पूर्व छः सीपीएस की विधायकी पर संशय बरकरार
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Created on Tuesday, 26 November 2024 12:18
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Written by Shail Samachar
- हिमाचल सरकार ने दो बार एक्ट पारित करके संविधान संशोधन की काट निकालने का प्रयास किया
- असम के साथ हिमाचल की एसएलपी टैग होने और फैसला आ जाने की जानकारी के बाद हुई यह नियुक्तियां
शिमला/शैल। क्या पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी बच पायेगी? यह सवाल सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा हिमाचल उच्च न्यायालय के फैसले के पैराग्राफ 50 के तहत अगली कारवाई पर लगाई गयी रोक के बाद चर्चा का विषय बना हुआ है। सर्वाेच्च न्यायालय में अगली सुनवाई 20 जनवरी को होगी और तब तक विधायकी सलामत रहेगी। लेकिन क्या होता है यह देखना रोचक होगा। संविधान में 2003 में 91वां संशोधन होने के बाद मंत्रिमण्डलों में मंत्रियों की सीमा तय कर दी गयी थी। जिसके तहत हिमाचल में यह संख्या बारह से अधिक नहीं हो सकती। लेकिन हिमाचल सरकार ने इस संविधान संशोधन के बाद मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव बनने का अधिनियम पारित करके पांच मुख्य संसदीय सचिव और तीन संसदीय सचिव नियुक्त कर लिये। इन नियुक्तियों को सिटीजन प्रोटेक्शन फॉर्म के संयोजक देशबंधु सूद ने उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। जिस पर 18 अगस्त 2005 को फैसला आया। जिसमें नियुक्तियों को असंवैधानिक ठहराते हुये रद्द कर दिया। हिमाचल सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में एसएलपी दायर कर दी। परन्तु इसका फैसला आने से पहले ही 2006 में मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त करने का फिर से एक्ट पारित कर लिया। इस एक्ट के तहत भी मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त हुये। फिर इस एक्ट को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती मिल गयी। इसी बीच उच्च न्यायालय के पहले फैसले के खिलाफ दायर की गयी एसएलपी असम के मामले के साथ टैग हो गयी। इस पर जुलाई 2017 में फैसला आया और सर्वाेच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य विधायिका ऐसा एक्ट पारित करने के लिये सक्षम ही नहीं है। उधर इस आश्य का जो एक्ट दूसरी बार पारित किया गया था और उसको उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी थी उसकी सुनवाई आ गयी। इस पर सरकार ने शपथ पत्र देकर कहा है कि यदि ऐसी नियुक्तियां करने की कोई स्थिति आये तो उच्च न्यायालय से पूर्व अनुमति लेकर ऐसा किया जायेगा। यह सब जयराम सरकार के शुरुआती दिनों में ही हो गया इसलिए इस सरकार में ऐसी नियुक्तियां नहीं हो पायी। अब यह स्पष्ट हो जाता है कि हिमाचल सरकार ने संविधान के 91वें संशोधन की काट के लिए दो बार मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त करने के लिए एक्ट पारित किये। दूसरी बार पारित किए गये एक्ट को जब उच्च न्यायालय में चुनौती मिल गई तो शपथ पत्र देकर अदालत से पूर्व अनुमति लेने की बात कर दी। इस तरह जब सुक्खू सरकार ने यह नियुक्तियां की तो उसे यह जानकारी थी कि असम के साथ ही हिमाचल की एसएलपी टैग हो गयी थी और उस पर फैसला आ गया था कि राज्य विधायिका ऐसा एक्ट बनाने के लिए सक्षम ही नहीं है। यह भी इस सरकार की जानकारी में था कि जिस एक्ट के तहत वह यह नियुक्तियां करने जा रही है उसे उच्च न्यायालय में चुनौती मिल चुकी है। यह भी संज्ञान में था कि सरकार ने उच्च न्यायालय से पूर्व अनुमति लेने की बात कह रखी है। ऐसे में अब यदि सर्वाेच्च न्यायालय के संज्ञान में यह आ गया की 91वें संविधान संशोधन को अंगूठा दिखाने के लिये राज्य सरकार बार-बार प्रयास कर रही है। तब स्थिति का कड़ा संज्ञान लेकर इनकी विधायकी पर भी आंच आ सकती है। अब हिमाचल का मामला दूसरे राज्यों के साथ टैग हो गया तो संभव है कि यह मामले संविधान पीठ के पास जायें ताकि इस तरह की स्थिति फिर किसी राज्य में न आये। कई राज्यों ने संविधान संशोधन के बाद ऐसे एक्ट बना रखे हैं। आठ उच्च न्यायालय तो इन्हें निरस्त कर चुके हैं। इसलिये सर्वाेच्च न्यायालय पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
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