे। सारे आर्थिक फैसलों के बड़े लाभार्थि अबानी आदनी ही क्यों हो रहे हैं इसका ज्यादा जवाब प्रदेश में आने वाले दिनों नड्डा को देना होगा क्योंकि वह मोदी के साथ पूर्ण काबिना मन्त्री है। इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि यू.पी. और उत्तराखण्ड के चुनावों के दौरान भाजपा ने इन राज्यों में जिस स्तर तक कांग्रेस के भीतर तोड़ फेाड़ करने में सफलता हालिस कर ली थी उससे भी वहां पर भाजपा को लाभ मिला था। लेकिन हिमाचल में भाजपा कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड़ करने में सफल नही हो पायी है। हालांकि इसके लिये बड़े स्तर पर प्रयास किये गये बल्कि इन प्रयासों के कारण ही भाजपा नेताओं की ओर से यह दावे किये जाते रहे कि कांगे्रस के कई लोग उनके संपर्क में हैं। यह दावे लगातार किये जाते रहे कि कांग्रेस की सरकार कभी भी गिर सकती है लेकिन ऐसा हो नही पाया। सुक्खु वीरभद्र के झगड़े ने कांग्रेस को टूटने से बचाये रखा। दोनों ने एक दूसरे के विरोधीयों को बांधे रखा। कांग्रेस की यह एकजुटता भी चुनावों में भाजपा के लिये एक बड़ी चुनौती होगी जबकि भाजपा के अन्दर नेतृत्व के प्रश्न पर गंभीर खंीचतान अन्दर खाते चल रही है। यह ठीक है कि संघ का अनुशासन इस खींचतान को दबाये रखेगा। लेकिन संघ नेतृत्व जनता के मुद्दों का कभी सीधे सामना नही करता है यह भाजपा को ही करना होता है। फिर प्रदेश भाजपा ने भ्रष्टाचार को लेकर वीरभद्र के खिलाफ जो आक्रमकता दिखाई है उस हमाम में भाजपा का नेतृत्व भी बराबर का नंगा है। भाजपा के भी कई नेता ज़मानत पर हैं और गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में जब यह सब कुछ जनता के सामने आयेगा तो स्वभाविक रूप से भाजपा भी कांग्रेस की ही बराबरी पर आ जायेगी।