शिमला/शैल। जयराम सरकार का सत्ता में एक वर्ष पूरा होने जा रहा है। इस अवसर पर सरकार धर्मशाला में एक बड़ा जश्न आयोजित करने जा रही है। इस मौके पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। अगले वर्ष मई में लोकसभा के चुनाव होने हैं और इस बार भाजपा ने 300 सीटें जीतने का लक्ष्य बहुत पहले से ही घोषित कर रखा है। लेकिन अब पांच राज्यों मे मिली हार के बाद प्रधानमन्त्री और अमितशाह इस लक्ष्य को कैसे प्रस्तुत करते हैं इस पर सबकी निगाहें रहेंगी। पिछले चुनावों में भाजपा को प्रदेश की चारों सीटों पर जीत हासिल हुई थी और तब प्रदेश में वीरभद्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी जबकि अब तो प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में सरकार को फिर से यह जीत हासिल करने में कोई कठिनाई नही होनी चाहिये। लेकिन जिस ढंग से प्रदेश में सरकार और पार्टी चल रही है उसको लेकर पार्टी के भीतर ही एक बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि इस बार यह जीत आसान नही होगी।
सरकार ने इस जश्न के मौके पर सारे विभागों को निर्देश दिये हैं कि वह एक वर्ष की अपनी उपलब्धियों की प्रदर्शनी लगाकर जनता को इसकी जानकारी दें। सभी विभागों से कहा गया है कि इन उपलब्धियों को लेकर अपने विभाग की एक लघुपुस्तिका भी छापें। इस पुस्तिका की संख्या 25 से 30 हजार के बीच रखने का लक्ष्य रखा गया है। यह भी निर्देश दिये गये हैं कि विभाग अपनी योजनाओं के लाभार्थियों को भी इस जश्न में लायें। सरकार का प्रयास कितना सफल होता है इसका आंकलन तो जश्न के बाद ही हो पायेगा। लेकिन इस जश्न के मौके पर जो पुस्तिकायें प्रसारित की जायेंगी उनमें दर्ज तथ्यों की प्रमाणिकता को परखने का आगे मौका मिल जायेगा। केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं से सही में कितनों को लाभ पहुंचा है उसकी शिनाख्त भी आसानी से हो जायेगी। इस नाते यह जश्न सरकार के कामकाज का आडिट भी बन जायेगा। क्योंकि जो भी उपलब्धियां इसमें जनता के सामने रखी जायेंगी उनकी सत्यता की पड़ताल करना आसान हो जायेगा।
जंहा सरकार इस मौके पर अपनी उपलब्धियों का पिटारा जनता के सामने रखने जा रही है वहीं पर कांग्रेस इसी दिन सरकार के खिलाफ आरोपपत्र लेकर आ रही है। इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि उपलब्धियों का पलड़ा भारी रहता है या आरोपपत्र का। अभी शीत सत्र में पहले ही दिन सरकार द्वारा रामदेव के पंतजलि योग पीठ को लीज पर करीब 96 बीघा ज़मीन देना विशेष रूप से उठा। इसमें जब पंतजलि योगपीठ ने 2017 में प्रदेश उच्च न्यायालय से अपनी याचिका बिना शर्त वापिस ली थी तब सरकार ने इस लीज़ पर पुनः विचार करते हुए उपायुक्त सोलन को निर्देश दिये थे कि वह नये सिरे से लीज़ दस्तावेज तैयार करे। इन निर्देशों की अनुपालना करते हुए पट्टा नियम 2013 के नियम 8(1) और (II) के प्रावधानों के अनुसार इसकी गणना करतें हुए वार्षिक पट्टा राशी 1,19,52,360/-रूपये तय की थी और इस राशी पर हर पांच वर्ष बाद 5% की बढौत्तरी करने का प्रारूप सरकार और योगपीठ को भेजा था लेकिन इस प्रारूप के हस्ताक्षरित होने से पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया। सत्ता परिवर्तन के बाद अक्तूबर 2018 मे योगपीठ से सरकार को पत्र लिखकर यह आग्रह किया कि 1,19,52,360 /- रूपये की राशी बहुत अधिक है अतः इसे कम करने पर विचार किया जाये। योगपीठ के इस आग्र्रह पर जयराम सरकार ने इस पर पुनः विचार किया। यह विचार 2016 में संशोधित किये गये पट्टा नियमों के अनुसार किया गया। इन नियमों में स्वास्थ्य अवसंरचना के विकास हेतु लायी गयी योजनाओं को विशेष छूट देने का प्रावधान है। इस प्रावधान का प्रयोग करते हुए लीज़ पर दी जाने वाली 96 बीघे ज़मीन की कुल कीमत 11,95,23,600 /- रूपये आंकी गयी और इस इस कीमत का कुल 20% ही योगापीठ से एकमुश्त लेने का निर्णय लिया गया। इस तरह 2017 में जो लीज़ राशी प्रति वर्ष 1,19,52,360/- ली जानी उपायुक्त सोलन ने आकलित की थी वह अब केवल एक मुश्त 2,39,04,720 रूपये ली जायेगी। यहां पर यह सवाल उठता है कि क्या योगपीठ जैसा व्यापारिक संस्थान इस तरह की छूट का पात्र हो सकता है। यही नहीं अभी सरकार नगर निगम शिमला क्षेत्र में ही संघ परिवार की दो ईकाईयों को करीब 24000 वर्ग मीटर भूमि देने जा रही है। जिलाधीश शिमला ने इसके लिये नगर निगम से अन्नापत्ति प्रमाण पत्र भी हासिल कर लिया है क्या इन इकाईयों को इतनी ज़मीन दी जा सकती है यह एक और सवाल खड़ा हो गया है। माना जा रहा है कि यह सारे आरोप कांग्रेस के आरोपपत्र में दर्ज रहेंगे। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर यह दावा करते आ रहे हैं कि उन्हे विभिन्न योजनाओं के लिये केन्द्र से 9000 करोड़ की धनराशी मिलने का आश्वासन मिल चुका है। लेकिन यह योजनाएं कौन सी है इनका विवरण सरकार की ओर से नही दिया गया है। इसी तरह जिन राष्ट्रीय उच्च मार्गों के मिलने का दावा सरकार अब तक करती आ रही है उनकी डिटेल भी अब तक जारी नही हो पायी है। अभी तक सरकार स्कूली बच्चों को बर्दीयां उपलब्ध नही करवा पायी है। क्योंकि सरकार एकमुश्त तीन वर्ष की खरीद इकट्ठी ही कर लेना चाहती है। दूसरी ओर से अभी तक स्कूलों में अध्यापकों और अस्पतालों में डाक्टरों की कमी को पूरा नही किया जा सका है। मुख्यमन्त्री ने तीन महीने पहले यह दावा किया था कि दस दिनों के भीतर प्रदेश की सड़कों के गड्डे भर दिये जायेंगे लेकिन मुख्यमन्त्री का यह दावा हकीकत में कितना पूरा हो पाया है इसका प्रमाण शिमला, धर्मशाला उच्च मार्ग का शालाघाट से नम्होल तक का हिस्सा ब्यान कर देता है। इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर उपलब्धियां या आरोप किसका पलड़ा भारी रहता है क्योंकि दोनो एक साथ जनता के सामने आयेंगे।
शिमला/शैल। एचपीसीए और अनुराग ठाकुर के खिलाफ धर्मशाला राजकीय महाविद्यालय के आवासीय परिसर को गिराने तथा उसकी 720 वर्ग मीटर भूमि पर नाजायज़ कब्जा करने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर को भी सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। यह फैसला 6-12-2018 को आया है। स्मरणीय है कि जब एचपीसीए के खिलाफ दर्ज हुई पहली एफआईआर को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द किया था तब फैसले में इस दूसरी एफआईआर को भी साथ रद्द कर दिये जाने का उल्लेख फैसले में आ गया था और आम आदमी में चला गया था कि दोनों ही एफआईआर एक साथ ही रद्द हो गयी है। इस पर वीरभद्र सिंह के वकील ने एतराज जताया और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अपनी भूल मानते हुए स्पष्ट किया था कि दूसरी एफआईआर रद्द नहीं हुई है। यह दूसरी एफआईआर अब छः दिसम्बर को रद्द हुई है। स्मरणीय है कि
वीरभद्र के शासनकाल में विजिलैन्स का सारा समय और ध्यान एचपीसीए और अनुराग ठाकुर तथा प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ ही मामले खड़े करने में ही गुजरा है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी इन मामलों को जायज ठहराने के लिये वीरभद्र सिंह के वकील ने बहुत प्रयास किया जो कि सफल नही हो सका। इस पृष्ठभूमि में यह मामले और इन पर आया सर्वोच्च न्यायालय का फैसला प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव डालेगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। क्योंकि इन मामलों को वापिस लेने की बात तो जयराम सरकार करती रही है लेकिन व्यवहारिक तौर पर सीआरपीसी की धारा 321 के तहत औपचारिक आवेदन नही कर पायी थी।
विधानसभा चुनावों के दौरान जब भाजपा हाईकमान को यह लगा था कि प्रदेश का नेता घोषित किये बिना चुनावों में जीत की सुनिश्चितता तय नही हो सकती तब प्रेम कुमार धूमल को भावी मुख्यमन्त्री घोषित किया गया था। नेता घोषित होने के बाद धूमल ने किस कदर पूरे प्रदेश में प्रचार अभियान को नया अंजाम दिया और इस घोषणा पर प्रदेश भाजपा के किन नेताओं की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष क्या प्रतिक्रिया रही है इसे राजनीतिक विश्लेषक अच्छी तरह जानते हैं। कांग्रेस और विशेषकर वीरभद्र सिंह, धूमल को किस तरह देखते हैं इसका अन्दाजा भी इसी से लगाया जा सकता है कि जब दूसरी एफआईआर के रद्द होने के उल्लेख को सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी भूल माना था तब इस पर वीरभद्र सिंह की प्रतिक्रिया कितनी व्यंग्यात्मक आई थी। धूमल और अनुराग के खिलाफ इन एफआईआर को बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में देखा जा रहा था। यह चर्चा आम थी कि इस एफआईआर के माध्यम से अनुराग को आगे हमीरपुर से प्रत्याशी बनने से रोका जायेगा और इस तरह से धूमल परिवार को आसानी से प्रदेश की सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया जायेगा। जयराम सरकार बनने के बाद जिस तरह से जंजैहली में एसडीएम कार्यालय को लेकर लोगों में विवाद खड़ा हुआ और धरना प्रदर्शनों से लेकर उच्च न्यायालय तक मामला पहुंच गया था तब कुछ हल्कों में इस प्रकरण में धूमल की अपरोक्ष भूमिका को लेकर कई चर्चाएं उठ खड़ी हुई थी। इन चर्चाओं ने किस तरह का राजनीतिक आकार ले लिया था इसका खुलासा इसी से हो जाता है कि धूमल को उस समय यहां तक कहना पड़ गया था कि सरकार चाहे तो उनकी भूमिका की सीआईडी से जांच करवा ली जाये। जयराम और धूमल के राजनीतिक रिश्तों का इससे पूरा खुलासा हो जाता है। यह सही है कि अगर धूमल जीत गये होते तो वही मुख्यमन्त्री होते। इसी के साथ यह भी उतना ही सच है कि आज जयराम मुख्यमन्त्री हैं और वह भी अब आसानी से इस पद को छोड़ना नही चाहेंगे। लेकिन इस सबके साथ यह भी उतना ही बड़ा सच है कि पार्टी में जो लोग इस समय जयराम के ही केन्द्र या राज्य विधानसभा में पहुंचे हुए हैं। वह भी स्वभाविक रूप से यह पद पाने की ईच्छा पाले हुए हैं ऐसे में जयराम कुर्सी को कांग्रेस की बजाये भाजपा के अपनों से ही सबसे पहले खतरा है। अब लोकसभा चुनाव होने हैं और यह चुनाव जयराम सरकार की पहली राजनीतिक परीक्षा सिद्ध होंगे। एफआईआर रद्द होने के बाद अब अनुराग के पुनः उम्मीदवार होने को लेकर कोई संशय नहीं रह गया है बल्कि इस एफआईआर का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किया जाना धूमल, अनुराग और भाजपा के हाथ कांग्रेस विशेषकर वीरभद्र के खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार लग जाता है। इससे कांग्रेस के खिलाफ शीर्ष अदालत का फतवा बन जाता है कि किस तरह राजनीतिक विरोधीयों के खिलाफ आपराधिक मामले बनाये जा रहे थे। इस मामले को जयराम और भाजपा कितनी राजनीतिक हवा दे पाते हैं इसका पता आने वाले दिनों मे लग जायेगा। वैसे इस पर अभी तक भाजपा की चुप्पी रहस्य बनी हुई है।
यही नहीं पिछले दिनों राज कुमार राजेन्द्र सिंह को लेकर जो सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है वह वीरभद्र की पूरी राजनीतिक कार्यशैली पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर जाता है क्योंकि राजेन्द्र सिंह के पूरे अदालती आचरण को शीर्ष अदालत ने फाड़ की संज्ञा दी है लेकिन इस अहम मुद्दे पर भी जयराम और उनकी भाजपा अभी तक चुप है। इस चुप्पी को लेकर जयराम और वीरभद्र के राजनीतिक रिश्तों को विश्लेषक अलग ही अर्थ दे रहे हैं। इस परिदृश्य में जयराम सरकार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को कैसे और किन मुद्दों पर घेरेगी यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है। क्योंकि अभी तक भाजपा अपने ही आरोप पत्र पर कोई परिणाम सामने नहीं ला पायी है बल्कि कई मुद्दों पर तो बड़े बाबूओं ने जयराम से ऐसे भी फैसले करवा दिये हैं जो उनकी पूरी चार्जशीट की ही हवा निकाल देते हैं। भाजपा का यह आरोप पत्र उसके अपने ही गले की फांस सिद्ध हो सकता है। उपर से वीरभद्र की ‘‘ना’’ के बावजूद कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ एक सशक्त आरोपपत्र ला रही है। ऐसे में जयराम या उनकी टीम का कोई भी सदस्य ऐसा नही लग रहा है कि जो वीरभद्र को पूरी ताकत से घेर सकेगा। हिमाचल के वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेस एक बार फिर वीरभद्र के आगे बौनी पड़ गयी है। ऐसे में भाजपा में एक बार फिर यह हालात पैदा हो गये हैं कि यदि लोस चुनावों की बागडोर धूमल नही संभालते हैं तो भाजपा की स्थिति बहुत नाजुक हो जायेगी।
शिमला/शैल। राजधानी स्थित इन्दिरा गांधी मैडिकल कॉलिज में तीन साल पहले 45 करोड़ के निवेश से कन्द्रे ने टर्शरी कैंसर सैन्टर खोले जाने को स्वीकृति दी थी। इसके लिये 15 करोड़ की पहली किश्त भी जारी कर दी गयी थी जो आज तक बिना खर्च किये पड़ी हुई है। यह सैन्टर तीन साल में बनकर तैयार होना था। यदि ऐसा नही हो पाता है तो यह स्वीकृति 31 मार्च 2019 को समाप्त हो जायेगी और यह 45 करोड़ लैप्स हो जायेगा। अभी 2018 का दिसम्बर चल रहा है और इस सैन्टर के नाम पर अब तक एक ईंट भी नहीं लग पायी है जब यह सैंटर स्वीकार हुआ था तब शिमला में एनजीटी की ओर से निर्माणों पर कोई प्रतिबन्ध नही था। लेकिन एनजीटी के फैसले के अनुसार ऐसे सरकारी निर्माणों को इस प्रतिबन्ध से बाहर रखा गया है जो आवश्यक और आपात सेवाओं के दायरे में आते हैं। इस तरह इस सैन्टर के निर्माण में एनजीटी के फैसले में कोई बाधा नही हैं केवल इस फैसले के तहत निर्माणों की स्वीकृति देने के लिये बनाई कमेटीयों के पास इसका प्रारूप जाना है। दुर्भाग्य है कि प्रदेश की अफसरशाही अभी तक इसके प्रारूप को इन कमेटीयों तक नही ले जा पायी है। दुर्भाग्य तो यह है कि प्रदेश की जयराम सरकार के स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार को 45 करोड़ से इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में बनने वाले टर्शरी कैंसर सेंटर का स्टेटस ही नहीं पता है। जयराम सरकार को सत्ता में आए हुए एक साल हो गया लेकिन न तो मुख्यमंत्री व न ही मंत्री की अपने विभागों पर पकड़ बनी है।
राजधानी में प्रेस क्लब शिमला की ओर से आयोजित मीट द मीडिया कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री परमार से पूछा गया कि आइजीएमसी टर्शरी कैंसर सेंटर का निर्माण जयराम सरकार एक साल के कार्यकाल में क्यों शुरू नहीं कर पाई। परमार ने कहा कि इस मामले को मंजूरी के लिए एनजीटी को भेज दिया है। उन्होंने कहा कि यह सेंटर कोर एरिया में बन रहा है ऐसे में एनजीटी की इजाज़त लेनी जरूरी है। यह पूछने पर कि एनजीटी में सरकार की ओर से दायर अर्जी सुनवाई के लिए कब लगी है उन्होंने कहा कि सुपरवाइजरी कमेटी ने छः नवंबर को इस सेंटर को हरी झंडी दे दी है।
मंत्री परमार को इस टर्शरी कैंसर सेंटर के बारे में कुछ भी पता नहीं है। यहां तक जब मंत्रा ने स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक की थी तो भी यह सेंटर एजेंडे में नहीं था।
जबकि सही तस्वीर यह है कि बड़ी जददोजहद के बाद इस मसले पर एनजीटी के फैसले के बाद मार्च में गठित इंप्लीमेंटेशन कमेटी की 2 नवंबर को हुई बैठक में इस मसले पर मौखिक चर्चा हुई थी। चूंकि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और मंत्री से लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के एजेंडे में यह महत्वपूर्ण सेंटर पिछले एक साल से है ही नहीं। ऐसे में दो नवंबर की बैठक में इस मसले को ले जाने के लिए औपचारिकताएं ही पूरी नहीं की जा सकी थी। इसके बाद तीन महीने में एक बार होने वाली सुपरवाइजरी कमेटी की बैठक 13 नवंबर को रखी गई थी। इस बैठक से पहले इस मसले को सर्कुलेशन से इंप्लीमेंटेशन कमेटी के सदस्यों को भेजा गया 13 नवंबर को सुपरवाइजरी कमेटी ने इस पांच मंजिलें सेंटर को बनाने के लिए हरी झंडी दे दी। लेकिन सिफारिश की कि स्वास्थ्य विभाग इस मसले को आखिरी मंजूरी के लिए एनजीटी के समक्ष ले जाए। लेकिन 13 नवंबर से लेकर अब तक कहीं कुछ नहीं हुआ है।
सुपरवाइजरी कमेटी की प्रोसीडिंग्ज अब निकलनी हैं। हालांकि सुपरवाइजरी कमेटी के सदस्य सचिव की ओर से मामला नगर निगम को भेजा गया है। अब यह मामला नगर निगम में लटका है। मामला आइजीएमसी तक नहीं पहुंचा है। यह मामला नगर निगम से आइजीएमसी के पास जाएगा व आइजीएमसी इसे सचिवालय अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के पास एनजीटी के समक्ष उठाने को ले जाएगा। लेकिन अभी कुछ नहीं हुआ। आइजीएमसी के अधिकारियों ने माना कि मामला उनके पास नहीं आया है।
ऐसे में जयराम सरकार के स्वास्थ्य मंत्री गलत जानकारी सार्वजनिक कर रहे हैं। असल में उन्हें इस मामले को लेकर कुछ पता ही नहीं है। हालांकि मीट द मीडिया में उन्होंने यह भरोसा जरूर दिया कि इस पैसे को लैप्स नहीं होने दिया जाएगा। अगर इस सेंटर का काम शुरू नहीं हुआ तो यह पैसा 31 मार्च 2019 को लैप्स हो जाएगा। इस सेंटर को 15 करोड़ की किश्त तीन साल पहले आ चुकी है। पहले पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस सेंटर को लटकाया व जयराम सरकार इसे तरजीह नहीं दे रही है। मार्च से लेकर अब तक सरकार बुहत कुछ कर सकती थी। इंप्लीमेंटेशन कमेटी व सुपरवाइजरी कमेटी से भी यह मसला मीडिया के दखल के बाद आगे बढ़ा है।
शिमला/शैल। शिमला के सांख्यिकी विभाग में तैनात एक कनिष्ठ सहायक प्रेम ठाकुर द्वारा 55 दिन के मैडिकल अवकाश के बाद विभाग को सौंपा फिटनेस प्रमाणपत्र के बाद आईजीएमसी शिमला की कार्यप्रणाली गंभीर सवालों में घिर गयी है। क्योंकि जब प्रेम ठाकुर ने यह स्वास्थ्य प्रणाम पत्र सौंपा तब विभाग में इसकी प्रमाणिकता को लेकर सवाल उठ गये। क्योंकि इसकी प्रमाणिकता को लेकर कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष और महासचिव तथा सदस्यों ने विजिलैन्स में इसकी शिकायत दर्ज करवा दी। विजिलैन्स के साथ ही अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को भी यह शिकायत भेज दी। इस पर जब जांच शुरू हुई तक यह सामने आया कि जिस डा. राहुल गुप्ता ने यह फिटनेस जारी किया है वह आईजीएमसी में बतौर वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक तैनात ही नही है और इस कारण से वह यह प्रमाणपत्र जारी करने के लिये अधिकृत ही नही है। आईजीएमसी में वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक का अतिरिक्त कार्यभार तो न्यूरो विभाग के सजृन डा. जनक राज के पास है।
विजिलैन्स जांच में यह सवाल उठा कि प्रेम ठाकुर को जिस बीमारी के लिये स्वास्थ्य प्रमाणपत्र जारी किया है उसका संबंध तो आर्था विभाग से है जबकि प्रमाणपत्र जारी करने वाला डा. राहुल गुप्ता तो फॉरैन्सिक विभाग में सहायक प्रोफैसर है। सरकार के निर्देशों के अनुसार किसी बीमार को 14-21 दिन तक का ही रेस्ट दिया जा सकता है वह भी तब जब बीमार का ईलाज अस्पताल में वाकायदा दाखिल करके किया गया हो। लेकिन प्रेम ठाकुर तो एक दिन भी अस्पताल में दखिल नही रहे हैं। यही नही जांच के दौरान उनके पास अस्पताल की वह पर्ची भी उपलब्ध नही रही जिस पर दवाई और रेस्ट का विवरण रहा हो न ही वह उस डाक्टर को खोज पाये जिसने उन्हें देखा और रेस्ट लिखा हो। इसी दौरान यह भी सामने आया कि प्रेम ठाकुर ने 26-6-2014 को आईजीएमसी की एक पर्ची भी विभाग को सौंपी थी और इसमें उन्हें दिल का मरीज ‘‘दिखाया गया था लेकिन उस पर्ची के मुताबिक जिस डाक्टर ने उन्हें दिल का मरीज घोषित किया था वह हृदय रोग के विभागाध्यक्ष के मुताबिक विभाग में तैनात ही नही था। इस तरह प्रेम ठाकुर द्वारा दोनों बार दिये गये आईजीएमसी के स्वास्थ्य प्रमाणपत्र सन्देह के घेरे में आ गये हैं।
जब आईजीएमसी द्वारा जारी इन स्वास्थ्य प्रमाणपत्रों पर सवाल उठे तब इसको लेकर आईजीएमसी में भी एक जांच टीम गठित और इस टीम ने डा. राहुल गुप्ता को क्लीन चिट दे दी। प्रेम ठाकुर को जिस बीमारी के लिये 55 दिन का रेस्ट दिया गया है वह आर्थो से संबधित है लेकिन फिटनेस देने वाला डा. फारैन्सिक विशेषज्ञ है। आईजीएमसी के वष्शिठ मैडिकल अधीक्षक न्यूरो सर्जन है। इस नाते वह भी आर्थो के मरीज को फिटनेस देने के लिये कायदे से अधिकृत नही हो सकते। लेकिन इसके लिये आईजीएमसी में जो जांच टीम बनी उसमें एक तरह से वही डाक्टर शामिल किये गये जिनके खिलाफ प्रत्यक्षतः जांच होनी थी। यह जांच कायदे से प्रिंसिपल द्वारा की जानी चाहिये थी। वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक का पद पदोन्नती से भरा जाता है और इसके लिये ब्लॉक मैडिकल अफसरों की पात्रता रखी गयी है। लेकिन लम्बे अरसे से इस पद पर किसी भी विशेषज्ञ डाक्टर को अतिरिक्त कार्यभार देकर भर दिया जाता है। जबकि यह पद पूरी तरह प्रशासनिक है। आईजीएमसी में आरटीआई के तहत भी डाक्टर ही सूचना अधिकारी का काम कर रहे हैं जबकि यह काम प्रशासनिक अधिकारी या प्रिंसिपल का होना चाहिये। जब विशेषज्ञ डाक्टरों से प्रशासनिक काम लिया जायेगा तब यही होगा कि आर्थो के मरीज को फिटनेस न्यूरो सर्जन या फॉरैन्सिक मैडिसन वाले देंगे।
शिमला/शैल। भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गयी है। इसका पहला खुलासा मण्डी में हुए पहले पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में उस समय सामने आया जब प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती और फिर गृह मन्त्री राजनाथ सिंह ने मण्डी से मौजूदा सांसद राम स्वरूप शर्मा को यहां से पुनः प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा की। मण्डी के इस सम्मेलन में केन्द्रिय मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा और पंडित सुखराम शामिल नही थे और सुखराम ने इस सम्मेलन में राम स्वरूप को घोषित किये जाने पर यह कहकर सवाल उठा दिया कि सत्ती को नाम की घोषणा करने का कोई अधिकार नही है। पंडित सुखराम के इस एतराज का इतना असर हुआ कि सत्ती को सोलन में अपना यह ब्यान वापिस लेना पड़ा और साथ ही यह कहना पड़ा कि लोकसभा प्रत्याशीयों की घोषणा हाईकमान ही करेगा। मण्डी मुख्यमन्त्री जयराम का गृह जिला है। विधानसभा चुनावों में जब सुखराम परिवार को भाजपा में शामिल करके उनके बेटे अनिल शर्मा को टिकट दिया गया था तभी भाजपा मण्डी की दसों सीटों पर अपना कब्जा कर पायी थी। मण्डी में पंडित सुखराम परिवार का अपना एक प्रभाव है यह बहुत पहले से प्रमाणित हो चुका है। इसी प्रभाव के चलते सुखराम अपने पौत्र को भी सक्रिय राजनीति में उतारना चाहते हैं और इसके लिये उन्होंने लोकसभा टिकट दिये जाने की मांग रख दी है। स्मरणीय है कि उनके पौत्र ने विधानसभा चुनावों से बहुत पहले ही यह घोषित कर दिया था कि वह कांग्रेस के टिकट पर सिराज से चुनाव लड़ेंगे। इसके लिये उन्होंने कांग्रेस हाईकमान की स्वीकृति मिलने का दावा करते हुए यहां तक कह दिया कि पंडित सुखराम उनके लिये चुनाव प्रचार करेंगे।
लेकिन यह होने से पहले सुखराम परिवार भाजपा में शामिल हो गया। परन्तु इस सबसे यह स्पष्ट हो ही जाता है कि सुखराम अपने पौत्र को चुनावी राजनीति में उतारना चाहते हैं। इसके लिये लोकसभा चुनावों से ज्यादा बेहतर कोई मौका हो नही सकता। सूत्रों की माने तो सुखराम के लोग तो चुनाव प्रचार अभियान में जुट गये हैं अब यहां पर यह सवाल खड़ा होता है कि मण्डी के इस सम्मेलन में सत्ती और राजनाथ सिंह ने जो नाम की घोषणा कर दी क्या यह सब मुख्यमन्त्री की जानकारी और उनके विश्वास में लिये बिना किया जा सकता था शायद नहीं। पंडित सुखराम अपने पौत्र के अभियान मेें जुट गये हैं क्या इसकी जानकारी जयराम की सीआईडी ने उनको नही दी होगी। जबकि जंजैहली काण्ड को लेकर धूमल और जयराम सरकार के बीच जिस तरह के ब्यानों की नौबत आ गयी थी उसके बाद से तो मण्डी पर सीआईडी का ज्यादा फोकस रहा होगा। बल्कि जब मण्डी से मुख्यमन्त्री की पत्नी डाक्टर साधना ठाकुर की उम्मीदवारी की चर्चा उठी थी तब उस चर्चा को सुखराम के काऊंटर के रूप में देखा गया था। इस परिदृश्य में राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मण्डी मेें अन्ततः सुखराम के पौत्र और मुख्यमन्त्री की पत्नी दोनों में से किसी के हाथ यह टिकट लगेगा। यदि सुखराम टिकट की लड़ाई हार जाते हैं तो उसके बाद उनकी अगली रणनीति क्या होगी इस पर अभी से नज़रें लग गयी हैं।
इसी तर्ज पर इस बार कांगड़ा में भी टिकट को लेकर रोचक दृश्य देखने को मिलेगा। शान्ता कुमार एक बार फिर चुनाव के लिये तैयार हैं लेकिन इस बार यहां से विद्यार्थी परिषद भी प्रबल दावेदारी कर रही है। इस समय कांगड़ा से भाजपा के प्रदेश संगठन मन्त्री पार्टी कार्यालय को कन्ट्रोल करके बैठे हैं तो यहीं से प्रदेश के संघ प्रमुख भी हैं। इस तरह कांगड़ा में चार-चार सत्ता केन्द्र हो गये हैं। संघ प्रमुख संजीवन ने सचिवालय में सरकारी बैठकों में भी शिरकत करनी शुरू कर दी है। जिससे स्पष्ट हो जाता है कि संघ अब सीधे तौर पर भी सरकार पर नज़र रखने लग गया है। यदि कांगड़ा में सत्ता के इन चारों केन्द्रो में एक सहमति न हो पायी तो यहां पर पार्टी की राह आसान नही होगी।
हमीरपुर में यदि उम्मीदवारी अनुराग या स्वयं धूमल में से ही किसी की होती है तो यहां पार्टी की स्थिति काफी सुखद रह सकती है। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से ऊना में यह प्रचार सामने आया है कि यदि सत्ती जीत गये होेते तो वह इस बार मुख्यमन्त्री होते। इसी के साथ यह भी जोड़ा जा रहा है कि हमीरपुर से सत्ती को भी हाईकमान उम्मीदवार बना सकती है। वीरभद्र ने यहां से कांग्रेस में राजेन्द्र राणा का नाम घोषित कर दिया है। वीरभद्र और जयराम के रिश्ते आम आदमी में चर्चा में हैं। फिर पिछले दिनों राजेन्द्र राणा और जयराम में हुआ संवाद भी चर्चा में आ चुका है। माना जा रहा है कि हमीरपुर का सारा सियासी गणित इन रिश्तों के गिर्द ही घूमेगा।
शिमला में भाजपा महिला उम्मीदवार की तलाश में है क्योंकि वर्तमान सांसद वीरेन्द्र कश्यप के मामले में आरोप तय होने के बाद अभियोजन पक्ष की गवाहियां चल रही हैं। कश्यप का मामला उच्च न्यायालय के निर्देशों पर ट्रायल कोर्ट में पहुंचा है। इस तर्क पर यहां से महिला उम्मीदवार की बात की जा रही है। लेकिन संयोगवश जो भी महिला चेहरे इस दौड़ में माने जा रहे हैं वह अपने-अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं। इस नाते यहां पर सबसे ज्यादा सशक्त उम्मीदवार एचएन कश्यप को माना जा रहा है। क्योंकि 2004 में पहला चुनाव हारने के बाद वह लगातार लोगों से संपर्क बनाये हुए हैं और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी होने का भी उन्हे लाभ है। यदि किसी भी गणित में वह नज़रअन्दाज होकर घर बैठ जाते हैं तो उनका बैठना मात्र ही पार्टी पर भारी पड़ेगा। वैसे तो वह इस बार हर हाल में चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और उनकेे समर्थकों ने भी इसका अनुमोदन कर दिया है। पार्टी के भीतर उभर रही इन स्थितियों के परिणाम दूरगामी होंगे। इसी परिदृश्य में सरकार के पास इस एक वर्ष के कार्यकाल में कोई बड़ी उपलब्धि भी नहीं है। अभी सरकार एक वर्ष पूरा होने पर बड़ा जश्न मनाने जा रही है। इस मौके पर सभी विभाग अपनी-अपनी एक वर्ष की उपलब्धियों का ब्योरा पोस्टर छापकर जनता के सामने रखने जा रहा है। हर विभाग इस आश्य के तीस- तीस हजार पोस्टर छापेगा। इन पोस्टरों में जो कुछ दर्ज रहेगा उसकी पड़ताल जनता आसानी से कर लेगी क्योंकि आरटीआई के माध्यम से ही तथ्य जनता के सामने आ जायेंगे। अभी सरकार के उपर जो पत्र बंमों के हमले अपने ही लोगों ने किये हैं वह पहले ही जनता के सामने हैं और कल तो बड़े पैमाने पर यह जनता में चर्चा का विषय बनेंगे ही। एक वर्ष के कार्यकाल में सरकार अधिकांश में अधिकारियों के तबादलों में ही व्यस्त रही है और अन्त में जो नियुक्तियां /तबादले सामने आये हैं उनसे सरकार की कार्यशैली और नीयत दोनों पर ही गंभीर सवाल भी खड़े हो गये हैं। इस परिदृश्य में लोकसभा चुनाव जयराम सरकार के लिये कड़ी परीक्षा होने जा रहे हैं।