शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दावा किया है कि उन्होने केन्द्र से नौ हजार करोड़ की योजनाएं स्वीकृत करवा ली है। इसी दावे के साथ प्रदेश को सैद्धान्तिक तौर पर मिले 70 राष्ट्रीय उच्च मार्गों के लिये भी केन्द्र से प्रदेश को 65000 करोड़ रूपये स्वीकृत होने को एक बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है। मुख्यमन्त्री के इन दावों की ज़मीनी सच्चाई क्या है इसको लेकर नेता प्रतिप़क्ष मुकेश अग्निहोत्री ने सरकार से इन योजनाओं की तफसील के साथ इस संबन्ध में एक श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। मुख्यमन्त्री के इन दावांे पर इसलिये
सवाल उठाये जा रहे हैं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान मण्डी में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री मोदी ने भी वीरभद्र सरकार से 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा था। मोदी ने दावा किया था कि उसकी सरकार ने हिमाचल को 72 हजार करोड़ दिये हैं और सरकार बताये उसने यह पैसा कहां खर्च किया है। लेकिन मोदी के इस दावे पर जयराम के बजट भाषण ने प्रश्नचिन्ह लगा दिया जब बजट मे यह कहा गया कि केन्द्र से प्रदेश को करीब 42 हजार करोड़ मिले हैं। आंकड़ो के इस खेल ने विधानसभा चुनाव में जो प्रभाव दिखाना था वह उस समय हो गया और इसके परिणामस्वरूप यहां पर भाजपा की सरकार बन गयी। क्योंकि उस समय इन आंकड़ों को किसी ने चुनौती नही दी थी। परन्तु अब मुकेश ने आंकड़ो की इस बाजीगरी को समझते हुए मुख्यमन्त्री को इस पर श्वेत पत्र जारी करने की चुनौती दे डाली है और जयराम इस चुनौती को स्वीकार नही कर पाये हैं। मुख्यमन्त्री इन आंकड़ो के स्पष्टीकरण में केवल यही कर पाये हंै कि यह योजनाएं सिद्धान्त रूप में स्वीकार हुई हैं और इन्हें अमलीशक्ल लेने में वक्त लगेगा। इसी के साथ मुकेश ने जगत प्रकाश नड्डा को लेकर आये ब्यानांे और समाचारों पर चुटकी लेते हुए जयराम द्वारा की गयी ताजपोशीयों को दवाब का परिणाम कहा है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु ने तो दो कदम और आगे जाकर यहां तक कह दिया कि जयराम तो केवल मुखौटा हैं तथा सरकार तो आरएसएस चला रहा है। मुकेश और सुक्खू के ब्यानों पर पलटवार करते हुए जयराम ने इन्हे यह सुझाव दिया है कि वह अपने घर संभाले क्योंकि वहां पर अभी कई लोगों की नेता प्रतिप़क्ष तथा प्रदेश अध्यक्ष होने पर नज़रें लगी हुई हैं। यह सही है कि कांग्रेस में अध्यक्ष को बदले जाने को लेकर इन दिनों अटकलों का बाज़ार बहुत गर्म चल रहा है। कई नाम चर्चा में चल रहे हैं लेकिन इसी के साथ यह भी हकीकत है कि इन दिनों कांग्रेस एक जुट भी होती जा रही है और इस एकजुटता के परिणामस्वरूप आजकल वीरभद्र-सुक्खू के वाक्युद्ध पर भी पूरी तरह विराम लग गया है। इससे यह स्पष्ट संकेत उभर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पूरी तैयारी और रणनीति के साथ उतरने वाली है।

शिमला/शैल। एनजीटी ने शिमला के कोर/ग्रीन एरिया में नये निर्माणों पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाया हुआ है। इस प्रतिबन्ध के चलते इन क्षेत्रों में केवल पुराने निर्माणों को ही नये सिरे से बनाया जा सकता है। इसके लिये भी नक्शा एनजीटी के फैसले की अनुपालना में बनाई गयी कमेटीयां ही पास करेंगी। लेकिन क्या प्रशासन एनजीटी के इन आदेशों की अनुपालना करवा पा रहा है यह सवाल शहर के ग्रीन/कोर एरिया में अभी भी चल रहे निर्माणांे के कारण उठा है।
शहर का निगम बिहार एरिया ग्रीन एरिया में आता है और इस नाते यहां पर नये निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबन्ध है। पुराने निर्माण भी अढ़ाई मंजिल से ज्यादा के नही बन पायेंगे। यहां पर एक भवन का तीन मंजिलों का निर्माण 1993 में पूरा हो गया था। उसके बाद शायद 1994 में चैथी मंजिल का निर्माण रिटैन्शन के तहत मुआवजा देकर कर लिया गया। लेकिन अब 2018 में एनजीटी के फैसले के बाद पंाचवी मंजिल का निर्माण हो रहा है। जब यह निर्माण नगर निगम के संज्ञान में आया तब इस पर नोटिस जारी हुआ लेकिन नोटिस से काम नही रूका। इस पर जब पुनः निगम प्रशासन के संज्ञान में इसे लाया गया तब यह सामने आया कि भवन मालिक से नक्शा मांगा गया है और मालिक का दावा है कि उसका नक्शा पास है।
इसमें यह सवाल उठ रहा है कि जो भवन 1994 में पूरा हो गया है उसमें अब 2018 में एनजीटी के फैसले के बाद छत डालने के नाम पर पांचवीं मंजिल की अनुमति कैसे दी जा सकती है। क्या निगम ऐसी ही अनुमतियां औरों को भी उपलब्ध करवायेंगे? क्योंकि अब तो सभी जगह अढ़ाई मंजिल तक का ही निर्माण होना है। फिर यह छत के नाम पांचवी मंजिल कैसे?
शिमला/शैल। पूर्व मन्त्री और जुब्बल कोटखाई के विधायक नेरन्द्र बरागटा को पिछले दिनों भाजपा विधायक दल का मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है और उन्होने यह ग्रहण भी कर लिया है। इस पद ग्रहण के बाद उन्होने अपने समर्थकों की एक रैली आयोजित करके मुख्यमन्त्री जयराम का धन्यवाद भी किया है। जयराम सरकार ने बजट सत्रा के दौरान एक विधेयक लाकर मुख्य सचेतक और उप मुख्य सचेतक को मन्त्री के ही समकक्ष वेतन भत्तेेेे एवम् अन्य सुविधाएं दे दी हैं। बरागटा को सचिवालय में कार्यालय भी दे दिया गया है। अब धन्यवाद मिलने के बाद जयराम ने बरागटा को सरकार के जनमंच कार्यक्रम सचिवालय स्तर पर कोआरडिनेटर भी लगा दिया है।
सरकार में सचेतक मुख्य सचेतक या उप मुख्य सचेतक के नाम से कोई पद सृजित नही है। संविधान में मुख्यमन्त्री से लेकर उपमुख्यमन्त्री तक के पद परिभाषित है। इन पदों के अधिकार और कर्तव्य भी परिभाषित हैं लेकिन सचेतक की सरकार में कोई भूमिका नही है। सरकार में उसका न ही कोई अधिकार है और न ही कोई कर्तव्य। सचेतक केवल एक पार्टी के विधायक दल का पदाधिकारी है। इसलिये वेतन भत्तों का जो विधेयक पारित किया है उसमें सचेतक के अधिकारों और कर्तव्यों का भी कोई उल्लेख नही है। इस तरह मुख्य सचेतक को अपने विधायक दल का कर्तव्य निभाने के लिये सरकार की ओर से मन्त्री के बराबर वेतन भत्ते एवम् अन्य सुविधायें दिया जाना एक चर्चा का विषय बनकर उभरा है। अब सरकार ने जो जन मंच का कार्यक्रम शुरू किया है वह भी सरकार में कोई अलग से विभाग नही है। इस कार्यक्रम के तहत भी जो शिकायतें आयेंगी और जिनका मौके पर ही निपटारा नही हो पायेगा उनका सचिवालय स्तर पर समन्यव करेंगे। लेकिन इनमें भी अपने स्तर पर वह कोई योगदान नही कर सकेंगे। यह काम एक मन्त्री स्तर के व्यक्ति की बजाये सचिवालय का साधारण सहायक भी कर सकता था। इस तरह बरागटा को सचिवालय में कार्यालय देने को जायज ठहराने का प्रयास किया गया है। क्योंकि समन्वयक के लिये कोई अलग से वेतन भते नही हैं और इस नाते वह लाभ के पद की परिभाषा के दायरे से बाहर रह सकेगा। लेकिन बतौर मुख्य सचेतक या समन्वयक संविधान के तहत कोई गोपनीयता की शपथ तो ली नही है। जबकि जन मंच के समन्वय के तौर पर उनके पास कई विभागों से जुड़े दस्तावेज आयेंगे और तब यह सवाल उठेगा कि जिस व्यक्ति का पद संविधान में परिभाषित नहीं है न ही जिसने संविधान के तहत गोपनीयता की कोई शपथ ली है उसके पास कोई भी सरकारी दस्तावेज किस अधिकार से आ सकते हैं यह सवाल देर सवेर उठेंगे ही। जैसे कि राज्यपाल के सलाहकार के पद को लेकर सवाल उठाया और तब उस पद का नाम बदल कर मीडिया सलाहकार करना पड़ा था।
बरागटा एक भले और कर्मठ व्यक्ति हैं बतौर मंत्री उनका योग्दान सराहनीय रहा है। लेकिन इस बार जब वह मंत्री नहीं बन पाए और सचेतक बनने के लिए भी उन्हें काफी प्रयास करने पड़े है। और यह सब कुछ करने के बाद भी यह आंशका बराबर बना रहेगी कि यदि इस विधेयक को उच्च न्यायालय में चुनौती मिली तो इससे नुकसान भी हो सकता है। मुख्य सचेतक और समन्वयक बनने से यह संदेश आम आदमी में जाता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नही चल रहा था। कभी भी कोई भी बड़ा विस्फोट घट सकता है। इस तरह के प्रयासों से उस संभावना को कन्ट्रोल करने की कवायद की गई है। लेकिन मंत्री और सचेतक के बीच जो पद प्रतिष्ठा का अन्तराल है क्या उसकी टीस ऐसे प्रयासों से कम हो पायेगी- शायद नही। क्योंकि जिन लोगों को मंत्री रह चुकने के बाद अब इन पदों पर अपना आत्म सम्मान दांव पर लगाना पड़ा है वह हर समय इस ताक में रहेंगे कि कब उनको कुछ और करने का मौका मिले। विधानसभा के पिछले सत्र में धवाला ने जिस तर्ज और मुद्रा में सरकार से कई कुछ असहज सवाल पूछे थे। इसी का परिणाम है कि वह योजना के उपाध्यक्ष बन पाये हैं। यह पद मुख्य सचेतक से हर तरह से बेहतर है क्योंकि इसको लेकर शायद कोई संवैधानिक सवाल न उठें।
शिमला/शैल। शिमला में बस किराया बढ़ोतरी के बाद भी बसों में भेड़-बकरियों की तरह सफर करने पर मजबूर व प्राईवेट बसों में प्र्रताड़ना सह रही शिमला की जनता को प्रदेश सरकार आरामदायक यात्रा सुविधा एवं प्रदुषण मुक्त परिवहन व्यवस्था के लिए शीघ्र ही 30 नई इलेक्ट्रिक बसें देने जा रही है। इससे पहले भी सरकार इलेक्ट्रिक टैक्सी शिमला शहर में शुरू कर चुकी है। नया बस अड्डा बने काफी अरसा बीत चुका है लेकिन आज भी पुराने बस अड्डे से नए बस अड्डे के लिए बसों में जिस तरह की भीड़ हर समय नज़र आती है वह परिवहन निगम की कार्यप्रणाली की पोल खोलता है। इतने अरसे बाद भी पुराने बस अड्डे से नए बस अड्डे व अन्य लोकल स्टेशनों के लिए सुचारू रूप से बस सेवा उपलब्ध नहीं है जिसके कारण यात्रियों को जगह-जगह धक्के खाने पड़ते है। इस समय शिमला शहर में प्राइवेट बसें जिस तरह नियमों को ताक पर रख कर चल रही हैं वह हर वक्त किसी बड़े हादसे को न्योता देती है।
अब सरकार ने नई इलेक्ट्रिक बसें खरीदने के आदेश जारी कर दिये गए हैं। इन बसों से शिमला शहरवासियों को जहां आरामदायक यात्रा सुविधा हासिल होगी वहीं धुआं रहित इन बसों से दिनों-दिन बढ़ते प्रदूषण से भी निजात मिलेगी। शिमला शहर के लिए केन्द्र सरकार के भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मन्त्रालय के सहयोग से 50 इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जानी हैं, जिनमें तीस बसें 9 मीटर तथा बीस बसें 7 मीटर लम्बाई की हैं।
प्रदेश सरकार देश भर से न्यूनतम कीमत में बसों को खरीद रही है। प्रदेश सरकार 76.97 लाख रुपए में 9 मीटर लम्बी 31 सीटर 30 इलेक्ट्रिक बसें खरीद रही है जो पूर्व की कांग्रेस सरकार द्वारा करीब दो करोड़ रुपए में खरीदी गई बसों से गुणवता, कीमत तथा आराम के मामलों में अब्बल हैं। इन खरीदी जा रही बसों की यह विशेषता है कि पूर्व में खरीदी गई बसें फुल चार्ज होने में पांच से छः घंटे का समय लेती थी। जबकि ये बसें केवल आधे घन्टे में ही फुल चार्ज हो जाएगी। प्रदेश सरकार मितव्ययिता को ध्यान में रखते हुए कम से कम कीमत पर प्रदेशवासियों को आरामदायी एवं प्रदूषण मुक्त परिवहन सुविधा प्रदान करने जा रही है।
सात मीटर लम्बाई की 20 और बसें शिमला शहर के लिए खरीदी जानी हैं, जिन्हें खरीदने की प्रक्रिया जारी है। औपचारिकताएं पूर्ण होने बाद शीघ्र ही ये 20 बसें भी शिमला शहरवासियों को उपलब्ध हो जाएंगी। इन इलेक्ट्रिक बसों से शहर की जनता का सफर आराम दायक हो पाऐगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
शिमला/शैल। प्रदेश विजिलैन्स ने 3.9.14 को संजौली निवासी एक शान्ता लाल चोपड़ा के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(1) (d) r/w 13(2) और आई पी सी की धारा 420/336/120-b के तहत एक एफ आई आर विजिलैन्स थाना शिमला में दर्ज की थी। इस एफ आई आर की संस्तुति थाना को एस पी विजिलैन्स के कार्यालय द्वारा प्रारम्भिक जांच करने के दौरान 270 पेज के दस्तावेज कब्जे में लेने के बाद 2.9.14 को की गयी थी। एस पी विजिलैन्स ने यह जांच अपनी ही सोर्स रिपोर्ट के आधार पर करके इस संद्धर्भ में एफ आई दर्ज करने के निर्देश दिये थे। जिन पर यह एफ आइ आर दर्ज भी हो गयी और नियमानुसार इसकी एक प्रति सूचनार्थ संबधित कोर्ट को भी भेज दी थी। सूत्रों के मुताबिक कोर्ट ने इस पर कुछ प्रश्न चिन्ह लगाकर इसे वापिस विजिलैन्स को भेज दिया था और उसके बाद शायद अब तक इसकी सूचना अदालत में नही पंहुची और न ही इस मामले में कोई जांच अब तक आगे बढ़ी। स्वाभिक है कि जब विजिलैन्स स्वंय अपनी ही सोर्स रिपोर्ट के आधार पर कोई मामला दर्ज करती है तो यह मामला उसकी नजर में एक गम्भीर मामला रहा होगा। लेकिन जब चार सालों में उस पर कोई जांच ही न हो तो यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि यह मामला दर्ज करके विजिलैन्स ने अपना ही बस्ता भारी क्यों कर लिया?
इस सवाल की पड़ताल के लिए इसमें दर्ज हुई एफ आई आर के आरोंपों पर नज़र डालना आवश्यक है। इसमें चोपड़ा के खिलाफ पांच आरोप है। पहला है कि उसने संजौली में एक सात मे जिला भवन का निमार्ण कर लिया है जबकि उसका नक्शा तीन मंजिलों का ही स्वीकृत था। इस भवन का रिर्वाइजड़ प्लान नगर से पास करवाने के लिये चोपड़ा अदालत में भी गये और अन्ततः 91852 रूपये जुर्माने के साथ इसे स्वीकृत भी कर लिया गया। यह भी एफ आई आर में ही दर्ज है। दूसरा आरोप है कि चोपड़ा ने 1986 में माल रोड़ शिमला पर एक रघुनाथ से पुराना भवन खरीदा जिसका उस समय तीन मंजिल तक का नक्शा पास था। लंकिन चोपड़ा ने इसमें भी स्वीकृति से अधिक निर्माण कर लिया। इस निर्माण को नगर निगम के अधिकारियों के साथ मिलिभगत करके नियमित करवाने का आरोप है। तीसरा आरोप है कि चोपड़ा बिना किसी पंजीकरण के बिल्डर का काम कर रहा है। नियमानुसार बिल्डर की परिभाषा में वह व्यक्ति आता है जो बीस या इससे अधिक फ्लैट/प्लाट एक वर्ष में निर्माण करके बेचे। चोंपड़ा ने कहां 20 फ्लैट बनाये और बेचे इसका कोई विविरण एफ आई आर में नही है। चौथा आरोप है कि चोपड़ा ने कुफ्टाधार में फ्लैट बनाये और बेच दिये। इसमें ज्यादा कीमत पर बेचने और उसे कम में दिखाने का आरोप है। पांचवा आरोप है कि चोपड़ा ने अपने आर्किटैक्ट प्लानर डी आर पवार के जाली दस्तख्त करके कुफ्टाधार का रिवाईजड़ प्लान 2009 में सौंपा था। डी आर पवार की मौत 2011 में हो चुकी है और यह एफ आई आर 2014 में हो रही है।
इस एफ आई आर को देखने से यह सामने आता है कि जो भी प्रापर्टी चोपड़ा ने खरीदी और उसमें निर्माण किया उसमें मूल स्वीकृत प्लान से अधिक का निर्माण कर लिया गया बाद में अधिकारियों से मिल मिलाकर उसे नियमित करवा लेने का आरोप है। यह आरोप कितने सही है यह तो जांच से पता चलेगा। लेकिन जब एफ आई आर में ही यह आ जाता है कि 91852 रूपये का जुर्माना देकर नियमित किया गया है तो उससे सारे आरोपों की विश्वसनीयता पर स्वंय ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। क्योंकि प्रदेश में अवैध निमार्णो को नियमित करने के लिए नौ बार रिटैन्शन पॉलिसिंया लायी गयी है।
सत्राह बार आन्तिरम प्लान में संशोधन हुए हैं इस मामले में भी जब एक लाख के करीब जुर्माने का तथ्य रिकार्ड पर है। तो उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सब रिटैन्शन पॉलिसी के तहत ही हुआ होगा। रिटैन्शन पॉलिसीयां तो अवैधताओं को नियमित करने के लिये ही लायी गयी है। इस एफआईआर को लेकर जब चोपड़ा से उसका पक्ष पुछा गया तो उसने स्पष्ट कहा कि उसने कोई भी काम नियमो के विरूद्ध नही किया है। सारे प्लान वाकायदा स्वीकृत है और उसपर लगाये जा रहे सारे आरोप एकदम वेबुनियाद है।
यह मामला विजिलैन्स ने अपनी सोर्स रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया है। इससे अवैध निर्माणों को लेकर विजिलैन्स की चिन्ता और यह सक्रियता स्वागत योग्य हैं यहां विजिलैन्स से यह अपेक्षा है कि अभी अवैध निर्माणों को लेकर एनजीटी ने 16.11.17 को जो फैसला दिया है कि उसे आधार बनाकर इस संद्धर्भ में कारवाई करे। एनजीटी के फैसले में यह आया है कि शिमला में ही आठ हज़ार से अधिक ऐसे निर्माण हुए है जिसका कभी कोई नक्शा - पर्चा बना ही नही है औरे वह सिर से एकदमे अवैध है। नगर निगम क्षेत्रा में सात मंजिलों से लेकर ग्यारह मंजिलों तक बने भवनों की सुची तो विधानसभा के पटल तक आ चुकी है जिनके खिलाफ कोई कारवाई नही हुई है। आज भी नगर निगम के हर वार्ड में ऐसे निर्माण चल रहे मिल जायेंगे जिनके खिलाफ एनजीटी के फैसले के बाद कारवाई करनी ही पड़ेगी। ऐसे में जब विजिलैन्स चोपड़ा के खिलाफ अपनी सोर्से रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज कर सकती है तो जो रिकॉर्ड अब अदालती फैसलों के माध्यम से सामने आया है और उसके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश हैं तो उन निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये कोई कदम क्यो नही उठाये जा रहे हैं। यही नहीं विजिलैन्स के पास सरकार द्वारा 31 अक्तूबर 1997 को अधिसूचित रिवार्ड स्कीम के तहत आयी दर्जनों शिकायतें आज भी वर्षो से लंबित चली आ रही है। लेकिन उन पर भी कारवाई का साहस नही जुटा पा रही है। क्या विजिलैन्स अपने पुराने रिकॉर्ड को खंगाल कर उन शिकायतों पर कारवाई सुनिश्चित करेगी। अब तो सरकार ने विजिलैन्स के लिये एक पुलिस के ही अधिकारी को सचिवालय में प्रधान सचिव विजिलैन्स की जिम्मेदारी दे रखी है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि विजिलैन्से एनजीटी के फैसलों पर अमल सुनिश्चित करने के लिये कारगर कदम उठायेगी। अन्यथा विजिलैन्स पर ही यह आरोप लगेगा कि कुछ निहित स्वार्थो के लिये ही लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके उन्हे वर्षो तक लटकाये रखा जाता है। विजिलैन्स की सुविधा के लिये एनजीटी के फैसले का एक निर्देश सामने रखा जा रहा है। ॅी
Wherever unauthorised structures, for which no plans were submitted for approval or NOC for development and such areas falls beyond the Core and Green/ Forest area the same shall not be regularised or compounded. However, where plans have been submitted and the construction work with deviation has been completed prior to this judgement and the authorities consider it appropriate to regularise such structure beyond the sanctioned plan, in that event the same shall not be compounded or regularised without paymentof environmental compensation at the rate of Rs. 5,000/- per sq. ft. in case of exclusive selfoccupied residential construction and Rs. 10,000/- per sq. ft. in commercial or residential-cum-commercial buildings. The amount so received should be utilised for sustainable development and for providing of facilities in the city of Shimla, as directed under this judgement.
No construction of any kind, i.e. residential, commercial, institutional or otherwise would be permitted within three meters from the end of the road/national highways in the entire State of HP, particularly, in Shimla Planning Area. We direct that all the concerned authorities shall duly enforce the valley view regulation and direct the same.
