शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा कार्यसमिति का दो दिन का सत्र राजनीतिक प्रस्ताव पास करके संपन्न हो गया है। इस प्रस्ताव में मोदी सरकार के महिमा मण्डन के अतिरिक्त कुछ भी नया सामने नही आया है। बल्कि एक तरह से प्रदेश कार्यसमिति के इस आयोजन को मोदी सरकार और उसकी नीतियों में विश्वास व्यक्त करने की ही कबाद करार देना ज्यादा संगत होगा। इस प्रस्ताव में प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी का तो जिक्र किया गया है। लेकिन प्रदेश
में कांग्रेस की विकास नीति क्या और कैसी रही है और कांग्रेस प्रदेश को आर्थिक मोर्चे पर कहां छोड गयी है इसका कोई जिक्र इस प्रस्ताव में नही आया है। जबकि आने वाले चुनावों में कांग्रेस इसी मुद्दे पर सरकार को घेरेगी। भाजपा प्रस्ताव से ऐसा लगता है कि यह प्रस्ताव राजनेताओं की बजाये शायद सरकार के अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है।
यह है प्रस्ताव-ः
हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति का यह दृढ़ मत है कि मोदी सरकार की दूरदर्शी नीतियों, आतंकवाद व अलगाववाद पर सख्त निर्णयों, कुशल विदेश नीति और लोक कल्याण व विकासोन्मुखी योजनाओं से जहां भारत दुनिया में शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा है वहीं देश में जनमानस का विश्वास सरकार के प्रति बढ़ा है।
कार्यसमिति का यह भी मानना है कि हिमाचल प्रदेश में भी जयराम सरकार ने अपने इस छोटे से कार्यकाल में प्रदेशहित व जनहित में अनेक निर्णय लेकर हिमाचल प्रदेश के सुनहरे भविष्य की नीव रख दी है।
देश की कमजोर, अपारदर्शी व पूर्णतः पूजींवादी अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए मोदी सरकार ने देशहित में नोटबंदी, जीएसटी, दिवालियापन कानून व शोधन अक्षमता संहिता लागू कर भारतीय अर्थव्यवस्था में मूलभूत सुधार किए जिसके फलस्वरूप भारतीयअर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। भारत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अनुमानित 7.5 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ की वृद्धि दर के साथ दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2018 में भारत में विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है।
हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा सरकार का पहला बजट समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा करने व प्रदेश में चहुंमुखी विकास को सुनिश्चित करने वाला साबित होगा। बजट में जनकल्याण व प्रदेश को नई दिशा देने के लिए 30 नई योजनाएं शुरू की गई जो हिमाचल प्रदेश को स्वर्णिम बनाने में कारगर सिद्ध होगी।
भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की दृष्टि से देश में कालाबाजारी व कालाधन रखने वालों की कमर तोड़ दी है। मई, 2014 के बाद देश में कोई घोटाला नहीं घटा। ऑनलाईन ट्रांजेक्शन व डायरक्ेट बेनिफिट स्कीम भी भ्रष्टाचार रोकने हेतु उपयोगी सिद्ध हो रही है।
हिमाचल सरकार ने भी भ्रष्टाचार रोकने व माफिया राज मिटाने के लिए सख्त कदम उठाए हैं जिनकी प्रदेश कार्यसमिति सराहना करती है।
यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वच्छता को एक जनांदोलन बनाया और आज स्वच्छता जन मन का विषय बन चुका है। अक्तूबर, 2014 के बाद देश में 7 करोड़ 81 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया और 417 जिलों ने स्वयं को खुल में शौच मुक्त घोषित किया जिसे यह कार्यसमिति एक बड़ी सफलता मानती है। सस्ते व सर्वसुलभ ईलाज के लिए तो मोदी सरकार ने अनेक कदम उठाए ही परन्तु अब दुनिया की सबसे बड़ी योजना आयुष्मान भारत शुरू करके देश के 10 करोड़ गरीब परिवरों को प्रतिवर्ष स्वास्थ्य लाभ के लिए 5 लाख की राशि प्रदान की जाएगी जिससे लगभग 50 करोड़ की आबादी लाभान्वित होगी। इस अद्वितीय योजना को शुरू करने के लिए प्रदेश कार्यसमिति देश के स्वास्थ्य मंत्री और प्रधानमंत्री को बहुत-2 बधाई देती है।
वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से जहां केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना व प्रधानमंत्री सिचाई योजना शुरू करने व किसानों की पैदावार का लागत से डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य देने का निर्णय लिया वहीं प्रदेश सरकार ने जंगली जानवरों व बेसहरा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए सौर ऊर्जा बाड़ लगाने में 85 प्रतिशत उपदान देने व गौ सदन निर्माण हेतु जमीन व धन उपलब्ध कराने जैसी उपयोगी कदम उठाए।
राष्ट्र निर्माण में युवाओं की अहम भूमिका समझते हुए हमारी सरकारों ने स्वरोजगार के माध्यम से युवाओं के समग्र विकास पर जोर दिया जिसके लिए जहां केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया और स्टैण्ड अप इंडिया जैसी योजनायें चला करोड़ों युवाओं को लाभ दिया वहीं प्रदेश सरकार ने कम ब्याज पर ट्टण देने वाली मुख्यमंत्री स्वाबलम्बन योजना समेत अनेक योजनाएं शुरू की।
गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को लेकर मोदी सरकार ने उज्जवला व प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी 112 योजनायें चलाई जिनके फलस्वरूप देश के लगभग 22 करोड़ गरीब लोगों को लाभ मिला, जिनमे अधिकतर अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग से सम्बन्धित है। अन्य पिछड़ा आयोग वर्ग के गठन से भी इन वर्गों की समस्याओं का समाधान होगा। इसी तर्ज पर प्रदेश सरकार हिमाचल गृहणी सुविधा योजना व सामाजिक सुरक्षा पैंशन के अंतर्गत 70 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों की आय सीमा की शर्त हटाकर उनको 1300 पैंशन देने के निर्णय और अन्य योजनाओं के माध्यम से लगभग 3 लाख पात्र व्यक्तियों को फायदा पहुंचा चुकी है जिसकी यह कार्यसमिति प्रशंसा करती है।
हिमाचल सरकार ने प्रदेश में हैली टैकसी सेवा शुरू कर और रोप-वे निर्माण हेतु उचित कदम उठा पर्यटन विकास की दृष्टि से प्रशंसनीय कार्य कर रही है। मण्डी में कलस्टर विश्वविद्यालय शुरू करना और रूसा प्रणाली में वांछित संशोधन करना प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जनमंच कार्यक्रम के माध्यम से जनससमयाओं का मौके पर समाधान कर मुख्मयंत्री व मंत्रीगण जन सेवा-नारायण सेवा के मूलमंत्र को चरितार्थ कर रहे हैं।
पहले भूतपूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पैंशन लागू कर और अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं के मानदेय में बढ़ौतरी कर प्रधानमंत्री महोदय ने अभूतपूर्व कार्य किया है। मोदी सरकार ने हिमाचल प्रदेश को एम्स, हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग कॉलेज, चार मेडिकल कॉलेज, पीजीआई के सैटेलाईट सेन्टर, आईआईएम, आईआईटी, 69 राष्ट्रीय उच्च मार्ग, 3 फोरलेन, 8 ओवरहैड ब्रिज, रेलवे विस्तार हेतु लगभग 500 करोड़ का बजट, शिमला व धर्मशाला को स्मार्ट सिटी व हिप्र को विशेष राज्य के दर्जे जैसी सौगातें तो पहले ही दे दी है और अब वर्तमान प्रदेश सरकार के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश को एनडीआरएफ बटालियन स्वीकृत होना, बागवानों की दशा व दिशा बदलने वाले 1681 करोड़ के प्रोजैक्ट को स्वीकृत करना, वॉटर कंजरवेशन के प्रोजेक्ट हेतु 4751 करोड़ मंजूर करना व शिमला शहर के लिए पीने के पानी की समस्या के समाधान हेतु 791 करोड़ स्वीकृत होना, अनेक ऐसे विषय हैं जिनके लिए हिमाचल भाजपा केन्द्र सरकार का आभार प्रकट करती है।
भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि भाजपा सरकारों की उपलब्धियां देख कर कांग्रेस पार्टी के नेता बौखला गए हैं। बौखलाहट में तथ्यहीन व आधारहीन बयानबाजी कर राजनीति में नौसिखिये साबित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भी मुद्दाविहीन कांग्रेसी नेता आलोचना के लिए आलोचना करने की आदत से मजबूर तथ्यों के बिना सरकार की आलोचना करते रहते हैं।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की गुटबाजी तो पहले से जगजाहिर है और अब उनकी प्रभारी आग में घी डालने का काम कर रही है। वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे कांग्रेसी नेता रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने में पूरी तरह से नाकाम सिद्ध हुए हैं। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संसद के अंदर व बाहर नाटकीय व्यवहार कर जनता के बीच हास्य के पात्र बन रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व व कृतत्व से घबरा कर सभी विपक्षी दल एक जुट होने का प्रयास कर रहे हैं। उनके पास सर्वमान्य नेता व नीति का अभाव है, सिर्फ एक ही उद्देश्य है मोदी रोको, परन्तु मोदी जी की लोकप्रियता जिस तरह से देश और दुनिया में बड़ी है और भारतीय जनता पार्टी का संगठन जिस तरह से बूथ स्तर तक मजबूत हुआ है, विपक्षी दल अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं होंगे। हिमाचल भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति कार्यकर्ताओं से आहवान करती है कि वे आगामी लोकसभा चुनाव हेतु कमर कस लें, अपनी सरकारों की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचायें, कांग्रेसी नेताओं के कुप्रचार का बखूबी जवाब दें, दिन-रात मेहनत कर पार्टी के कार्यक्रमों को सफल बनायें और फिर से चारों लोकसभा सीटें जीतने में अपनी अहम भूमिका अदा करें।
प्रस्ताव भाजपा प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने पेश किया और पार्टी के महासचिव राम कुमार ने इसका अनुमोदन किया।
अफसरशाही ने बिछायी बिसात
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वीरभद्र शासन के दौरान धूमल के खिलाफ आयी आय से अधिक संपति की शिकायत की जांच बन्द करने का फैसला लिया है। ऐसा विजिलैन्स की सिफारिश पर किया गया है। लेकिन धूमल पुत्रों अनुराग और अरूण के खिलाफ यह जांच जारी रहेगी। क्या अनुराग और अरूण के खिलाफ जांच चलाये रखने लायक कोई ठोस तथ्य विजिलैन्स के पास हैं इसका कोई खुलासा सामने नही आया है। जबकि अरूण धूमल तो पब्लिक सर्वैन्ट की परिभाषा में ही नही आते हैं और उन पर पीसी एक्ट लगता ही नही है।
प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कां में सरकार के इस फैसले के कई अर्थ लगाये जा रहे हैं। अब इसी के साथ सरकार ने वर्ष 2010 में रहे प्रधान सचिव राजस्व पूर्व मुख्य सचिव पी मित्रा के खिलाफ उस मामले में पुनः जांच करने का फैसला लिया है जिसमें विजिलैन्स ने एक समय क्लोजर रिपोर्ट अदालत में डाल दी थी। इस क्लोज़र रिपोर्ट के खिलाफ विजिलैन्स ने इस वर्ष मई में अदालत में आग्रह डाला कि वह इसमें नये सिरे से जांच करना चाहती है। अदालत ने नियमानुसार इस आग्रह को मान लिया और जांच की अनुमति दे दी। अब विजिलैन्स ने इसमें जांच शुरू कर दी है और मित्रा से पूछताछ करने के लिये विजिलैन्स मुख्यालय तलब किया है।
शिकायत है कि भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत ज़मीन खरीदने की अनुमति मांगने के लिये आये एक आग्रह में यह स्वीकृति देने के एवज में घूस के तौर पर पैसे का लेनदेन हुआ है। यह पैसा एक बिचौलिये के माध्यम से हुआ है और इसमें संबधित लोगों के बीच हुई बातचीत की रिकार्डिंग उपलब्ध होने का दावा किया गया है। यदि ऐसी कोई रिकार्डिंग उपलब्ध है तो क्या यह फोन टेपिंग सरकार से अनुमति लेकर की गयी है या यह अवैध रूप से की गई फोन टेपिंग है। यह सवाल भी अपने में अलग से खड़ा है क्योंकि पिछले दिनों पूर्व डीजीपी आईडी भण्डारी ने अवैध फोन टेपिंग के आरोपों का जो मामला अदालत में लड़ा है उसमें शायद ऐसी किसी फोन टेपिंग का कोई जिक्र नहीं आया है। न ही इस टेपिंग के आधार पर कोई कारवाई की गयी है। स्मरणीय है कि 118 के इस मामले की जांच पूर्व में वीरभद्र शासन के दौरान हुई है और तभी विजिलैन्स ने इसमें क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। अब इस जांच के पुनः शूरू होने से वीरभद्र शासन के दौरान रहे विजिलैन्स तन्त्रा पर भी अपरोक्ष में गंभीर आरोप आते हैं। वैसे विजिलैन्स ने अब पुनः जांच शुरू करने पर भी इस मामले में रहे कथित बिचौलियों के खिलाफ कोई कारवाई नही की है। पैसे का लेन देन होने के आरोप का जो दावा किया जा रहा है उसकी भी कोई रिकवरी किसी से अब तक नही हुई है।
विजिलैन्स द्वारा की जा रही इस जांच के कई गंभीर परिणाम होंगे। इसलिये धारा 118 के तहत ज़मीन खरीद की अनुमति मांगने की प्रक्रिया को भी समझना आवश्यक है। धारा 118 के तहत अनुमति की प्रार्थना व्यक्ति जिलाधीश, सचिव या संबंधित विभागाध्यक्ष किसी के पास भी दायर कर सकता है। ऐसी प्रार्थना कहीं भी डाली जाये उस पर संबंधित जिलाधीश की रिपोर्ट लगती है। इस रिपोर्ट में बहुत सारे बिन्दुओं पर सूचना दी जाती है। जिसमें यह शामिल रहता है कि ज़मीन बेचने वाला ज़मीन बेचने के बाद भूमिहीन तो नही हो जायेगा। जम़ीन पर कोई पेड तो नही है यदि है तो उनकी किस्म क्या है। फिर जिस उद्देश्य के लिये ज़मीन ली जा रही है उससे जुड़े विभाग से एनओसी इसी के साथ बिजली, पानी, सड़क सभी विभागों से भी एनओसी चाहिये। यह एनओसी मिलने के साथ जिलाधीश रिपोर्ट लगाकर फिर सचिव को भेजगा। सचिव से फिर मुख्यमन्त्रा तक फाईल जायेगी। इसके लिये वाकायदा स्टैण्डिंग आर्डर जारी है कि धारा 118 के तहत अनुमति की कोई भी स्वीकृति सचिव या मन्त्री के स्तर पर नही होगी। यह अनुमति केवल मुख्यमन्त्री के स्तर पर ही मिलेगी। यह पूरी प्रक्रिया परिभाषित है। इसमें फील्ड के एनओसी फिर जिलाधीश सबकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। सचिव के स्तर पर तो यह देखा जाता है कि वांच्छित अनुमतियां और रिपोर्ट है या नही। इसे स्वीकारने या नकारने का अन्तिम फैसला तो मुख्यमन्त्री का रहता है।
अब जब 118 के मामले में प्रधान सचिव राजस्व से पूछताछ की जायेगी तो निश्चित रूप से उसके बाद मुख्यमन्त्री से भी पूछताछ करनी पड़ेगी। 2007 के दिसम्बर में भाजपा की धूमल के नेतृत्व में सरकार बन गयी थी। उस दौरान धूमल सरकार पर हिमाचल ऑनसेल का आरोप लगा था। विधानसभा में 25.8.2011 को कुलदीप सिंह पठानिया, कौल सिंह और जी एस बाली का प्रश्न लगा था इसमें पूछा गया था कि जनवरी 2008 से अब तक कितने गैर हिमाचलीयों और गैर कृषको को धारा 118 के तहत अनुमतियां दी गयी हैं। कितनों को अनुमति के बाद भू उपयोग बदलने की भी अनुमति दी गयी है। इस प्रश्न के उत्तर में 1004 गैर हिमाचलीयों और 370 गैर कृषकां को अनुमति दी गयी है। इसमें कुछ आईएएस भी अनुमति पाने वालों में शामिल हैं। इसके बाद राजन सुशान्त ने भी किसी के नाम पर आरटीआई डालकर इन अनुमतियां की जानकारी ली है। जिसमें कई पत्रकार और अखबार घराने तक शामिल हैं। आरटीआई में हजा़रो की सूची सामने आयी है। अब जब जयराम सरकार ने यह जांच शुरू करवा दी है तो निश्चित रूप से इन सारे मामलों की जांच करवानी ही पड़ेगी। यदि सरकार जांच को सीमित रखने का प्रयास करेगी तो उसे कोई भी न्यायालय में चुनौती दे देगा। जिस अफसरशाही ने इस जांच की विसात बिछाई है वह इस प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित है। इससे स्वतः ही सि़द्ध हो जाता है कि हिमाचल ऑन सेल के जिस आरोप की जांच वीरभद्र सरकार ने नही करवाई वह जांच अब जयराम सरकार करवाने जा रही है।
धूमल-वीरभद्र दोनों की ही सरकारें आयेंगी जांच के दायरे में
शिमला/शैल। सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने वीरभद्र सरकार के कार्यकाल मे हुई कुछ धांधलियों को उजागर करते हुए जयराम ठाकुर की सरकार से इस संबंध में एफआईआर दर्ज करके जांच किये जाने की मांग की है। स्मरणीय है कि इस बारे में सानन ने जून माह में भी मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर यह मांग की थी। लेकिन तीन माह में इस पत्र पर कोई कारवाई न होने के कारण सानन ने अब एक पत्रकार वार्ता करके इसे सार्वजनिक संज्ञान में ला दिया है। यहां यह विचारणीय है कि सानन और मुख्य सचिव विनित चौधरी एक ही बैच के अधिकारी हैं और जब वीरभद्र शासनकाल मे इनको नज़रअन्दाज करके वीसी फारखा को मुख्य सचिव बना दिया गया था तब इन दोनों ने ही संयुक्त रूप से एक याचिका डालकर फारखा की नियुक्ति को कैट में चुनौती दी थी। इस चुनौती के परिणामस्वरूप जब कैट ने चौधरी को फारखा के समकक्ष सिवधाएं प्रदान करवा दी थी और चौधरी ने छुट्टी कैन्सिल करके पुनः पदभार संभाल लिया था तब भी सानन को अपनी सेवानिवृति से एक सप्ताह पहले तक छुट्टी पर रहना पड़ा था। उस समय ली गयी तीन माह की छुट्टी का लाभ चौधरी ने मुख्य सचिव बनने के बाद 2018 में सानन को स्टडी लीव के रूप में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर से दिलवाया। इस खुलासे से यह स्पष्ट हो जाता है कि चौधरी और सानन में कितने घनिष्ठ रिश्ते है।
लेकिन जब इतने घनिष्ठ रिश्ते होने के बावजूद चौधरी ने सानन के पत्र पर कोई कारवाई नही की और सानन को आर.एस. गुप्ता को साथ लेकर पत्रकार वार्ता करनी पड़ी तो निश्चितरूप से इस मामले के उस पक्ष को देखना आवश्यक हो जाता है जो अबतक सामने नही आया है। गौरतलब है कि जो पत्रा जून में सानन ने मुख्य सचिव को भेजा था उसमें होटल वाईल्ड फ्रलावर छराबड़ा और रामपुर के मन्दिर को ग्रांट देने के मामले शामिल नही थे। छराबड़ा के होटल का मामला निश्चित रूप से अन्य मामलों से ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि इसमें प्रदेश सरकार को जो प्रतिवर्ष करोड़ों की आमदनी होनी थी वह नही हो रही हैं। इस होटल प्रकरण में दो-दो बार एमओयू हस्ताक्षरित हुए हैं। इस होटल प्रकरण का तो विशेष ऑडिट करवाये जाने की सिफारिश ए.जी. तक ने की हुई हैं। लेकिन आज तक यह ऑडिट नही हो पाया है क्योंकि किसी भी सरकार ने इस आश्य का पत्र कैग को लिखने की हिम्मत नही की है। यह होटल प्रकरण 1993 से 1995के बीच घटा है और इसके बाद दो बार भाजपा तथा दो बार कांग्रेस की सरकारें रह चुकी हैं। ऐसे में जब आज इस मामले में वाकायदा एफआईआर दर्ज करके जांच करवायी जाने की मांग की जा रही है तो निश्चित रूप से इस जांच के दायरे में वीरभद्र के साथ ही धूमल का भी दोनो बार का कार्यकाल रहेगा ही।
इसमें यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या इस होटल का मामला किसी विशेष राजनीतिक मकसद से उठाया गया है। क्योंकि इस प्रकरण में कैग से विशेष ऑडिट करने के लिये तो जयराम सरकार की ओर से भी कोई कदम नही उठाया गया हैं । वैसे तो सानन स्वयं भी एक समय वित्त विभाग की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं और ऐसे मामलों में जब भी कोई एमओयू हस्ताक्षरित होने की कारवाई होती है तब ऐसे बड़े फैसलों में वित्त सचिव या उसका कोई प्रतिनिधि शामिल रहता है ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके की इसमें राज्य के हित सुरक्षित रह रहे है या नही। ऐसे मे यह होटल प्रकरण एक ऐसा मुद्दा खड़ा हो गया है कि यदि इसमें सरकार कोई कारवाई नही करती है तो कोई भी इसे जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय तक ले जा सकता हैं।
सानन के पत्रा और अब पत्रकार वार्ता के बाद यह संभावना भी प्रबल हो गयी है सानन के स्टडीलीव और टीडी लेने के मामलों को भी कोई विजिलैन्स और फिर अदालत में ले जा सकता है। क्योंकि स्टडीलीव मामले में जो जवाब विधानसभा में आये एक प्रश्न के उत्तर में दिया गया है उससे स्थिति और गंभीर हो गयी हैं इस जवाब में स्टडी लीव के जो नियम पटल पर रखे गये हैं उनके अनुसार इस स्टडीलीव के लिये पहले भारत सरकार से अनुमति लेना आवश्यक था जो नही ली गयी है। फिर स्टडी पर जाने से पहले एक बॉंड भरना पड़ता है जो कि नही भरा गया। जबकि मुख्य सचिव विनित चौधरी ने उस समय ऐसी ही छुट्टी जाने पर बॉंड भरा था। जिसको लेकर अब एक विवाद भी चल रहा है फिर सानन ने इस स्टडी लीव के बाद जो करीब तीस पन्नों का अपना अध्ययन ''Property Titling in India'' जो सरकार को सौंपा है उससे सरकार को कितना लाभ हुआ है और इस अध्ययन के आधार पर आगे क्या कदम उठाये गये है। इस बारे में प्रश्न के जवाब में कुछ नही कहा गया है जानकारों के मुताबिक मुख्यमन्त्री को इसका जवाब देना कठिन हो जायेगा क्योंकि सानन को सेवानिवृति के बाद यह स्टडीलीव लाभ उनके अनुमोदन से ही मिला है। नियमों के मुताबिक सानन इस लाभ के पात्र नही थे।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में प्लानिग एरिया के अन्दर घरेलू उपयोग, व्यवसायिक उपयोग और निर्माणों के लिये पानी का कनैक्शन प्राप्त करने के लिये कोई भी स्वीकृत नियम नही हैं। यह जानकारी नगर निगम ने डा. बंटा को आरटीआई के तहत उपलब्ध करवाई हैं। नगर निगम शिमला में पिछले दिनां हुआ पेयजल संकट अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक चर्चा में रहा हैं। क्योंकि इस संकट पर एक पखवाडे़ तक प्रदेश उच्च न्यायालय ने लगातार मामले की सुनवाई की और कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय करोल ने स्वयं सड़क पर निकलकर इस समस्या की गंभीरता की व्यक्तिगत स्तर पर जानकारी हासिल की। यही नही शिमला में लोगों को किन दरां पर पानी की सप्लाई की जा रही है इसको लेकर भी विवाद चल रहा है। विधानसभा तक को निगम की ओर से यह जानकरी दी गयी है कि पानी का बिल मीटर रिडिंग पर दिया जा रहा है जबकि यह बिल फलैट रेट पर दिये जा रहे हैं।
आम आदमी की यह धारणा है कि निगम घरेलू, व्यवसायिक और भवन निर्माण कार्यो के लिये अलग- अलग दरां पर बिल देता है एक से अधिक कनैक्शन नही दिये जाते है। लेकिन यह सारी धारणा आरटीआई में आयी जानकारी के बाद एकदम धराशायी हो जाती हैं। होटल लैण्डमार्क के संद्धर्भ में मांगी गयी जानकारी में यह सूचना आयी है कि पानी का कनैक्शन देने के लिये प्लानिग एरिया मे नगर निगम शिमला के पास कोई स्वीकृत निमय नही हैं। सबकुछ संबधित अधिकारी की ईच्छा पर ही निर्भर करता है। होटल लैण्डमार्क को पांच कनैक्शन दिये गये है जिसमें कुछ कनैक्शन होटल लैण्डमार्क के नाम पर तथा कुछ टी.आर. शर्मा और विनोद अग्र्रवाल के नाम पर है। एक ही होटल में अगल-अगल नामों पर पाये गये कनैक्शनों से यह प्रमाणित हो जाता है कि वास्तव में ही कोई नियम नही है।

शिमला/शैल। एच.पी.सी.ए. सोसायटी है या कंपनी यह विवाद पिछले छः वर्ष से भी अधिक सयम से आर.सी.एस. की अदालत में लंबित चला आ रहा है। जबकि एच.पी.सी.ए. को लेकर विजिलैन्स ने कई मामले दर्ज किये और उनके चालान भी अदालत तक पंहुचा दिये है। लेकिन इस प्रकरण में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई थी जिसमें सानन आदि कई अधिकारी भी बतौर दोषी नामज़द हैं। उसका चालान जब धर्मशाला के ट्रायल कोर्ट में पंहुचा था और उसका संज्ञान लेकर अदालत ने अगली कारवाई शुरू की थी तब इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती देकर इस संद्धर्भ में दर्ज एफआईआर को रद्द किये जाने की गुहार एच.पी.सी.ए. के ओर से लगायी थी उच्च न्यायालय ने इस गुहार को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद इसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी थी । इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट की कारवाई स्टे कर दी थी। यह मामला अभी तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है।
अब जब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और जयराम सरकार ने घोषणा की कि राजनीतिक द्वेष से बनाये गये सारे मामले वापिस लिये जायेंगे तब सर्वोच्च न्यायालय में भी सरकार और एच.पी.सी.ए. दोनों की ओर से सरकार यह कथित फैसला सामने लाया गया। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकार मामला वापिस लेती है तो उसे कोई एतराज नही होगा। अन्यथा मामला मैरिट पर सुना जायेगा और उसका परिणाम कुछ भी हो सकता है। यहां यह भी स्मरणीय है कि इस मामले में एच.पी.सी.ए. ने वीरभद्र को भी उच्च न्यायालय में प्रतिवादी बनाया था और अब सर्वोच्च न्यायालय में भी वह पार्टी हैं । इस मामले मे जब भी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुइ है तब तब वीरभद्र के वकील उसमें मौजूद रहे है। वीरभद्र इस मामले में दर्ज एफआईआर वापिस लिये जाने का विरोध करते आ रहे है। संभवता इसी कारण से मामला वापिस लेने की दिशा में सरकार की ओर से कोई व्यवहारिक कदम नही उठाया गया है। एच.पी.सी.ए. को अदालत ने अपने तौर पर मामला वापिस लेने का अवसर दिया था क्योंकि अपील में एच.पी.सी.ए.ही अदालत पंहुची है। इस वस्तुस्थिति में एचपीसीए ने अदालत से ही यह आग्रह किया है कि वही इस पर फैसला करे अब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला कब और क्या आता है इस पर सबकी निगांहे लगी हुई है।
लेकिन इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय ने जो प्रदेश सरकारों और उच्च न्यायालयों को विधायकों /सांसदों के आपराधिक मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर सुनिश्चित करने के लिये विशेष अदालतें गठित करने के निर्देश दिये थे। उस पर क्या अनुपालना हुई है इस पर रिपोर्ट तलब की है। अदालत ने इस पर केन्द्र सरकार से नाराज़गी भी जाहिर की है। यह विशेष अदालतें मार्च 2018 तक गठित की जानी थी। हिमाचल प्रदेश सरकार और उच्च न्यायालय की ओर से इस संद्धर्भ में कोई कदम नही उठाया गया है। इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को एक रिपोर्ट जनवरी में भेजी गयी थी। जिसमें कहा गया था कि प्र्रदेश में विधायकों /सांसदों के खिलाफ 84 मामले हैं इनमें 20 मामले 2014 से पहले के हैं और 64 मामले उसके बाद के है। सर्वोच्च न्यायालय को भेजी गयी रिपोर्ट में सूत्रों के मुताबिक मामलों की संख्या तो दिखायी गयी है लेकिन इसके लिये विशेष अदालत बनाने की आवश्यकता है या नही इस बारे में कुछ स्पष्ट नही किया गया है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस संद्धर्भ में फिर कड़ा रूख अपनया है। माना जा रहा है कि अदालत के रूख को भांपते हुए सरकार ने एच.पी.सी.ए. का जो मामला आर.सी.एस.के पास लंबित चल रहा था उसे वहां से हटाकर मण्डलायुक्त शिमला को सौंप दिया है।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों हुए प्रशासनिक फेरबदल में सरकार ने ऐसे अधिकारी को आर.सी.एस. लगा दिया जो स्वयं एच.पी.सी.ए. में दोषी नामजद है। ऐसे में उस अधिकारी के लिये यह मामला सुन पाना संभव नही था। इसमें दो बार इस मामले की पेशीयां लगी और दोनों बार उसे छुट्टी पर जाना पड़ा। अब उसने सरकार के सामने लिखित में जब यह वस्तुस्थिति रखी तब सरकार ने यह मामला मण्डलायुक्त को सौंप दिया हैं अब मण्डलायुक्त इसमें कितनी जल्दी फैसला देते हैं इस पर सबकी निगांहे लगी है।