शिमला/शैल। कसौली गोली कांड प्रकरण के बाद जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना को अदालत की अवमानना करार देते हुए इस पर अगली कारवाई शुरू की तब सरकार से चार बिन्दुओं पर रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन जब सरकार की ओर से रिपोर्ट सौंपने की बजाये अदालत की खण्डपीठ से ही आग्रह कर डाला कि वह इस मामले की सुनवाई ही न करे तब सरकार के वकील को अदालत की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था। इस प्रताड़ना के बाद पुनः अदालत ने सरकार को वांच्छित बिन्दुओं पर स्टे्टस रिपोर्ट का समय दिया है। सरकार के लिये यह स्थिति तब पैदा हुई जब एनजीटी के आदेशों की अनुपालना नही की गयी। स्मरणीय है कि कसौली के अवैध निर्माणों पर सबसे पहले एनजीटी का फैसला आया था। इस फैसले की सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गयी थी। जिसमें एनजीटी के फैसले को ही बहाल रखा गया था। इस तरह एनजीटी के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय की भी मोहर लग जाने के बाद जब इसकी अनुपालना के लिये कदम उठाये गये तब कसौली में गोली कांड घट गया। कसौली के बाद शिमला को लेकर भी पिछले साल दिसम्बर में एनजीटी का फैसला आ गया है। इस फैसले का रिव्यू एनजीटी में दायर किया गया था जो अस्वीकार हो चुका है। सरकार इस फैसले की अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर करने की बात कह चुकी है परन्तु अभी तक ऐसा हो नही पाया है।
इसी के साथ मुख्यमन्त्री कुल्लु में अवैध निर्माणों के दोषीयों को यह आश्वासन दे चुके हैं कि सरकार इस संबंध में एक कानून बनाकर इन निर्माणों को कानून के दायरे में लाकर राहत प्रदान करेगी। यहां यह गौरतलब है कि सरकार कानून लाकर इन अवैधताओं को राहत देने का प्रयास पहले भी कर चुकी है। लेकिन प्रदेश उच्च न्यायालय सरकार के इस प्रयास को निरस्त कर चुका है। फिर अब तो मामला सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में है और कसौली गोली कांड दो लोगों की जान ले चुका है इस परिदृश्य में सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से कोई राहत मिल पायेगी या नही यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यहां पर यह समझना भी आवश्यक है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से रिपोर्ट क्या मांगी है। सरकार से यह पूछा गया है कि अवैध निर्माणों को रोकने के लिये प्रदेशभर में क्या कदम उठाये गये हैं। इसके साथ यह भी पूछा है कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध निर्माण हुए हैं उनके नाम और पद अदालत को बताये जाएं। ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कारवाई की गई है यह भी बताया जाये। सरकार को इन बिन्दुओं पर अदालत में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करनी है। अवैध निर्माण आपदाओं को न्योता देते हैं। जिससे जान और माल दोनां का नुकसान होता है। यह चिन्ता एनजीटी ने अपने 165 पृष्ठों के आदेश में व्यक्त की है क्यांकि हिमाचल का अधिकांश हिस्सा तीव्र भूंकप जोन में आता है। शिमला को लेकर यह अध्ययन रिकार्ड पर आ चुके हैं कि भूकंप की स्थिति में शहर में 30,000 लोगों की जानें जा सकती हैं और एक चौथाई से अधिक मकान गिर सकते हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद सरकारों की और से इस पर कोई गंभीरता नही दिखाई गयी। उल्टे सरकार बार-बार रिटैन्शन पॉलिसी लाती रही जिस पर अदालत यहां तक कह चुकी है कि "It seems that ‘Retention Policy’ had been a tool deployed to regularize such illegal or unauthorized constructions." अदालत की ओर से गठित की गयी एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी ओर से स्पष्ट कहा है कि There should be no new retention policy to allow deviation from building bye-laws. Over the last twenty years, retention policies, guidelines, compounding rules have been introduced at least seven times for significant deviation from building bye-laws. This has not only allowed but also encouraged unsafe construction in Shimla. There should be a complete and permanent moratorium on allowing such deviations in the future. There should be no discretionary provisions with regards to application of building bye-laws. New buildings that do not follow that building bye-laws must be demolished at owner’s expense and neither the Government nor the legal institution should have any discretion for ratification for any such building. इस परिदृश्य में एक ओर से एनजीटी का आदेश और उस पर सर्वोच्च न्यायालय में रिपोर्ट सौंपने की बाध्यता तथा दूसरी ओर अवैधकर्ताओं को मुख्यमन्त्री द्वारा दिये गये राहत के आश्वासन के बीच सरकार उलझ गयी है। इसका कोई हल निकालने के लिये पिछले दिनों मुख्यमन्त्री की अध्यक्षता में शिमला योजना क्षेत्र की रिटैन्शन पॉलिसी पर एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस बैठक में टीसीपी सचिव प्रबोध सक्सेना ने रिटैन्शन पालिसी पर विस्तृत जानकारी रखी। बैठक में शिमला के विधायक, शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज, शहरी विकास मन्त्री सरवीण चौधरी, परिवहन एवम् वनमन्त्री गोविन्द ठाकुर, प्रधान सचिव विधि यशवन्त सिंह, प्रधान सचिव आेंकार शर्मा और महाधिवक्ता अशोक शर्मा, मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीकान्त बाल्दी, अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यटन राम सुभग तथा कुछ अन्य लोग शामिल हुए थे। सूत्रों के मुताबिक यह कमेटी कोई ठोस हल नही निकाल पायी है। बल्कि इस बार भारी वर्षा के कारण प्रदेश में जान माल का जो नुकसान हुआ है उससे स्थिति और जटिल हो गयी है। क्योंकि शिमला के जिन हिस्सों में नुकसान हुआ है उन हिस्सों में हुए अवैध निर्माणों का जिक्र एनजीटी के फैसले में प्रमुखता से आ चुका है। इसलिये माना जा रहा है कि जब सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह सारे तथ्य आयेंगे तब सरकार का पक्ष काफी कमजा़ेर हो जायेगा। एनजीटी के फैसले में साफ कहा गया है कि यह फैसला आने के बाद जो निर्माण चल रहे हैं और पूर्ण नही हुए हैं उन पर भी यह फैसला लागू होगा। इस फैसले के बाद तो कोई भी निर्माण अढ़ाई मंजिल से ज्यादा नही हो पायेगा यह स्पष्ट कहा गया है। एनजीटी का फैसला दिसम्बर 2017 में आ गया था। परन्तु इस फैसले के बाद मालरोड़, टूटीकण्डी और अन्य कई क्षेत्रों में पांच -पांच मंजिला निर्माण अब तक चल रहे हैं। इससे यह और स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और उसका तन्त्र अदालत के फैसलों के प्रति कितना गंभीर है।
शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने वर्ष 2016-17 में मुख्यमन्त्री खेत संरक्षण योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत किसानों को अवारा पशुओं, जंगली जानवरों और बन्दरों से अपनी फलसों को बचाने के लिये सौरबाड़ लगाने के लिये प्रोत्साहित किया गया था। इसके लिये सरकार ने 60 प्रतिशत सहायता देने की घोषणा की थी। इस योजना को जयराम सरकार ने भी जारी रखा है और यह घोषणा की है कि तीन या इससे अधिक किसान सामूहिक तौर पर सोलरबाड़ लगाने का प्रस्ताव देते हैं तो सरकार 85 प्रतिशत अनुदान प्रदान करेगी। वीरभद्र ने यह योजना 25 करोड़ से शुरू की थी जिसे जयराम ने बढ़ाकर 35 करोड़ कर दिया है। इस योजना में यह नही कहा गया है कि किन किसानों को इसका लाभ मिलेगा। इसमें यह शर्त भी नही रखी गयी है कि जो किसान अपने में साधन संपन्न हैं उन्हे इस योजना के तहत लाभ नही मिलेगा।
क्योंकि किसान का आकलन किसानी के लिये उसकी साधन संपन्नता के आधार पर नही किया जाता है बल्कि इसके लिये व्यवहारिक तौर पर खेत में फसल की मौजूदगी देखी जाती है। यदि एक किसान के पास चार जगह खेत हैं और चारों जगह फसल लगाई गयी है तो स्वभाविक है कि चारों स्थानों पर उसे फसल को बचाने की एक बराबर आवश्यकता रहेगी। ऐसे में वह चारों स्थानां पर यह बाड़ लगाकर फसल का बचाव करेगा। सरकार ने अपनी योजना मे यह नही कहा है कि उसे एक ही स्थान पर बाड़ लगाने का लाभ दिया जायेगा। क्योंकि जिस भी व्यक्ति के नाम पर कृषि/बागवानी योग्य ज़मीन है वह किसान बागवान की परिभाषा में आता ही है। जहां तक इसमें प्राथमिकता का प्रश्न है उसमें पहले वह लोग आयेंगे जिनकी आजीविका पूरी तरह किसानी पर ही निर्भर है। इस योजना के तहत पूर्व मंत्रा धनीराम शांडिल और पूर्व मुख्य सचिव पी मित्रा ने भी लाभ लिया है। इन लोगों को यह लाभ कैसे मिला है कृषि मंत्री डा. राम लाल मारकण्डेय ने सदन में इसकी जांच करवाये जाने की घोषणा की है। मन्त्री की इस घोषणा के बाद योजना के जानकारों के मुताबिक जब तक योजना में पात्राता की कोई सीमा तय नही की जाती है तब तक किसी भी किसान की यह जांच तो की जा सकती है कि उसने वास्तव में ही बाड़ लगायी है या नहीं। लेकिन बाड़ लगायी होने पर उसकी मौजूदा योजना के तहत जांच करवा पाना संभव नही होगा।
पूर्व मुख्य सचिव पी मित्रा को कृषि विभाग ने ठियोग के गांव कौंती में 530 मीटर परिधि की सौरबाड़ लगाने की एवज में 2 लाख 19 हजार 565 रुपए की सब्सिडी दी है। जबकि पूर्व मंत्रा धनीराम शांडिल को जिला सोलन के गांव बशील में चार मीटर परिधि की सौर बाड़ लगाने के लिए 1 लाख 90 हजार 664 रुपए की सब्सिडी दी है। यह सब्सिडी इन दोनों ने तब ली जब एक मंत्रा था दूसरा सरकारी सेवा में था।
हमीरपुर के गांव कदरयाणा की बिमला देवी को चार जगहों पर सौर बाड़ लगाने के लिए 10 लाख 32 हजार 820 रुपए की सब्सिडी दे दी हैं। इस महिला ने 0.80 हैक्टेयर, 0.95 हैक्टैयर और 1 हैक्टेयर में तीन जगह 410 मीटर परिधि की सौर बाड़ लगाई व हरेक बाड़ के लिए 2 लाख 76 हजार 724 रुपए की सब्सिडी हासिल कर ली। जबकि एक जगह 0.50 हैक्टेयर पर 270 मीटर परिधि की बाड़ लगाई व 2 लाख 2 हजार 648 रुपए की सब्सिडी हासिल कर ली।
इसी तरह एक परिवार में पिता-पुत्र व बहू ने भी बाड़बंदी की सब्सिडी हासिल कर ली है। हमीरपुर के ही नरेली गांव के मस्तराम को भी दो-दो जगह बाड़बंदी लगाने के लिए सब्सिडी दे दी गई है। हमीरपुर के नादौन के गांव सेरा के ही अनिल कुमार को दो जगह सौर बाड़ लगाने की एवज में साढे पांच लाख रुपए की सब्सिडी दे दी गई है।
सरकार की ओर से दिए जवाब में ऐसे दर्जनों परिवार हैं। सरकार के जवाब से हो रहे इन खुलासों ने इस योजना पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में 32 से 38 लाख के करीब की आबादी सीमांत व छोटे किसानों की है जिनके पास बहुत कम जमीन है और अधिकांशतः उनकी आजीविका खेती, बागवानी व मजदूरी से ही चलती है। कायदे से यह योजना उनके लिए होनी चाहिए थी। लेकिन लाभ प्रभावशाली व अमीर तबका उठा रहा है
इस योजना के तहत 2016-17 में 25 करोड़, 2017-18 में 30 करोड़ और इस साल के लिए 35 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। अब तक 687 किसानों को इस योजना के तहत लाभान्वित किया जा चुका है। विधानसभा में यह प्रश्न भाजपा विधायक रमेश ध्वाला ने लिखित में पूछा था। ध्वाला ने कहा कि जहां बंदर व लंगूरों की समस्या नही हैं, वहां क्रैट (जाली दार बाड़ जो डंगों को रोकने के लिए लगाई जाती है) लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सस्ती भी पड़ेगी व प्रभावी होगी। सौर बाड़ पर अगर घास या लकड़ी गिर जाए तो कंरट आगे नही बढ़ता है। इसके अलावा इसकी बैटरियां व अन्य उपकरण चोरी होने की शिकायतें भी आ रही हैं।
पूर्व मुख्य सचिव व अब प्रदेश के चुनाव आयुक्त व पूर्व मुख्यमंत्रा के बेहद करीब रहे आईएएस अधिकारी पी मित्रा को सौर बाड़ लगाने के लिए सब्सिडी कैसे मिली इस बावत प्रदेश सरकार जांच कराएगी। कृषि मंत्री रामलाल मारकंडेय ने कहा कि उक्त अधिकारी तो इस योजना के तहत आता ही नही है। क्या हुआ होगा इसकी जांच कराई जाएगी। पूर्व मंत्री शांडिल की ओर से हासिल की गई सब्सिडी को लेकर उन्होंने कहा कि चलो वह तो फिर भी किसानी व बागवानी करते हैं। लेकिन योजना में बदलाव किया जाएगा। मारकंडय जांच करा पाते हैं या नहीं लेकिन किसानों व बागावानों के नाम पर चल रही योजनाओं का लाभ आईएएस व मंत्री व विधायक उठाए तो सवाल तो खड़े होते ही हैं। बड़ा सवाल यह है कि अभी तक विभिन्न योजनाओं के तहत मंत्रियों विधायकों आईएएस,आइपीएस,एचएएस,एचपीएस भारतीय वन सेवा व हिमाचल वन सेवा के कितने अधिकारियों ने सब्सिडी का लाभ लिया है।
शिमला/शैल। राज्य सरकार का शीर्ष प्रशासन कितना असंवदेनशील और शोषक होता जा रहा है इसका, खुलासा सेवानिवृत एचएएस अधिकारी डा. राकेश कपूर द्वारा प्रधान सचिव कार्मिक को लिखे पत्र से सामने आया है। इस पत्र के अनुसार डा. कपूर द्वारा अपना सरकारी आवास 28.6.2017 को खाली कर दिया था और इसकी सूचना लोक निर्माण विभाग के संबधित कनिष्ठ अभियन्ता कुसुम्पटी के कार्यालय को इस आशय के छः पत्र लिखकर दे दी थी। इसी के साथ नगर निगम शिमला और राज्य विद्युत बोर्ड से भी एनओसी हासिल करके दे दिये थे और आवास का किराया भी चैक द्वारा अदा कर दिया गया था। लेकिन अब 7.8.18 को डा. कपूर को सरकार की ओर से एक पत्र भेज कर आवास का 65000 रूपये किराया अदा करने का नोटिस दिया गया है और साथ ही यह कहा गया है कि यदि पैसा जमा न करवाया गया तो इसे उनके सेवानिवृति लाभों में से काट लिया जायेगा जो अभी तक उन्हे दिये नही गये हैं। डा. कपूर 31.12.2016 को सेवानिवृत हुए थे और 28.6.17 को उन्होने आवास भी खाली कर दिया था। लेकिन 20 महीने बीत जाने के बाद भी उन्हे सेवानिवृति लाभ नही दिये गये हैं। आवास के किराये का 65000 रूपये का बकाया मकान खाली कर देने के बाद का निकाला गया है क्योकि संबंधित कनिष्ठ अभियन्ता ने इसकी सूचना आगे सरकार को नही भेजी। जबकि 28.6.17 को मकान खाली करने के साथ ही उन्होने अन्य एनओसी भी हासिल कर लिये थे और पूरा किराया चैक से अदा कर दिया था। कनिष्ठ अभियन्ता कार्यालय ने आगे सूचना क्यों नही भेजी इसका पूरा कारण डा. कपूर ने अपने पत्र में लिखा है। सरकार ने सबंधित कनिष्ठ अभियन्ता कार्यालय से कारण जानने की बजाये डा. कपूर को 65000 रूपये का नोटिस थमा दिया है।
यही नही डा. कपूर के खिलाफ पिछले सोलह वर्षों से एक विभागीय जांच चल रही है जिसका अब तक प्रशासन निपटारा नही कर पाया है। जबकि जिस आरोप को लेकर यह जांच चल रही है उसी आरोप पत्रा में वह सर्वोच्च न्यायालय से 22.11.2012 को वरी हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद विभागीय जांच चल रही है क्योंकि सरकार में ऐसा नियम नही है कि अदालत से बरी होने के साथ ही उसी संबंध में सरकार में चल रहा मामला भी बन्द हो जाये। डा. कपूर इस संबंध में राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग को दर्जनों बार पत्र लिख चुके हैं लेकिन आज तक न तो यह जांच पूरी की जा रही है और न ही बन्द। यदि जांच पूरी होने पर डा. कपूर को विभाग दोषी भी पाता है तो वह उसके खिलाफ अदालत में जाकर न्याय पा सकते हैं। लेकिन जिस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने थोड़े ही समय में निपटा दिया उसे निपटाने में सरकार को सोलह वर्ष से भी अधिक का समय क्यों लग रहा है। क्या कुछ लोग जानबूझ कर उन्हे न्याय नही मिलने देना चाहते हैं। इस आशंका की पुष्टि इसी तथ्य से हो जाती है कि जब एक व्यक्ति को उसके सेवानिवृति लाभ 20 महीने तक न दिये गये हो। जबकि सेवानिवृति लाभ तो उस सूरत में भी नही रोके जा सकते हैं यदि व्यक्ति के खिलाफ नियम 14 के तहत भी जांच चल रही हो। सेवानिवृति लाभों का रोका जाना अपने में ही एक अपराध है। डा. कपूर के पत्र से सरकार का शोषक चेहरा पूरी तरह सामने आ जाता है।
From : Dr. Rakesh Kapoor HPAS
Spl Secretary( retd )
179-II Vasant Vihar Dehradun (UK) 248006
To
The Principal Secretary (Personnel ) to the Government of Himachal Pradesh -Shimla -2
Subject : Letter dated 7th August 2018,regarding License fee of Set No 9-B Brockhurst shimal-2 : Illegal , arbitrary and apparently camouflage to cover the delay in releasing my retrial benefits.
Sir,
Most respectfully I am to submit that I am in receipt of Letter No Per(A-IV)-B-4/9-III dated 7th August 2018 on 11th August 2018 where by I have been intimated to submit my option vis -a vis depositing Rs 65,278 ( sixty five thousand two hundred seventy eight ) in lieu of damages for Set No 9-B Brockhurst shimala-2 which I was occupying as HPAS till June 28 th 2018, after my retirement on 31-12-2016 .
This letter not only came to me as surprise ,but a brutal shock as I was expecting the Justice from the government on my pending representations submitted to various authorities including The Hon'ble Chief Minister; worthy Chief Secretary ,and your good honour on 4th June 2018 after explaining you the matter in entirety , when me and my wife had met you , regarding illegal DEs being continued for last 16years or so in the matter in which I have been acquitted even by the Apex Court of this country vide Judgment dated 22-11-2012 .
Sir as requested earlier that this entire story is hand work of a few vested interest and biased persons in the department of Personnel . The accommodation I was allotted had been vacated vacated on 28/06/2017by me in person , and the letter to this effect (6 copies ) were submitted to the O/o mr Justa the then Junior engineer ,PWD sub Division Kasumpati ( copy enclosed) although this office had to forward a copy each to MC Shimla & HPSEB shimla concerned Sub Div for final bill payment & Subsequent release of security .,they deliberately with held ,this letter , later through my personal efforts this letter was submitted to Both authorities MC shimla , and HPSE B issued NOC or nothing is Due certificates to me , (copy enclosed annexure 2,3 ). against B/9 brockhurst. The rent till date for B iv - 9 has also been deposited by cheque ,the same en-cashed by the Department . Sir I would like to submit further that in 2016 during repair work in the block when Mr Justa was JE In charge and Mr Paul was SDO /Asst Engineer then a water tank supported by an heavy Iron structure due to faulty errection had fallen on IV -B. Block injuring one labourer .The casualty could have been heavy as it was only in V hrs and. No students or children playing in the area were present . The resident officers had lodged a complaint to the hon'able ACS PWD which was processed in the Department of RPG of which I was holding charge being SPL Secretary , The complaint marked to The then ACS PWD Sh Narinder Chauhan (IAS )was processed for Departmental Enquiry , also police had registered an FIR in the matter .The JE concerned And AE as mentioned above had been grudging against me since then, though I had only done my duty as Staff officer in-charge of RPG .This can be verified from record also .They even got blocked the waste pipe from upper story above B-IV houses, while under taking repairs as such the entire waste water, filth entering my house damaged my entire furniture m carpets ,other belongings beyond repair , even my neighbors had to break open the lock to get the sludge removed as I was on leave .
Sir as I had humbly submitted earlier also that My representations on the matter of unlawful continuation of DE's under Rule 14 ,CCS ( CC & A), Rules 1965, in the two cases 1 ) on identical charge with same set of facts , witnesses and same FIR 1/2003 dated 5/5/2003 is pending since 2004 ,while the second still continuing since April 2005;without production of Original record despite the CDE recording "the production of original record before evidence being recorded , in it's absence adverse inference will be drawn "on 3 occasions" in last 13 years or so where as the Preliminary Enquiry forming basis for the same , in the matter was completed in 20001 .
As is clearly adduced from case law/Apex Court Judgments and subsequent orders of various governments the DE,s against a Govt. servant even initiated under Rule 14 ibid cannot to be continued under Pension Rule 9 automatically in absence of any financial loss to the State ,that too for recovery , with the prior permission of HE Governor himself and not a designated / delegated authority .
Similarly based on Apex Court Judgments , present case law clearly envisage that Pension and other retirees benefits not being Bounty but his well earned dues, can not be withheld in the guise of Departmental Proceedings and in case they are not released in time the penal interest liability accrued shall have to be recovered from the officers concerned responsible for delay.
Sir I had submitted all these facts with copies of the case law , Judgments to the Department of Personnel , worthy chief Secretary and CDE simultaneously., The present letter with a concocted story background when documentary evidence speak other wise these officials and officers as they are holding the Charge of Estate Department with Personnel as well to put pressure on me , and save their skin for inaction , delay in releasing my leave encashment , deciding my Representations, last one submitted on June 4/2018 , bringing construed facts before authorities are harassing me mentally and physically .
Sir for last 8 months me and my Defense Assistant are appearing on every notified date without fail but nothing has been done in case of these DE's, as on last 6 occasions either , Worthy CDE or PWS remains absent for reasons best known to them , but no action is taken in the matter . The CDE recorded in Dec 2017 and subsequently in Feb 2107 that an order on representation , reply thereof by the DA vigilance representing the department of Personnel GOHP shall be passed but till date ( on all 6 occasions ) the order has not been shown the light of the day . Now this new letter of recovery or Rs 65,278 issued after almost 1and half year of my superannuation is nothing short of abuse of authority to harass me.
Sir I had already prayed that I have a daughter studying B. Arch 3rd year and a son lost opportunity to take admission in MBA in a prestigious foreign University , Business School but for want of payment of fees , other dues and an ailing wife with Ulcerative Colitis a chronic ailment aggravating due to mental tension as known etiology , in case of any eventuality under stress ,causing mental and physical injury or loss of life resulted due to these unconstitutional acts of the officers and officials harassing me and my family , they shall be held responsible .
Sir I therefore once again request you with folded hands to withdraw this letter of illegal recovery , drop the Departmental proceedings and get released my pending dues and other consequential benefits by earliest to save me and my family from this harassment .As is expected from a noble administrator and benevolent Superior authority .
In case the authorities do not stop these atrocious acts and force illegal recoveries I shall have no other remedy but to move to the court of law to seek justice for which all liability will fall on their shoulders .
Yours faithfully
Dr Rakesh Kapoor .
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने अभी 8.8.2018 को एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी के सदस्य है सेवानिवृत पूर्व मुख्य सचिव श्रीमति आशा स्वरूप, श्रीमति राजवन्त संधू और सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन। यह कमेटी मुख्यन्त्रा की ओर से सरकार की फ्रलैगशिप योजनाओं का रिव्यू और इसकी रिपेर्ट सीधे मुख्यमन्त्री को सौंपेगी। अभी तत्काल प्रभाव से यह कमेटी प्रधानमन्त्री फसल बामी योजना, कौशल विकास योजना और स्वच्छ भारत अभियान का रिव्यू करके 25 सितम्बर को मुख्यमंत्रा को अपनी रिपोर्ट सौपेगी। कमेटी के सदस्य इकक्ठे मिलकर भी और अकेले -अकेले भी यह रिव्यू कर सकते हैं यह उनके ऊपर छोड़ दिया गया है।
दीपक सानन को इससे पहले हिप्पा में भी एक ऐसी ही जिम्मेदारी दी गयी है। स्मरणीय है कि सानन एचपीसीए के एक मामले मे भी अभियुक्त नामज़द हैं और संभवतः इसी कारण से वीरभद्र शासन में मुख्य सचिव की ताजपोशी के लिये नज़रअन्दाज हुए थे। जब वीसी फारखा को मुख्य सचिव बनाया गया था। तब उनकी नियुक्ति को कैट में चुनौती देने वालो में विनित चौधरी के साथ सानन भी शामिल थे। उस समय 24.10.2016 से 24.1.2017 तक सानन छुट्टी पर रहे थे और 31.1.2017 को सेवानिवृत हो गये थे। जयराम सरकार ने फरवरी 2018 में सानन की यह छुट्टी स्टडीलीव करार दे दी है। जबकि नियमों के मुताबिक जब किसी अधिकारी/ कर्मचारी का कार्यकाल केवल दो वर्ष रह जाता है तब उसे स्टडीलीव नही मिलती है। सानन को सेवानिवृति के एक सप्ताह पहले तक दिया गया स्टडीलीव लाभ प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह अपराध की श्रेणी में आता है।
दीपक सानन ने भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अनुमति लेकर शिमला के कुफरी क्षेत्रा में ज़मीन भी खरीद रखी है। यहां पर मकान बनाने के लिये सानन ने 4.11.2004 को टीडी के तहत लकड़ी के लिये आवेदन किया था उनके इस आवेदन पर उन्हें 16.12.2004 को यह लकड़ी मिल भी गयी थी। सानन स्यंव सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व रह चुके हैं और अच्छी तरह जानते है कि धारा 118 के तहत ज़मीन खरीद कर टीडी की पात्रता नही बनती। प्रदेश में हजा़रों लोग 118 के तहत अनुमति लेकर ज़मीन खरीद चुके हैं लेकिन किसी को भी सरकार ने टीडी की पात्रता नही दी है। क्योंकि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में है ही नही। बल्की इस तरह टीडी का लाभ लेना अपराध की श्रेणी में आता है और कई लोग इसके के लिये सज़ा भी भोग चुके हैं।
दीपक सानन को जिस तरह से जयराम सरकार एक के बाद एक जिम्मेदारी देती जा रही है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार उन पर अच्छा भरोसा जता रही है। लेकिन यह भरोसा सार्वजनिक जिम्मेदारीयों को लेकर है इसलिये यह हरेक का सरोकार है। यदि जयराम उन्हे अपनी कोई व्यक्तिगत जिम्मेदारी सौंपे तो उस पर किसी को भी कोई एतराज नही हो सकता। लेकिन जब सरकार की ओर से किसी को भी ऐसी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी तो स्वभाविक रूप से उस पर सवाल उछलेंगे ही। ऐसे में आज जयराम सरकार की यह सार्वजनिक जबावदेही बनती है कि उसने सारे नियमों/कानूनों को ताक पर रखकर फरवरी में सत्ता संभालने के दो माह बाद दीपक सानन को स्टडीलीव का लाभ देकर सरकारी खज़ाने को करीब आठ लाख का नुकसान क्यों पंहुचाया। क्योंकि यह लाभ आपने दिया है। सानन ने 2004 में टीडी लाभ लेकर भी सरकारी खज़ाने को नुकसान पंहुचाया है उस समय किसके प्रभाव में उन्हें यह लाभ दिया गया? इसके लिये उन्होने स्वयं अपने पद का दुरूप्योग किया है क्योकि वह जानते थे कि वह टीडी के पात्रा नही हैं। यहां यह भी सवाल उठता है कि आज जब सरकार ने उन्हें यह जिम्मेदारीयां सौंपी है तब क्या सरकार को इसकी जानकारी नही रही है।
सानन की नियुक्ति मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से हुई है। स्टडीलीव का लाभ भी उनके अनुमोदन से मिला है। इसलिये यह माना जा रहा है कि सानन द्वारा लिया गया टीडी लाभ भी उनकी जानकारी में रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस तरह के कार्यों से सरकार क्या संदेश देना चाह रही है। एक ओर तो सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरैन्स के दावे कर रही है और दूसरी ओर इस तरह की भ्रष्टता को संरक्षण दे रही है। क्या ऐसी नियुक्तियों पर मुख्यमन्त्री को उनके सलाहकारों द्वारा कोई राय नही दी जा रही है? क्या प्रदेश के मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव भी ऐसे मामलों में सही जानकारियां उनके सामने नही रख रहे हैं। इस समय प्रदेश में कई ऐसे मामले भी हैं जहां 118 के तहत अनुमति लेकर मकान बनाने के लिये ज़मीने तो खरीद ली गयी परन्तु एक दशक से अधिक का वक्त बीत जाने के बाद भी उस ज़मीन पर मकान नही बना है। जबकि 118 में अनुमति लेकर यह अनिवार्य है कि यदि दो वर्ष के भीतर जमीन पर उस उद्देश्य की पुर्ति के लिये कोई कदम न उठाया जाये तो अनुमति रद्द करके ज़मीन को बिना शर्त सरकार के अधिकार में ले लिया जाता है। लेकिन जयराम सरकार ऐसे सारे मामलों पर आंखे बन्द करके बैठी हुई है।
शिमला/शैल। क्या हिमाचल भाजपा में सब कुछ अच्छा ही चल रहा है? यह सवाल उठा है पार्टी के प्रदेश महासचिव राम सिंह के उस ब्यान के बाद जो उन्होने शिमला में हुई उनकी पत्रकार वार्ता में दागा है। प्रदेश महासविच ने बड़े स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को संगठन में काई बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चा केवल सोशल मीडिया में ही है और हकीकत में जमीनी स्तर पर कुछ नही है। महासचिव राम सिंह के इस ब्यान के बाद प्रदेश भाजपा के ही शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार का ब्यान आ गया। उन्होने भी बडे़ स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सरकार तो बन जायेगी लेकिन निश्चित रूप से पार्टी की सीटें कम हो जायेंगी। पार्टी की सीटें कम होने का आकलन और भी कई कोनो से आ रहा है। यह सीटें कितनी कम होती है? सीटें कम होने के बाद सरकार बन पायेगी या नही। यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन जब भाजपा की सीटें कम होगी तो निश्चित रूप से उसके सहयोगी दलों की भी कम हांगी। इसी आशंका के चलते एनडीए के कई सहयोगी अपनी नाराज़गी दिखाने के लिये बहाने तलाशने पर आ गये हैं। जैसा कि रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति ने एनजीटी के नये अध्यक्ष जस्टिस आर्दश गोयल की नियुक्ति को ही बहाना बना लिया। चन्द्र बाबू नायडू की पार्टी तो एनडीए को छोड़कर लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक ला चुकी है। इस तरह जैसे-जैसे विपक्ष इक्ट्ठा होता जा रहा है और सरकार के खिलाफ उसकी आक्रामकता बढ़ती जा रही है उसी अनुपात में मोदी सरकार की परेशानीयां बढ़ती जा रही हैं।
इस परिदृश्य में यह स्वभाविक है कि हर प्रदेश को लेकर संघ/भाजपा के कई संगठन और सरकारी ऐजैन्सीयां तक लगातार सीटों के आकलन में लगी हुई है बल्कि इस बार के लोकसभा चुनावों में तो अमेरीका, रूस और चीन की ऐजैन्सीयां भी सक्रिय रहेंगी इसके संकेत राष्ट्रीय स्तर पर आ चुके हैं। इन बड़े मुल्कां की ऐजैन्सीयां प्रदेशों के चुनावों पर भी कई बार अपनी नज़रें रखती हैं। इसका अनुभव हिमाचल के 2012 के विधानसभा चुनावों में मिल चुका है। जब अमेरीकी दूतावास के कुछ अधिकारियों ने शिमला में कुछ हिलोपा नेताओं के यहां दस्तक दी थी। इसलिये प्रदेशां को लेकर संघ/ भाजपा की सक्रियता रहना स्वभाविक है क्योंकि सीटें तो प्रदेशों से होकर ही आनी है। इसलिये हर प्रदेश की एक-एक सीट पर नजर रखना स्वभाविक है। पिछली बार हिमाचल से भाजपा को चारों सीटें मिल गयी थी। लेकिन इस बार भी चारों सीटें मिल पायेंगी इसको लेकर पार्टी नेतृत्व भी पूरी तरह आश्वस्त नही हैं। यह ठीक है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन यह भी उतना ही सच्च है कि यदि विधानसभा चुनावों के दौरान धूमल को नेता घोषित नही किया जाता तो स्थिति कुछ और ही होती। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान वीरभद्र के जिस भ्रष्टाचार को भुनाया गया था उस दिशा में मोदी सरकार व्यवहारिक तौर पर कोई परिणाम नही दे पायी है। बल्कि आज तो वीरभद्र के भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस की ताकत बन जाता है। आज वीरभद्र और कांग्रेस मोदी पर यह आरोप लगा सकते हैं कि उनके खिलाफ जबरदस्ती मामले बनाये गये हैं। वीरभद्र और आनन्द चौहान ने जब दिल्ली उच्च न्यायालय के एक जज के खिलाफ यह शिकायत की थी कि उन्हे इस अदालत से न्याय मिलने की उम्मीद नही है तभी उन्होने इस बारे में अपनी मंशा सार्वजनिक कर दी थी। इस शिकायत के बाद भी ईडी वीरभद्र की गिरफ्रतारी नही कर पाया था जबकि इस मामले में सहअभियुक्त बनाये गये आनन्द चाहौन और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी हुई। आज मोदी सरकार और उसकी ऐजैन्सीयों के पास इसका कोई जवाब नही है। इसलिये आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जयराम सरकार वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को कोई मुद्दा नही बना पायेंगे क्योंकि आठ माह के कार्याकाल में एक भी मुद्दे पर कोई मामला दर्ज नही हो पाया है।
हिमाचल में लोकसभा का यह चुनाव मोदी और जयराम सरकार की उपलब्धियों पर लड़ा जायेगा मोदी सरकार की उपलब्धियां का ताजा प्रमाण पत्र अभी दिल्ली में रॅफाल सौदे पर हुई यशवन्त सिन्हा, अरूण शौरी और प्रंशात भूषण की संयुक्त पत्रकारा वार्ता है। इस वार्ता के बाद आया शान्ता कुमार का ब्यान भी उपलब्धियों का प्रमाण पत्रा बन जाता है। मोदी सरकार से हटकर जब जयराम सरकार पर चर्चा आती है तो इस सरकार के नाम पर भी सबसे बड़ी उपलब्धि हजा़रो करोड़ के कर्जो का जुगाड़ है। लेकिन इन कर्जो से हटकर प्रदेश स्तर पर राजस्व के नये स्त्रोत पैदा करने और फिजूल खर्ची रोकने को लेकर कोई कदम नही उठाये गये हैं। बल्कि उल्टे सेवानिवृत से चार दिन पहले तक सारे नियमां/ कानूनो को अंगूठा दिखाकर एक बड़े बाबू को स्टडीलीव ग्रांट करना है। यही नही एक और बड़े बाबू के मकान की रिपेयर हो रहा आधे करोड़ से ज्यादा का खर्चा भी सचिवालय के गलियारों में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। क्योंकि दो मकानां का एक मकान बनाया जा रहा है। अदालतों में सरकार की साख कितनी बढ़ती जा रही है यह भी सबके सामने आ चुका है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि संघ/भाजपा प्रदेश की इस स्थिति का आकलन कैसे करती है। यह भी सबको पता है कि विधानसभा चुनावों से पूर्व नड्डा नेतृत्व की रेस में सबसे आगे थे। उनके समर्थकों ने तो जश्न तक मना लिये थे। लेकिन उस दौरान भी जब संघ के आंकलन में स्थिति संतोशजनक नही आयी तब धूमल को ही नेता घोषित करना पड़ा। जब धूमल हार गये तब भी विधायकों का एक बड़ा वर्ग उनको नेता बनाये जाने की मांग कर रहा था। लेकिन धूमल, नड्डा के स्थान पर जयराम को यह जिम्मेदारी मिल गयी। परन्तु इन आठ महीनों में ही चर्चा यहां तक पंहुच गयी है कि कुछ अधिकारी और अन्य लोग ही सरकार पर हावि हो गये हैं। आठ माह में पार्टी कार्यकर्ताओं कोजो ताजपोशीयां मिलनी थी वह संभावित सूचियों के वायरल करवाये जाने की रणनीति से टलती जा रही हैं। कार्यकर्ताओं में रोष की स्थिति आ गयी है। सत्रों की माने तो मोदी-अमितशाह ने इस वस्तुस्थिति का संज्ञान लेते हुए धूमल को दिल्ली बुलाया था। लेकिन जैसे ही धूमल का मोदी-शाह को मिलने बाहर आया तभी प्रदेश में महासचिव के माध्यम से यह चर्चा उठा दी गयी कि धूमल को कोई बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा रही है। लेकिन धूमल की इस मुलाकात के बाद जयराम भी दिल्ली गये। वहीं पर हिमाचल सदन में शान्ता और जयराम में एक लम्बी मंत्रणा हुई। इस मंत्रणा से पहले शान्ता कुमार का ब्यान भी आ चुका था। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यदि हिमाचल से सीटों को लेकर हाईकमान आश्वस्त नही हो पाता है तो प्रदेश में कुछ भी घट सकता है। क्योंकि यह भी चर्चा है कि इन दिनों केन्द्र की ऐजैन्सीयों ने धूमल- एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामलों के दस्तावेज जुटाने शुरू कर दिये हैं। वैसे इन मामलों को वापिस लेने के लिये राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम भी नही उठाये गये हैं और संभवमः हाईकमान ने इस स्थिति का भी संज्ञान लिया है। यही नही राजीव बिन्दल का मामला वापिस लेने में भी सरकार की नीयत और निति सपष्ट नही रही है। इसी 8 माह के अल्प कार्यकाल में ही कई आरोपी पत्र और एक मन्त्री के डीओ लेटर तक वायरल हो गये हैं। यह सारी स्थितियां किसी भी हाईकमान के लिये निश्चित रूप से ही चिन्ता का विषय रहेंगी। माना जा रहा है कि इन्ही कारणों से अमितशाह का दौरा एक बार फिर रद्द हो गया है।