Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय विश्वास और एकजुटता का अर्थ

ShareThis for Joomla!

विश्वास और एकजुटता का अर्थ

 शिमला। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान और सेब व्यापारी चुन्नी लाल की प्रर्वतन निदेशालय तथा सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री ने दूसरे ही दिन अपने मन्त्री मण्डल की बैठक बुलाई और इस बैठक में मन्त्री मण्डल ने एक संक्षिप्त प्रस्ताव पारित करके मुख्यमन्त्री में पूर्ण विश्वास प्रकट करके एक जुटता दिखाई है। जब मुख्यमन्त्री के आवास पर छापामारी हुई थी तब भी ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया गया था। कांग्रेस और मुख्यमन्त्री ने इस गिरफ्तारी के कदम को केन्द्र सरकार की ज्यादती करार दिया है। मुख्यमन्त्री ने एक बार फिर इसके लिये केन्द्रिय वित्त मन्त्री अरूण जेटली और धूमल पुत्र सांसद अनुराग ठाकुर को कोसा है। वीरभद्र अपने खिलाफ हो रही कारवाई के लिये शुरू से ही अरूण जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर को कोसते आ रहे हंै। वीरभद्र के इस बार-बार कोसने और कांग्रेस तथा सरकार द्वारा उनके साथ हर बार एक जुटता और विश्वास दिखाने से कुछ ऐसे सवाल खडे़ हो जाते हंै जिनसे पूरी सरकार और स्वयं वीरभद्र सवालों में घिर जाते हंै। प्रदेश की पूरी जनता इन आरोपों और प्रत्यारोपों पर पूरी गंभीरता से नजर बनाये हुए है।
वीरभद्र के पूरे प्रकरण पर यदि नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट हो जाता है कि जब वीरभद्र सिंह से इस्पात मन्त्रालय लेकर लघु उद्योग मन्त्रालय दिया गया था तब वीबीएस और ए एस जैसे सांकेतिक नाम चर्चा में आये थे। उसके बाद 2013 में प्रशान्त भूषण ने इस मामले को आगे बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप 2015 में सीबीआई और ईडी ने मामले दर्ज किये जो आज अटैैचमैन्ट तथा गिरफ्तारीयों तक पहुंच गये। लेकिन इसी पूरे समय में वीरभद्र सरकार ने एच पी सी ए के खिलाफ मामले बनाये जिनमें आज तक कोई परिणाम सामने नहीं आया। सारे मामलों पर अदालत में फजीहत जैसी स्थिति बनी है। अरूण जेटली के खिलाफ वीरभद्र ने मानहानि का मामला दायर किया जिसे वापिस ले लिया। धूमल की संपतियों को लेकर मार्च 2013 से वीरभद्र सरकार के पास शिकायत लंबित है। वीरभद्र इस मामले में कई बार जांच पूरी होकर एफआईआर दर्ज किये जाने के दावे का चुके हैं। लेकिन यह सारे दावे हवाई सिद्ध हुए हैं क्योंकि आज तक कोई मामला दर्ज नहीं हो पाया है। धूमल के खिलाफ शुरू किये गये हर मामले में सरकार की फजीहत ही हुई है।
इस पूरी वस्तुस्थिति को सामने रखकर सामान्य सवाल खड़ा होता है कि क्या वीरभद्र सरकार जानबूझ कर धूमल के खिलाफ आधारहीन मामले खडे़ कर रही थी? या इन मामलों का आधार बनाकर धूमल पर दवाब बनाने का प्रयास किया जा रहा था कि वह केन्द्र में वीरभद्र की मदद करें? यदि धूमल-अनुराग के खिलाफ सारी शिकायतें जायज थी तो फिर यह मामले आगे क्यों नहीं बढे़? क्या वीरभद्र के मन्त्री या अधिकारी धूमल की मदद कर रहे थे जिसके चलते इन मामलों के कोई परिणाम सामने नही आये। क्योंकि एक तरफ मामले बनाना और उनके असफल होने का कड़वा सच है तो दूसरी ओर वीरभद्र सिंह द्वारा जेटली, धूमल और अनुराग को लगातार कोसने का सच है। यह दोनांे चीजें एक ही वक्त में सही नहीं हो सकती। यदि यह सब सच है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि वीरभद्र की अपने शासन और प्रशासन पर कोई पकड़ नही रह गयी है। इस हकीकत को सामने रखते हुए इस मन्त्रीमण्डल और पार्टी के विश्वास तथा एकजुटा दिखाने का कोई अर्थ नही रह जाता है। क्योंकि यह लोग तो तभी तक मन्त्री हैं जब तक मुख्यमन्त्री का इन पर विश्वास बना हुआ है। विश्वास का पैमाना तो प्रदेश की जनता है। क्या यह आप पर पुनःविश्वास व्यक्त करेगी इसका पता तो जनता के बीच जाकर ही लगेगा। क्योंकि दोनों चीजें एक साथ नही हो सकती कि आप धूमल अनुराग को कोसने का काम भी जारी रखें और उनके खिलाफ बने मामले भी असफल होते जायंे तथा आप जनता से यह उम्मीद करे कि वह आप पर विश्वास करें।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search