Tuesday, 16 December 2025
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प्रशंसा और सहयोग के हकदार है मोदी

प्रधानमन्त्री मोदी ने एक साहसिक फैंसला लेकर एक हजार और पांच सौ के नोटों की कानूनी वैधता समाप्त किया जाने की घोषणा करके काले धन के खिलाफ एक एक प्रभावी कदम उठाया है। इसके लिये मोदी और उनकी टीम बधाई की पात्र है। इस फैंसले के लिये देश की जनता उन्हे लम्बे समय तक याद रखेगी इसमें कोई दो राय नही हो सकती क्योंकि देश के अन्दर एक लम्बे वक्त से काले धन को लेकर बहस चली आ रही थी। कई बार काले धन के आंकडे उछाले जाते रहे हैं। स्वामी रामदेव ने काले धन को लेकर आन्दोलन तक छेड़ने का प्रयास किया था। 2014 के लोक सभा चुनावों से पूर्व मोदी ने वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आते है तो सौ दिन के भीतर देश के बाहर रखे गये धन को वापिस लाया जायेगा। इस धन के वापिस आने से प्रत्येक भारतीय के खाते में पन्द्रह लाख आने का दावा किया था। लेकिन इस वायदे को पूरा करना आसान नहीं था। विदेशों से काला धन वापिस लाने के लिये एक लम्बी और जटिल कानूनी प्रक्रिया वांछित थी। इस पक्रिया पर यू पी ए सरकार के समय में भी कदम उठाये गये थे अब वित्त मन्त्री अरूण जेटली ने इस प्रक्रिया को और आगे बढ़ाया है और कई देशों से इस संबंध में समझौते भी हस्ताक्षरित हो चुके हैं। लेकिन इस प्रक्रिया के तहत वांछित परिणाम आने में समय लगना स्वभाविक है। इस समय लगने की सच्चाई को जानने समझने के बावजूद प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख आने के दावे वायदे को मोदी सरकार की आलोचना और असफलता का हथियार बनाया गया।
जहां एक और काला धन समस्या थी वहीं दूसरी और बढ़ती आंतकवादी घटनाएं चिंता का विषय बनती जा रही थी इस पर भी मोदी की आलोचना होनी शुरू हो गयी थी। सवाल किये जाने लगे थे कि 56 इंच का सीना अब कहां है इसका जवाब भी मोदी ने आतंकी बेस कैंपो पर सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से दिया। भले ही वन रैंक वन पैंशन का मुद्दा अभी पूरी तरह हल नहीं हो पाया है और पूर्व सैनिक रामकिशन की आत्महत्या के बाद इस पर राजनैतिक बवाल भी खड़ा हो गया है। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक और वन रैंक वन पैंशन को अलग - अलग करके देखना होगा। इसलिए हजार और पांच सौ के नोटों की कानूनी वैधता समाप्त करना तथा सर्जिकल स्ट्राइक पर मोदी प्रशंसा और सहयोग के हकदार हैं।
काला धन जितना देश के बाहर है उससे कहीं अधिक देश के भीतर हैं आज रियल इस्टेट और गोल्ड मार्किट में काला धन स्पष्ट देखा जा सकता है। क्योंकि कोई भी बिल्डर प्लैट/मकान /प्लाट की घोषित कीमत की सारी अदायगी चैक से नहीें लेता है और जो अदायगी चैक से नही होती है वह काला धन है। सारी घूसखोरी कालाधन है। सारा चुनाव काले धन के सिर पर लड़ा जाता है। ठेकेदारी में काले धन की बड़ी भूमिका है। कुल मिलाकर आज कालाधन दैनिक क्रिया का एक अभिन्न अंग बन गया है। आंतकवाद काले धन के बिना एक दिन नहीं टिक सकता। नशे का सारा कारोबार कालेधन का ही पर्याय है। कोई भी गैर कानूनी काम काले धन के बिना नहीं चल सकता। बेरोजगारी, मंहगाई और आंतकवाद तथा भ्रष्टाचार का आधार यह काला धन ही है। इस काले धन से निपटने के लिये करंसी में इस तरह का फैंसला लिये जाने के अतिरिक्त और कोई कारगार विकल्प ही नही। क्योंकि कोई भी धन तभी काला धन बनता है जब उसका स्त्रोत वैध न हो। ऐसे धन का सबसे ज्यादा बेनामी संपत्तियों में होता है। मोदी सरकार ने इसी वर्ष कालेधन और बेनामी संपत्तियों को वैध करने के लिये आयकर विभाग के माध्यम से मुहिम चलाई। अब इस योजना के समाप्त होते ही हजार और पांच सौ के नोटों का चलन रोक दिया। सरकार के इन दोनो कदमों के एक साथ आने से सरकार की नीयत पर सन्देह करने का कोई कारण नहीं रह जाता है। हर आदमी सरकार के इस कदम की सराहना कर रहा है। भले ही उसे पहले दिनों व्यवहारिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। इस कदम के बाद चुनावों को भी कालेधन से मुक्त किये जाने की योजना आनी चाहिए। यदि चुनाव कालेधन से मुक्त हो जाये तो लगभग सारी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी यह तय है।

लोकतन्त्र में यह नहीं होता

शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने ‘वन रैंक वन पैन्शन’ योजना जिस ढंग से लागू की है उससे देश के पूर्व सैनिक पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं है। इसके लिये उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से तेज कर दिया है। वह फिर से जन्तर-मन्तर पर धरने प्रदर्शन पर बैठ गये हैं। इस योजना के लागू करने मे क्या त्राटियां है। इसको लेकर सरकार और पूर्व सैनिकों में मतभेद हो सकते हैं। प्रशासनिक तन्त्र के सामने भी इस संद्धर्भ में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। जिन्हें सुलझाने में समय लग सकता है। लेकिन यह तो पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि अभी तक सारे पूर्व सैनिकों को पैन्शन के बकाये की पहली किश्त भी नहीं मिल सकी है। जिस पूर्व सैनिक राम किश्न ग्रेवाल ने इस पर आत्महत्या कर ली उसे भी पहली किश्त तक नही मिल पायी है। आज पूर्व सैनिकों की तर्ज पर अर्धसैनिक बल भी अपने लिये उन्ही के समान सारे लाभ मिलने की मांग लेकर आ गये हैं। हो सकता है कल कोई और वर्ग भी ऐसी ही मांग लेकर सामने आ जाये। पूर्व सैनिक पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय वन रैक वन पैन्शन की मांग करते आ रहे हैं। बल्कि इसी मांग के कारण पूर्व सैनिकों को सेना से वापसी के बाद सिविल में भी नौकरीपाने का प्रावधान किया गया और इस नौकरी मे सेना में की हुई नौकरी को भी वरियता के लिये शामिल कर लिया गया। आज इस नौकरी पाने और वरियता भी कायम रहने के सरकार के दोहरे लाभ के नियम को सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया है। लेकिन सरकार पूर्व सैनिकों के प्रति सदैव संवेदनशील और गंभीर रही है इसमें भी कोई दो राय नही है।
परन्तु आज जो पूर्व सैनिक सन्तुष्ट नही हैं इसके लिये लोकसभा चुनावों से पहले उनसे किया गया वायदा है। यह वायदा भी स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। भले ही वह उस समय प्रधानमंत्री नही थे लेकिन आज प्रधान मन्त्री हैं इसलिये चुनावों से पूर्व किये गये हर वायदे को तय समय के भीतर पूरा करने की जिम्मेदारी भी उन्ही की है। फिर वह रह मंच पर यह दावा भी करते आ रहे हैं कि उन्होने वन रैंक वन पैन्शन योजना को पूरी तरह लागू कर दिया है जबकि पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वर्ग आज भी इसके लिये आन्दोलन की राह पर है। ऐसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि आपके राजनीतिक विरोधीयों को आपके दावों में कहीं भी कोई भी अपवाद सामने मिलता है तो उस पर विरोध के स्वर तो मुखर होंगे ही। आज रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या सरकार और प्रधान मन्त्रा के दावों के विपरीत एक ऐसा अपवाद बन कर सामने आयी जिसे नजर अन्दाज कर पाना संभव ही नही है। फिर इस समय भारत पाक सीमा पर जिस तरह से तनाव चल रहा है उससे ही सैनिक और पूर्व सैनिक सबके लिये एक चर्चा और चिन्ता का विषय बन चुके हैं। क्योकि सरकार ने भी सर्जिकल स्टा्रईक को जिस तरह से एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देश के सामने प्रचारित किया उसको लेकर भी प्रतिक्रियाएं आ गयी थी। सरकार पर सेना की उपलब्धि पर राजनीति करने का आरोप लगा। सरकार सर्जिकल स्टा्रईक को विधानसभा चुनावों में लाभ लेने का प्रयास कर रही है यह भी आरोप लगा। सरकार ने इन आरोपों का खण्डन करते हुए विपक्ष पर ओच्छी राजनीतिक करने का आरोप लगाया।
इस परिदृश्य में जब एक पूर्व सैनिक आत्महत्या करेगा और उसका सुसाईट नोट तथा परिजनों से हुई अन्तिम बातचीत का रिकार्ड सामने आ जायेगा तो स्वाभाविक है कि विपक्ष इस मुद्दे को हाथ से नहीं जाने देगा। विपक्ष ने ऐसा ही किया राहूल के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला। आम आदमी पार्टी और केन्द्र में तो वैसे ही अच्छे संबध नहीं है फिर जब आम आदमी पार्टी की किसान रैली में राज्यस्थान के एक किसान ने आत्महत्या की थी तो उस पर भाजपा ने भी ऐसी ही राजनीति की थी। अब आप ने भी भाजपा को उसी की भाषा में जबाव दिया है। लेकिन इसमें दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से सैनिक के परिजनों से दुर्व्यवहार किया है उसको किसी भी तर्क से जायज़ नही ठहराया जा सकता। इस पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर मोदी के मन्त्री जनरल वी.के.सिंह और हरियाणा के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर ने ब्यान दिये है। उससे निश्चित रूप से सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठेंगे ही। दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से राहूल गांधी और अरविन्द केजरीवाल के साथ व्यवहार किया है। उसकी अपेक्षा लोकतन्त्र में किसी सरकार से नही की जा सकती। विरोध के स्वरों को पुलिस बल की ताकत से नही दबाया जा सकता है। सरकार के इस आचरण से जनता में यह सन्देश गया है कि सरकार अपनी असफलताओं को छुपाने के लिये बल प्रयोग का सहारा ले रही है और लोकतन्त्र में यह सब अब स्वीकार्य नही हो सकता। इसी के साथ देश की राजनीतिक ज्मात को यह भी समझना होगा कि चुनावी लाभ के लिये घोषनाएं और दावे करने से पूर्व उन्हें व्यवहारिक पक्षों को सामने रखना होगा। अन्यथा हर दावे का अन्तिम परिणाम इसी तरह का रहेगा और वह लोकतन्त्र के लिये घातक सिद्ध होगा ही।

लोकतन्त्र में यह नहीं होता

शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने ‘वन रैंक वन पैन्शन’ योजना जिस ढंग से लागू की है उससे देश के पूर्व सैनिक पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं है। इसके लिये उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से तेज कर दिया है। वह फिर से जन्तर-मन्तर पर धरने प्रदर्शन पर बैठ गये हैं। इस योजना के लागू करने मे क्या त्राटियां है। इसको लेकर सरकार और पूर्व सैनिकों में मतभेद हो सकते हैं। प्रशासनिक तन्त्रा के सामने भी इस संद्धर्भ में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। जिन्हें सुलझाने में समय लग सकता है। लेकिन यह तो पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि अभी तक सारे पूर्व सैनिकों को पैन्शन के बकाये की पहली किश्त भी नहीं मिल सकी है। जिस पूर्व सैनिक राम किश्न ग्रेवाल ने इस पर आत्महत्या कर ली उसे भी पहली किश्त तक नही मिल पायी है। आज पूर्व सैनिकों की तर्ज पर अर्धसैनिक बल भी अपने लिये उन्ही के समान सारे लाभ मिलने की मांग लेकर आ गये हैं। हो सकता है कल कोई और वर्ग भी ऐसी ही मांग लेकर सामने आ जाये। पूर्व सैनिक पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय वन रैक वन पैन्शन की मांग करते आ रहे हैं। बल्कि इसी मांग के कारण पूर्व सैनिकों को सेना से वापसी के बाद सिविल में भी नौकरीपाने का प्रावधान किया गया और इस नौकरी मे सेना में की हुई नौकरी को भी वरियता के लिये शामिल कर लिया गया। आज इस नौकरी पाने और वरियता भी कायम रहने के सरकार के दोहरे लाभ के नियम को सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया है। लेकिन सरकार पूर्व सैनिकों के प्रति सदैव संवेदनशील और गंभीर रही है इसमें भी कोई दो राय नही है।
परन्तु आज जो पूर्व सैनिक सन्तुष्ट नही हैं इसके लिये लोकसभा चुनावों से पहले उनसे किया गया वायदा है। यह वायदा भी स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। भले ही वह उस समय प्रधानमंत्री नही थे लेकिन आज प्रधान मन्त्री हैं इसलिये चुनावों से पूर्व किये गये हर वायदे को तय समय के भीतर पूरा करने की जिम्मेदारी भी उन्ही की है। फिर वह रह मंच पर यह दावा भी करते आ रहे हैं कि उन्होने वन रैंक वन पैन्शन योजना को पूरी तरह लागू कर दिया है जबकि पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वर्ग आज भी इसके लिये आन्दोलन की राह पर है। ऐसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि आपके राजनीतिक विरोधीयों को आपके दावों में कहीं भी कोई भी अपवाद सामने मिलता है तो उस पर विरोध के स्वर तो मुखर होंगे ही। आज रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या सरकार और प्रधान मन्त्रा के दावों के विपरीत एक ऐसा अपवाद बन कर सामने आयी जिसे नजर अन्दाज कर पाना संभव ही नही है। फिर इस समय भारत पाक सीमा पर जिस तरह से तनाव चल रहा है उससे ही सैनिक और पूर्व सैनिक सबके लिये एक चर्चा और चिन्ता का विषय बन चुके हैं। क्योकि सरकार ने भी सर्जिकल स्टा्रईक को जिस तरह से एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देश के सामने प्रचारित किया उसको लेकर भी प्रतिक्रियाएं आ गयी थी। सरकार पर सेना की उपलब्धि पर राजनीति करने का आरोप लगा। सरकार सर्जिकल स्टा्रईक को विधानसभा चुनावों में लाभ लेने का प्रयास कर रही है यह भी आरोप लगा। सरकार ने इन आरोपों का खण्डन करते हुए विपक्ष पर ओच्छी राजनीतिक करने का आरोप लगाया।
इस परिदृश्य में जब एक पूर्व सैनिक आत्महत्या करेगा और उसका सुसाईट नोट तथा परिजनों से हुई अन्तिम बातचीत का रिकार्ड सामने आ जायेगा तो स्वाभाविक है कि विपक्ष इस मुद्दे को हाथ से नहीं जाने देगा। विपक्ष ने ऐसा ही किया राहूल के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला। आम आदमी पार्टी और केन्द्र में तो वैसे ही अच्छे संबध नहीं है फिर जब आम आदमी पार्टी की किसान रैली में राज्यस्थान के एक किसान ने आत्महत्या की थी तो उस पर भाजपा ने भी ऐसी ही राजनीति की थी। अब आप ने भी भाजपा को उसी की भाषा में जबाव दिया है। लेकिन इसमें दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से सैनिक के परिजनों से दुर्व्यवहार किया है उसको किसी भी तर्क से जायज़ नही ठहराया जा सकता। इस पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर मोदी के मन्त्री जनरल वी.के.सिंह और हरियाणा के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर ने ब्यान दिये है। उससे निश्चित रूप से सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठेंगे ही। दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से राहूल गांधी और अरविन्द केजरीवाल के साथ व्यवहार किया है। उसकी अपेक्षा लोकतन्त्र में किसी सरकार से नही की जा सकती। विरोध के स्वरों को पुलिस बल की ताकत से नही दबाया जा सकता है। सरकार के इस आचरण से जनता में यह सन्देश गया है कि सरकार अपनी असफलताओं को छुपाने के लिये बल प्रयोग का सहारा ले रही है और लोकतन्त्र में यह सब अब स्वीकार्य नही हो सकता। इसी के साथ देश की राजनीतिक ज्मात को यह भी समझना होगा कि चुनावी लाभ के लिये घोषनाएं और दावे करने से पूर्व उन्हें व्यवहारिक पक्षों को सामने रखना होगा। अन्यथा हर दावे का अन्तिम परिणाम इसी तरह का रहेगा और वह लोकतन्त्र के लिये घातक सिद्ध होगा ही।

कर्मचारी भर्ती पर केन्द्र के फैसले पर अमल क्यो नही

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले कुछ अरसे से मन्त्रीमण्डल की हर बैठक मे विभिन्न सरकारी विभागों में खाली चले आ रहे पदों को भरने का निर्णय लेने का क्रम शुरू किया है। इस क्रम में अब तक हजारों की संख्या में खाली पदो को भरने के आदेश जारी हो चुके हैं। खाली पदों के अतिरिक्त हजारों की संख्या में नये पदों का सृजन भी किया गया है। सरकार में किसी भी पद को भरने के लिये एक तय प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें राज्य का लोक सेवा आयोग प्रथम और द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित पदों को भरने की जिम्मेदारी निभाता है। गैर राजपत्रित पदों को भरने के लिये अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड अधिकृत है। इन दोनां अदारों के अतिरिक्त और कोई कर्मचारी भर्ती के लिये अधिकृत नहीं है। इन अदारों से हटकर केवल आऊट सोर्सिंग के नाम पर ही भर्ती की जा सकती है और कई विभागों में यह आऊट सोर्सिंग चल रही है। तय प्रक्रिया के तहत किसी भी पद को भरने के लिये कम से कम चार से पांच माह तक का समय लग जाता है। जहां कहीं पहले लिखित परीक्षा और फिर साक्षात्कार की प्रक्रिया रहेगी वहां पर यह समय एक वर्ष तक का भी हो सकता है। इस प्रक्रिया से अनुमान लगाया जा सकता है कि जो पद अब सृजित और विज्ञापित होंगे उन्हें भरने के लिये कितना समय लग जायेगा।
हिमाचल में रोजगार के नाम पर सबसे बड़ा अदारा सरकार और सरकारी नौकरी ही है। सरकारी नौकरी में भर्ती के लिये प्रदेश में 1993 से 1998 के बीच चिटों पर भर्ती का कांड हो चुका है। इसमें सारी तय प्रक्रियाओं को अंगूठा दिखाते हुए हजारों की संख्या में चिटों पर भर्तीयां की गई थी। इन भर्तीयों को लेकर बिठाई गयी जांच रिपोर्टो पर ईमानदारी से कारवाई की जाती तो यहां पर हरियाणा के ओमप्रकाश चौटाला की तर्ज पर कई लोगों की गिरफ्तारी हो जाती। चिटों पर भर्ती कांड के बाद हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का कांड हुआ जिसमें अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर गिरफ्तारीयां हुई है। इन दोनां प्रकरणों से यह प्रमाणित होता है कि हिमाचल में रोजगार का सबसे बड़ा साधन सरकार ही है और उसमें हर बार घपला होने की संभावना बराबर बनी रहती है। प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों का आंकडा लाखों में है और इसी कारण जिन क्लास फोर के पदों के लिये वांच्छित योग्यता मैट्रिक या प्लस टू रहती हैं वहां पर इनके लिये एम ए और पी एच डी तक के आवेदन आ रहे हैं। उद्योग विभाग में तो अधिकारिक तौर पर यह सामने आ चुका है कि क्लास फोर के लिये बी ए, एम ए और पीएचडी के लिये अधिमान देने के लिये अलग अंक रखे गये थे। पटवारियों और सहकारी बैंक की परीक्षाओं पर प्रश्न चिन्ह लग चुके हैं।
प्रदेश में 2017 में विधान सभा चुनाव होने है। लेकिन यह चुनाव तय समय से पहले भी हो सकते है इसकी संभावनाएं भी बराबर बनी हुई हैं बल्कि जिस ढंग से मुख्यमन्त्री ने पिछले दिनों प्रदेश का तूफानी दौरा किया है और सरकार की उपलब्धियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया उससे इन अटकलों को और बल मिला है। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि इस समय जो नौकरियों का पिटारा खोला गया है वह केवल विधानसभा चुनावों को सामने रखकर ही किया जा रहा है। इससे सरकार की नीयत और नीति को लेकर भी यह सवाल उठते है कि इस समय हजारों की संख्या में जो पदों को भरने की स्थिति आयी है क्या यह पद अभी खाली हुए या पिछले तीन वर्षो से खाली चले आ रहे थे? जो पद अब सृजित किये गये हैं उनके बिना पहले कैसे काम चल रहा था? इसलिये इन पदों के भरे जाने पर अभी भी सन्देह है क्योंकि यदि किसी कारण से विधानसभा चुनावों की स्थिति आ जाती है तो यह सारी प्रक्रिया आचार संहिता के नाम पर रूक जायेगी। ऐसे में यदि सरकार इन पदों को भरने के लिये गंभीर और ईमानदार है तो तुरन्त प्रभाव से केन्द्र की तर्ज पर तीसरी और चौथी श्रेणी के पदों को भरने के लिये परीक्षा और साक्षाकार को समाप्त करके केवल शैक्षणिक योग्यता के अंको के आधार पर ही चयन किया जाना चाहिये। प्रदेश सरकार केन्द्र के इस फैंसले को अपनाने से टाल मटोल करती आ रही है और इसी से उसकी नीयत पर सन्देह पैदा हो जाता है।

मोदी ने मांगा 72 हजार करोड़ का हिसाब

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रदेश की तीन जलवि़द्युत परियोजनाओं के लोकार्पण अवसर पर आयोजित रैली एक सफल रैली रही है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। यह रैली प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का सफल संकेत मानी जा सकती है। क्योंकि इस रैली मे प्रधानमंत्री ने जो बुनियादी सवाल उछाले हैं वह आने वाले दिनों में निश्चित रूप से बहस का मुद्दा बनेगे? प्रधानमंत्री ने प्रदेश की जनता को बताया कि केन्द्र ने 15वें वित्तायोग की सिफारिशों के बाद हिमाचल को 72 हजार करोड़ रूपेय का आवंटन किया है। जबकि 14 वें वित्तायोग के तहत यह राशी केवल 21 हजार करोड़ थी। 14वां वित्त आयोग यूपीए सरकार के समय आया था और 15वां अब भाजपा सरकार के दौरान आया है। कांग्रेस के मुकाबले तीन गुणा से भी ज्यादा आंवटन प्रदेश को मिला है। मोदी ने स्पष्ट कहा है कि केन्द्र और प्रदेश की जनता राज्य सरकार से इस पैसे के खर्च का हिसाब मांगेगी। राज्य सरकार का खर्च कितना तर्क संगत होता है? उसमें कितनी फज़ूल खर्ची होती है? इन सवालों पर कभी बहस नही हुई है। क्योंकि जनता को इस तरह के तथ्यों की कभी सीधी जानकारी होती ही नहीं है। यह पहली बार है कि देश के प्रधान मंत्री ने जनता के सामने इतना बड़ा आंकड़ा रखा है। इस आंकड़े को झुठलाना या इस पर कोई और किन्तु/परन्तु उठाना राज्य सरकार के लिये संभव नही होगा।
केन्द्र ने राज्य को 61 राष्ट्रीय उच्च मार्ग दिये हैं इन उच्च मार्गों पर कार्य शुरू हो इसके लिये समय पर इनकी डीपीआर बनकर केन्द्र के पास पहुचनीं चाहिये। डीपीआर राज्य सरकार को बनानी है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पिछले दिनों यह कहा हैं कि डीपीआरज बनाने के लिये उन्हे पैसा नही दिया गया हैं अब मुख्यमंत्री का यह तर्क प्रधान मन्त्री के 72 हजार करोड़ के आंकड़े के नीचे इस कदर दब जायेगा कि
इससे उभरना राज्य सरकार के लिये संभव नहीं हि पायेगा क्योंकि प्रधानमन्त्री ने अपने संबोधन में जहां पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को विकास का पर्याय बताया वहीं वर वीरभद्र को नाम लिये बगैर ही भ्रष्टाचार का पर्याय करार दिया। प्रधान मन्त्री के इस संकेत से यह भी संदेश उभरता है कि केन्द्र के खिलाफ चल रही जांच के प्रति पूरी तरह गभीर है और सही समय पर उसके परिणाम सामने आयेंगें आज राज्य सरकार का कर्जभार लगातार बढ़ता जा रहा है। इस समय बहुत सारे विकास के कार्य पैसों के अभाव में बन्द हो चुके है। मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र में ठेकेदारों की पैमेन्टस रूकने के कारण ठेकेदारों ने काम बन्द कर दिये है। प्रदेश के पेयजल योजनाओं के लिये आये हजारों करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर न जाने के कारण केन्द्र ने इन योजनाओं के लिये अगले भुगतान के लिये शर्ते कड़ी कर दी है। पर्यटन में फर्जी उपयोगिता पर जांच प्रमाण पत्र सौंपे जाने को लेकर शिकायते केन्द्र के पास पहुंच चुकी हैं और इन शिकायतों पर जांच को रोक पाना संभव नही होगा क्योंकि आर टी आई के तहत इन शिकायतों पर हुई कारवाई की जानकारी भी मांग ली गयी है।

कैग रिपोर्टो में सरकार के खर्चो को लेकर एक लम्बे समय से सवाल उठते रहे हैं लेकिन यह सवाल कभी बहस का मुद्दा नही बन पाये है। आज प्रधान मन्त्री द्वारा एक खुले मंच से 72 हजार करोड़ के आंकड़े की जानकारी आम आदमी के बीच आने से स्वाभाविक रूप से इस पर बहस उठेगी ही। क्योंकि यह आम आदमी का पैसा है और उसे यह हक हासिल है कि वह इस खर्च का हिसाब मांगे। प्रधानमंत्री ने जनता से स्पष्ट कहा है कि वह इस खर्च का सरकार से हिसाब मांगे। मोदी के इस आंकडे़ के हथौड़े से राज्य सरकार का बचना अंसभव है।

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