Thursday, 18 September 2025
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सूचना एकत्रित की जा रही है इस जवाब से विपक्ष को तो शान्त किया जा सकता है जनता को नहीं

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार पहले दिन से ही वित्तीय संकट में चल रही है इसीलिये इस सरकार को पदभार संभालते ही जनवरी से मार्च तक ही कर्ज लेना पड़ गया था। इस कर्ज के आंकड़े डॉ.राजीव बिंदल ने आर.टी.आई. के माध्यम से जारी किये थे। मुख्यमंत्री सुक्खू ने प्रदेश की जनता को पदभार संभालते ही कठिन वित्तीय स्थिति की चेतावनी भी दे दी थी। मुख्यमंत्री इस वित्तीय स्थिति के लिये पूर्व की सरकार को दोषी करार देते आ रहे हैं। इस कठिन वित्तीय स्थिति से बाहर निकलने के लिये इस सरकार ने जहां कहीं भी संभव था वहां पर टैक्स लगाने का काम किया है। सरकार द्वारा प्रदान की जा रही हर सुविधा का शुल्क बढ़ाया है। डिपो में मिलने वाले सस्ते राशन के दामों में भी दोगुनी से ज्यादा कीमत बढ़ाई है। यह जानकारी सदन में एक सवाल के जवाब में आयी है। इस सरकार ने पिछली सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम छः माह में लिये फैसले बदल दिये थे। इन छः माह में खोले गये सारे संस्थान बंद कर दिये गये थे। सरकार ने अपनी ओर से वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिये हर संभव प्रयास किया है। लेकिन जितना प्रयास किया गया उसी अनुपात में स्थिती बद से बदतर होती चली गयी और इसी स्थिति के कारण आज हर कर्मचारी को तय समय पर वेतन का भुगतान नहीं हो पा रहा है और न ही पैन्शनरों को समय पर पैन्शन का भुगतान हो पा रहा है। जबकि हर माह औसतन एक हजार करोड़ का कर्ज यह सरकार लेती आ रही है। बल्कि जिस अनुपात में यह कर्ज लिया जा रहा है उसके मद्देनजर यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि आखिर इस कर्ज का निवेश हो कहां रहा है। कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में यह चिन्ता व्यक्त की है की कर्ज का 70% सरकार के वेतन पैन्शन और ब्याज के भुगतान पर खर्च हो रहा है। इस परिदृश्य में यह स्वभाविक है कि जिस अनुपात में कर्ज बढ़ेगा उसी अनुपात में नियमित और स्थायी रोजगार में कमी आती चली जायेगी।
यह सरकार विधानसभा चुनाव में दस गारंटियां बांट कर सत्ता में आयी थी। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन में यहां का सरकारी कर्मचारी, बेरोजगार युवा और महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये कर्मचारियों को पुरानी पैन्शन योजना की बहाली की गारंटी दी। बेरोजगार युवाओं को पांच वर्ष में पांच लाख नौकरियां देने का वायदा किया गया था जिसके मुताबिक हर वर्ष एक लाख नौकरी दी जानी थी। 18 वर्ष से 59 वर्ष की हर महिला को 1500 रूपये प्रतिमाह देने का वायदा किया गया और इसके तहत प्रदेश भर से 18 लाख महिलाओं को यह लाभ दिया जाना था। परन्तु आज प्रति वर्ष एक लाख नौकरियां देने के स्थान पर इस संबंध में पूछे गये प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हर सवाल के जवाब में सदन में यही कहा गया की सूचना एकत्रित की जा रही है। कर्मचारियों को ओ.पी.एस. देने के मामले में निगमों-बोर्डों के कर्मचारी अभी तक इस लाभ से वंचित हैं और हर दिन इसकी मांग कर रहे हैं। सरकार ओ.पी.एस. की जगह अब यू.पी.एस. की बात करने लग पड़ी है। कर्मचारियों को महंगाई भत्ते की किस्तों की अदायगी यह सरकार नहीं कर पायी है 11% का एरियर खड़ा हो गया है। संशोधित वेतनमानों का भुगतान नहीं हो पाया है। महिलाओं को 1500 प्रतिमाह दिये जाने का आंकड़ा 35687 महिलाओं पर ही आकर रुक गया है। जबकि वायदा 18 लाख महिलाओं से किया गया था। जब यह सवाल पूछा गया कि प्रदेश में कितनी महिलाओं को विभिन्न महिला योजनाओं के तहत कितना लाभ मिल रहा है तो जवाब में कहा गया की सूचना एकत्रित की जा रही है।
सरकार से नियुक्त सलाहकारों को लेकर प्रश्न पूछा गया तो जवाब दिया गया की सूचना एकत्रित की जा रही है। निगमों/बोर्डों में नियुक्त अध्यक्षों/उपाध्यक्षों/सदस्यों को लेकर पूछे गये प्रश्न का जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है दिया गया। रोजगार को लेकर पूछे गये प्रश्नों का जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है दिया गया। सदन में तो इस तरह के जवाब से तो थोड़ी देर के लिये बचा जा सकता है लेकिन जिस जनता को इन सवालों से फर्क पड़ता है उसे कैसे चुप कराया जायेगा क्योंकि उसके सामने तो हर सवाल खुली किताब की तरह है। आज सरकार ने निकाय चुनाव दो वर्ष के लिये ओ.बी.सी. आरक्षण के नाम पर टाल दिये हैं। संभव है कि पंचायत चुनावों को भी आपदा अधिनियम लागू होने के कारण टालने का आधार बन पाये। इस तरह सरकार चुनावी परीक्षा से तो बच जायेगी और उसका कार्यकाल निकल जायेगा। लेकिन इस तरह से विधानसभा चुनावों के समय सरकार क्या करेगी? अभी जब निकाय और पंचायत चुनावों की परीक्षा से बचा जा सकता है तो फिर संगठन का गठन भी कुछ समय के लिये टाले रखने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

सुक्खू सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर उठे गंभीर सवाल

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर जो चिंता कैग रिपोर्ट में व्यक्त की गयी है उससे भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। बढ़ता कर्ज भार और उसके मुकाबले में घटता राजस्व एक ऐसी स्थिति के प्रति गहरा संकट और संदेश है जिस पर यदि समय रहते अंकुश न लगाया गया तो स्थितियां बहुत भयानक हो जायेंगी। क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक जो कर्ज उठाया जा रहा है उसका 64% से 70% तक सरकार वेतन, पैन्शन और ब्याज की अदायगी पर खर्च कर रही है और विकासात्मक कार्यों के लिये जिन से राजस्व पैदा होगा सिर्फ 30% ही बचता है। जबकि सरकार जो भी कर्ज लेती है वह विकास कार्यों में निवेश के नाम पर लेती है। क्योंकि प्रतिबद्ध खर्चाे के लिए कर्ज उठाने का नियमों में कोई प्रावधान ही नहीं है। प्रतिबद्ध खर्च सरकार को अपने ही संसाधनों से पूरे करने होते हैं और यह संसाधन है ही नहीं। इसके लिये गलत बयानी करके विकास के नाम पर कर्ज उठाया जाता है और इसी से सरकार के वित्तीय प्रबंधन का कौशल सामने आता है। सुक्खू सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कुल कर्जभार 70000 करोड़ के करीब था जो अब बढ़कर एक करोड़ पहुंच गया है। हर माह सरकार को करीब एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार की कर्ज लेने की सीमा 7000 करोड़ और अभी तक सरकार 6500 करोड़ के करीब कर्ज ले चुकी है। अगले आने वाले समय में कैसे जुगाड़ किया जायेगा यहां एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इतना कर्ज उठाकर भी यह सरकार पिछली देनदारियां पूरी नहीं कर पायी है। यह सवाल उठने लग पड़ा है कि आखिर कर्ज का निवेश हो कहां रहा है। सरकार लगातार यह आरोप लगाती आ रही है कि उसे केन्द्र की ओर से पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। जबकि सदन के पटल पर सवालों के जवाब में आये आंकड़ों के अनुसार यह आरोप आधारहीन हो जाता है। क्योंकि आपदा प्रबंधन में ही 31-7-2025 तक तीन वर्षों में 3578 करोड़ 63 लाख सरकार को मिले हैं। एडीबी से चार परियोजनाओं के लिए दो वर्षों में 31-7-2025 तक 625 करोड़ 87 लाख मिले हैं। जल शक्ति विभाग में 1-1-23 से 31-7-2025 तक 1598 करोड़ 76 लाख 22900 रुपए मिले हैं। स्वास्थ्य विभाग में चल रही विभिन्न योजनाओं के लिए 1877.24 करोड़ मिले हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में केन्द्र से इतनी धनराशि मिलने के बाद भी आयुष्मान भारत और हिम केयर में 657 करोड़ की देनदारियां पड़ी हुई हैं। कर्मचारियों के मैडिकल बिलों का भुगतान नहीं हो रहा है। लेकिन वित्तीय प्रबंधन कमजोर होने के कारण केन्द्र से मिला 1024 करोड़ यह सरकार खर्च नहीं कर पायी और यह पैसा केन्द्र को वापस कर दिया गया। इसी तरह 14 मामलों के लिये 711 करोड़ का अनुपूरक बजट में प्रावधान किया गया और अन्त में यह सामने आया कि इन मामलों के लिये मूल बजट में जो प्रावधान किया गया था वह ही खर्च नहीं हो पाया। इसी तरह 40 परियोजनाओं के लिये जारी किये गये बजट में से एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया।
संसाधनों के नाम पर सरकार ने दस उपकर लगा रखे हैं  पंचायती राज संस्था मार्च 99 से, मोटर वाहन पर सैस 1-4-2017 से, गऊ धन विकास निधि 1-8-2018 से, एम्बुलैन्स सेवा फण्ड 1-8-2018 से, कोविड सैस 1-6-2020 से 2023 तक,  मिल्क सैस 1-4-2023 से, प्राकृतिक खेती सैस 1-4-2024 से, दुग्ध उपकर 26-9-2024से, मिल्कऔर पर्यावरण सैस 10-09-2009 से, लेबर सैस 4-12-2009 और 2023 से इन उपकरों से अब तक सरकार 762 करोड़ 13 लाख 60421.90 पैसे कमा चुकी है। यही नहीं सुक्खू सरकार ने ही जो कर और शुल्क लगाये हैं उनसे अब तक 5200 करोड़ अर्जित कर चुकी है। यदि सरकार द्वारा रखे गये तीन वर्षों के बजटों का आकलन किया जाये तो इनमें कुल आय और खर्चे में जो घाटा दिखाया गया है उसके आंकड़े उठाये गये कर्ज से मेल नहीं खाते हैं। अब जब इस वर्ष लिये जाने वाले कुल 7000 करोड़ के कर्ज में अब बचे ही एक हजार से कम है तो अगले महीनों का प्रबंध कैसे होगा? निश्चित है कि आने वाले समय में वेतन और पैन्शन का सुचारु भुगतान कैसे हो पायेगा यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है। क्योंकि जनता पर और कर्ज भार बढ़ाना संभव नहीं होगा और राजनीतिक मित्रों को दी गयी ताजपोशियां और आर्थिक लाभों में कटौती नहीं हो पायेगी। इस परिदृश्य में अगला वित्तीय प्रबंधन सरकार के लिए कसौटी हो जायेगा।

होशियार सिंह की चुनाव याचिका से प्रदेश में राजनीतिक तूफान के संकेत

शिमला/शैल। क्या हिमाचल भी राजनीतिक तूफान की ओर बढ़ रहा है? क्या प्रदेश सरकार संकट में घिर सकती है? यह सवाल पूर्व विधायक और देहरा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे होशियार सिंह द्वारा चुनाव याचिका दायर करने के बाद उठ खड़े हुये हैं। यह माना जा रहा है कि राहुल गांधी की अगवाई में जिस तरह से वोट अधिकार यात्रा में वोट चोरी के आरोप पर भारी जन समर्थन देखने को मिला है। उससे चुनाव आयोग और केंद्र सरकार दबाव में आ चुके हैं। क्योंकि इस बार भाजपा का पर्याय बन चुके प्रधानमंत्री मोदी कुछ व्यक्तिगत सवालों में भी बुरी तरह से घिरते जा रहे हैं। यह सवाल खड़े करने वाले भी उन्हीं के विश्वस्त लोग रहे हैं। फिर वोट चोरी का आरोप ऐसे प्रमाणिक आंकड़ों पर आधारित है जिनका जवाब चुनाव आयोग नहीं दे पाया है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि राहुल कि भारत जोड़ो यात्रा भाजपा को लोकसभा में 240 के आंकड़े पर रोक सकती है तो वोट चोरी का आरोप तो और भी बड़ा आरोप है।
ऐसे में इस आरोप का राजनीतिक जवाब देने के लिये कांग्रेस शासित राज्यों में वहां की सरकारों पर हमला बोलकर जवाब देने की रणनीति अपनाई जा सकती है। इसी रणनीति के तहत हिमाचल में ‘‘वोट फॉर कैश’’ का मुद्दा अब उठाया जा रहा है। स्मरणीय है कि देहरा विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा की ओर से पूर्व विधायक होशियार सिंह उम्मीदवार थे और कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री की पत्नी श्रीमती कमलेश ठाकुर उम्मीदवार थी। इसी उपचुनाव में आचार संहिता लगने के बाद वोटिंग से एक सप्ताह पहले कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक धर्मशाला द्वारा चुनाव क्षेत्र के सारे महिला मण्डलों को पैसा आबंटित किया गया था। कांगड़ा सहकारी बैंक के अतिरिक्त जिला कल्याण अधिकारी द्वारा भी इसी दौरान कुछ महिलाओं को पैसा आबंटित किया गया था। इस पैसा आबंटन को चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन माना गया। प्रदेश विधान सभा के बजट सत्र में हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने इस आश्य का एक सवाल भी पूछा था। जब इसका जवाब नहीं आया तब आशीष शर्मा ने अपनी ओर से जुटाई जानकारी सदन के पटल पर रख दी थी। दूसरी ओर होशियार सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत इस संबंध में सारी जानकारी जुटायी और 25 मार्च को महामहिम राज्यपाल को संविधान की धारा 191(1) (e) और 192 के तहत शिकायत भेज दी। लेकिन इस शिकायत पर आज तक कोई कारवाई होना सामने नहीं आया है। बल्कि राजभवन से लेकर पूरी भाजपा तक इस मामले पर खामोश रहे।
अब जब केन्द्र में राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा और वोट चोरी के आरोपों के बाद सारा राजनीतिक वातावरण गंभीर हो उठा है तब हिमाचल में इस प्रकरण के इस तरह से पुनः चर्चा में आने को एक अलग ही नजर से देखा जाने लगा है। इस मामले में विधानसभा में पुनः सवाल पूछा गया तो जवाब आया की सूचना एकत्रित की जा रही है। इस पर यह प्रश्न चिन्ह लगा कि जो सूचना आर.टी.आई. के माध्यम से बाहर आ चुकी है उसे सदन में क्यों नहीं रखा जा रहा है। इन्हीं सवालों के बीच होशियार सिंह ने चुनाव याचिका दायर कर मामला उच्च न्यायालय में पहुंचा दिया है। उच्च न्यायालय में पहुंचने पर स्वभाविक रूप से राजभवन से लेकर पूरी भाजपा में इस पर नये सिरे से हलचल होगी। संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इस मामले में राज्यपाल की रिपोर्ट पर ही चुनाव आयोग सारी कारवाई कर सकता है क्योंकि पैसा आबंटन के प्रामाणिक दस्तावेज बाहर आ चुके हैं। इस मामले का प्रदेश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। सूत्रों की माने तो भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के संज्ञान में यह मामला आ चुका है और राहुल गांधी को जवाब देने के लिये इसे बड़ा कारगर हथियार माना जा रहा है।

रोजगार पर स्वतः विरोधी आंकड़ों में उलझी सरकार

शिमला/शैल। हिमाचल में सरकार ही सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। इसलिए हर राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिये बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने का आश्वासन देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है। कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनावों में युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये प्रतिवर्ष एक लाख नौकरियां उपलब्ध करवाने की गारंटी दी थी। पांच वर्षों में पांच लाख नौकरियां दी जानी थी। यह गारंटी अपने में एक बहुत बड़ा वायदा था। जिसका चुनावी परिदृश्य पर असर होना स्वभाविक था और परिणामतः कांग्रेस की सरकार बन गयी। सरकार बनने के बाद इस दिशा में एक मंत्रियों की कमेटी बनायी गयी यह पता लगाने के लिये की सरकार में कुल कितने पद खाली हैं। इस मंत्री कमेटी के मुताबिक सरकार में 70000 रिक्त पद पाये गये। इससे यह उम्मीद बंधी की कम से कम यह 70000 पद तो तुरंत प्रभाव से भर ही लिये जाएंगे। दिसम्बर 2022 में कांग्रेस की सरकार बनी थी और 2024 में विधानसभा में एक प्रश्न के माध्यम से यह पूछा गया था कि अब तक कितने लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया कि 34980 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। लेकिन अभी 15 अगस्त के समारोह में मुख्यमंत्री ने 23191 लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने का आंकड़ा परोस दिया। सतपाल सती और विपिन परमार के प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि गत दो वर्षों में विभिन्न विभागों में विभिन्न श्रेणियों के कुल 5960 पद सृजित किये गये और 1780 पद समाप्त किये गये।
रोजगार पर आये इन आंकड़ों से यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि एक लाख रोजगार प्रतिवर्ष उपलब्ध करवाने की गारंटी देकर आयी सरकार की इस क्षेत्र में उपलब्धियां क्या हैं? इसी के साथ यह सवाल और खड़ा होता है कि 15 अगस्त के भाषण के लिये मुख्यमंत्री को सामग्री उपलब्ध करवाने वाले तंत्र ने भी इसका ख्याल नहीं रखा की रोजगार पर पहले विधानसभा में क्या आंकड़ा रखा गया है। सदन में रखी जा रही जानकारी की विश्वसनीयता पर तो कांग्रेस विधायक आर.एस.बाली ने भी गंभीर आक्षेप उनके बिजली बिल को लेकर रखे गये आंकड़े पर उठाया है। आंकड़ों की विश्वसनीयता पर ही तो भाजपा विधायक सुधीर शर्मा का विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव आया है। जबकि यह माना जाता है कि प्रशासन विधानसभा में जानकारियां उपलब्ध करवाने में विशेष सतर्कता बरतता है। क्योंकि जिस प्रश्न का उत्तर आसानी से न मिल रहा हो उसका जवाब देने के लिए सूचना एकत्रित की जा रही है का विकल्प अपना लिया जाता है।
इस परिदृश्य में यदि यह आकलन किया जाये कि अब तक के कार्यकाल में चुनावों के दौरान बांटी गयी गारंटीयों पर सरकार कहां खड़ी है तो इन्हीं आंकड़ों से सरकार की सारी कारगुजारी सामने आ जाती है। क्योंकि प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा दस लाख से ऊपर है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा 46% तक जा पहुंचा है। यह सामने आ चुका है कि इस सरकार ने आउटसोर्स पर पुराने लगे बहुत सारे युवाओं को हटाकर नई कंपनियों के माध्यम से नये लोगों को रोजगार देने का प्रयास किया है। आउटसोर्स का मामला अदालत तक भी पहुंच गया था। ऐसे में रोजगार के मामले में सरकार को बहुत ज्यादा चौकस रहना होगा। इस संबंध में स्वतः विरोधी आंकड़े सरकार द्वारा परोसे जाना विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा कर देते हैं और रोजगार ही प्रदेश का मुख्य मुद्दा है। आंकड़ों के विरोधाभास पर तंत्र की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। क्योंकि विपक्ष तो इस स्वतः विरोध को सरकार के खिलाफ एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा।

क्या कांग्रेस संगठन का गठन ऐसे हो पायेगा?

शिमला/शैल। कांग्रेस संगठन पर अब तक यह फैसला नहीं हो पाया है कि अगला अध्यक्ष कौन होगा और उसकी कार्यकारिणी का स्वरूप क्या होगा ? यह सवाल इसलिये गंभीर और महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी भाजपा और मोदी सरकार से भीड़ते जा रहे हैं उन्हें उसी अनुपात में कांग्रेस शासित राज्यों से सहयोग चाहिये? इस समय देश के तीन ही राज्यों हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारें हैं। इनमें हिमाचल में लम्बे अरसे से प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर तक सारी कार्यकारणीयां भंग चल रही हैं। कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं द्वारा सदन में आरएसएस की प्रार्थना का गायन किया जाना कुछ ऐसे संकेत बनते जा रहे हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में सब ठीक नहीं चल रहा है। राहुल गांधी ने गुजरात के एक आयोजन में यह कहा था कि कांग्रेस में भाजपा के सैल कार्यरत है। लेकिन अभी तक इन सैलों को चिन्हित करके बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जा सका है। लेकिन राहुल के कथन के बाद अधिकांश कांग्रेसियों को भाजपा के स्लीपर सैल के रूप में देखा जाने लग पड़ा है। इस समय बिहार में वोट चोरी के आरोप पर जिस तरह का जन आन्दोलन खड़ा होता जा रहा है क्या उसी अनुपात में कांग्रेस शासित राज्यों में भी उसी तरह का राजनीतिक वातावरण तैयार होता जा रहा है ? तो हिमाचल की स्थिति को देखते हुये कहा जा सकता है कि शायद नहीं। हिमाचल में संगठन की कार्यकारणीयां भंग होने के बाद कुछ अरसे तक यह संकेत उभरते रहे कि नई टीम का गठन भी प्रतिभा सिंह के नेतृत्व में ही होगा। लेकिन अब यह सन्देश स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस का अध्यक्ष भी बदला जायेगा। अभी जिस तरह से वोट चोरी के मुद्दे पर कांग्रेस कार्यालय में आयोजन रखा गया था और उसमें जिस तरह से प्रदेश प्रभारी के सामने ही मुख्यमंत्री सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के समर्थकों में अपने-अपने नेता के पक्ष में नारेबाजी की गयी उससे स्पष्ट हो गया कि प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। इस नारेबाजी का प्रतिफल यह रहा है कि वोट चोरी का मुद्दा कांग्रेस कार्यालय से बाहर फील्ड में कहीं नहीं जा पाया है। बल्कि अब तो यह चर्चा भी दबी जुबान में चल पड़ी है कि यह नारेबाजी एक तय योजना के साथ की गयी थी कि इसे फील्ड में न ले जाना पड़े। कांग्रेस कार्यालय में हुई नारेबाजी के बाद संगठन के गठन की बात फिर बैक फुट पर चली गयी है। क्योंकि इस नारेबाजी में पार्टी के अन्दर बन चुकी गुटबाजी पूरी तरह खुलकर सामने आ गयी है। इस तरह की नारेबाजी के चलते कांग्रेस का हाईकमान से आया कोई भी निर्देश व्यवहारिक शक्ल नहीं ले पायेगा। इस समय अगले प्रदेशाध्यक्ष को लेकर चल रही खींचतान में यह स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू इस पद पर किसी अपने विश्वस्त को ही बैठना चाहते हैं। अध्यक्ष के लिये कोई भी मंत्री अपना मंत्री पद छोड़कर यह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। मंत्रियों के बाद पूर्व मंत्रियों कॉल सिंह ठाकुर और आशा कुमारी भी चर्चाओं के अनुसार इसके लिये सहमत नहीं हो पाये हैं। अब मुख्यमंत्री शायद इस पद के लिये हमीरपुर जिले से विधायक सुरेश कुमार को अपनी पसन्द बना सकते हैं। लेकिन इस नाम पर औरों की सहमति हो पायेगी इसको लेकर संशय है। जब प्रदेश में किसी न किसी कारण से संगठन का गठन ही लटकना चला जायेगा तो हाईकमान को राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रदेश से कितना व्यवहारिक सहयोग मिल पायेगा यह एक सामान्य समझ की बात है। प्रदेश सरकार इस वर्ष के अन्त में होने वाले निकाय चुनावों को टालने में सफल हो गयी है। बहुत संभव है कि किसी तरह पंचायत चुनावों को भी टालने का जुगाड़ कर ही लिया जायेगा। यह चुनाव ही सरकार के लिये एक परीक्षा होने जा रहे थे। जब यह परीक्षा ही टल जायेगी तो और कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है और फिर राष्ट्रीय कार्यक्रमों को फील्ड में ले जाने की भी आवश्यकता नहीं रह जाती है।

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