शिमला। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने एक ब्यान में आशंका जताई है कि प्रधान मन्त्री मोदी बौखला गये हैं और उनकी हत्या करवा सकते हैं। केजरीवाल के इस ब्यान पर केन्द्र सरकार और भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। बल्कि अन्य राजनीतिक दल भी इस ब्यान पर मौन ही हैं। केजरीवाल का यह ब्यान एक गंभीर विषय है और इसे हल्के से नही लिया जा सकता। क्योंकि यह एक मुख्यमन्त्री की आशंका है। यदि यह आशंका निर्मूल है तो ऐसे ब्यानों की सार्वजनिक निन्दा होनी चाहिये अन्यथा
इस पर स्पष्टीकरण आना चाहिये क्योंकि मौन ऐसे प्रश्नों का हल नही होता उससे विषय की गंभीरता और बढ़ जाती है क्योंकि एक मुख्यमन्त्री प्रधानमन्त्री की नीयत और नीति पर सवाल उठा रहा हैं।
अरविन्द केजरीवाल को ऐसी आशंका क्यों हुई इसके ऊपर भी विचार करने की आवश्यकता है। दिल्ली में जब से आम आदमी पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में सत्ता में आयी है तभी से मोदी की केन्द्र सरकार से उसका टकराव चल रहा है। हर छोटे बडे़ मसले पर टकराव है और इसी टकराव के परिणाम स्वरूप दिल्ली विधान सभा द्वारा पारित कई विधेयकों को अभी तक स्वीकृति नही मिल पायी है। दिल्ली के इक्कीस विधायकों पर उनकी सदस्यता रद्द किये जाने का खतरा मंडरा रहा है। जबकि पूरे देश में हर राज्य में संसदीय सविच बने हुए हैं। जिन विधायकों को मन्त्री नही बनाया जा पाता है उन्हे संसदीय सचिव बनाकर राजनीतिक सतुंलन बनाये रखने का तरीका अपनाया जाता है। इसमें दिल्ली ही अकेला अपवाद नही हैं। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में भी ऐसी नियुक्तियों के माध्यम से राजनीतिक सन्तुलन साधे गये हैं। संसदीय सचिवों की व्यवस्था को समाप्त करने के लिये संसद में ही विधेयक लाकर ऐसा किया जा सकता है। लेकिन किसी एक राज्य सरकार को अलग से निशाना बनाकर ऐसा प्रयास किया जाना राजनीतिक विद्वेश ही माना जायेगा।
दिल्ली में पुलिस पर प्रदेश सरकार का नियन्त्रण नही है। यह केन्द्र सरकार के अधीन है। दिल्ली पुलिस अभी तक विभिन्न मामलों में ग्याहर विधायकों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनमें से किसी भी विधायक के खिलाफ चुनाव से पहले कोई आपराधिक मामले दर्ज नही थे जिसे लेकर यह कहा जा सके कि मामले की जांच चल रही थी और अब उसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता आ खडी हुई क्योंकि विधायक जांच में सहयोग नही कर रहा था। सबके मामले विधायक बनने के बाद दर्ज हुए और जांच शुरू होने के साथ ही गिरफ्तारियां कर ली गयी। कईयों के मामलों में तो अदालत भी क्लीन चिट दे चुकी है फिर कईयों के खिलाफ तो आरोपों का स्तर भी ऐसा है जिससे यह विश्वास ही नही होती कि विधायक बनने के बाद भी कोई ऐसा आचरण कर सकता है। जिस तेजी के साथ दिल्ली पुलिस ने ‘आप’ विधायकों के खिलाफ कारवाई को अजांम दिया है वैसी तेजी अन्य अपराधीयो के खिलाफ देखने को नही मिली है। फिर देश की संसद के भीतर भी ऐसे कोई कारवाई नही हो पायी है। यही नही उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, में आपराधिक मामलें हैं जिन पर इन राज्यों की पुलिस ने दिल्ली जैसी कारवाई नही की है। दिल्ली पुलिस की कारवाई को इस आईने में देखते हुए सामान्य नही माना जा रहा है और ऐसा मानने के कारण भी हैं। क्योंकि आम आदमी पार्टी को एक राष्ट्रीय राजनीतिक विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है और यह कांग्रेस तथा भाजपा को स्वीकार्य हो नही पा रहा है। भाजपा ने कांग्र्रेस का विकल्प बनने के लिये जनसंघ से जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी बनकर एक लम्बी प्रतिक्षा की है। इसके लिये जनता पार्टी को तोडने और वी पी सिंह के जनमोर्चा को समाप्त करने तक के कई राजनीतिक कृतयों को जन्म दिया है। इस सारी यात्रा के बाद भी राम देव और अन्ना के आन्दोलनों का सहारा लेकर लोकसभा में अकेले 288 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा में केवल तीन सीटों तक सिमट जाना स्वाभाविक रूप से भाजपा के लिये चिन्ता और चिन्तन का विषय है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिये यह एक स्थिति है जिसका कोई जवाब उसके पास नही है। ऐसी स्थिति से राजनीतिक खीज का पैदा होना भी स्वाभाविक है। लेकिन इस सच्चाई का सामना करने के लिये ‘आप’ सरकार से टकराव और उसके विधायको के खिलाफ ऐसे मामले बनाना भी कोई हल नही है। पूरा देश इस वस्तु स्थिति को देख रहा है।
शिमला। भ्रष्टाचार सबसे बडी समस्या है और जब यह सत्ता के उच्चतम शिखरों तक पंहुच चुका है तो इससे निपटने के लिये भी दण्ड संहिता के प्रावधानों के अतिरिक्त कुछ और प्रावधान भी चाहिये। इस सत्य और स्थिति को स्वीकारने के बाद लोकायुक्त संस्थानों की स्थापना हुई। मुख्यमन्त्री तक सारे राजनेताओं को इसके दायरे में लाकर खड़ा कर दिया गया। आज देश के कई राज्यों में लोकायुक्त स्थापित है और प्रभावी रूप से अपने दायित्वों को निभा रहे हंै। लेकिन कई राज्यों ऐसे है जहां लोकायुक्त के होने से व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। हिमाचल में लोकायुक्त
संस्थान का गठन 1983 में हुआ था और तब से लेकर आज तक यहां पर लोकयुक्त तैनात रहे हैं। लोकायुक्त किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश या सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश ही बन सकता है वह सेवानिवृत भी हो सकता है और सेवानिवृत लेकर भी आ सकता है। लोकायुक्ता का अपना पूरा सचिवालय रहता है। जिसमें न्यायपालिका के सत्र न्यायधीश और आई ए एस तथा आई पी एस स्तर के अधिकारी तैनात रहते हैं। लोकायुक्त और उनके सचिवालय पर सरकारी कोष से करोड़ो रूपया खर्च किया जाता है लोकायुक्त पर सरकार का कोई दवाब नही रहता है। इस अधिनियम में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की गयी है। लोकायुक्त अपने पास आयी शिकायत की जांच करवाने के लियेे किसी भी सरकारी गैर सरकारी ऐजैन्सी की सेवायें ले सकता है। लोकायुक्त अपने में एक स्वायत और स्वतन्त्र संस्था है और यह व्यवस्था इसलिये रखी गयी है ताकि वह मुख्यमन्त्री तक किसी की भी निष्पक्षता जांच कर सके।
लेकिन क्या लोकायुक्त इन अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं? क्या लोकायुक्त ने किसी राजनेता के खिलाफ आयी शिकायत की जांच में कोई निष्पक्ष और प्रभावी परिणाम दिये हंै। जिस संस्थान पर सरकारी कोष से आम आदमी का करोड़ों रूपया खर्च हो रहा उसके बारे में यह सवाल उठाना और इनका जवाब लेना आम आदमी का अधिकार है। प्रदेश के लोकायुक्त अधिनियम को लेकर इन सवालों की पड़ताल से पहले यह जानना भी आवश्यक है कि लोकायुक्त अधिनियम में प्रदत्त स्वास्यताः और स्वतन्त्रता के प्रति राज्य सरकार का व्यवहारिक पक्ष क्या रहा है लोकायुक्त सचिवालय में सारे अधिकारी कर्मचारी सरकार द्वारा तैनात किये जाते हैं और इनमें सरकार लगभग उन लोगों को भेजती हैं जिन्हें एक तरह से साईड लाईन करना होता है। स्टाफ की यही तैनाती लोकायुक्त को पूरी तरह निष्प्रभावी बना कर रख देती है। प्रदेश के लोकायुक्त सचिवालय में आज तक जितनी भी शिकायतें आयी हैं उनमें किसी भी राजनेता के खिलाफ का कभी कोई मामला दर्ज किये जाने और उससे उसे सजा मिलने जैसी स्थिति नही आयी है। प्रदेश के दो मुख्य मन्त्रीयों वीरभद्र और प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ लोकायुक्त के पास शिकायतें आयी हैं। वीरभद्र सिंह के खिलाफ वन कटान को लेकर शिकायत आयी थी। इस शिकायत की जांच रिपोर्ट पढ़ने से पूरी रिर्पोट की विश्वनीयता पर स्वतः ही सवाल लग जाता है। क्योंकि रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस स्थान पर अवैध कटान होने का आरोप था उसके निरीक्षण के लिये जब लोकायुक्त गये तो वह उस स्थल तक पहुंच ही नहीं पाये। बहुत दूर से दूरबीन के साथ स्थल का निरीक्षण किया गया। इस निरीक्षण में कहा गया है कि उस स्थल पर कुछ झाडियां देखी गयी जिनसे उस स्थान पर बडे़ पेड़ांे के होने की संभावना हो ही नही सकती इस निरीक्षण के लिये पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को स्थल पर जाकर देखने के लिये भेजा गया लोकायुक्त की इस रिपोर्ट से मामले में क्लीन चिट मिल गया था और इसको लेकर उस समय भी सवाल उठे थे।
प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ आय से अधिक संपति की शिकायत पुलिस के ए डी जी पी स्व. बी एस थिंड ने की थी। थिंड ने अपने शपथ पत्र के साथ काफी दस्तावेजी प्रमाण भी लगाये थे। लेकिन लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में पहले तो यह कहा है कि यह शिकायतें पंाच वर्ष की समयावधि से पहले की है इसलिये उसके अधिकार क्षेत्र में नही आती हंै। फिर आगे इसी रिपोर्ट में यह भी कह दिया कि इस दौरान धूमल ने ज्यादा कमाया होगा और ज्यादा बचाया होगा इसलिये इसमें कुछ भी आपतिजनक नही है। यह रिपोर्ट भी थिंड की मौत के बाद सामने आयी है और इसे क्लीन चिट करार दिया गया है। जबकि यदि यह शिकायत अधिकार क्षेत्र से बाहर भी थी तो फिर इसमें ज्यादा कमाने और ज्यादा बचाने का उल्लेख क्यों और कैसे? इस तरह वीरभद्र और धूमल दोनों को लेकर लोकायुक्त की जो रिपोर्टें आयी हैं उनकी विश्वसनीयता पर स्वतः ही सवाल खडे़ हो जाते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ खडे़ किये गये इस अदारे की प्रसांगिकता पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। यह रिपोर्ट आम आदमी के सामने पूरी तरह से नही आ पायी है। लेकिन इन रिपोर्टो की व्यवहारिकता पर एक सर्वाजनिक बहस बहुत आवश्यक है यदि बड़े स्तर पर पनप रहे बड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगानी है। यदि लोकायुक्तों की कार्य प्रणाली ऐसी ही रहनी है तो ऐसी व्यवस्था पर आम आदमी का करोड़ो रूपया खर्च करने का औचित्य क्या है? उम्मीद है कि पाठक इस पर गंभीरता से मंथन करके कुछ नया करने और सोचने की ओर बढेगें।
शिमला। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान और सेब व्यापारी चुन्नी लाल की प्रर्वतन निदेशालय तथा सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री ने दूसरे ही दिन अपने मन्त्री मण्डल की बैठक बुलाई और इस बैठक में मन्त्री मण्डल ने एक संक्षिप्त प्रस्ताव पारित करके मुख्यमन्त्री में पूर्ण विश्वास प्रकट करके एक जुटता दिखाई है। जब मुख्यमन्त्री के आवास पर छापामारी हुई थी तब भी ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया गया था। कांग्रेस और मुख्यमन्त्री ने इस गिरफ्तारी
के कदम को केन्द्र सरकार की ज्यादती करार दिया है। मुख्यमन्त्री ने एक बार फिर इसके लिये केन्द्रिय वित्त मन्त्री अरूण जेटली और धूमल पुत्र सांसद अनुराग ठाकुर को कोसा है। वीरभद्र अपने खिलाफ हो रही कारवाई के लिये शुरू से ही अरूण जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर को कोसते आ रहे हंै। वीरभद्र के इस बार-बार कोसने और कांग्रेस तथा सरकार द्वारा उनके साथ हर बार एक जुटता और विश्वास दिखाने से कुछ ऐसे सवाल खडे़ हो जाते हंै जिनसे पूरी सरकार और स्वयं वीरभद्र सवालों में घिर जाते हंै। प्रदेश की पूरी जनता इन आरोपों और प्रत्यारोपों पर पूरी गंभीरता से नजर बनाये हुए है।
वीरभद्र के पूरे प्रकरण पर यदि नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट हो जाता है कि जब वीरभद्र सिंह से इस्पात मन्त्रालय लेकर लघु उद्योग मन्त्रालय दिया गया था तब वीबीएस और ए एस जैसे सांकेतिक नाम चर्चा में आये थे। उसके बाद 2013 में प्रशान्त भूषण ने इस मामले को आगे बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप 2015 में सीबीआई और ईडी ने मामले दर्ज किये जो आज अटैैचमैन्ट तथा गिरफ्तारीयों तक पहुंच गये। लेकिन इसी पूरे समय में वीरभद्र सरकार ने एच पी सी ए के खिलाफ मामले बनाये जिनमें आज तक कोई परिणाम सामने नहीं आया। सारे मामलों पर अदालत में फजीहत जैसी स्थिति बनी है। अरूण जेटली के खिलाफ वीरभद्र ने मानहानि का मामला दायर किया जिसे वापिस ले लिया। धूमल की संपतियों को लेकर मार्च 2013 से वीरभद्र सरकार के पास शिकायत लंबित है। वीरभद्र इस मामले में कई बार जांच पूरी होकर एफआईआर दर्ज किये जाने के दावे का चुके हैं। लेकिन यह सारे दावे हवाई सिद्ध हुए हैं क्योंकि आज तक कोई मामला दर्ज नहीं हो पाया है। धूमल के खिलाफ शुरू किये गये हर मामले में सरकार की फजीहत ही हुई है।
इस पूरी वस्तुस्थिति को सामने रखकर सामान्य सवाल खड़ा होता है कि क्या वीरभद्र सरकार जानबूझ कर धूमल के खिलाफ आधारहीन मामले खडे़ कर रही थी? या इन मामलों का आधार बनाकर धूमल पर दवाब बनाने का प्रयास किया जा रहा था कि वह केन्द्र में वीरभद्र की मदद करें? यदि धूमल-अनुराग के खिलाफ सारी शिकायतें जायज थी तो फिर यह मामले आगे क्यों नहीं बढे़? क्या वीरभद्र के मन्त्री या अधिकारी धूमल की मदद कर रहे थे जिसके चलते इन मामलों के कोई परिणाम सामने नही आये। क्योंकि एक तरफ मामले बनाना और उनके असफल होने का कड़वा सच है तो दूसरी ओर वीरभद्र सिंह द्वारा जेटली, धूमल और अनुराग को लगातार कोसने का सच है। यह दोनांे चीजें एक ही वक्त में सही नहीं हो सकती। यदि यह सब सच है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि वीरभद्र की अपने शासन और प्रशासन पर कोई पकड़ नही रह गयी है। इस हकीकत को सामने रखते हुए इस मन्त्रीमण्डल और पार्टी के विश्वास तथा एकजुटा दिखाने का कोई अर्थ नही रह जाता है। क्योंकि यह लोग तो तभी तक मन्त्री हैं जब तक मुख्यमन्त्री का इन पर विश्वास बना हुआ है। विश्वास का पैमाना तो प्रदेश की जनता है। क्या यह आप पर पुनःविश्वास व्यक्त करेगी इसका पता तो जनता के बीच जाकर ही लगेगा। क्योंकि दोनों चीजें एक साथ नही हो सकती कि आप धूमल अनुराग को कोसने का काम भी जारी रखें और उनके खिलाफ बने मामले भी असफल होते जायंे तथा आप जनता से यह उम्मीद करे कि वह आप पर विश्वास करें।
शिमला/शैल। भारतवर्ष का पर्यटन उद्योग प्रतिवर्ष लगभग 1500 करोड़ अमेरिकी डाॅलर की विदेशी मुद्रा के अर्जन के साथ ही लगभग 1.5 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी का साधन है। विदेशी मेहमानों के लिए हमारे देश में पर्यटन के हर रंग विद्यमान हैं। एक समृद्ध इतिहास की गाथा गाते प्राचीन से प्राचीनतम हमारे दुर्ग, ऐतिहासिक धरोहरें, अति रोचक पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुएं, विभिन्न प्रकार की सांस्कृतियां, साम्प्रदायिक सोहार्द का वातावरण, विभिन्न रंगों में रंगे उत्सव और त्यौहार, अगणित प्रकार की पारम्परिक वेशभूषाएं, नाना प्रकार के व्यंजन, मुम्बई जैसे अत्याधुनिक शहर से लेकर समाज की मुख्यधारा से नितान्त विरक्त आदिवासी प्रजातियाँ, सैकड़ों किलोमीटरों
में फैले रेगिस्तान, वन्यजीवों से सुशोभित राष्ट्रीय उद्यान, कल कल करती हजारों मीलों लम्बी नदियाँ, विशाल झरने, महासागरों के अति सुन्दर किनारे, विशाल मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे, बौद्ध मोनेस्ट्री, साल भर बर्फ से ढकी पर्वतीय क्षेत्रों की गगनचुंबी चोटियाँ, विशाल हिमखण्ड, हिमनद, पर्वतों के रोचक टेड़े-मेढ़े रास्ते, रमणीक हृदयंगम प्राकृतिक दृश्य और सबसे महत्वपूर्ण बात हमारी ‘अतिथि देवो भवः’ की संस्कृति। आखिर क्या नहीं है हमारे भारत में, एक पर्यटक को आकर्षित करने के लिए।
हिमालय पर्वत में बसे हिमाचल प्रदेश की बात कुछ और ही है। शीतल जलवायु, प्रदूषण रहित, शान्त, सुरक्षित वातावरण एवं सरल जनमानस के कारण हिमाचल आज भारतवर्ष के अव्वल नम्बर के पर्यटन स्थलों में से एक है। ईश्वर ने हमें दिल खोलकर प्राकृतिक सौन्दर्य का उपहार प्रदान किया है। 60 से 80 के दशक का एक समय वह था जब भारत की सारा की सारा फिल्म उद्योग अपने चलचित्रों में रमणीक दृश्य शामिल करने के लिए हिमाचल और कश्मीर जैसे पर्वतीय प्रदेशों की और रूख करता था और दूर दराज के प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने कैमरों में कैद करता था। पर्यटन विकास में फिल्म उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है। संभवतः इसी से प्रेरित होकर पर्यटकों ने हिमाचल और कश्मीर जैसे पर्वतीय राज्यों की और रूख किया। आज ग्लोबल वार्मिंग और बदलती जलवायु के कारण भी ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों के पर्यटक पर्वतीय क्षेत्रों की ओर रूख करते हैं। हिमाचल पर्यटन आज चरम पर है। वर्ष 2014 में प्रदेश में कुल 1 करोड़ 63 लाख पर्यटक से अधिक पहुंचे। वर्ष 2016 की समाप्ति तक इस आंकड़े का 2 करोड़ तक छूने का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में पर्यटन और परिवहन के लिए अनुमानित राजस्व व्यय रू. 1752 करोड़ है, जो कि कुल अनुमानित राजस्व व्यय का 6.55% है। ‘हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम’ का प्रदेश के कुल राजकोष में 10% प्रतिवर्ष का योगदान होता है। प्रदेश में लाखों व्यक्ति प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जिससे प्रदेश में करोड़ों रूपयों की आय होती है। पर्यटन व्यवसाय दिन दोगुनी-रात चैगुनी तरक्की कर रहा है। मगर चिन्ता का विषय है कि हिमाचल के गठन के 45 वर्षो में कई सरकारें आयी और गई, मगर अनुपातिक रूप पर्यटन अविकसित ही रहा। आज भी यहाँ पर्यटकों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। प्रकृति प्रदत्त उपहार को सहेजेने में हम लगभग विफल रहे हैं। पर्यटक एक बार आने के पश्चात् दोबारा आने के पहले कई बार सोचते हैं। आखिर ऐसा क्यों? पर्यटन की स्थिति भविष्य में यथावत बनी रहे, इसके लिए कुछ कठोर कदम उठाने आवश्यक हो गए हैं
हिमाचल का नाम ‘हिम’ अर्थात बर्फ पर आधारित है। मगर बढ़ते शहरीकरण के कारण बर्फबारी वर्ष-दर-वर्ष घट रही है, जो चिन्ता का विषय है। बर्फ ही नहीं रहेगी तो हिमाचल के नाम का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा। वैध-अवैध निर्माण पर अंकुश लगाकर वर्ष-दर-वर्ष बढते तापमान और घटती बर्फबारी पर नियंत्राण किया जाये, तभी पर्यटन का भविष्य सुरक्षित माना जा सकता है।
पर्यटक यहाँ की मनमोहक हरियाली से सर्वाधिक प्रभावित है। प्रयास इस बात के लिए किये जाएँ कि यहाँ की हरियाली नष्ट न होने पाए और वातावरण में शुद्धता बनी रहे। हम वैध-अवैध निर्माण और विकास के नाम पर प्राकृतिक वातावरण नष्ट कर रहे हैं और कंकरीट के जंगल खड़े कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार एक पेड़ वर्षभर में 650 पोंड आॅक्सीजन देता है, जो दो व्यक्तियों को वर्षभर के लिए पर्याप्त होती है। शिमला-कालका फोरलेन के लिए 25000 पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलायी जा रही है। साथ ही शिमला-मनाली फोरलेन का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। साथ ही बहुत सारे राजमार्गों की घोषणा करके सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही हैं। लेकिन अन्जाम क्या होगा? कंकरीट के जंगल खड़े करने के बजाय हरियाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अन्यथा 100 वर्षों बाद पर्यटकों को फोटो खींचने के लिए भी पेड़ एवं हरियाली ढूँढनी पड़ेगी।
यूनेस्को विश्व हेरिटेज कालका-शिमला रेलवे की स्थिति ब्रिटिश काल से लगभग वही है। वही पुराने स्टेशन, वही सुरंगें और वही पुल। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भी कोई प्रचार प्रसार नहीं, इसीलिए उनको इसका ज्यादा ज्ञान भी नहीं है। फोरलेन और राजमार्गों में हम बहुत ज्यादा उत्सुक हैं, जिनको बनाने के लिए जंगल के जंगल और साफ किये जा रहे हैं। रेलवे एवं हवाई अड्डों को विकसित किया जाये तो निश्चित रूप से पर्यटकों की कुछ नया मिलेगा, साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह उचित होगा।
नित्य हजारों की संख्या में निजी वाहन प्रदेश में पहुँच रहे हैं। जिनको शिमला जैसे बड़े स्थलों में पार्किंग की समस्या से जूझना पड़ रहा है। पर्यटक वाहनों को सुविधा देने के बजाय सरकार ‘नो-पार्किंग’ का चालान काटकर यातायात व्यवस्था सुधार रही है और अपना जेब भर रही है, जो कि सर्वथा अनुचित है। इससे पर्यटकों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अगर सडकों पर अवैध अतिक्रमण सम्पूर्ण रूप हटा दिया जाये तो वाहनों के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो सकता है और पार्किंग की समस्या संपूर्ण रूप से हल हो सकती है।
अनगिनत वाहनों की संख्या को नियंत्रित कर, पर्यटन विभाग की ओर से दो या तीन दिन के पैकज के हिसाब से सार्वजनिक परिवहन जैसे बसें व टैक्सी उपलब्ध करवानी चाहिए। इससे सडकों पर वाहनों को संख्या भी नियंत्रित होगी साथ ही पर्यटन भी किफायती होगा।
पुराने और उबाऊ पड़ चुके पर्यटन स्थलों के अलावा भी दूर दराज के क्षेत्रों में नए स्थान जैसे बाग-बगीचे, चिल्ड्रनस पार्क, वाटर स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग मार्ग, हरे-भरे रिसाॅर्ट्स, फोटोग्राफी साइट्स, प्राचीन धरोहर आदि को विकसित जायें तो पर्यटकों को कुछ नया आकर्षण मिलेगा और वो बार-बार आने को लालायित रहेगा
हिमालय की गोद में बसे होने के कारण प्रदेश में ‘जीओ-टूरिज्म’ अर्थात ‘भू-पर्यटन’ की अपार संभावनाएँ बनती हैं। इस पर कुछ प्रयास भी हुए पर सिरे न चढ़ सके। ‘भू-पर्यटन’ लिए ऐसे स्थान चयनित करने होते हैं, जो भू-वैज्ञानिक और भौगोलिक दृष्टि से आकर्षक हों। जैसे चूनापत्थर की प्राकृतिक गुफाएं एवं उनमे पाई जाने वाली स्टेलेकटाईट एवं स्टेलेगमाईट स्थालाकृतियाँ, प्राकृतिक सन्तुलन बनाती विशाल चट्टानें, प्राकृतिक सुरंगें, धरती से फूटते झरने आदि। ऐसे स्थान यदि पर्यटन के लिए विकसित किया जाये तो निश्चित की यह पर्यटकों के एक विशेष वर्ग के लिए अति रोचक प्रतीत होंगे।
पर्यटन के लिए एक ऐसा स्वस्थ वातावरण तैयार हो कि पर्यटक को ग्राहक की दृष्टि से न देखकर अतिथि के रूप में देखा जाये।
ईश्वर के प्राकृतिक सौन्दर्य रुपी इस उपहार को अगर हम समय रहते नहीं सहेज पाए तो दूरगामी परिणाम अत्यंत भयानक होंगे। समय के साथ अगर हिमाचल पर्यटन को विकसित न किया गया तो हिमाचल भी प्रदूषण, अतिक्रमण, गर्मी, सूखा, अनावृष्टि आदि का शिकार हो जायेगा एवं पर्यटक यहाँ से मुंह मोड़ने लगेगा। जिसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव यहाँ के पर्यटन व्यवसाय आर्थिक व्यवस्था पर निश्चत रूप से पड़ेगा।
शिमला/शैल। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार का अपने गठन के पहले दिन से लेकर ही मोदी का केन्द्र सरकार से टकराव चल रहा है। केन्द्र सरकार केजरीवाल को अराजकतावादी तक करार दे चुकी है। आम आदमी पार्टी ने भी मोदी सरकार को खुली चुनौती दे रखी है कि वह हटने वाली नहीं है। दोनों सरकारों के बीच चल रहा यह टकराव आज आम आदमी में चर्चा का केन्द्र बन चुका है। यह टकराव मोदी की भाजपा और केजरीवाल की आप पर क्या असर डालेगा यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पायेगा। लेकिन इस टकराव से देश को लाभ होगा यह
तय है। क्योंकि इस समय देश एक राजनीतिक बदलाव के दौर में गुजर रहा है। देश में व्यवस्था के खिलाफ पहली बार स्व. जय प्रकाश नारायण की समग्रक्रान्ति से जो स्वर उभरे थे उन्हे आज एक स्पष्ट दिशा-दशा मिलने के संकेत झलकते नजर आ रहे हैं। यहां तक पहुंचने के लिये देश नेे जनता पाटी्र्र के टूटने से लेकर स्व. वी.पी.सिंह की भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली लड़ाई उसके बाद मण्डल बनाम कमंडल और फिर रामदेव तथा अन्ना आन्दोलन का एक लम्बा दौर देखा है। इसमें किसकी क्या भूमिका रही है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह रहा है कि हर बार कांग्रेस के समस्त विकल्प की तलाश मुख्य बिन्दु रहा है। क्योंकि बहुभाषी और बहुधर्मी देश की संस्कृति ने वाम विचारधारा तथा आर एस एस की हिन्दु अवधारणा को कभी विकल्प के रूप में नहीं स्वीकारा है। यदि ऐसा होता तो वाम दल केरल, बंगाल और त्रिपुरा से निकलकर केन्द्र तक में स्वीकार्य हो चुके होते। संघ भी 1967 में पहली बार जन संघ को सबिं( सरकारों में कुछ राज्यों में मिली भागीदारी के बाद राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता बना चुका होता।
केजरीवाल और मोदी के टकराव को इस बड़े परिप्रेक्ष में देखना होगा। मोदी और भाजपा का मूल आधार संघ है। संघ अपने गठन से लेकर आज तक हिन्दु अवधारणा पर टिका हुआ है। हिन्दु अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिये समान नागरिक संहिता, धारा 370 और राम मन्दिर निर्माण जैसे मुद्दे इसका मुख्य आधार रहें हैं। आज केन्द्र में 282 सीटें जीतकर संघ का आर्थिक चिन्तन भी भामाशाही अवधारणा पर टिका है। इसके लिये उसे अदानी-अंबानी जैसे भामाशाह पोषित करना भी अनिवार्यता है। संघ-भाजपा को अपने हिन्दु ऐजैण्डे को आगे बढ़ाने में कांग्रेस और वामदलों से कोई चुनौती नहीं है। क्योंकि कांग्रेस को भ्रष्टाचारी छवि के आरोपों से बाहर निकलने में बहुत वक्त लगेगा। वामदल भी बंगाल खोने के बाद बचाव की मुद्रा में चल रहे हैं। ऐसे में केवल केजरीवाल की आप ही रह जाती है जिससे मोदी-भाजपा को खतरा हो सकता हेै।
भाजपा को केजरीवाल से खतरा क्यों है? इस सवाल को समझने के लिये थोड़ा सा अन्ना आन्दोलन को समझना होगा। अन्ना आन्दोलन संघ का प्रायोजित ऐजैण्डा था यह स्पष्ट हो चुका है। केजरीवाल और आप भी इसी आन्दोलन का प्रतिफल है। आज संयोगवंश केजरीवाल और अन्ना के रास्ते अलग हो चुके हंै। केजरीवाल तो आप बनाकर भाजपा-कांग्रेस का विकल्प बनते नजर आ रहे हंै। लेकिन अन्ना अपने आन्दोलन का फिर से आह्वान कर पाने की स्थिति में नहीं है। केजरीवाल पहले कभी राजनीतिक सत्ता में नही रहे हंै और आज भी अपने पास कोई विभाग न रखकर सत्ता के विकेन्द्रीकरण के ऐजैण्डे को मूर्त रूप दे दिया है। आज केजरीवाल और मोदी सरकार में दिल्ली सरकार के अधिकारों की व्याख्या और सीमा ही टकराव का केन्द्र बिन्दु है। इस मुद्दे को लेकर आप सरकार सर्वोच्च न्यायालय में पहंुच चुकी है और सर्वोच्च में दो न्यायधीश इस इस मुद्दे की सुनवाई से बिना कारण बताये पीछे हट गये हैं। इससे अधिकारों के इस मामले में ठोस आधार का होना स्पष्ट होता है। इस परिदृश्य में केजरीवाल और आप का पक्ष जायज नज़र आता है। इससे राष्ट्रीय स्तर पर केजरीवाल की स्वीकार्यता बनती नजर आ रही है। क्योंकि कांग्रेस-भाजपा और वामदलों को छोड़कर बाकी दल अपने हर आयोजन में केजरीवाल को आमन्त्रिात करने लग गये हैं। ऐसे में केजरीवाल को भी कुछ मामलांे में विशेष सावधानी से चलना होगा। उनके राजनीतिक और प्रशासनिक सहयोगीयों पर लगने वाले भ्रष्टाचार के हर आरोप पर पूरी सावधानी से कदम उठाने होगें। क्योंकि जब उनके पहले कानून मंत्राी पर आरोप लगे थे तब शुरू में उन्होंने उसका बचाव किया लेकिन जैसे ही पूरे तथ्यों की जानकारी मिली तो अपना स्टैण्ड बदला और जनता को स्पष्ट बताया भी। आज उनके प्रधान सविच की गिरफ्तारी के मामले में भी देश उनसे वैसी ही स्पष्टता की उम्मीद रखता है। इसी के साथ आगे संगठन को बढ़ाने के लिये जहां भी इकाई गठित की जायेगी वहां पदाधिकारियो का चयन करते समय पर्याप्त सावधानियां बरतनी होंगी।